इंद्रवज्रा छंद आधारित "शिव पंचश्लोकी"
चाहे पुकारे जिस हाल में जग
शंकर महादेव हे ज्ञान राशी।
पीड़ा हरे नाथ संसार की सब
त्रिपुरारि भोले कैलाश वासी।।
जब देव दानव सागर मथे थे
निकला हलाहल विष घोर भारी।
व्याकुल हुए सब तुम याद आए
दूजा न कोई सन्ताप हारी।।
धारण गले में विष के किये से
नीला पड़ा कंठ मृणाल जिसका।
गंगा भगीरथ लाये धरा पे
धारण जटा में किया वेग उसका।।
फुफकार मारे विषधर गले से
माथे सजे चाँद सबका दुलारा।
तेरे लिये ही काशी का गौरव
ऐसा हमारा है नाथ न्यारा।।
भोले हमारे सब कष्ट हर लो
खुशियाँ हमारे जीवन में भर दो।
माथा नवा के करते 'नमन' हम
आशा हमारी सब पूर्ण कर दो।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-07-2016
(इन्द्रवज्रा छंद वाचिक स्वरूप में है)
चाहे पुकारे जिस हाल में जग
शंकर महादेव हे ज्ञान राशी।
पीड़ा हरे नाथ संसार की सब
त्रिपुरारि भोले कैलाश वासी।।
जब देव दानव सागर मथे थे
निकला हलाहल विष घोर भारी।
व्याकुल हुए सब तुम याद आए
दूजा न कोई सन्ताप हारी।।
धारण गले में विष के किये से
नीला पड़ा कंठ मृणाल जिसका।
गंगा भगीरथ लाये धरा पे
धारण जटा में किया वेग उसका।।
फुफकार मारे विषधर गले से
माथे सजे चाँद सबका दुलारा।
तेरे लिये ही काशी का गौरव
ऐसा हमारा है नाथ न्यारा।।
भोले हमारे सब कष्ट हर लो
खुशियाँ हमारे जीवन में भर दो।
माथा नवा के करते 'नमन' हम
आशा हमारी सब पूर्ण कर दो।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-07-2016
(इन्द्रवज्रा छंद वाचिक स्वरूप में है)