Friday, March 22, 2019

घनश्याम छंद "दाम्पत्य-मन्त्र"

विवाह पवित्र, बन्धन है पर बोझ नहीं।
रहें यदि निष्ठ, तो सुख के सब स्वाद यहीं।।
चलूँ नित साथ, हाथ मिला कर प्रीतम से।
रखूँ मन आस, काम करूँ सब संयम से।।

कभी रहती न, स्वारथ के बस हो कर के।
समर्पण भाव, नित्य रखूँ मन में धर के।।
परंतु सदैव, धार स्वतंत्र विचार रहूँ।
जरा नहिं धौंस, दर्प भरा अधिकार सहूँ।।

सजा घर द्वार, रोज पका मधु व्यंजन मैं।
लखूँ फिर बाट, नैन लगा कर अंजन मैं।।
सदा मन माँहि, प्रीत सजाय असीम रखूँ।
यही रख मन्त्र, मैं रस धार सदैव चखूँ।।

बसा नव आस, जीवन के सुख भोग रही।
निरर्थक स्वप्न, की भ्रम-डोर कभी न गही।।
करूँ नहिं रार, साजन का मन जीत जिऊँ।
यही सब धार, जीवन की सुख-धार पिऊँ।।
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लक्षण छंद:-

"जजाभभभाग", में यति छै, दश वर्ण रखो।
रचो 'घनश्याम', छंद अतीव ललाम चखो।।

 "जजाभभभाग" = जगण जगण भगण भगण भगण गुरु]
121  121  211   211   211  2 = 16 वर्ण

यति 6,10 वर्णों पर, 4 चरण, 2-2 चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
17-4-17

Saturday, March 16, 2019

चौपाई छंद "कलियुगी शतानन"

सिया राम चरणों में वंदन। मेटो अब कलयुग का क्रंदन।।
जब जब बढ़े पाप का भारा। तब तब प्रभु तुम ले अवतारा।।

त्रेता माहि भया रिपु भारी। सुर नर मुनि का कष्टनकारी।।
रावण नाम सकल जग जानी। दस शीशों का वह अभिमानी।।

कलयुग माहि जनम पुनि लीन्हा। घोर तपस्या विधि की कीन्हा।।
त्रेता से रावण को चीन्हा। सोच विचारि ब्रह्म वर दीन्हा।।

चार माथ का संकट भारी। विधि जाने कितना दुखकारी।।
ब्रह्मा चतुराई अति कीन्ही।वैसी विपदा वर में दीन्ही।।

जस जस अत्याचार बढ़ाये। त्यों त्यों वह नव मस्तक पाये।।
शत शीशों तक वर न रुकेगा। धर्म करेगा तभी थमेगा।।

वर का मर्म न समझा पापी। आया मोद मना संतापी।।
पा अद्भुत वर विकट निशाचर। पातक घोर करे निशि वासर।।

रावण ने फैलाई माया। सूक्ष्म रूप में घर घर आया।।
भाँत भाँत के भेष बनाकर। पैठे मानव-मन में जा कर।।

जहँ जहँ देखे कमला वासा। सहज लक्ष्य लख फेंके पासा।।
साहूकार सेठ उद्योगी। हुये सभी रावण-वश रोगी।।

वशीभूत स्वारथ के कर के। बुद्धि विवेक ज्ञान को हर के।।
व्याभिचार शोषण फैलाया। ठगी लूट का तांडव छाया।।

ब्रह्मा का वर टरै न टारे। शीश लगे बढ़ने मतवारे।।
त्रेता का जो वीर दशानन। शत शीशों का भया शतानन।।

अधिकारी भक्षक बन बैठे। सत्ता भीतर गहरे पैठे।।
आराजक हो लूट मचाये। जहँ जहँ लिछमी तहँ तहँ छाये।।

शत आनन के चेले चाँटे। संशाधन अपने में बाँटे।।
त्राहि त्राहि सर्वत्र मची है। माया रावण खूब रची है।।

पीड़ित शोषित जन हैं सारे। आहें विकल भरे दुखियारे।।
सुनहु नाथ अब लो अवतारा। करहु देश का तुम उद्धारा।।

इस शत आनन का कर नाशा। मेटो भूमण्डल का त्रासा।।
तुम बिन नाथ कौन जग-त्राता। 'बासुदेव' तव यश नित गाता।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-07-2016

चौपइया छंद *राखी*

पर्वों में न्यारी, राखी प्यारी, सावन बीतत आई।
करके तैयारी, बहन दुलारी, घर आँगन महकाई।।
पकवान पकाए, फूल सजाए, भेंट अनेकों लाई।
वीरा जब आया, वो बँधवाया, राखी थाल सजाई।।

मन मोद मनाए, बलि बलि जाए, है उमंग नव छाई।
भाई मन भाए, गीत सुनाए, खुशियों में बौराई।।
डाले गलबैयाँ, लेत बलैयाँ, छोटी बहन लडाई।
माथे पे बिँदिया, ओढ़ चुनरिया, जीजी मंगल गाई।।

जब जीवन चहका, बचपन महका, तुम थी तब हमजोली।
मिलजुल कर खेली, तुम अलबेली, आए याद ठिठोली।।
पूरा घर चटके, लटकन लटके, आंगन में रंगोली।
रक्षा की साखी, है ये राखी, बहना तुम मुँहबोली।।

हम भारतवासी, हैं बहु भाषी, मन से भेद मिटाएँ।
यह देश हमारा, बड़ा सहारा, इसका मान बढ़ाएँ।।
बहना हर नारी, राखी प्यारी, सबसे ही बँधवाएँ।
त्योहार अनोखा, लागे चोखा, हमसब साथ मनाएँ।।
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चौपइया छंद *विधान*

यह  प्रति चरण 30 मात्राओं का सममात्रिक छंद है। 10, 8,12 मात्राओं पर यति। प्रथम व द्वितीय यति में अन्त्यानुप्रास तथा छंद के चारों चरण समतुकांत। प्रत्येक चरणान्त में गुरु (2) आवश्यक है, चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद मनोहारी हो जाता है।
इस छंद का प्रत्येक यति में मात्रा बाँट निम्न प्रकार है।
प्रथम यति: 2 - 6 - 2
द्वितीय यति: 6 - 2
तृतीय यति: 6 - 2 - 2 - गुरु

(भए प्रगट कृपाला दीन दयाला इसी छंद में है।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-08-2016

चंचरीक छंद "बाल कृष्ण"

चंचरीक छंद / हरिप्रिया छंद

घुटरूवन चलत श्याम, कोटिकहूँ लजत काम,
सब निरखत नयन थाम, शोभा अति प्यारी।
आँगन फैला विशाल, मोहन करते धमाल,
झाँझन की देत ताल, दृश्य मनोहारी।।
लाल देख मगन मात, यशुमति बस हँसत जात,
रोमांचित पूर्ण गात, पुलकित महतारी।
नन्द भी रहे निहार, सुख की बहती बयार,
बरसै यह नित्य धार, जो रस की झारी।।

करधनिया खिसक जात, पग घूँघर बजत जात,
मोर-पखा सर सजात, लागत छवि न्यारी।
माखन मुख में लिपाय, मुरली कर में सजाय,
ठुमकत सबको रिझाय, नटखट सुखकारी।
यह नित का ही उछाव, सब का इस में झुकाव,
ब्रज के संताप दाव, हरते बनवारी।।
सुर नर मुनि नाग देव, सब को ही हर्ष देव,
बरनत कवि 'बासुदेव', महिमा ये सारी।।
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चंचरीक छंद / हरिप्रिया छंद विधान -

चंचरीक छंद को हरिप्रिया छंद के नाम से भी जाना जाता है। यह छंद चार पदों का प्रति पद 46 मात्राओं का सम मात्रिक दण्डक है। इसका यति विभाजन (12+12+12+10) = 46 मात्रा है। मात्रा बाँट - 12 मात्रिक यति में 2 छक्कल का तथा अंतिम यति में छक्कल+गुरु गुरु है। इस प्रकार मात्रा बाँट 7 छक्कल और अंत गुरु गुरु का है। सूर ने अपने पदों में इस छंद का पुष्कल प्रयोग किया है। तुकांतता दो दो पद या चारों पद समतुकांत रखने की है। आंतरिक यति में भी तुकांतता बरती जाय तो अति उत्तम अन्यथा यह नियम नहीं है।

यह छंद चंचरी छंद या चर्चरी छंद से भिन्न है। भानु कवि ने छंद प्रभाकर में "र स ज ज भ र" गणों से युक्त वर्ण वृत्त को चंचरी छंद बताया है जो 26 मात्रिक गीतिका छंद ही है। जिसका प्रारूप निम्न है।
21211  21211  21211  212

केशव कवि ने रामचन्द्रिका में भी इसी विधान के अनुसार चंचरी छंद के नाम से अनेक छंद रचे हैं।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-08-17

Thursday, March 14, 2019

हरिगीतिका छंद "भैया दूज"

तिथि दूज शुक्ला मास कार्तिक, मग्न बहनें चाव से।
भाई बहन का पर्व प्यारा, वे मनायें भाव से।
फूली समातीं नहिं बहन सब, पाँव भू पर नहिं पड़ें।
लटकन लगायें घर सजायें, द्वार पर तोरण जड़ें।

कर याद वीरा को बहन सब, नाच गायें झूम के।
स्वादिष्ट भोजन फिर पका के, बाट जोहें घूम के।
करतीं तिलक लेतीं बलैयाँ, अंक में भर लें कभी।
बहनें खिलातीं भ्रात खाते, भेंट फिर देते सभी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-10-2016

गीतिका छंद "चातक पक्षी"

मास सावन की छटा सारी दिशा में छा गयी।
मेघ छाये हैं गगन में यह धरा हर्षित भयी।।
देख मेघों को सभी चातक विहग उल्लास में।
बूँद पाने स्वाति की पक्षी हृदय हैं आस में।।

पूर्ण दिन किल्लोल करता संग जोड़े के रहे।
भोर की करता प्रतीक्षा रात भर बिछुड़न सहे।।
'पी कहाँ' है 'पी कहाँ' की तान में ये बोलता।
जो विरह से हैं व्यथित उनका हृदय सुन डोलता।।

नीर बरखा बूँद का सीधा ग्रहण मुख में करे।
धुन बड़ी पक्की विहग की अन्यथा प्यासा मरे।।
एक टक नभ नीड़ से लख धैर्य धारण कर रखे।
खोल के मुख पूर्ण अपना बाट बरखा की लखे।।

धैर्य की प्रतिमूर्ति है यह सीख इससे लें सभी।
प्रीत जिससे है लगी छाँड़ै नहीं उसको कभी।।
चातकों सी धार धीरज दुख धरा के हम हरें।
लक्ष्य पाने की प्रतीक्षा पूर्ण निष्ठा से करें।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08-07-2017

गीतिका/हरिगीतिका छंद विधान

गीतिका छंद :- ये चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद है. प्रति पंक्ति 26 मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक पद 14-12 अथवा 12-14 मात्राओं की यति के अनुसार होता है.
इसका वर्ण विन्यास निम्न है।
2122  2122  2122  212

चूँकि गीतिका छंद एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 3 री, 10 वीं, 17 वीं और 24 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।

हरिगीतिका छंद :- इसकी भी लय गीतिका छंद वाली ही है तथा गीतिका छंद के प्राम्भ में गुरु वर्ण बढ़ा देने से हरिगीतिका हो जाती है। यह चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद है. प्रति पंक्ति 28 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 और 12 मात्राओं पर होती है। यति 14 और 14 मात्रा पर भी रखी जा सकती है। गुप्त जी का उदाहरण देखें:-

मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती।
भगवान ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती।

गीतिका छंद में एक गुरु बढ़ा देने से इसका वर्ण विन्यास निम्न प्रकार होता है।
2212  2212  2212  2212

चूँकि हरिगीतिका छंद एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 5 वीं, 12 वीं, 19 वीं, 26 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।

इस छंद की धुन  "श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन" वाली है।

एक उदाहरण:-
मधुमास सावन की छटा का, आज भू पर जोर है।
मनमोद हरियाली धरा पर, छा गयी चहुँ ओर है।
जब से लगा सावन सुहाना, प्राणियों में चाव है।
चातक पपीहा मोर सब में, हर्ष का ही भाव है।।
(बासुदेव अग्रवाल रचित)

Tuesday, March 12, 2019

ग़ज़ल (सारी मुसीबतों की)

बह्र:- (221  2122)*2

सारी मुसीबतों की, जड़ पाक तू नकारा,
आतंकियों का गढ़ तू, है झूठ का पिटारा।

औकात कुछ नहीं पर, आता न बाज़ फिर भी, 
तू भूत जिसको लातें, खानी सदा गवारा।

किस बात की अकड़ है, किस जोर पे तू नाचे,
रह जाएगा अकेला, कर लेगा जग किनारा।

तुझसा नमूना जग में, मिलना बड़ा है मुश्किल,
अब तुझ पे हँस रहा है, दुनिया का हर सितारा।

सद्दाम से दिये चल, हिटलर से टिक न पाये,
किस खेत की तू मूली, जाएगा यूँ ही मारा।

सदियों से था, वो अब भी, आगे वही रहेगा,
तेरा तो बाप बच्चे, हिन्दोस्तां हमारा।

हर हिन्द वासी कहता, नापाक पाक सुनले,
तुझको बचा सके बस, अब हिन्द का सहारा।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
5-2-18

ग़ज़ल (ये हुस्न मौत का तो)

बह्र:- (221  2122)*2

ये हुस्न मौत का तो सामान हो न जाए,
मेरी ये जिंदगी अब तूफान हो न जाए।

बातें जुदाई की तू मुझसे न यूँ किया कर,
सुनके जिन्हें मेरा जी हलकान हो न जाए।

तूने दिया जफ़ा से हरदम वफ़ा का बदला,
इस सिलसिले में उल्फ़त कुर्बान हो न जाए।

वापस वो जब से आई मन्नत ये तब से मेरी,
तकरार फिर से अब इस दौरान हो न जाए।

तब तक दिखे न हमको सब में हमारी सूरत,
जब तक जगत ये पूरा भगवान हो न जाए।

मतलब परस्त इंसां को रब न दे तु इतना,
पा के जिसे कहीं वो हैवान हो न जाए।

ये इल्तिज़ा 'नमन' की उससे कभी किसी का,
नुक्सान हो न जाए, अपमान हो न जाए।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-1-18

ग़ज़ल (गर्दिश में सितारे हों जिसके)

बह्र:- (221  1222  22)*2

गर्दिश में सितारे हों जिसके, दुनिया को भला कब
भाता है,
वो लाख पटक ले सर अपना, लोगों से सज़ा ही पाता है।

मुफ़लिस का भी जीना क्या जीना, जो घूँट लहू के पी जीए,
जितना वो झुके जग के आगे, उतनी ही वो ठोकर खाता है।

ऐ दर्द चला जा और कहीं, इस दिल को भी थोड़ी राहत हो,
क्यों उठ के गरीबों के दर से, मुझको ही सदा तड़पाता है।

इतना भी न अच्छा बहशीपन, दौलत के नशे में पागल सुन,
जो है न कभी टिकनेवाली, उस चीज़ पे क्यों इतराता है।

भेजा था बना जिसको रहबर, पर पेश वो रहज़न सा आया,
अब कैसे यकीं उस पर कर लें, जो रंग बदल फिर आता है।

माना कि जहाँ नायाब खुदा, कारीगरी हर इसमें तेरी,
पर दिल को मनाएँ कैसे हम, रह कर जो यहाँ घबराता है।

ये शौक़ 'नमन' ने पाला है, दुख दर्द पिरौता ग़ज़लों में,
बेदर्द जमाने पर हँसता, मज़लूम पे आँसू लाता है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-03-18

ग़ज़ल (भाषा बड़ी है प्यारी)

बह्र:- (22  122  22)*2

भाषा बड़ी है प्यारी, जग में अनोखी हिन्दी,
चन्दा के जैसे  सोहे, नभ में निराली हिन्दी।

इसके लहू में संस्कृत, थाती बड़ी है पावन,
ये सूर, तुलसी, मीरा, की है बसाई हिन्दी।

पहचान हमको देती, सबसे अलग ये जग में,
मीठी  जगत में सबसे, रस की पिटारी हिन्दी।

हर श्वास में ये बसती, हर आह से ये निकले,
बन  के  लहू ये बहती, रग में ये प्यारी हिन्दी।

इस देश में है भाषा, मजहब अनेकों प्रचलित,
धुन एकता की  डाले, सब में सुहानी हिन्दी।

हम नाज़ इस पे करते, सुख दुख इसी में बाँटें,
भारत का पूरे जग में, डंका बजाती हिन्दी।

शोभा हमारी इससे, करते 'नमन' हम इसको,
सबसे रहे ये ऊँची,  मन में  हमारी हिन्दी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-09-2016

Friday, March 8, 2019

कामरूप छंद "आज की नारी"

कामरूप छंद / वैताल छंद

नारी न अबला, पूर्ण सबला, हो गई है आज।
वह भव्यता से, दक्षता से, सारती हर काज।।
हर क्षेत्र में रत, कर्म में नत, आज की ये नार।
शासन सँभाले, नभ खँगाले,सामती घर-बार।।

होती न विचलित, वो समर्पित, आत्मबल से चूर।
अवरोध जग के, कंट मग के, सब करे वह दूर।।
धर आस मन में, स्फूर्ति तन में, धैर्य के वह साथ।
आगे बढ़े नित, चित्त हर्षित, रख उठा कर माथ।।

परिचारिका बन, जीत ले मन, कर सके हर काम।
जग से जुड़ी वह, ताप को सह, अरु कमाये नाम।।
जो भी करे नर, वह सके कर, सद्गुणों की खान।
सच्ची सहायक, मोद दायक, पूर्ण निष्ठावान।।

पीड़ित रही हो, दुख सही हो, खो सदा अधिकार।
हरदम दिया है, सब किया है, फिर बनी क्यों भार।।
कहता 'नमन' यह, क्यों दमन सह, अब रहें सब नार।
शोषण तुम्हारा, शर्मशारा, ये हमारी हार।।

कामरूप छंद / वैताल छंद विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन',
तिनसुकिया
08-10-17

कामरूप छंद/वैताल छंद 'विधान'

कामरूप छंद विधान / वैताल छंद विधान -

कामरूप छंद जो कि वैताल छंद के नाम से भी जाना जाता है, 26 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। इसका पद 9 मात्रा, 7 मात्रा और 10 मात्रा के तीन यति खण्डों में विभक्त रहता है। इस छंद के प्रत्येक चरण की मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है :-

(1) प्रथम यति- 2 + 3 (केवल ताल) + 4 = 9 मात्रा। इसका वर्णिक विन्यास 22122 है।

(2) द्वितीय यति- इसका वर्णिक विन्यास 2122 = 7 मात्रा है।

(3) तृतीय यति- इसका वर्णिक विन्यास 2122 21 = 10 मात्रा है। इसको 1222 21 रूप में भी रखा जा सकता है, पर चरण का अंत सदैव ताल (21) से होना आवश्यक है।

22122,  2122,  2122  21 (अत्युत्तम)। चूंकि यह छंद एक मात्रिक छंद है अतः इसमें 2 (दीर्घ वर्ण) को 11 (दो लघु वर्ण) करने की छूट है। यह चार पद का छंद है जिसके दो दो पद समतुकांत या चारों पद समतुकांत रहते हैं। आंतरिक यति भी समतुकांत हो तो और अच्छा परन्तु जरूरी भी नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया


4-03-17

उल्लाला छंद "माँ और उसका लाल"

एक भिखारिन शीत में, बस्ते में लिपटाय के।
अंक लगाये लाल को, बैठी है ठिठुराय के।।

ममता में माँ मग्न है, सोया उसका लाल है।
माँ के आँचल से लिपट, बेटा मालामाल है।।

चिथड़ों में कुछ काटते, रक्त जमाती रात को।
या फिर ताप अलाव को, गर्माहट दे गात को।।

कहीं रिक्त हैं कोठियाँ, सर पे कहीं न छात है।
नभ के नीचे ही कटे, ग्रीष्म, शीत, बरसात है।।

जीवन अपने मार्ग को, ढूँढे हर हालात में।
जीने की ही लालसा, स्फूर्ति नई दे गात में।।

उल्लाला छंद विधान ‌‌‌‌‌‌‌लिंक

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-12-16

उल्लाला छंद "किसान"

हल किसान का नहिं रुके, मौसम का जो रूप हो।
आँधी हो तूफान हो, चाहे पड़ती धूप हो।।

भाग्य कृषक का है टिका, कर्जा मौसम पर सदा।
जीवन भर ही वो रहे, भार तले इनके लदा।।

बहा स्वेद को रात दिन, घोर परिश्रम वो करे।
फाके में खुद रह सदा, पेट कृषक जग का भरे।।

लोगों को जो अन्न दे, वही भूख से ग्रस्त है।
करे आत्महत्या कृषक, हिम्मत उसकी पस्त है।।

रहे कृषक खुशहाल जब, करे देश उन्नति तभी।
है किसान तुझको 'नमन', ऋणी तुम्हारे हैं सभी।।

उल्लाला छंद विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-11-2016

उल्लाला छंद 'विधान'

उल्लाला छंद विधान -

उल्लाला छंद द्वि पदी मात्रिक छंद है। स्वतंत्र रूप से यह छंद कम प्रचलन में है, परन्तु छप्पय छंद के 6 पदों में प्रथम 4 पद रोला छंद के तथा अंतिम 2 पद उल्लाला छंद  के होते हैं। इसके दो रूप प्रचलित हैं।

(1) 26 मात्रिक पद जिसके चरण 13-13 मात्राओं के यति खण्डों में विभाजित रहते हैं। इसका मात्रा विभाजन: अठकल + द्विकल + लघु + द्विकल है। अंत में एक गुरु या 2 लघु का विधान है। इस प्रकार दोहा छंद के चार विषम चरणों से उल्लाला छंद बनता है। इस छंद में 11वीं मात्रा लघु ही होती है।

(2) 28 मात्रिक पद जिसके चरण 15 -13 मात्राओं के यति खण्डों में विभाजित रहते हैं। इस में शुरू में द्विकल (2 या 11) जोड़ा जाता है, बाकी सब कुछ प्रथम रूप की तरह ही है। तथापि 13-13 मात्राओं वाला छंद ही विशेष प्रचलन में है। 15 मात्रिक चरण में 13 वीं मात्रा लघु होती है।

तुकांतता के दो रूप प्रचलित हैं। 
(1) सम+सम चरणों की तुकांतता जो प्रायः द्वि पदी रूप में रचा जाता है। जैसे -
"जीवन अपने मार्ग को, ढूँढे हर हालात में।
जीने की ही लालसा, स्फूर्ति नई दे गात में।।"

(2) दूसरे रूप में दो विषम और दो सम चरण
मिलाकर कुल चार चरण रखे जाते हैं और क्रमशः दो दो चरण में तुकांतता निभाई जाती है। इस रूप में यह छंद 'चंद्रमणि छंद' के नाम से भी जाना जाता है।
चंद्रमणि छंद उदाहरण -

"नहीं प्रदूषण आग है।
यहाँ न भागमभाग है।।
गाँवों का वातावरण।
'नमन' प्रकृति का आभरण।।"

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
12-12-2016



कलाधर छंद "योग साधना"

दिव्य ज्ञान योग का हिरण्यगर्भ से प्रदत्त,
ये सनातनी परंपरा जिसे निभाइए।
आर्ष-देन ये महान जो रखे शरीर स्वस्थ्य,
धार देह वीर्यवान और तुष्ट राखिए।
शुद्ध भावना व ओजवान पा विचार आप,
चित्त की मलीनता व दीनता हटाइए।
नित्य-नेम का बना विशिष्ट एक अंग योग।
सृष्टि की विभूतियाँ समस्त आप पाइए।।

मोह लोभ काम क्रोध वासना समस्त त्याग,
पाप भोग को मनोव्यथा बना निकालिए।
ज्ञान ध्यान दान को सजाय रोम रोम मध्य,
ध्यान ध्येय पे रखें तटस्थ हो बिराजिए।।
ईश-भक्ति चित्त राख दृष्टि भोंह मध्य साध, 
पूर्ण निष्ठ ओम जाप मौन धार कीजिए।
वृत्तियाँ समस्त छोड़ चित्त को अधीन राख,
योग नित्य धार रोग-त्रास को मिटाइए।।
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लक्षण छंद:-

पाँच बार "राज" पे "गुरो" 'कलाधरं' सुछंद।
षोडशं व पक्ष पे विराम आप राखिए।।  ।।

पाँच बार "राज" पे "गुरो" = (रगण+जगण)*5 + गुरु। (212  121)*5+2
यानि गुरु लघु की 15 आवृत्ति के बाद गुरु यानि
21x15 + 2 तथा 16 और पक्ष = 15 पर यति।
यह विशुद्ध घनाक्षरी है अतः कलाधर घनाक्षरी भी कही जाती है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-12-16

Wednesday, February 20, 2019

गजपति छंद "नव उड़ान"

पर प्रसार करके।
नव उड़ान भर के।
विहग झूम तुम लो।
गगन चूम तुम लो।।

सजगता अमित हो।
हृदय शौर्य नित हो।
सुदृढ़ता अटल हो।
मुख प्रभा प्रबल हो।।

नभ असीम बिखरा।
हर प्रकार निखरा।
तुम जरा न रुकना।
अरु कभी न झुकना।।

नयन लक्ष्य पर हो।
न मन स्वल्प डर हो।
विजित विश्व कर ले।
गगन अंक भर ले।।
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लक्षण छंद:-

"नभलगा" गण रखो।
'गजपतिम्'  रस चखो।।

"नभलगा" नगण  भगण लघु गुरु
( 111   211  1 2)
8 वर्ण,4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-01-19

कुसुमसमुदिता छंद "श्रृंगार वर्णन"

गौर वरण शशि वदना।
वक्र नयन पिक रसना।।
केहरि कटि अति तिरछी।
देत चुभन बन बरछी।।

बंकिम चितवन मन को।
हास्य मधुर इस तन को।।
व्याकुल रह रह करता।
चैन सकल यह हरता।।

यौवन उमड़ विहँसता।
ठीक हृदय मँह धँसता।।
रूप निरख मन भटका।
कुंतल लट पर अटका।।

तंग वसन तन चिपटे।
ज्यों फणिधर तरु लिपटे।।
हंस लजत लख चलना।
चित्त-हरण यह ललना।।
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लक्षण छंद:-

"भाननगु" गणन रचिता।
छंदस 'कुसुमसमुदिता'।।

"भाननगु" = भगण नगण नगण गुरु

(211 111 111  2)
10वर्ण,4 चरण,  दो-दो चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-01-19

कण्ठी छंद "सवेरा"

कण्ठी छंद / यशोदा छंद

हुआ सवेरा।
मिटा अँधेरा।।
सुषुप्त जागो।
खुमार त्यागो।।

सराहना की।
बड़प्पना की।।
न आस राखो।
सुशान्ति चाखो।।

करो भलाई।
यही कमाई।।
सदैव संगी।
कभी न तंगी।।

कुपंथ चालो।
विपत्ति पालो।।
सुपंथ धारो।
कभी न हारो।।
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कण्ठी छंद / यशोदा छंद विधान -

"जगाग" वर्णी।
सु-छंद 'कण्ठी'।।

"जगाग" = जगण गुरु गुरु (121 2 2) = 5 वर्ण की वर्णिक छंद।

यशोदा छंद" के नाम से भी यह छंद जानी जाती है, जिसका सूत्र -

यशोदा छंद विधान -

रखो "जगोगा" ।
रचो 'यशोदा'।।

"जगोगा" = जगण, गुरु गुरु  
(121 22) = 5 वर्ण की वर्णिक छंद, 4  चरण,
2-2 चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-02-19