Saturday, June 22, 2019

माहिया (कुड़िये)

कुड़िये कर कुड़माई,
बहना चाहे हैं,
प्यारी सी भौजाई।

धो आ मुख को पहले,
बीच तलैया में,
फिर जो मन में कहले।।

गोरी चल लुधियाना,
मौज मनाएँगे,
होटल में खा खाना।

नखरे भारी मेरे,
रे बिक जाएँगे,
कपड़े लत्ते तेरे।।

ले जाऊँ अमृतसर,
सैर कराऊँगा,
बग्गी में बैठा कर।

तुम तो छेड़ो कुड़ियाँ,
पंछी बिणजारा,
चलता बन अब मुँडियाँ।।

नखरे हँस सह लूँगा,
हाथ पकड़ देखो,
मैं आँख बिछा दूँगा।

दिलवाले तो लगते,
चल हट लाज नहीं,
पहले घर में कहते।।

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प्रथम और तृतीय पंक्ति तुकांत (222222)
द्वितीय पंक्ति अतुकांत (22222)
**************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-12-16

रुद्र पिरामिड

आरोही अवरोही पिरामिड
(1-11 और 11-1)

हे
शिव
शंकर
जग के हो
तु रखवाले।
डमरू पे नाचे
हो कर मतवाले।
सर्प गले में लिपटे
प्यारा चन्दा जटा छिपाले।
भूत गणों के नाथ अनोखे
विष पी देवों की विपदा टाले।

तन  पर   बाघम्बर   भभूत
भोले की प्राणी महिमा गाले।
दूध  बेल पत्रों को  चढ़ा
पूजो आक  धतूरा ले।
ऐसे दानी बाबा को
पूजा से रिझाले।
'नमन' करो
चरणों में
माथे को
नवा
ले।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-4-18

ताँका (ईश्वर)

जापानी विधा (5-7-5-7-7)

जिसने दिये
कर दो समर्पण
उसे ही पाप,
बन जाओ उज्ज्वल
हो कर के निष्पाप।
**

पाप रहित
नर बन जाता है
ईश स्वरूप,
वह सब प्राणी में
देखे अपना रूप।
**

ईश्वर बैठा
अपने ही अंदर
पर मानव,
ढूंढे उसे बाहर
लाखों प्रयत्न कर।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-06-19

चोका विधान

(चोका कविता)

चोका उच्च स्वर से गायी जाने वाली मूलतः जापानी विधा की लंबी कविता है। हाइकु, ताँका, सेदोका की तरह इस विधा का भी हिन्दी में प्रचलन बढ़ा है। हिन्दी में प्रचलित अन्य जापानी विधा की कविताओं की तरह चोका भी प्रति पंक्ति निश्चित वर्ण संख्या पर आधारित कविता है।

चोका में पहली पंक्ति में पाँच वर्ण रहते हैं। वर्ण में लघु या दीर्घ कोई भी मात्रा हो सकती है। संयुक्त अक्षर युक्त वर्ण एक ही वर्ण में गिना जाता है। जैसे - 'स्वास्थ्य' में वर्ण की संख्या दो है। दूसरी पंक्ति में सात वर्ण होते हैं। इसके बाद 5-7 वर्ण प्रति पंक्ति का यही क्रम आगे बढता जाता है। विषम संख्या की पंक्ति जैसे 1,3,5,7 में पाँच वर्ण रहते हैं और सम संख्या की पंक्ति जैसे 2,4,6,8 में सात वर्ण रहते हैं। एक पूर्ण चोका में सदैव विषम संख्या की पंक्तियां ही होती हैं जो 9,11,13, 21,37 कुछ भी हो सकती हैं। यह सदैव ध्यान में रहे कि अंत की पंक्ति में 7 वर्ण रहे। यही चोका की एक मात्र विषम संख्या क्रमांक पंक्ति होती है जिसमें 7 वर्ण रहते हैं, जो चोका कविता की पटाक्षेप पंक्ति होती है। इस प्रकार किसी भी चोका कविता की संरचना 5-7-5-7-5-7......7 वर्ण की ही रहती है।

हाइकु, ताँका, सेदोका की तरह ही चोका में भी पंक्तियों की स्वतंत्रता निभाना अत्यंत आवश्यक है। हर पंक्ति अपने आप में स्वतंत्र हो परंतु कविता को एक ही भाव में समेटे अग्रसर भी करती रहे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-04-18

क्षणिका (आधुनिकता)

(1)

आधुनिकता का
है बोलबाला
सब कुछ होता जा रहा
छोटा और छोटा
केश और वेशभूषा
घर का अँगना
और मन का कोना।
**
क्षणिका (नई पीढ़ी)
(2)

निर्विकार शांत मुद्रा में
चक्की चला आटा पीसती
मेरी दादी जी का
तेल-चित्र
जो दादा जी ने
शायद अपनी जवानी में
बड़े शौक से
बनवाया था----
वो आज भी
घर की धरोहरों मेंं
संजोया पड़ा है
नवीन पीढ़ी को
म्यूजियम में
खींचता हुआ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-05-17

Sunday, June 16, 2019

कामदा छंद "भारत पाक क्रिकेट मैच"

(2019 वर्ल्ड कप में भारत पाक के मैच पर)

हार पाक की हो मनाइये।
जीत के सभी गीत गाइये।।
खेल आप ऐसा दिखाइये।
धूल पाक को तो चटाइये।।

मार मार छक्के दिखाइये।
पाक के युँ छक्के छुड़ाइये।।
काव्य प्रेमियों को रिझाइये।
मंच को खुशी में डुबाइये।।

इंगलैंड से जीत आइये।
देश में महा मान पाइये।।
शान भारती की बढ़ाइये।
ये क्रिकेट ट्रॉफी दिलाइये।।
*****

कामदा छंद / पंक्तिका छंद विधान -

कामदा छंद जो कि पंक्तिका छंद के नाम से भी जाना जाता है, १० वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद है।

"रायजाग" ये वर्ण राखते।
छंद 'कामदा' धीर चाखते।।

"रायजाग" = रगण यगण जगण गुरु।

(212  122  121  2) = 10 वर्ण प्रति चरण, 4 चरण, दो दो सम तुकान्त।

*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-06-19

Saturday, June 15, 2019

मनविश्राम छंद "माखन लीला"

माखन श्याम चुरा नित ही, कछु खावत कछु लिपटावै।
ग्वाल सखा सह धूम करे, यमुना तट गउन चरावै।।
फोड़त माखन की मटकी, सब गोरस नित बिखराये।
गोपिन भी लख हर्षित हैं, पर रोष बयन दिखलाये।।

मात यशोमत नित्य मथे, दधि की जब लबलब झारी।
मोहन आय तभी धमकै, अरु बाँह भरत महतारी।।
मात बिलोवत जाय रहे, तब कान्ह करत बरजोरी।
नन्द-तिया पुलकै मुलकै, सुत की लख नित नव त्योरी।।

माधव संग सखा सब ले, जब ग्वालिन गृह मँह धाये।
ऊधम खूब मचाय वहाँ, सब गोपिन हृदय लुभाये।।
पीठ चढ़े इक दूजन की, तब छींकन पर चढ़ जावै।
माखन लूटत भाजन से, दिखलाकर चख चख खावै।।

मोहन की छवि ये उर में, मन उज्ज्वल पर तन कारा।
रोज मचा हुड़दंग यही, हरता बृज-जन-मन सारा।।
गोपिन को ललचा कर के, मनमोहक छवि दिखलावै।
कृष्ण बसो उर में तुम आ, गुण 'बासु' नमन करि गावै।।
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लक्षण छंद:-

"भाभभुभाभनुया" यति दें, दश रुद्र वरण अभिरामा।
छंद रचें कवि वृन्द सभी, मनभावन 'मनविशरामा'।।

"भाभभुभाभनुया" = भगण की 5 आवृत्ति फिर नगण यगण।

211  211  211  2,11  211  111  122
कुल 21 वर्ण, यति 10,11, चार चरण 2-2 समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-01-2017

मकरन्द छंद "कन्हैया वंदना"

किशन कन्हैया, ब्रज रखवैया,
        भव-भय दुख हर, घट घट वासी।
ब्रज वनचारी, गउ हितकारी,
        अजर अमर अज, सत अविनासी।।
अतिसय मैला, अघ जब फैला,
         धरत कमलमुख, तब अवतारा।
यदुकुल माँही, तव परछाँही,
          पड़त जनम तुम, धरतत कारा।।

पय दधि पाना, मृदु मुसकाना,
         लख कर यशुमति, हरषित भारी।
कछु बिखराना, कछु लिपटाना,
         तब यह लगतत, द्युति अति प्यारी।।
मधुरिम शोभा, तन मन लोभा,
          निश दिन निरखत, ब्रज नर नारी।
सुख अति पाके, गुण सब गाके,
           बरणत यह छवि, जग मँह न्यारी।।

असुर सँहारे, बक अघ तारे,
            दनुज रहित महि, नटवर  कीन्ही।
सुर मुनि सारे, कर जयकारे,
            कहत विनय कर, सुध प्रभु लीन्ही।।
अनल दुखारी, वन जब जारी,
             प्रसरित कर मुख, तुम सब पी ली।
कर मुरली है, मन हर ली है,
              लखत सकल यह, छवि चटकीली।।

सुरपति क्रोधा, धर गिरि रोधा,
             विकट विपद हर, ब्रज भय टारा।
कर वध कंसा, गहत प्रशंसा,
             सकल जगत दुख, प्रभु तुम हारा।।
हरि गिरिधारी, शरण तिहारी,
             तुम बिन नहिं अब, यह मन मोहे।
छवि अति प्यारी, जन मन हारी,
             हृदय 'नमन' कवि, यह नित सोहे।।
===============
लक्षण छंद:-

"नयनयनाना, ननगग" पाना,
यति षट षट अठ, अरु षट वर्णा।
मधु 'मकरन्दा', ललित सुछंदा,
रचत सकल कवि, यह मृदु कर्णा।।

"नयनयनाना, ननगग" =  नगण यगण नगण यगण नगण नगण नगण नगण गुरु गुरु

(111  122,  111  122,  111  111 11,1 111  22)
26 वर्ण,4 चरण,यति 6,6,8,6,वर्णों पर
दो-दो या चारों चरण समतुकांत
******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
02-10-2018

भृंग छंद "विरह विकल कामिनी"

सँभल सँभल चरण धरत, चलत जिमि मराल।
बरनउँ किस विध मधुरिम, रसमय मृदु चाल।।
दमकत यह तन-द्युति लख, थिर दृग रह जात।
तड़क तड़ित सम चमकत, बिच मधु बरसात।।

शशि-मुख छवि अति अनुपम, निरख बढ़त प्यास।
यह लख सुरगण-मन मँह, जगत मिलन आस।।
विरह विकल अति अब यह, कनक वरण नार।
दिन निशि कटत न समत न, तरुण-वयस भार।।

अँखियन थकि निरखत मग, इत उत हर ओर।
हलचल विकट हृदय मँह, उठत अब हिलोर।
पुनि पुनि यह कथन कहत, सुध बिसरत मोर।
लगत न जिय पिय बिन अब, बढ़त अगन जोर।।

मन हर कर छिपत रहत, कित वह मन-चोर।
दरसन बिन तड़पत दृग, कछु न चलत जोर।।
विरह डसन हृदय चुभत, मिलत न कछु मन्त्र।
जलत सकल तन रह रह, कछुक करहु तन्त्र।।
===================
लक्षण छंद:-

"ननुननुननु गल" पर यति, दश द्वय अरु अष्ट।
रचत मधुर यह रसमय, सब कवि जन 'भृंग'।।

"ननुननुननु गल" = नगण की 6 आवृत्ति फिर गुरु लघु।

111 111  111  111 // 111  111  21
20 वर्ण,यति 12,8 वर्ण,4 चरण 2-2 तुकांत
******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-10-17

Wednesday, June 12, 2019

जनक छंद (2019 चुनाव)

करके सफल चुनाव को,
माँग रही बदलाव को,
आज व्यवस्था देश की।
***

बहुमत बड़ा प्रचंड है,
सत्ता लगे अखंड है,
अब जवाबदेही बढ़ी।
****

रूढ़िवादिता तोड़ के,
स्वार्थ लिप्तता छोड़ के,
काम करे सरकार यह।
***

राजनीति की स्वच्छता,
सभी क्षेत्र में दक्षता,
निश्चित अब तो दिख रही।
***

आसमान को छू रहा,
रग रग से यह चू रहा,
लोगों का उत्साह अब।
***

आशा का संचार है,
भ्रष्टों का प्रतिकार है,
बी जे पी के राज में।
***

युग आया विश्वास का,
सर्वांगीण विकास का,
मोदी के नेतृत्व में।
***


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-05-19

जनक छंद "विधान"

जनक छंद रच के मधुर,
कविगण कहते कथ्य को,
वक्र-उक्तिमय तथ्य को।
***

तेरह मात्रिक हर चरण,
ज्यों दोहे के पद विषम,
तीन चरण का बस 'जनक'।
****

पहला अरु दूजा चरण,
समतुकांतता कर वरण,
'पूर्व जनक' का रूप ले।
***

दूजा अरु तीजा चरण,
ले तुकांतमय रूप जब,
'उत्तर जनक' कहाय तब।
***

प्रथम और तीजा चरण,
समतुकांत जब भी रहे,
'शुद्ध जनक' का हो भरण।
***

तुक बन्धन से मुक्त हों,
इसके जब तीनों चरण,
'सरल जनक' तब रूप ले।
***

सारे चरण तुकांत जब,
'घन' नामक हो छंद तब,
'नमन' विवेचन शेष अब।
***
जनक छंद एक परिचय:-
जनक छंद कुल तीन चरणों का छंद है जिसके प्रत्येक चरण में13 मात्राएं होती हैं। ये 13 मात्राएँ ठीक दोहे के विषम चरण वाली होती हैं। विधान और मात्रा बाँट भी ठीक दोहे के विषम चरण की है। यह छंद व्यंग, कटाक्ष और वक्रोक्तिमय कथ्य के लिए काफी उपयुक्त है। यह छंद जो केवल तीन पंक्तियों में समाप्त हो जाता है, दोहे और ग़ज़ल के शेर की तरह अपने आप में स्वतंत्र है। कवि चाहे तो एक ही विषय पर कई छंद भी रच सकता है।

तुकों के आधार पर जनक छंद के पाँच भेद माने गए हैं। यह पाँच भेद हैं:—

1- पूर्व जनक छंद; (प्रथम दो चरण समतुकांत)
2- उत्तर जनक छंद; (अंतिम दो चरण समतुकांत)
3- शुद्ध जनक छंद; (पहला और तीसरा चरण समतुकांत)
4- सरल जनक छंद; (सारे चरण अतुकांत)
5- घन जनक छंद। (सारे चरण समतुकांत)

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-05-19

शिव-महिमा (छप्पय)

करके तांडव नृत्य, प्रलय जग की शिव करते।
विपदाएँ भव-ताप, भक्त जन का भी हरते।
देवों के भी देव, सदा रीझें थोड़े में।
करें हृदय नित वास, शैलजा सँग जोड़े में।
प्रभु का निवास कैलाश में, औघड़ दानी आप हैं।
भज ले मनुष्य जो आप को, कटते भव के पाप हैं।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-02-19

अग्रसेन महाराज (छप्पय)

अग्रसेन नृपराज, सूर्यवंशी अवतारी।
विप्र धेनु सुर संत, सभी के थे हितकारी।
द्वापर का जब अंत, धरा पर हुआ अवतरण।
भागमती प्रिय मात, पिता वल्लभ के भूषण।
नागवंश की माधवी, इन्हें स्वयंवर में वरी।
अग्रोहा तब नव बसा, झोली माँ लक्ष्मी भरी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-04-18

छप्पय छंद "विधान"

छप्पय एक विषम-पद मात्रिक छंद है। यह भी कुंडलिया छंद की तरह छह चरणों का एक मिश्रित छंद है जो दो छंदों के संयोग से बनता है। इसके प्रथम चार चरण रोला छंद के, जिसके प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएँ होती हैं तथा यति 11-13 पर होती है। आखिर के दो चरण उल्लाला छंद के होते हैं। उल्लाला छंद के दो भेदों के अनुसार इस छंद के भी दो भेद मिलते हैं। प्रथम भेद में 13-13 यानि कुल 26 मात्रिक उल्लाला के दो चरण आते हैं और दूसरे भेद में 15-13 यानि कुल 28 मात्रिक उल्लाला के दो चरण आते हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

Friday, June 7, 2019

गीत (देश हमारा न्यारा प्यारा)

देश हमारा न्यारा प्यारा,
देश हमारा न्यारा प्यारा।
सब देशों से है यह प्यारा,
देश हमारा न्यारा प्यारा।।

उत्तर में गिरिराज हिमालय,
इसका मुकुट सँवारे।
दक्षिण में पावन रत्नाकर,
इसके चरण पखारे।
अभिसिंचित इसको करती है,
गंगा यमुना की जलधारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा -----।।

विंध्य, नीलगिरि, कंचनजंघा,
इसका गगन सजाते।
इसके कानन, उपवन आगे,
सुर के बाग लजाते।
सुरम्य क्षेत्रों की हरियाली,
इसकी है जन-मन  की हारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा ----।।

उगले कनक सम शस्य फसल,
इसकी रम्य धरा नित।
इसकी अलग विविधता करती,
जन जन को सदा चकित।
कलरव से पशु-पक्षि लगाएँ
यहाँ स्वतन्त्रता का नारा ।
देश हमारा न्यारा प्यारा ----।।

सब जाति धर्म के नर नारी,
इस में खुश हों पलते।
बल, बुद्धि और सद्विद्या के,
स्वामी इसपे बसते।
इनके ही सद्गुण के बल पर,
आश्रित देश हमारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा ----।।

न्योछावर कर दें सब कुछ,
हम इस के ही कारण।
बलशाली बन हम दुखियों के,
दुख का करें निवारण।
भारत के नभ में विकास का,
चमकाएं ध्रुवतारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा ----।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
06-05-2016

गीत (दूर कितने तुम रहे)

बहर:- 2122 2122 2122 212

पास रहके भी हमीं से दूर कितने तुम रहे।
जान लेलो पर हमें यूँ ना सताओ बिन कहे।।

जो न आते पास तुम तो ना तड़पते रात दिन।
आग ना लगती दिलों में बेवजह या बात बिन।
ग़म भला क्योंकर के कोई बिन खता के यूँ सहे।।
पास रहके भी हमीं से दूर कितने तुम रहे।।

जिंदगी उलझी हमारी इंतज़ारों में अटक।
मंजिलें सारी खतम है राह में तेरी भटक।
प्यार की धारा में यारा हम सदा यूँ ही बहे।।
पास रहके भी हमीं से दूर कितने तुम रहे।।

जो बने उम्मीद के थे आशियाँ जुड़ जुड़ कभी।
सुनहरे सपने सजाये उन घरों में चुन सभी।
जान पाये हम कभी ना सब घरौंदे कब ढ़हे।।
पास रहके भी हमीं से दूर कितने तुम रहे।।

राख बनता जा रहा है दिल हमारा अब सनम।
जब मिलन होगा हमारा बच गये कितने जनम।
देख सकते देख लो तुम दिल सदा धू धू दहे।।
पास रहके भी हमीं से दूर कितने तुम रहे।।

एक ही बच अब गया है जिंदगी का रास्ता।
आँख ना हमसे चुराना दे रही हूँ वास्ता।
आस बाकी उन पलों की हाथ कोई जब गहे।।
पास रहके भी हमीं से दूर कितने तुम रहे।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-07-16

गीत (चलो स्कूल चलो)

(धुन: चलो दिलदार चलो)

चलो स्कूल चलो,
बस्ता पीठ लाद चलो,
सब हैं तैयार चलो,
आई बस भाग चलो।

हम पढ़ाई में बनेंगें बड़े-2
राह में कोई न हमरी अड़े
हमरी अड़े
चलो स्कूल चलो----

नाम दुनिया में करेंगें रोशन-2
होने देंगें न किसीका शोषन
किसीका शोषन
चलो स्कूल चलो----

देश का मान बढ़ाएँगें हम-2
साथ मिल सबके चलें हरदम
चलें हरदम
चलो स्कूल चलो----

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-07-2017

करवा चौथ पर आरती

ओम जय पतिदेव प्रिये
स्वामी जय पतिदेव प्रिये।
चौथ मात से विनती-2
शत शत वर्ष जिये।।

कार्तिक लगते आई, चौथ तिथी प्यारी।
करवा चौथ कहाये, सब से ये न्यारी।।
ओम जय पतिदेव प्रिये।

सूर्योदय से लेकर, जब तक चाँद दिखे।
तेरे कारण धारूँ, व्रत कुछ भी न चखे।।
ओम जय पतिदेव प्रिये।

सुनूँ कहानी माँ की, लाल चुनर धारूँ।
करवा रख कर पुजूँ, माँ पर सब वारूँ।।
ओम जय पतिदेव प्रिये।

चन्द्र ओट ले देखूँ, अर्ध्य उसे देऊँ।
दीर्घ आयु का तेरा, उससे वर लेऊँ।।
ओम जय पतिदेव प्रिये।

तेरे हाथों फिर मैं, व्रत तोड़ूँ साजन।
'नमन' सदा ही रखना, मुझको प्रिय भाजन।।
ओम जय पतिदेव प्रिये
स्वामी जय पतिदेव प्रिये।
चौथ मात से विनती-2
शत शत वर्ष जिये।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
07-10-17

नवगीत (भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ)

भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।
बन्द सफलताओं पे पड़े तालों की कुँजी पा जाऊँ।।

विषधर नागों से नेता, सत्ता वृक्षों में लिपटे हैं;
उजले वस्त्रों में काले तन, चमचे उनसे चिपटे हैं;
जनता से पूरे कटकर, सुरा सुंदरी में सिमटे हैं;
चरण वन्दना कर उनकी सत्ता सुख थोड़ा पा जाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।

इंजीनियर के बंगलों में, ठेकेदार बन काटूँ चक्कर;
नये नये तोहफों से रखूं, घर आँगन उसका सजाकर;
कुत्तों से उसके करूँ दोस्ती, हाय हलो टॉमी कहकर;
सीमेंट में बालू मिलाने की बेरोकटोक आज्ञा पा जाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।

मंत्री के बीवी बच्चों को, नई नई शॉपिंग करवाऊँ;
उसके सेक्रेटरी से लेकर, कुक तक कुछ कुछ भेंट चढाऊँ;
पीक थूकता देख हथेली, आगे कर पीकदान बन जाऊँ;
सप्लाई में बिना दिए कुछ यूँ ही बिल पास करा लाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।

बड़े बड़े भर्ती अफसर के, दफ्तर में जा तलवे चाटूँ;
दुम हिलाते कुत्ते सा बन, हाँ हाँ में झूठे सुख दुख बाँटूँ;
इंटरव्यू को झोंक भाड़ में, अच्छी भर्ती खुद ही छाँटूँ;
अकल के अंधे गाँठ के पूरे ऊँचे ओहदों पर बैठाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।

मंचों के ओहदेदारों के, अनुचित को उचित बनाऊँ;
चाहे ढपोरशँख भी हो तो, झूठी वाह से 'सूर' बनाऊँ;
पढूँ कसीदे शान में उनकी, हार गले में पहनाऊँ;
नभ में टांगूँ वाहवाही से बदले में कुछ मैं भी पा जाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-06-2016

Thursday, June 6, 2019

ग़ज़ल (जाम चले)

ग़ज़ल (जाम चले)

बह्र:- 2112

काफ़िया - आम; रदीफ़ - चले

जाम चले
काम चले।

मौत लिये
आम चले।

खुद का कफ़न
थाम चले।

श्वास तो अष्ट
याम चले।

भोर हो या
शाम चले।

लोग अवध
धाम चले।

मन में बसा
राम चले।

पैसा हो तो 
नाम चले।

जग में 'नमन'
दाम चले

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया।
25-09-17