Sunday, September 15, 2019

किरीट सवैया

(8 भगण 211)

भीतर मत्सर लोभ भरे पर, बाहर तू तन खूब
सजावत।
अंतर में जग-मोह बसा कर, क्यों भगवा फिर धार दिखावत।
दीन दुखी पर भाव दया नहिं, आरत हो भगवान
मनावत।
पाप घड़ा उर माँहि भरा रख, पागल अंतरयामि
रिझावत।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-11-18

वागीश्वरी सवैया

(122×7  +  12)

दया का महामन्त्र धारो मनों में, दया से सभी को लुभाते चलो।
न हो भेद दुर्भाव कैसा किसी से, सभी को गले से लगाते चलो।
दयाभूषणों से सभी प्राणियों के, उरों को सदा ही सजाते चलो।
दुखाओ दिलों को न थोड़ा किसी के,  दया की सुधा को बहाते चलो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-10-16

घनाक्षरी विभेद

घनाक्षरी पाठक या श्रोता के मन पर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है। घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होता है मानो मेघ की गर्जन हो रही हो। साथ ही इसमें शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो। शायद इसके नाम के पीछे यही सभी कारण रहे होंगे। घनाक्षरी छंद के कई भेदों के उदाहरण मिलते हैं।

(1) मनहरण घनाक्षरी
इस को घनाक्षरी का सिरमौर कहें तो अनुचित नहीं होगा।
कुल वर्ण संख्या = 31
16, 15 पर यति अनिवार्य। 8,8,8,7 के क्रम में लिखें तो और अच्छा।
चरणान्त हमेशा गुरु ही रहता है।

(2) जनहरण घनाक्षरी
कुल वर्ण संख्या = 31 । इसमें चरण के प्रथम 30 वर्ण लघु रहते हैं तथा केवल चरणान्त दीर्घ रहता है।
16, 15 पर यति अनिवार्य। 8,8,8,7 के क्रम में लिखें तो और अच्छा।

(3) रूप घनाक्षरी
कुल वर्ण संख्या = 32
16, 16 पर यति अनिवार्य। 8,8,8,8 के क्रम में लिखें तो और अच्छा।
चरणान्त हमेशा गुरु लघु (2 1)।

(4) जलहरण घनाक्षरी
कुल वर्ण संख्या = 32
16, 16 पर यति अनिवार्य। 8,8,8,8 के क्रम में लिखें तो और अच्छा।
चरणान्त हमेशा लघु लघु (1 1)।

(5) मदन घनाक्षरी
कुल वर्ण संख्या = 32
16, 16 पर यति अनिवार्य। 8,8,8,8 के क्रम में लिखें तो और अच्छा।
चरणान्त हमेशा गुरु गुरु (2 2)।

(6) डमरू घनाक्षरी
कुल वर्ण संख्या = 32 सभी मात्रा रहित वर्ण आवश्यक।
16, 16 पर यति अनिवार्य। 8,8,8,8 के क्रम में लिखें तो और अच्छा।

(7) कृपाण घनाक्षरी
कुल वर्ण संख्या 32
8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।
चरणान्त हमेशा गुरु लघु (2 1)।
हर यति समतुकांत होनी आवश्यक। एक चरण में चार यति होती है। इस प्रकार 16 यति समतुकांत होगी।

(8) विजया घनाक्षरी
कुल वर्ण संख्या 32
8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।
चरणान्त हमेशा लघु गुरु (1 2) अथवा 3 लघु (1 1 1) आवश्यक।
आंतरिक तूकान्तता के दो रूप प्रचलित हैं। प्रथम हर चरण की तीनों आंतरिक यति समतुकांत। दूसरा समस्त 16 की 16 यति समतुकांत। आंतरिक यतियाँ भी चरणान्त यति (1 2) या (1 1 1) के अनुरूप रखें तो उत्तम।

(9) हरिहरण घनाक्षरी
कुल वर्ण संख्या 32
8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।
चरणान्त हमेशा लघु लघु (1 1) आवश्यक।
आंतरिक तुकान्तता के दो रूप प्रचलित हैं। प्रथम हर चरण की तीनों आंतरिक यति समतुकांत। दूसरा समस्त 16 की 16 यति समतुकांत।

(10) देव घनाक्षरी
कुल वर्ण = 33
8, 8, 8, 9 पर यति अनिवार्य।
चरणान्त हमेशा 3 लघु (1 1 1) आवश्यक। यह चरणान्त भी पुनरावृत रूप में जैसे 'चलत चलत' रहे तो उत्तम।

(11) सूर घनाक्षरी
कुल वर्ण = 30
8, 8, 8, 6 पर यति अनिवार्य।
चरणान्त की कोई बाध्यता नहीं, कुछ भी रख सकते हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

जलहरण घनाक्षरी (सिद्धु पर व्यंग)

जब की क्रिकेट शुरु, बल्ले का था नामी गुरु,
जीभ से बै'टिंग करे, अब धुँवाधार यह।

न्योता दिया इमरान, गुरु गया पाकिस्तान,
फिर तो खिलाया गुल, वहाँ लगातार यह।

संग बैठ सेनाध्यक्ष, हुआ होगा चौड़ा वक्ष,
सब के भिगोये अक्ष, मन क्या विचार यह

बेगाने की ताजपोशी,अबदुल्ला मदहोशी, 
देश को लजाय नाचा, किस अधिकार यह।।
**************

जलहरण घनाक्षरी विधान :-

चार पदों के इस छंद में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 32 रहती है। घनाक्षरी एक वर्णिक छंद है अतः इसमें वर्णों की संख्या 32 वर्ण से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। चारों पदों में समतुकांतता होनी आवश्यक है। 32 वर्ण लंबे पद में 16, 16 पर यति रखना अनिवार्य है। जलहरण घनाक्षरी का पदांत सदैव लघु लघु वर्ण (11) से होना आवश्यक है।

परन्तु देखा गया है कि 8,8,8,8 के क्रम में यति रखने से वाचन में सहजता और अतिरिक्त निखार अवश्य आता है, पर ये विधानानुसार आवश्यक भी नहीं है।
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-08-18

रुबाई (1-3)

रुबाई -1

दिनकर सा धरा पर न रहा है कोई;
हूँकार भरे जो न बचा है कोई;
चमचों ने है अधिकार किया मंचों पे;
उद्धार करे झूठों से ना है कोई।

रुबाई -2

जीते हैं सभी मौन यहाँ रह कर के;
मर रूह गई जुल्मो जफ़ा सह कर के;
पत्थर पे न होता है असर चीखों का;
कुछ फ़र्क नहीं पड़ता इन्हें कह कर के।

रुबाई -3

झूठों की सदा अब होती जयकार यहाँ;
जो सत्य कहे सुनते हैं फटकार यहाँ;
कलमों के धनी हार कभी ना माने;
गूँजाएँगे नव क्रांति की गूँजार यहाँ।
*******

रुबाई विधान :- 221  1221  122  22/112
1,2,4 चरण तुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
1-04-2017

मुक्तक (श्रृंगार)

छमक छम छम छमक छम छम बजी जब उठ तेरी पायल,
इधर कानों में धुन आई उधर कोमल हृदय घायल,
ठुमक के पाँव जब तेरे उठे दिल बैठता मेरा,
बसी मन में ये धुन जब से तेरा मैं हो गया कायल।

(1222×4)
*********

चाँदनी रात थी आपका साथ था, रुख से पर्दा हटाया मजा आ गया।
आसमाँ में खिला दूर वो चाँद था, पास में ये खिलाया मजा आ गया।
आतिश ए हुस्न उसमें कहाँ है भला, घटता बढ़ता रहे दाग भी साथ में।
इसको देखा तो शोले भड़कने लगे, चाँद यह क्या दिखाया मजा आ गया।।

(212×8)
*********

उनकी उल्फ़त दिल की ताक़त दोस्तो,
नक़्शे पा उनके ज़ियारत दोस्तो,
चूमते उनके ख़तों को रोज हम,
बस यही अपनी इबादत दोस्तो।

(2122  2122  212)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-09-18

Thursday, September 12, 2019

पिरामिड "चाय"

(1)

पी
प्याली
चाय की
मतवाली,
कार्यप्रणाली
हृदय की हुई
होली जैसी धमाली।

(2)

ले
चुस्की
चाय की,
मिटी खुश्की,
भागी झपकी
स्फूर्ति दे थपकी
छायी खुमारी हल्की।

(3)

ये
चाय
है नशा,
बिगाड़ती
तन की दशा,
पर दे हताशा,
जब तक अप्राप्त।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-06-19

हाइकु (आँख में फूल)

5-7-5 वर्ण

आँख में फूल,
तलवे में कंटक,
प्रेम-डगर।
**

मुख पे हँसी,
हृदय में क्रंदन,
विरही मन।
**

बसो तो सही,
स्वप्न साबित हुये,
तो चले जाना।
**

आज का स्नेह
उफनता सागर
तृषित देह।
**

शब्द-बदली
काव्य-धरा बरसी
कविता खिली।
**

मानव-भीड़
उजड़ गये नीड़
खगों की पीड़।
**

तृण सजाते
खग नीड़ बनाते
नर ढहाते।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-09-19

सेदोका (अपनों का दर्द)

5-7-7-5-7-7 वर्ण

हम स्वदेशी
अपनों का न साथ
घर में भी विदेशी;
गया बिखर,
बसा बसाया घर!
कोई न ले खबर।
**

बड़े लाचार,
गैरों का अत्याचार,
अपनों से दुत्कार;
सोची समझी
साजिश के शिकार,
कहाँ है सरकार?
**

हम ना-शाद,
उनका ये जिहाद
भीषण अवसाद;
न प्रतिवाद
खो जाये फरियाद,
हाय रे सत्तावाद।
**

(मेरठ में हिंदू परिवारों के पलायन पर)

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-06-19

सायली (मजदूर)

ईंट,
गारा, पत्थर।
सर पे ढोता
भारत का
मज़दूर।।
*****

मजदूर
हमें देने
सर पे छत
खुद रहता
बेछत।।
*****

मजदूर
उत्पादन- जनक,
बेटी का बाप
जैसा कोई
मजबूर।।
**

मजदूर
कारखानों में
मसीनों संग पिसता,
चूर चूर
होता।
**

श्रमिक
श्रम करता
पसीने से सींचता
नव निर्माण
खेती
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-09-17

माहिया (सावन आया है)

चूड़ी की खन खन में,
सावन आया है,
प्रियतम ही तन-मन में।

झूला झूलें सखियाँ,
याद दिलाएं ये,
गाँवों की वे बगियाँ।

गलियों से बचपन की,
सावन आ, खोया,
चाहत में साजन की।

आँख-मिचौली करता।
चंदा बादल से,
दृश्य हृदय ये हरता।

छत से उतरा सावन,
याद लिये पिय की,
मन-आंगन हरषावन।

मोर पपीहा की धुन,
सावन ले आयी,
मन में करती रुन-झुन।

झर झर झरतीं आँखें,
सावन लायीं हैं।
पिय-रट की दें पाँखें।

**************
प्रथम और तृतीय पंक्ति तुकांत (222222)
द्वितीय पंक्ति अतुकांत (22222)
**************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-06-19

Monday, September 9, 2019

सरसी छंद / कबीर छंद 'विधान'

सरसी छंद / कबीर छंद

सरसी छंद जो कि कबीर छंद के नाम से भी जाना जाता है, चार पदों का सम-पद मात्रिक छंद है। इस में प्रति पद 27 मात्रा होती है। यति 16 और 11 मात्रा पर है अर्थात प्रथम चरण 16 मात्रा का तथा द्वितीय चरण 11 मात्रा का होता है। दो दो पद समतुकान्त। 

मात्रा बाँट-16 मात्रिक चरण ठीक चौपाई छंद वाला चरण और 11 मात्रा वाला ठीक दोहा छंद का सम चरण। छंद के 11 मात्रिक खण्ड की मात्रा बाँट अठकल+त्रिकल (ताल यानी 21) होती है। सुमंदर छंद के नाम से भी यह छंद जाना जाता है।

एक स्वरचित पूर्ण सूर्य ग्रहण के वर्णन का उदाहरण देखें।

हीरक जड़ी अँगूठी सा ये, लगता सूर्य महान।
अंधकार में डूब गया है, देखो आज जहान।।
पूर्ण ग्रहण ये सूर्य देव का, दुर्लभ अति अभिराम।
दृश्य प्रकृति का अनुपम अद्भुत, देखो मन को थाम।।

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया


श्रृंगार छंद "तड़प"

सजन मत प्यास अधूरी छोड़।
नहीं कोमल मन मेरा तोड़।।
बहुत ही तड़पी करके याद।
सुनो अब तो तुम अंतर्नाद।।

सदा तारे गिन काटी रात।
बादलों से करती थी बात।।
रही मैं रोज चाँद को ताक।
कलेजा होता रहता खाक।।

मिलन रुत आई बरसों बाद।
हृदय में छाया अति आह्लाद।।
बजा इस वीणा का हर तार।
बहा दो आज नेह की धार।।

गले से लगने की है चाह।
निकलती साँसों से अब आह।।
सभी अंगों में एक उमंग।
हुई जैसे उन्मुक्त मतंग।।

देख लो होंठ रहें है काँप।
मिलन की आतुरता को भाँप।।
बाँह में भर कर तन यह आज।
छेड़ दो रग रग के सब साज।।

समर्पण ही है मेरा प्यार।
सजन अब कर इसको स्वीकार।।
मिटा दो जन्मों की सब प्यास।
पूर्ण कर दो सब मेरी आस।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-08-2016

श्रृंगार छंद "विधान"

श्रृंगार छंद बहुत ही मधुर लय का 16 मात्रा का चार चरण का छंद है। तुक दो दो चरण में है। इसकी मात्रा बाँट 3 - 2 - 8 - 3 (ताल) है। प्रारंभ के त्रिकल के तीनों रूप मान्य है जबकि अंत का त्रिकल केवल दीर्घ और लघु (21) होना चाहिए। द्विकल 1 1 या 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना और अठकल का अंत द्विकल से होना अनुमान्य हैं।

श्रृंगार छंद का 32 मात्रा का द्विगुणित रूप महा श्रृंगार छंद कहलाता है। यह चार चरणों का छंद है जिसमें तुकांतता 32 मात्रा के दो दो चरणों में निभायी जाती है। यति 16 - 16 मात्रा पर पड़ती है।

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया

लावणी छन्द "विधान"

लावणी छन्द सम पद मात्रिक छंद है। इस छन्द में चार चरण होते हैं, जिनमें प्रति चरण 30 मात्राएँ होती हैं।

प्रत्येक चरण दो विभाग में बंटा हुआ रहता है जिनकी यति 16-14 निर्धारित होती है। अर्थात् विषम पद 16 मात्राओं का और सम पद 14 मात्राओं का होता है। दो-दो चरणों की तुकान्तता का नियम है। चरणान्त सदैव गुरु या 2 लघु से होना चाहिये।

16 मात्रिक वाले पद का विधान और मात्रा बाँट ठीक चौपाई छंद वाला है। 14 मात्रिक पद की बाँट 12+2 है। 12 मात्रिक 3 चौकल या एक अठकल और एक चौकल हो सकते हैं। चौकल और अठकल के सभी नियम लागू होंगे।

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया

लावणी छन्द "गृह-प्रवेश"

सपनों का संसार हमारा, नव-गृह यह मंगलमय हो।
कीर्ति पताका इसकी फहरे, सुख वैभव सब अक्षय हो।।
यह विश्राम-स्थली सब की बन, शोक हृदय के हर लेवे।
इसमें वास करे उसको ये, जीवन का हर सुख देवे।।

तरुवर सी दे शीतल छाया, नींव रहे दृढ़ इस घर की।
कृपा दृष्टि बरसे इस पर नित, सवित, मरुतगण, दिनकर की।।
विघ्न हरे गणपति इस घर के, रिद्धि सिद्धि का वास रहे।
शुभ ऐश्वर्य लाभ की धारा, घर में आठों याम बहे।।

कुटिल दृष्टि इस नेह-गेह पर, नहीं किसी की कभी पड़े।
रिक्त कभी हो जरा न पाये, पय, दधि, घृत के भरे घड़े।।
परिजन रक्षित सदा यहाँ हो, अमिय-धार इसमें बरसे।
हो सत्कार अतिथि का इसमें, याचक नहीं यहाँ तरसे।।

दूर्वा, श्री फल, कुंकुम, अक्षत, दैविक भौतिक विपद हरे।
वरुण देव का पूर्ण कलश ये, घर के सब भंडार भरे।।
इस शुभ घर से जीवन-पथ में, आगे बढ़ते जायें हम।
सकल भाव ये उर में धर के, मंगल गृह में आयें हम।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-04-19

Friday, September 6, 2019

ग़ज़ल (जो मुसीबत में किसी के काम आता है)

बह्र:- 2122*3  2

जो मुसीबत में किसी के काम आता है,
सबसे पहले उसका दिल में नाम आता है।

टूट गर हर आस जाए याद हरदम रख,
अंत में तो काम केवल राम आता है।

मात के दरबार में नर सोच के ये जा,
माँ-कृपा जिस पे हो माँ के धाम आता है।

दुख का आना सुख का जाना ठीक वैसे ही,
ज्यों अँधेरा दिन ढ़ले हर शाम आता है।

जो ख़ुदा पे रख भरौसा ज़िंदगी जीता,
उसको ही अल्लाह का इलहाम आता है।

राह सच्चाई की चुन ली अब किसे परवाह,
सर पे किसका कौनसा इल्ज़ाम आता है।

गर समझते हो 'नमन' ये काम है अच्छा,
क्यों हो फिर ये फ़िक्र क्या परिणाम आता है

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-12-2018

(धुन- बस यही अपराध मैं हर बार)

ग़ज़ल (देश के गद्दार जो पहचान)

बह्र:- 2122*3

देश के गद्दार जो पहचान लो सब,
उनके मंसूबों की फ़ितरत जान लो सब।

जब भी छेड़े देश का इतिहास कोई,
चुप न बैठो बात का संज्ञान लो सब।

नाग कोई देश में गर फन उठाए,
उस को ठोकर से कुचल दें ठान लो सब।

देश से बढ़कर नहीं कोई जहाँ में, 
दिल की गहराई से इसको मान लो सब।

सिंह सी हुंकार भर जागो जवानों,
देख कर दुश्मन को सीना तान लो सब।

दुश्मनों को देश के करने उजागर,
देश का प्रत्येक कोना छान लो सब।

देश को हम नित 'नमन' कर मान देवें,
भारती माँ से यही वरदान लो सब।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-01-2017

ग़ज़ल (आज कहने जा रहा कुछ अनकही)

बह्र:- 2122  2122  212

आज कहने जा रहा कुछ अनकही,
बात अक्सर मन में जो आती रही।

आज की सच्चाई मित्रों है यही,
सबके मन भावे कहो हरदम वही।

खोखली अब हो रही रिश्तों की जड़,
मान्यताएँ जा रहीं हैं सब ढ़ही।

खो रहे माता पिता सम्मान अब,
भावनाएँ आधुनिकता में बही।

आज बे सिर पैर की सब हाँकते,
हो गया क्या अब दिमागों का दही।

हर तरफ आतंकियों का जोर है,
निरपराधों के लहू से तर मही।

बात कड़वी पर खरी कहता 'नमन',
तय जमाना ही करे क्या है सही।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन',
तिनसुकिया
12-11-2018

ग़ज़ल (बोलना बात का भी मना है)

बह्र:- 2122   122   122

बोलना बात का भी मना है,
साँस को छोड़ना भी मना है।

दहशतों में सभी जी रहे हैं,
दर्द का अब गिला भी मना है।

ख्वाब देखे कभी जो सभी ने,
आज तो सोचना भी मना है।

जख्म गहरे सभी सड़ गये हैं,
खोलना घाव का भी मना है।

सब्र रोके नहीं रुक रहा अब,
बाँध को तोड़ना भी मना है।

हो गई ख़त्म सहने की ताक़त,
करना उफ़ का ज़रा भी मना है।

अब नहीं है 'नमन' का ठिकाना,
आशियाँ ढूंढना भी मना है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-11-16