Wednesday, March 25, 2020

नव संवत्सर स्वागत गीत

बहर 1222 1222 1222 1222

नया आया है संवत्सर, करें स्वागत सभी मिल के;
नये सपने नये अवसर, नया ये वर्ष लाया है।
करें सम्मान इसका हम, नई आशा बसा मन में;
नई उम्मीद ले कर के, नया ये साल आया है।

लगी संवत् सत्ततर की, चलाया उसको नृप विक्रम;
सुहाना शुक्ल पखवाड़ा, महीना चैत्र तिथि एकम;
बधाई कर नमस्ते हम, सभी को आज जी भर दें;
नये इस वर्ष में सब में, नया इक जोश छाया है।

दिलों में मैल है बाकी, पुराने साल का कुछ गर;
मिटाएँ उसको पहले हम, नये रिश्तों से सब जुड़ कर।
सुहाने रंग घोले हैं, छटा मधुमास की सब में;
नये उल्लास में खो कर, सभी की मग्न काया है।

गरीबी ओ अमीरी के, मिटाएँ भेद भावों को;
अशिक्षित ना रहे कोई, करें खुशहाल गाँवों को।
'नमन' सब को गले से हम, लगाएँ आज आगे बढ़;
नया यह वर्ष अपना है, सभी का मन लुभाया है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-03-2020

Thursday, March 12, 2020

मुक्तक (हास्य,व्यंग)

दोस्तो दिल का सदर घर का सदर होने को है,
बा-बहर जो थी ग़ज़ल वह बे-बहर होने को है,
हम मुहब्बत के असर में खूब पागल थे रहे,
जिंदगी की असलियत का अब असर होने को है।

(2122×3  212)
*********

उल्टे सीधे शब्द जोड़ कर, कुछ का कुछ लिख लेता हूँ,
अंधों में काना राजा हूँ, मन मर्जी का नेता हूँ,
व्हाट्सेप के ग्रूपों में ही, अक्सर रहता हूँ छाया,
और वाहवाही में उलझा, खपा दिवस मैं देता हूँ।

(ताटंक छंद)
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जहाँ देखूँ नमी है,
कहीं काई जमी है,
बना घर की ये हालत,
तु रम्मी में रमी है।

(1222 122)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-05-19

मुक्तक (कलम, कविता-1)

शक्ति कलम की मत कम आँको, तख्त पलट ये देती है,
क्रांति-ज्वाल इसकी समाज को, अपने में भर लेती है,
मात्र खिलौना कलम न समझें, स्याही को छिटकाने का,
लिखी इबारत इसकी मन में, नाव भाव की खेती है।

(ताटंक छंद)
*********

कलम सुनाओ लिख कर ऐसा, और और सब लोग कहें,
बार बार पढ़ कर के जिसको, भाव गंग में सभी बहें,
बड़ी कीमती स्याही इसकी, बरतें इसे सलीका रख,
इसके आगे नतमस्तक हो, सब करते ही वाह रहें।

(लावणी छंद)
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बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
18-10-17

मुक्तक (पर्व विशेष-1)

(करवाचौथ)

त्योहार करवाचौथ का नारी का है प्यारा बड़ा,
इक चाँद दूजे चाँद को है देखने छत पे खड़ा,
लम्बी उमर इक चाँद माँगे वास्ते उस चाँद के,
जो चाँद उसकी जिंदगी के आसमाँ में है जड़ा।

(2212*4)
*********
(होली)

हर तरु में छाया बसन्त ज्यों, जीवन में नित रहे बहार,
होली के रंगों की जैसे,  वैभव की बरसे बौछार,
ऊँच नीच के भेद भुला कर, सबको गले लगाएँ आप,
हर सुख देवे सदा आपको, होली का पावन त्योहार।

(आल्हा छंद आधारित)
****

लगा है जब से ये फागुन चली धमार की बात,
दिलों में छाई है होली ओ रंग-धार की बात।
जिधर भी देखिए छाई छटा बसन्त की अब,
हर_इक नज़ारा फ़ज़ा का करे बहार की बात।

(1212 1122 1212 22)
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2019

मुक्तक (आतंक)

आओ करें प्रण और अब आतंक को सहना नहीं,
अब मौन ज्यादा और हम को धार के रहना नहीं,
आतंक में डर डर के जीना भी भला क्या ज़िंदगी,
इसको मिटाने जड़ से अब करना है कुछ, कहना नहीं।

(2212×4)
*********

किस अभागी शाख का लो एक पत्ता झर गया फिर,
आसमां से एक तारा टूट कर के है गिरा फिर,
सरहदों के सैनिकों के खून की कीमत भला क्या,
वेदी पर आतंक की ये वीर का मस्तक चढ़ा फिर।

(2122*4)
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निशा आतंक की छायी गगन पर देश के भारी।
मरे शिव भक्त क्यों हैं बंद तेरे नेत्र त्रिपुरारी।
जो दहशतगर्द पनपे हैं किया दूभर यहाँ जीना।
मचा तांडव करो उनका धरा से नाश भंडारी।।

(1222×4)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-08-18

Tuesday, March 10, 2020

नणँदल नखराँली ‌(होली धमार गीत)

नणँदल नखराँली, नणदोई म्हारो बोळो छेड़ै है,
बस में राखो री।।टेर।।

सोलह सिंगाराँ रो रसियो, यो मारूड़ो थारो है,
बणी ठणी रह घणी धणी नै, रोज रिझाओ री,
नणँदल नखराँली।।

काजू दाखाँ अखरोटां रो, नणदोई शौकीन घणो,
भर भर मुट्ठा मुंडा में दे, खूब खिलाओ री,
नणँदल नखराँली।।

नारैलाँ री चटणी रो, नणदोई भोत चटोरो है,
डोसा इडली सागै चटणी, खूब चटाओ री,
नणँदल नखराँली।।

मालपुआ रस भीज्या भीज्या, चोखा इणनै लागै है,
चूल्हे चढ़ी कड़ाही राखो, रोज उतारो री,
नणँदल नखराँली।।

नाच गीत ओ ठुमका ठरका, इणनै बोळा भावै है,
डाल घूँघटो घर में घूमर, घाल नचाओ री,
नणँदल नखराँली।।

कोमल हाथाँ री मालिस रो, थारो मारू रसियो है,
गर्म तेल रा रोज मल्हारा, कसकर देओ री,
नणँदल नखराँली।।

फागण में नणदोई न्यारो, पाछै पाछै भाजै है,
खुल्लो मत छोड़ो इब इणनै, बाँध्यो राखो री,
नणँदल नखराँली।।

कह्यो सुण्यो सब माफ़ करीज्यो, म्हारो नणदोई बाँको,
'बासुदेव' होली पर इणरी, ये मनुहाराँ री,
नणँदल नखराँली।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
9-3-18

Monday, March 9, 2020

निधि छंद "फागुन मास"

फागुन का मास।
रसिकों की आस।।
बासंती वास।
लगती है खास।।

होली का रंग।
बाजै मृदु चंग।।
घुटती है भंग।
यारों का संग।।

त्यज मन का मैल।
टोली के गैल।।
होली लो खेल।
ये सुख की बेल।।

पावन त्योहार।
रंगों की धार।।
सुख की बौछार।
दे खुशी अपार।।
=============
निधि छंद विधान:-

यह नौ मात्रिक चार चरणों का छंद है। इसका चरणान्त ताल यानी गुरु लघु से होना आवश्यक है। बची हुई 6 मात्राएँ छक्कल होती हैं।  तुकांतता दो दो चरण या चारों चरणों में समान रखी जाती है।
*****************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-03-19

दोहे "होली"

दोहा छंद

होली के सब पे चढ़े, मधुर सुहाने रंग।
पिचकारी चलती कहीं, बाजे कहीं मृदंग।।

दहके झूम पलाश सब, रतनारे हो आज।
मानो खेलन रंग को, आया है ऋतुराज।।

होली के रस की बही, सरस धरा पे धार।
ऊँच नीच सब भूल कर, करें परस्पर प्यार।।

फागुन की सब पे चढ़ी, मस्ती अपरम्पार।
बाल वृद्ध सब झूम के, रस की छोड़े धार।।

नर नारी सब खेलते, होली मिल कर संग।
भेद भाव कुछ नहिं रहे, मधुर फाग का रंग।।

फागुन में मन झूम के, गाये राग मल्हार।
मधुर चंग की थाप है, मीठी बहे बयार।।

घुटे भंग जब तक नहीं, रहे अधूरा फाग,
बजे चंग यदि संग में, खुल जाएँ तब भाग।।

होली की शुभकामना, रहें सभी मन जोड़।
नशा यहाँ ऐसा चढ़े, कोउ न जाये छोड़।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-03-2017

Saturday, March 7, 2020

शुभमाल छंद "दीन पुकार"

सभी हम दीन।
निहायत हीन।।
हुए असहाय।
नहीं कुछ भाय।।

गरीब अमीर।
नदी द्वय तीर।।
न आपस प्रीत।
यही जग रीत।।

नहीं सरकार।
रही भरतार।।
अतीव हताश।
दिखे न प्रकाश।।

झुकाय निगाह।
भरें बस आह।।
सहें सब मौन।
सुने वह कौन।।

सभी दिलदार।
हरें कुछ भार।।
कृपा कर आज।
दिला कछु काज।।

मिला कर हाथ।
चलें सब साथ।।
सही यह मन्त्र।
तभी गणतन्त्र।।
==========
लक्षण छंद:-

"जजा" गण डाल।
रचें 'शुभमाल'।।

"जजा" =  जगण  जगण
( 121    121 ) ,
दो - दो चरण तुकान्त , 6 वर्ण प्रति चरण
*****************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-01-19

शारदी छंद "चले चलो पथिक"

चले चलो पथिक।
बिना थके रथिक।।
थमे नहीं चरण।
भले हुवे मरण।।

सुहावना सफर।
लुभावनी डगर।।
बढ़ा मिलाप चल।
सदैव हो अटल।।

रहो सदा सजग।
उठा विचार पग।।
तुझे लगे न डर।
रहो न मौन धर।।

प्रसस्त है गगन।
उड़ो महान बन।।
समृद्ध हो वतन।
रखो यही लगन।।
=============
लक्षण छंद:-

"जभाल" वर्ण धर।
सु'शारदी' मुखर।।

"जभाल" =  जगण  भगण  लघु
।2।  2।।  । =7 वर्ण, 4चरण दो दो सम तुकान्त
*****************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-06-2017

Wednesday, March 4, 2020

ग़ज़ल ( जीभ दिखा कर)

बह्र:- 2222 2222 2222 222

जीभ दिखा कर यारों को ललचाना वे भी क्या दिन थे,
उनसे फिर मन की बातें मनवाना वे भी क्या दिन थे।

साथ खेलना बात बात में झगड़ा भी होता रहता,
पल भर कुट्टी फिर यारी हो जाना वे भी क्या दिन थे।

गिल्ली डंडे कंचों में ही पूरा दिवस खपा देना,
घर आकर फिर सब से आँख चुराना वे भी क्या दिन थे।

डींग हाँकने और खेलने में जो माहिर वो मुखिया,
ऊँच नीच के भेद न आड़े आना वे भी क्या दिन थे।

नयी किताबें या फिर ड्रेस खिलौने मिलते अगर कभी,
दिखला दिखला यारों को इतराना वे भी क्या दिन थे।

नहीं कमाने की तब चिंता कुछ था नहीं गमाने को,
खेल खेल में पढ़ना, सोना, खाना वे भी क्या दिन थे।

'नमन' मुसीबत की घड़ियों में याद करे नटखट बचपन,
हर आफ़त से बिना फ़िक़्र टकराना वे भी क्या दिन थे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-09-18

ग़ज़ल (आपने जो पौध रोपी)

बह्र:- 2122  2122  2122  212

आपने जो पौध रोपी वो शजर होने को है,
देश-हित के फैसलों का अब असर होने को है।

अब तलक तय जो सफ़र की ख़ार ही उसमें मिले,
आपके साये में अब आसाँ डगर होने को है।

अपना समझा था जिन्हें उनके दिये ही ज़ख्मों की,
दिल कँपाती दास्ताँ सुन आँख तर होने को है।

नफ़रतों के और दहशतगर्दी के इस दौर में,
देखिए इंसान कैसे जानवर होने को है।

देश को जो तोड़ने का ख्वाब देखें, जान लें,
औ' नहीं उनका यहाँ पर अब गुज़र होने को है।

जो पड़े हैं नींद में अब भी गुलामी की, सुनें,
जाग जाओ अब तो यारो दोपहर होने को है।

बेकरारी की अँधेरी रात में तड़पा 'नमन',
ज़िंदगी में अब मुहब्बत की सहर होने को है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-01-17

गज़ल (पाएँ वफ़ा के बदले)

बह्र:- 221  2121  1221  212

पाएँ वफ़ा के बदले जफ़ाएँ तो क्या करें,
हर बार उनसे चोट ही खाएँ तो क्या करें।

हम ख्वाब भी न दिल में सजाएँ तो क्या करें,
उम्मीद जीने की न जगाएँ तो क्या करें।

बन जाते उनके जख़्म की मरहम, कोई दवा,
हर जख़्म-ओ-दर्द जब वे छिपाएँ तो क्या करें।

महफ़िल में अज़नबी से वे जब आये सामने,
अब मुस्कुराके भूल न जाएँ तो क्या करें।

चाहा था उनकी याद को दिल से मिटा दें हम,
रातों की नींद पर वे चुराएँ तो क्या करें।

लाखों बलाएँ सर पे हमारे हैं या ख़ुदा,
कुछ भी असर न करतीं दुआएँ तो क्या करें।

हम अम्न और चैन को करते सदा 'नमन',
पर बाज ही पड़ौसी न आएँ तो क्या करें।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-02-18

ग़ज़ल (बुरा न मानो होली है)

बह्र: 1212 1212, 1212 1212

ये नीति धार के रहो, बुरा न मानो होली है,
कठोर घूँट पी हँसो, बुरा न मानो होली है।

मिटा के भेदभाव सब, सभी से ताल को मिला,
थिरक थिरक के नाच लो, बुरा न मानो होली है।

मुसीबतों की आँधियाँ, झझोड़ के तुम्हें रखे,
पहाड़ से अडिग बनो, बुरा न मानो होली है।

विचार जातपांत का, रिवाज और धर्म का,
मिटा के जड़ से तुम कहो, बुरा न मानो होली है।

परंपरा सनातनी, हमारे दिल में ये बसी,
कोई मले गुलाल तो, बुरा न मानो होली है।

बुराइयाँ समेट सब, अनल में होली की जला,
गले लगा भलाई को, बुरा न मानो होली है।

ये पर्व फाग का अजब, मनाओ मस्त हो इसे,
कहे 'नमन' सभी सुनो, बुरा न मानो होली है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28 - 02 - 2020

Monday, February 24, 2020

मौक्तिका (बचपन जो खो गया)

2*9 (मात्रिक बहर)
(पदांत 'गया', समांत 'ओ' स्वर)

जिम्मेदारी में बढ़ी उम्र की,
बचपन वो सुहाना गुम हो गया।
चुगते चुगते अनुभव के दाने,
अल्हड़पन मेरा कहीं खो गया।।

तब कुछ चिंता थी न कमाने की,
और फिक्र ही थी न गमाने की।
अब कम साधन औ' अधिक खर्च का,
हौवा ये मन का चैन धो गया।।

अब तो कुछ भी करने से पहले,
भला बुरा विचार के दिल दहले।
आशंकाओं की लेता झपकी,
बचपन का साहस प्रखर सो गया।।

तब आशाओं का पीछा करते,
सपने पूरे करने को मरते।
पहले से ही असफलता का भय,
सुस्ती के अब तो बीज बो गया।।

तब कुछ सपने होते थे पूरे,
रह जाते हैं सब आज अधूरे।
यादों में घुटने को नहीं 'नमन',
वो लौट न सकता समय जो गया।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
02-07-2016

मौक्तिका (छाँव)

बहर:-  2122   2122   2122   212
(पदांत का लोप, समांत 'अर')

जिंदगी जीने की राहें मुश्किलों से हैं भरी,
चिलचिलाती धूप जैसा जिंदगी का है सफर।।
हैं घने पेड़ों के जैसे इस सफर में रिश्ते सब,
छाँव इनकी जो मिले तो हो सहज जाती डगर।।

पेड़ की छाया में जैसे ठण्ड राही को मिले,
छाँव में रिश्तों के त्यों गम जिंदगी के सब ढ़ले।
कद्र रिश्तों की करें कीमत चुकानी जो पड़े,
कौन रिश्ते की दुआ ही कब दिखा जाए असर।।

भाग्यशाली वे बड़े जिन पर किसी की छाँव है,
मुख में दे कोई निवाला पालने में पाँव है।
पूछिए क्या हाल उनका सर पे जिनके छत नहीं,
मुफलिसी का जिनके ऊपर टूटता हर दिन कहर।।

छाँव देने जो तुम्हें हर रोज झेले धूप को,
खुद तो काले पड़ तुम्हारे पर निखारे रूप को।
उनके उपकारों को जीवन में 'नमन' तुम नित करो,
उनकी खातिर कुछ भी करने की नहीं छोड़ो कसर।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-05-2017

Sunday, February 16, 2020

मत्तगयंद सवैया "वृथा जन्म"

7 भगण (211) की आवृत्ति के बाद 2 गुरु

बालक जन्म लियो जब से तब से जननी उर से चिपक्यो है।
होय जवान गयो जब वो तिय के रस में दिन रैन रम्यो है।
वृद्ध भयो परिवार बँद्यो अरु पुत्र प्रपुत्रन नेह पग्यो है।
'बासु' कहे सब आयु गयी पर मूढ़ कभी नहिं राम भज्यो है। 

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
20-11-2018

मनहरण घनाक्षरी "गीता महिमा"

हरि मुख से जो झरी, गीता जैसी वाणी खरी,
गीता का जो रस पीता, होता बेड़ा पार है।

ज्ञान-योग कर्म-योग, भक्ति-योग से संयोग,
गीता के अध्याय सारे, अमिय की धार है।

कर्म का संदेश देवे, शोक सारा हर लेवे,
एक एक श्लोक या का, भाव का आगार है।

शास्त्र की निचोड़ गीता, सहज सरल हिता,
पंक्ति पंक्ति रस भरी, शब्द शब्द सार है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-07-17

प्रजातन्त्र (कुण्डलिया)

चक्की के दो पाट सा, प्रजातन्त्र का तंत्र।
जनता उनमें पिस जपे, अच्छे दिन का मंत्र।
अच्छे दिन का मंत्र, छलावा आज बड़ा है।
कैसा सत्ता हाथ, हाय ये शस्त्र पड़ा है।
नेताओं को फ़िक्र, मौज उनकी हो पक्की।
रहें पीसते लोग, भले जीवन भर चक्की।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-04-18

दोहा छंद (गिल्ली डंडा)

दोहा छंद

गिल्ली डंडा खेलते, बच्चे धुन में मस्त।
जग की चिंता है नहीं, होते कभी न पस्त।।

भेद नहीं है जात का, भेद न करता रंग।
ऊँच नीच मन में नहीं, बच्चे खेले संग।।

आस पास को भूल के, क्रीड़ा में तल्लीन।
बड़ा नहीं कोई यहाँ, ना ही कोई हीन।।

छोड़ मशीनी जिंदगी, बच्चे सबके साथ।
हँसते गाते खेलते, डाल गले में हाथ।।

खुले खेत फैले यहाँ, नील गगन की छाँव।
मस्ती में बालक जहाँ, खेलें नंगे पाँव।।

नहीं प्रदूषण आग है, शहरों का ना शोर।
गाँवों का वातावरण, कर दे भाव-विभोर।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-11-2016