Wednesday, May 13, 2020

मनहरण घनाक्षरी "जिन्ना का जिन्न"

(फारूक अब्दुल्ला के जिन्ना-प्रेम पर व्यंग)

भारत का अबदुल्ला, जिन्ना पे पराये आज,
हुआ है दिवाना कैसा, ध्यान आप दीजिए।

खून का असर है या, गहरी सियासी चाल,
देशवासी हलके में, इसे नहीं लीजिए।

लगता है जिन्ना का ही, जिन्न इसमें है घुसा,
इसका उपाय अब, सब मिल कीजिए।

जिन्ना वहाँ परेशान, ये भी यहाँ बिना चैन,
दोनों की मिलाने जोड़ी, इसे वहाँ भेजिए।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
04-03-18

दोहा मुक्तक (यमक युक्त-जलजात)

पद्म, शंख, लक्ष्मी सभी, प्रभु को प्रिय जलजात।
भज नर इनके नाथ को, सकल पाप जल जात।
लोभ, स्वार्थ घिर पर मनुज, कृत्य करे अति घोर।
लख उसके इन कर्म को, हरि भी आज लजात।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-19

केवट प्रसंग (कुण्डलिया)

केवट की ये कामना, हरि-पद करूं पखार।
बोला धुलवाएं चरण, फिर उतरो प्रभु पार।।
फिर उतरो प्रभु पार, काठ की नौका मेरी।
बनी अगर ये नार, बजेगी मेरी भेरी।।
हँस धुलवाते पैर, राम सिय गंगा के तट।
भरे अश्रु की धार, कठौते में ही केवट।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-04-2020

Sunday, May 10, 2020

शोभावती छंद (हिन्दी भाषा)

देवों की भाषा से जन्मी हिन्दी।
हिन्दुस्तां के माथे की है बिन्दी।।
दोहों, छंदों, चौपाई की माता।
मीरा, सूरा के गीतों की दाता।।

हिंदुस्तानी साँसों में है छाई।
पाटे सारे भेदों की ये खाई।।
अंग्रेजी में सारे ऐसे पैठे।
हिन्दी से नाता ही तोड़े बैठे।।

भावों को भाषा देती लोनाई।
भाषा से प्राणों की भी ऊँचाई।।
हिन्दी की भू पे आभा फैलाएँ।
सारे हिन्दी के गीतों को गाएँ।।

हिन्दी का लोहा माने भू सारी।
भाषा के शब्दों की शोभा न्यारी।।
ओजस्वी सारे हिन्दी भाषाई।
हिन्दी जो भी बोलें वे हैं भाई।।
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मगण*3+गुरु (कुल 10 वर्ण सभी दीर्घ)
चार चरण, दो दो समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
26-09-18

सुमति छंद (भारत देश)

प्रखर भाल पे हिमगिरि न्यारा।
बहत वक्ष पे सुरसरि धारा।।
पद पखारता जलनिधि खारा।
अनुपमेय भारत यह प्यारा।।

यह अनेकता बहुत दिखाये।
पर समानता सकल बसाये।।
विषम रीत हैं अरु पहनावा।
सकल एक हों जब सु-उछावा।।

विविध धर्म हैं, अगणित भाषा।
पर समस्त की यक अभिलाषा।।
प्रगति देश ये कर दिखलाये।
सकल विश्व का गुरु बन छाये।।

हम विकास के पथ-अनुगामी।
सघन राष्ट्र के नित हित-कामी।।
'नमन' देश को शत शत देते।
प्रगति-वाद के परम चहेते।।
=================
लक्षण छंद:-

गण "नरानया" जब सज जाते।
'सुमति' छंद की लय बिखराते।।

"नरानया" = नगण रगण नगण यगण
(111 212 111 122)
2-2चरण समतुकांत, 4चरण।
***************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
04-07-19

Tuesday, May 5, 2020

ग़ज़ल (मेरी आँखों में मेरा प्यार)

बह्र: 2122/1122 1122 1122  22

मेरी आँखों में मेरा प्यार उमड़ता देखो,
दिले नादाँ पे असर कितना तुम्हारा देखो।

रब ने कितना ये अजीब_इंसाँ बनाया देखो,
नेमतें पा सभी किस्मत का ये मारा देखो।

ज़िंदगी रेत सी मुट्ठी से फिसलती जाये,
इसके आगे ये बशर कितना बिचारा देखो।

इश्क़ का ऐसा भी होता है असर था न पता,
किस क़दर बन गये हम सब के तमाशा देखो।

ले के जायेगी कहाँ होड़ तरक्की की हमें,
कितना आफ़त का ये मारा है जमाना देखो।

ढूँढ़ते तुम हो अगर दीन औ' ईमान यहाँ,
चंद सिक्कों के लिए सड़कों पे बिकता देखो।

नींद में अब भी हो तुम देश के नेताओं अगर,
जागने जनता लगी और ठिकाना देखो।

तुम बुरे वक़्त को यादों से विदा कर दो बशर,
आगे बढ़ना है अगर अच्छे का सपना देखो।

रब ने सब से ही तुम्हें ख़ास बनाया है 'नमन',
खुद को फिर भूल से भी कम न समझना देखो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-08-18

ग़ज़ल (दिल में कैसी ये)

बह्र:- 2122  1212  22

दिल में कैसी ये बे-क़रारी है,
शायद_उन की ही इंतिज़ारी है।

इश्क़ में जो मज़ा वो और कहाँ,
इस नशे की अजब खुमारी है।

आज भर पेट, कल तो फिर फाका,
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।

दौर आतंक, लूट का ऐसा,
साँस लेना भी इसमें भारी है।

जिससे मतलब उसी से बस नाता,
आज की ये ही होशियारी है।

अब तो रहबर ही बन गये रहजन,
डर हुकूमत का सब पे तारी है।

उस नई सुब्ह की है आस 'नमन',
जिसमें दुनिया ही ये हमारी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-07-19

ग़ज़ल (उनके फिर से बहाने, तमाशे शुरू)

बह्र:- 212*4

उनके फिर से बहाने, तमाशे शुरू,
झूठे नखरे औ' आँसू बहाने शुरू।

हो गये खेल उल्फ़त के सारे शुरू,
चैन जाने लगा दर्द आने शुरू।

जब सुहानी महब्बत आ घर में बसी,
हो गये दिखने दिन में ही तारे शुरू।

जिनके चहरे में आता नज़र था क़मर,
अब तो उनकी कमर से हो ताने शुरू।

क्या चुनाव_आ गए, रहनुमा दिख रहे,
हर जगह उनके मज़मे औ' वादे शुरू।

इंतिहा क्या तरक्की की समझें इसे,
ख़त्म रिश्ते हुए औ' दिखावे शुरू।

फँस के धाराओं में बंद जो थे 'नमन',
डल की धाराओं में वे शिकारे शुरू।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-09-19

ग़ज़ल (न पैमाना वो जो फिर से भरा)

ग़ज़ल (न पैमाना वो जो फिर से)

बह्र:- 1222*4

न पैमाना वो जो फिर से भरा होने से पहले था,
नशा भी वो न जो वापस चढ़ा होने से पहले था।

बड़ा ही ख़ुशफ़हम शादीशुदा होने से पहले था,
बहुत आज़ाद मैं ये हादिसा होने से पहले था।

बसा देता है दुनिया इश्क़ दिल में ये गुमाँ सबके,
मुझे भी इश्क़ करने की सज़ा होने से पहले था।

भुलाने ग़म तो कर ली मय परस्ती पर पड़ी उल्टी,
बहुत खुश मैं नशे में ग़मज़दा होने से पहले था।

तसव्वुर से तेरे आज़ाद हो कर भी परिंदा यह,
अभी भी क़ैद जितना वो रिहा होने से पहले था।

मेरी तुझसे महब्बत का बताऊँ और क्या तुझ को,
तेरा उतना ही मैं जितना तेरा होने से पहले था।

जुदा इस बात में मैं भी नहीं औरों से हूँ यारो,
हर_इक समझे कि वो अच्छा, बुरा होने से पहले था।

नहीं जिसने कभी सीखा, हुआ जाता ख़फ़ा कैसे,
बताये क्या कि कैसा वो ख़फ़ा होने से पहले था।

'नमन' जब से फ़क़ीरी में रमे बाक़ी कहाँ वो मन,
जहाँ के जो रिवाजों से जुदा होने से पहले था।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-09-19

Sunday, April 26, 2020

हाइकु (आभासी जग)

आभासी जग
खा मनन, चिंतन
करे मगन।
**

शाख बिछुड़ा
फूल न जान पाया
गड़ा या जला।
**

गलियाँ ढूंढ़े
बच्चों के गिल्ली डंडे-
बस्ते में ठंडे।
**

प्रीत का गर्व
कुछेक खास पर्व
समेटे सर्व।
**

कब की भोर
रे राही सुन शोर
निद्रा तो छोड़।
**

ओखली, घड़े
विकास तले गड़े
गाँव सिकुड़े।
**

आज ये देश
प्रतिभा क्यों समेट?
भागे विदेश।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-01-2019

आसरो थारो बालाजी (जकड़ी विधा का गीत)

आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।
भव सागर से पार उतारो, नाव फंसी मझ धाराँ जी।।

जद रावण सीता माता नै, लंका में हर ल्यायो,
सौ जोजन का सागर लाँघ्या, माँ को पतो लगायो।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।

शक्ति बाण जब लग्यो लखन के, रामादल घबराया,
संजीवन बूंटी नै ल्या कर, थे ही प्राण बचाया।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।

जद जद भीर पड़ै भक्तन में, थे ही आय उबारो,
थारै चरणां में जो आवै, वाराँ सब दुख टारो।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।
भव सागर से पार उतारो, नाव फंसी मझ धाराँ जी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-5-19

तर्ज- तावड़ा मन्दो पड़ ज्या रै

Wednesday, April 22, 2020

मनहरण घनाक्षरी "गुजरात चुनाव"

गुजरात के चुनाव, लगें हैं सभी के दाव,
उल्टी गंगा कैसी कैसी, नेता ये बहा रहे।

मन्दिरों में भाग भाग, बोले भाग जाग जाग,
भोले बाबा पर डोरे, डाल ये रिझा रहे।

करते दिखावा भारी, लाज शर्म छोड़ सारी,
आसथा का ढोल देखो, कैसा वे बजा रहे।

देश छोड़ा वेश छोड़ा, धर्म और कर्म छोड़ा,
मन्दिरों में जाय अब, जात छोड़ आ रहे।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-12-17

Saturday, April 18, 2020

32 मात्रिक छंद "अनाथ"

कौन लाल ये छिपा हुआ है, जीर्ण शीर्ण वस्त्रों में लिपटा।
दीन दशा मुख से बिखेरता, भीषण दुख-ज्वाला से चिपटा।।
किस गुदड़ी का लाल निराला, किन आँखों का है ये मोती।
घोर उपेक्षा जग की लख कर, इसकी आँखें निशदिन रोती।।

यह अनाथ बालक चिथड़ों में, आनन लुप्त रखा पीड़ा में।
बिता रहा ये जीवन अपना, दारुण कष्टों की क्रीड़ा में।।
गेह द्वार से है ये वंचित, मात पिता का भी नहिं साया।
सभ्य समझते जो अपने को, पड़ने दे नहिं इस पर छाया।।

स्वार्थ भरे जग में इसका बस, भिक्षा का ही एक सहारा।
इसने उजियारे कब देखे, छाया जीवन में अँधियारा।।
इसकी केवल एक धरोहर, कर में टूटी हुई कटोरी।
हाय दैव पर भाग्य लिखा क्या, वह भी तो है बिल्कुल कोरी।।

लघु ललाम लोचन चंचल अति, आस समेट रखे जग भर की।
शुष्क ओष्ठ इसके कहते हैं, दर्द भरी पीड़ा अंतर की।।
घर इसका पदमार्ग नगर के, जीवन यापन उन पे करता।
भिक्षाटन घर घर में करके, सदा पेट अपना ये भरता।।

परम दीन बन करे याचना, महा दीनता मुख से टपके।
रूखा सूखा जो मिल जाता, धन्यवाद कह उसको लपके।।
रोम रोम से करुणा छिटके, ये अनाथ कृशकाय बड़ा है।
सकल जगत की पीड़ा सह कर, पर इसका मन बहुत कड़ा है।।

है भगवान सहारा इसका, टिका हुआ है उसके बल पर।
स्वार्थ लिप्त संसार-भावना, जीता यह नित उसको सह कर।।
आश्रय हीन जगत में जो हैं, उनका बस होता है ईश्वर।
'नमन' सदा मैं उसको करता, जो पाले यह सकल चराचर।।

32 मात्रिक छंद विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-05-2016

Tuesday, April 7, 2020

ग़ज़ल (तेज़ कलमों की धार कौन करे)

बह्र:- 2122  1212   22

तेज़ कलमों की धार कौन करे,
दिल पे नग़मों से वार कौन करे।

जिनसे उम्मीद थी वो मोड़ें मुँह,
अब गरीबी से पार कौन करे।

जो मसीहा थे, वे ही अब डाकू,
उनके बिन लूटमार कौन करे।

आसमाँ ने समेटे सब रहबर,
अब हमें होशियार कौन करे।

पूछतीं कलियाँ भँवरे से तुझ को,
दिल का उम्मीदवार कौन करे।

आज खुदगर्ज़ी के जमाने में,
जाँ वतन पे निसार कौन करे।

आग नफ़रत की जो लगाते हैं,
उनको अब शर्मसार कौन करे।

*दाग़* पहले से ही भरें जिस में,
ऐसी सूरत को प्यार कौन करे।

आज ग़ज़लें 'नमन' हैं ऐसी जिन्हें,
शायरी में शुमार कौन करे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-08-19

ग़ज़ल (चोट दिल पर है लगी जो मैं)

बह्र: 2122 1122 1122  22

चोट दिल पर है लगी जो मैं दिखा भी न सकूँ,
बात अपनों की ही है जिसको बता भी न सकूँ।

अम्न की चाह यहाँ जंग पे वो आमादा,
ऐसे जाहिल से मैं नफ़रत को छिपा भी न सकूँ।

इश्क़ पर पहरे जमाने के लगे हैं कैसे,
एक नजराना मैं उनके लिए ला भी न सकूँ ।

सादगी मेरी बनी सब की नज़र का काँटा,
मुझको इतने हैं मिले जख़्म गिना भी न सकूँ।

हाय मज़बूरी ये कैसी है अना की मन में,
दोस्त जो रूठ गये उनको मना भी न सकूँ।

ऐसी दौलत से भला क्या मैं करूँगा हासिल,
जब वतन को हो जरूरत तो लुटा भी न सकूँ।

शाइरी ज़िंदगी अब तो है 'नमन' की यारो,
शौक़ ये ऐसा चढ़ा जिसको मिटा भी न सकूँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-09-17

ग़ज़ल (दीन की ख़िदमत से बढ़कर)

बह्र:- 2122  2122  2122  212

दीन की ख़िदमत से बढ़कर शादमानी फिर कहाँ,
कर सको उतनी ये कर लो जिंदगानी फिर कहाँ।

पास आ बैठो सनम कुछ मैं कहूँ कुछ तुम कहो,
शाम ऐसी फिर कहाँ उसकी रवानी फिर कहाँ।

नौनिहालों इन बुजुर्गों से ज़रा कुछ सीख लो,
इस जहाँ में तज्रबों की वो निशानी फिर कहाँ।

कद्र बूढ़ों की करें माँ बाप को सम्मान दें,
कब उन्हें ले जाएँ दौर-ए-आसमानी फिर कहाँ।

नौजवानों इस वतन के वास्ते कुछ कर भी लो,
सर धुनोगे बाद में ये नौजवानी फिर कहाँ।

गाँवों की उजड़ी दशा पर गर किया कुछ भी न अब,
उन भरे चौपालों की बातें पुरानी फिर कहाँ।

लिखता आया है 'नमन' खून-ए जिगर से नज़्म सब,
ठहरिये सुन लें ज़रा ये नज़्म-ख्वानी फिर कहाँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-08-17

ग़ज़ल (छाया देते पीपल हो क्या)

बह्र:- 22  22  22  22

छाया देते पीपल हो क्या,
या दहशत के जंगल हो क्या।

जीवन का कोलाहल हो क्या,
थमे न जो वो दृग-जल हो क्या।

बजती जो पैसों की खातिर,
वैसी बेबस पायल हो क्या।

दुराग्रहों में अंधे हो कर,
सच्चाई से ओझल हो क्या।

दिखते तो हो, पर भीतर से,
मखमल जैसे कोमल हो क्या।

वक़्त चुनावों का जब आये,
हाल जो पूछे वो दल हो क्या।

गर हो माँ के आँचल से तो,
उसके जैसे शीतल हो क्या।

भूल गये बजरंग जिसे थे,
देश के बल तुम! वो बल हो क्या।

जाम-ओ-मीना हुस्न के जलवे,
'नमन' इन्हीं में पागल हो क्या।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-10-19

Wednesday, March 25, 2020

नव संवत्सर स्वागत गीत

बहर 1222 1222 1222 1222

नया आया है संवत्सर, करें स्वागत सभी मिल के;
नये सपने नये अवसर, नया ये वर्ष लाया है।
करें सम्मान इसका हम, नई आशा बसा मन में;
नई उम्मीद ले कर के, नया ये साल आया है।

लगी संवत् सत्ततर की, चलाया उसको नृप विक्रम;
सुहाना शुक्ल पखवाड़ा, महीना चैत्र तिथि एकम;
बधाई कर नमस्ते हम, सभी को आज जी भर दें;
नये इस वर्ष में सब में, नया इक जोश छाया है।

दिलों में मैल है बाकी, पुराने साल का कुछ गर;
मिटाएँ उसको पहले हम, नये रिश्तों से सब जुड़ कर।
सुहाने रंग घोले हैं, छटा मधुमास की सब में;
नये उल्लास में खो कर, सभी की मग्न काया है।

गरीबी ओ अमीरी के, मिटाएँ भेद भावों को;
अशिक्षित ना रहे कोई, करें खुशहाल गाँवों को।
'नमन' सब को गले से हम, लगाएँ आज आगे बढ़;
नया यह वर्ष अपना है, सभी का मन लुभाया है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-03-2020

Thursday, March 12, 2020

मुक्तक (हास्य,व्यंग)

दोस्तो दिल का सदर घर का सदर होने को है,
बा-बहर जो थी ग़ज़ल वह बे-बहर होने को है,
हम मुहब्बत के असर में खूब पागल थे रहे,
जिंदगी की असलियत का अब असर होने को है।

(2122×3  212)
*********

उल्टे सीधे शब्द जोड़ कर, कुछ का कुछ लिख लेता हूँ,
अंधों में काना राजा हूँ, मन मर्जी का नेता हूँ,
व्हाट्सेप के ग्रूपों में ही, अक्सर रहता हूँ छाया,
और वाहवाही में उलझा, खपा दिवस मैं देता हूँ।

(ताटंक छंद)
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जहाँ देखूँ नमी है,
कहीं काई जमी है,
बना घर की ये हालत,
तु रम्मी में रमी है।

(1222 122)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-05-19

मुक्तक (कलम, कविता-1)

शक्ति कलम की मत कम आँको, तख्त पलट ये देती है,
क्रांति-ज्वाल इसकी समाज को, अपने में भर लेती है,
मात्र खिलौना कलम न समझें, स्याही को छिटकाने का,
लिखी इबारत इसकी मन में, नाव भाव की खेती है।

(ताटंक छंद)
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कलम सुनाओ लिख कर ऐसा, और और सब लोग कहें,
बार बार पढ़ कर के जिसको, भाव गंग में सभी बहें,
बड़ी कीमती स्याही इसकी, बरतें इसे सलीका रख,
इसके आगे नतमस्तक हो, सब करते ही वाह रहें।

(लावणी छंद)
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बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
18-10-17