इस ब्लॉग को “नयेकवि” जैसा सार्थक नाम दे कर निर्मित करने का प्रमुख उद्देश्य नये कवियों की रचनाओं को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराना है जहाँ उन रचनाओं की उचित समीक्षा हो सके, साथ में सही मार्ग दर्शन हो सके और प्रोत्साहन मिल सके। यह “नयेकवि” ब्लॉग उन सभी हिन्दी भाषा के नवोदित कवियों को समर्पित है जो हिन्दी को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिये जी जान से लगे हुये हैं जिसकी वह पूर्ण अधिकारिणी है। आप सभी का इस नये ब्लॉग “नयेकवि” में हृदय की गहराइयों से स्वागत है।
Sunday, November 15, 2020
जनहरण घनाक्षरी
कर्मठता (कुण्डलिया)
दोहा गीतिका (सम्मान)
Wednesday, November 11, 2020
32 मात्रिक छंद "हम और तुम"
पीयूष वर्ष छंद "वर्षा वर्णन"
शीर्षा छंद (शैतानी धारा)
Thursday, November 5, 2020
ग़ज़ल (जो गिरे हैं उन्हें हम उठाते रहे)
ग़ज़ल (रहे जो गर्दिशों में ऐसे अनजानों)
ग़ज़ल (कैसी ये मज़बूरी है)
Friday, October 23, 2020
पिरामिड (बूंद)
हाइकु (कोरोना)
Thursday, October 15, 2020
गुर्वा (प्रशासन)
कठिन बड़ा अब पेट भरण,
शरण कहाँ? केवल शोषण,
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ले रहा जनतंत्र सिसकी,
स्वार्थ की चक्की चले,
पाट में जनता विवस सी।
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चुस्त प्रशासन भी बेकार,
जनता सुस्त निकम्मी,
लोकतंत्र की लाचारी।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-05-20
मौक्तिका (बालक)
(पदांत 'को जाने नहीं', समांत 'आन')
कितना मनोहर रूप पर अभिमान को जाने नहीं।।
पहना हुआ कुछ या नहीं लेटा किसी भी हाल में,
अवधूत सा निर्लिप्त जग के भान को जाने नहीं।।
मनमर्जियों का बादशाह किस भाव में खोने लगे।
कुछ भी कहो कुछ भी करो पड़ता नहीं इसको फ़रक,
ना मान को ये मानता सम्मान को जाने नहीं।।
किलकारियों की गूँज से श्रवणों में मधु-रस घोलता।
खिलवाड़ करता था अभी सोने लगा क्यों लाल अब,
नन्हा खिलौना लाडला चिपका रहे माँ से अगर,
मुट्ठी में जकड़ा सब जगत ना दीन दुनिया की खबर।
ममतामयी खोयी हुई खोया हुआ ही लाल है,
अठखेलियाँ बिस्तर पे कर उलटे कभी सुलटे कभी,
मासूमियत इसकी हरे चिंता फ़िकर झट से सभी।
खोया हुआ धुन में रहे अपने में हरदम ये मगन,
अपराध से ना वासता जग के छलों से दूर है,
मुसकान से घायल करे हर आँख का ये नूर है।
करता 'नमन' इस में छिपी भगवान की मूरत को मैं,
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-08-2016
राजस्थानी हेली गीत (विरह गीत)
ओळ्यूँ आवै सारी रात।
हिया मँ उमड़ै काली कलायण म्हारी हेली!
मनड़ा रो मोर करै पिऊ पिऊ म्हारी हेली!
पिया मेघा ने दे पुकार।
सूखी पड्योरी बेल सींचो ये म्हारी हेली!
आखा तीजड़ गई सावण भी सूखो म्हारी हेली!
दिवाली घर ल्याई सून।
कटणो घणो है दोरो वैरी सियालो म्हारी हेली!
तनड़ो बिंधैगी पौ री पून।।
हिवड़ै में बळरी है आग।
सुणा दे संदेशो सैंया आवण रो म्हारी हेली!
जगा दे सोया म्हारा भाग।।
तिनसुकिया
09-12-2018
Saturday, October 10, 2020
सारवती छंद "विरह वेदना"
छोड़ चला मन भाव जगा।।
आवन की सजना धुन में।
धीर रखी अबलौं मन में।।
खावन दौड़त रात महा।
आग जले नहिं जाय सहा।।
पावन सावन बीत रहा।
अंतस हे सखि जाय दहा।।
मोर चकोर मचावत है।
शोर अकारण खावत है।।
बाग-छटा नहिं भावत है।
जी अब और जलावत है।।
ये बरखा भड़कावत है।
जो विरहाग्नि बढ़ावत है।।
गीत नहीं मन गावत है।
सावन भी न सुहावत है।।
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लक्षण छंद:-
"भाभभगा" जब वर्ण सजे।
'सारवती' तब छंद लजे।।
"भाभभगा" = भगण भगण भगण + गुरु
211 211 211 2,
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21/9/2020
कुंडल छंद "ताँडव नृत्य"
डगमग कैलाश आज, काँप रहे सारे।।
बाघम्बर को लपेट, प्रलय-नेत्र खोले।
डमरू का कर निनाद, शिव शंकर डोले।।
लपटों सी लपक रहीं, ज्वाल सम जटाएँ।
वक्र व्याल कंठ हार, जीभ लपलपाएँ।।
ठाडे हैं हाथ जोड़, कार्तिकेय नंदी।
काँपे गौरा गणेश, गण सब ज्यों बंदी।।
दिग्गज चिघ्घाड़ रहें, सागर उफनाये।
नदियाँ सब मंद पड़ीं, पर्वत थर्राये।।
चंद्र भानु क्षीण हुये, प्रखर प्रभा छोड़े।
उच्छृंखल प्रकृति हुई, मर्यादा तोड़े।।
सुर मुनि सब हाथ जोड़, शीश को झुकाएँ।
शिव शिव वे बोल रहें, मधुर स्तोत्र गाएँ।।
इन सब से हो उदास, नाचत हैं भोले।
वर्णन यह 'नमन' करे, हृदय चक्षु खोले।।
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कुंडल छंद *विधान*
22 मात्रा का सम मात्रिक छंद। 12,10 यति। अंत में दो गुरु आवश्यक; यति से पहले त्रिकल आवश्यक।मात्रा बाँट :- 6+3+3, 6+SS
चार चरण, दो दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-08-20
मानव छंद "नारी की व्यथा"
Monday, October 5, 2020
ग़ज़ल (परंपराएं निभा रहे हैं)
ग़ज़ल (रोग या कोई बला है)
Saturday, October 3, 2020
हरिणी छंद "राधेकृष्णा नाम-रस"
इन रस भरे, नामों का तो, महत्त्व अपार है।।
चिर युगल ये, जोड़ी न्यारी, त्रिलोक लुभावनी।
जहँ जहँ रहे, राधा प्यारी, वहीं घनश्याम हैं।
परम द्युति के, श्रेयस्कारी, सभी परिणाम हैं।।
बहुत महिमा, नामों की है, इसे सब जान लें।
सब हृदय से, संतों का ये, कहा सच मान लें।।
अति व्यथित हो, झेलूँ पीड़ा, गिरा भव-कूप में।
मन विकल है, डूबूँ कैसे, रमा हरि रूप में।।
भुवन भर में, गाथा गाऊँ, सदा प्रभु नाम की।
मन-नयन से, लीला झाँकी, लखूँ ब्रज-धाम की।।
मन महँ रहे, श्यामा माधो, यही अरदास है।
जिस निलय में, दोनों सोहे, वहीं पर रास है।।
युगल छवि की, आभा में ही, लगा मन ये रहे।
'नमन' कवि की, ये आकांक्षा, इसी रस में बहे।।
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लक्षण छंद: (हरिणी छंद)
मधुर 'हरिणी', राचें बैठा, "नसामरसालगे"।
प्रथम यति है, छै वर्णों पे, चतुष् फिर सप्त पे।
"नसामरसालगे" = नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।
111 112, 222 2,12 112 12
चार चरण, दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-10-20