Thursday, March 18, 2021

मुक्तक (जवानी)

खुले नभ की ये छत हो सर पे सुहानी,
करे तन को सिहरित हवा की रवानी,
छुअन मीत की हो किसे फिर है परवाह,
कि बैठें हैं कैसे, यही तो जवानी।

(122*4)
***********

जवानी का मजा है
हसीनों की सजा है
मरें हर रोज इसमें
कहाँ ऐसी क़जा है।

(1222 122)
********

न ऐसी कभी जिंदगानी लगी,
न दुनिया ही इतनी सुहानी लगी,
मिली जबसे उनकी मुहब्बत हमें,
न ऐसी कभी ये जवानी लगी।

(122*3 12)
************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-02-17

विविध मुक्तक -7

उचित सम्मान देने से यथा सम्मान मिलता है,
निरादर जो करे सबका उसे अपमान मिलता है,
न पद को देख दो इज्जत नहीं दो देख धन दौलत,
वृथा की वाहवाही से तो' बस अभिमान मिलता है।

(1222*4)
***********

खुदा के न्याय से बढ़कर नहीं कोई अदालत है,
नहीं हक़ की जिरह से बढ़ जहाँ में कुछ वकालत है,
लड़ो मजलूम की खातिर सहो हँस जुल्म की आँधी,
जहाँ में इससे बढ़ कर के नहीं कोई सदाकत है।

(1222×4)
**********

खुशी के गा तराने मैं हमेशा।
तुम्हें आया हँसाने मैं हमेशा।
करूँ हल्का तुम्हारा ग़म, मेरा भी।
दिखा सपने सुहाने मैं हमेशा।।

(1222 1222 122)
**********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-10-19

Friday, March 12, 2021

रोला छंद "शाम'

रवि को छिपता देख, शाम ने ली अँगड़ाई।
रक्ताम्बर को धार, गगन में सजधज आई।।
नृत्य करे उन्मुक्त, तपन को देत विदाई।
गा कर स्वागत गीत, करे रजनी अगुवाई।।

सांध्य-जलद हो लाल, नृत्य की ताल मिलाए।
उमड़-घुमड़ कर मेघ, छटा में चाँद खिलाए।।
पक्षी दे संगीत, मधुर गीतों को गा कर।
मोहक भरे उड़ान, पंख पूरे फैला कर।।

मुखरित किये दिगन्त, शाम ने नभ में छा कर।
भर दी नई उमंग, सभी में खुशी जगा कर।।
विहग वृन्द ले साथ, करे सन्ध्या ये नर्तन।
अद्भुत शोभा देख, पुलक से भरता तन मन।।

नारी का प्रतिरूप, शाम ये देती शिक्षा।
सम्बल निज पे राख, कभी मत चाहो भिक्षा।।
सूर्य पुरुष मुँह मोड़, त्याग के देता जब चल।
रजनी देख समक्ष, सांध्य तब भी है निश्चल।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-01-2017

लावणी छन्द (ईश गरिमा)

तेरी ईश सृष्टि की महिमा, अद्भुत बड़ी निराली है;
कहीं शीत है कहीं ग्रीष्म है, या बसन्त की लाली है।
जग के जड़ चेतन जितने भी, सब तेरे ही तो कृत हैं;
जो तेरी छाया से वंचित, वे अस्तित्व रहित मृत हैं।।

धैर्य धरे नित भ्रमणशील रह, धार रखे जीवन धरती;
सागर की उत्ताल तरंगें, अट्टहास तुझसे करती।
कलकल करते सरिता नद में, तेरी निपुण सृष्टि झलके;
अटल खड़े गिरि खंडों से भी, तेरी आभा ही छलके।।

रम्य अरुणिमा प्राची में भर, भोर क्षितिज में जब सोहे;
रक्तवर्ण वृत्ताकृति शोभा, बाल सूर्य की जग मोहे।
चंचल चपल चांदनी में तू, शशि की शीतलता में है।
तारा युक्त चीर से शोभित, निशि की नीरवता में है,

मैदानों की हरियाली में, घाटी की गहराई में;
कोयल की कुहु-कुहु से गूँजित, बासन्ती अमराई में।
अन्न भार से शीश झुकाए, खेतों की इन फसलों में; 
तेरा ही चातुर्य झलकता, कामधेनु की नसलों में।।

विस्तृत एवम् स्वच्छ सलिल से, नील सरोवर भरे हुए;
पुष्पों के गुच्छों से मुकुलित, तरुवर मोहक लदे हुए।
घिरे हुए जो कुमुद दलों से, इठलाते प्यारे शतदल;
तेरी ही आभा के द्योतक, ये गुलाब पुष्पित अति कल।।

पंक्ति बद्ध विहगों का कलरव, रसिक जनों को हर्षाए;
वन गूँजाती वनराजों की, सुन दहाड़ मन थर्राए।
चंचल हिरणी की आँखों में, माँ की प्यार भरी ममता,
तुझसे ही तो सब जीवों की, शोभित रहती है क्षमता।।

हे ईश्वर हे परमपिता प्रभु, दीनबन्धु जगसंचालक;
तेरी कृतियों का बखान है, करना अति दुष्कर पालक।
अखिल जगत सम्पूर्ण चराचर, तुझसे ही तो निर्मित है;
तुझसे लालित पालित होता, तुझसे ही संहारित है।।

भाव प्रसून खिला दे हे प्रभु, हृदय वाटिका में मेरी;
काव्य-सृजन से सुरभित राखूँ, पा कर इसे कृपा तेरी।
मनोकामना पूर्ण करो ये, ईश यही मेरी विनती;
तेरे उपकारों की कोई, मेरे पास नहीं गिनती।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
07-05-2016

सार छंद "टेसू और नेता"

सार छंद / ललितपद छंद

ज्यों टेसू की उलझी डालें, वैसा है ये नेता।
स्वारथ का पुतला ये केवल, अपनी नैया खेता।।
पंच वर्ष तक आँसू देता, इसका पतझड़ चलता।
जिस में सोता कुम्भकरण सा, जनता का जी जलता।।

जब चुनाव नेड़े आते हैं, तब खुल्ले में आता।
नव आश्वासन की झड़ से ये, भारी शोर मचाता।।
ज्यों बसंत में टेसू फूले, त्यों चुनाव में नेता।
पाँच साल में एक बार यह, जनता की सुधि लेता।।

क्षण क्षण रूप बदलता रहता, गिरगिट के ये जैसा।
चाल भाँप लोगों की पहले, रंग दिखाता वैसा।।
रंग दूर से ही टेसू का, लगता बड़ा सुहाना।
फिर तो उसका यूँ ही झड़ कर, व्यर्थ चला है जाना।।

एक लक्ष्य इस नेता का है, कैसे कुर्सी पाये।
साम, दाम जैसे भी हो ये, सत्ता बस हथियाये।।
चटक मटक ऊपर की ओढ़े, गन्ध हीन टेसू सा।
चार दिनों की शोभा इसकी, फिर उलझे गेसू सा।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-03-17

Friday, March 5, 2021

ग़ज़ल (प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ)

बह्र:- 2122  1212  22

प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम,
जान ले लो न पर सताओ तुम।

पास आ के जरा सा बैठो तो,
फिर न चाहे गलेे लगाओ तुम।

चोट खाई बहुत जमाने से,
कम से कम आँख मत चुराओ तुम।

इल्तिज़ा आख़िरी ये जानेमन,
अब तो उजड़ा चमन बसाओ तुम।

खुद की नज़रों से खुद ही गिर कर के,
आग नफ़रत की मत लगाओ तुम,

बीच सड़कों के क़त्ल, शील लुटे,
देख कर सब ये तिलमिलाओ तुम।

ख़ारों के बीच रह के भी ए 'नमन'
खुद भी हँस औरों को हँसाओ तुम।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-02-2017

ग़ज़ल (तीर नज़रों का उनका चलाना हुआ)

बह्र:- 212*4

तीर नज़रों का उनका चलाना हुआ,
और दिल का इधर छटपटाना हुआ।

हाल नादान दिल का न पूछे कोई,
वो तो खोया पड़ा आशिक़ाना हुआ।

ये शब-ओ-रोज़, आब-ओ-हवा आसमाँ,
शय अज़ब इश्क़ है सब सुहाना हुआ।

अब नहीं बाक़ी उसमें किसी की जगह,
जिनकी यादों का दिल आशियाना हुआ।

क्या यही इश्क़ है, रूठा दिलवर उधर,
और दुश्मन इधर ये जमाना हुआ।

जो परिंदा महब्बत का दिल में बसा,
बाग़ उजड़ा तो वो बेठिकाना हुआ।

शायरी ग़म भुलाती थी तेरे 'नमन',
शौक़ उल्फ़त का पर दिल जलाना हुआ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-09-19

ग़ज़ल (ग़म पी पी कर दिल जब ऊबा)

बह्र:- 2222 2222 2222 222

ग़म पी पी कर दिल जब ऊबा, तब मयखाने याद आये,
तेरी आँखों की मदिरा के, सब पैमाने याद आये।

उम्मीदों की मिली हवाएँ जब भी दिल के शोलों को 
तेरे साथ गुजारे वे मदहोश ज़माने याद आये।

मदहोशी में कुछ गाने को जब भी प्यासा दिल मचला, 
तेरा हाथ पकड़ जोे गाये, सभी तराने याद आये।

ख्वाबों में भी मैंने चाहा, जब भी तुझ को छूने को,
इठला कर वो ना ना करते, हसीं बहाने याद आये।

संगी साथी संग कभी गर दिल हल्का करना चाहा,
तू मुझ में मैं तुझ में खोया दो दीवाने याद आये।

पल जो तेरे साथ गुजारे, तरस गया हूँ अब उनको,
तेरी मीठी नोक झोंक के, सब अफ़साने याद आये।

नए कभी उपहार मिलें तो, टीस 'नमन'-मन में उठती,
होठों से जो तुझ से मिले थे, वे नज़राने याद आये।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-12-16

Sunday, February 21, 2021

राजस्थानी डाँखला (1)

(1)

लिछमी बाईसा री न्यारी नगरी है झाँसी,
गद्दाराँ रै गलै री बणी थी जकी फाँसी।
राणी सा रा ठाठ बाठ,
गाताँ थकै नहीं भाट।
सुण सुण फिरंग्याँ के चाल जाती खाँसी।।
****
(2)

बाकी सब गढणियाँ गढ तो चित्तौडगढ़,
उपज्या था वीर अठै एक से ही एक बढ।
कुंभा री हो ललकार,
साँगा री या तलवार,
देशवासी बणो बिस्या गाथा वाँ री पढ पढ।।
****
(3)

राजनीति माँय बड़ग्या सगला उचक्का चोर,
श्राधां आला कागला सा उतपाती घनघोर।
पड़ जावै जठै पाँव,
मचा देवे काँव काँव।
चाटग्या ये देश सारो निकमा मुफतखोर।
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08-09-20

क्षणिकाएँ

(बीती जवानी)

(1)
जवानी में जो
इरादे पत्थर से
मजबूत होते थे,,,
वे अब अक्सर
पुराने फर्नीचर से
चरमरा टूट जाते हैं।
**

(2)

क्षणिका  (परेशानी)

जो मेरी परेशानियों पर
हरदम हँसते थे
पर अब मैंने जब
परेशानियों में
हँसना सीख लिया है
वे ही मुझे अब
देख देख
रो रहे हैं।
**

(3)

क्षणिका (पहचान)

आभासी जग में 
पहचान बनाते बनाते
अपनी पहचान
खो रहे हैं----
मेलजोल के चक्कर में
और अकेले
हो रहे हैं।
**

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
15-06-19

पथिक (नवगीत)

जो सदा अस्तित्व से 
अबतक लड़ा है।
वृक्ष से मुरझा के 
पत्ता ये झड़ा है।

चीर कर 
फेनिल धवल 
कुहरे की चद्दर,
अव्यवस्थित से 
लपेटे तन पे खद्दर,
चूमने 
कुहरे में डूबे 
उस क्षितिज को,
यह पथिक 
निर्द्वन्द्व हो कर 
चल पड़ा है।

हड्डियों को 
कँपकँपाती 
ये है भोर,
शांत रजनी सी 
प्रकृति में
है न थोड़ा शोर,
वो भला इन सब से 
विचलित क्यों रुकेगा?
दूर जाने के लिए 
ही जो अड़ा है।

ठूंठ से जो वृक्ष हैं 
पतझड़ के मारे,
वे ही साक्षी 
इस महा यात्रा 
के सारे,
हे पथिक चलते रहो 
रुकना नहीं तुम,
तुमको लेने ही 
वहाँ कोई खड़ा है।

जीव का परब्रह्म में 
होना समाहित,
सृष्टी की धारा 
सतत ये है 
प्रवाहित,
लक्ष्य पाने की ललक 
रुकने नहीं दे,
प्रेम ये 
शाश्वत मिलन का 
ही बड़ा है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-4-17

Monday, February 15, 2021

मुक्तक (श्रद्धांजलि)

(नेताजी)

आज तेइस जनवरी है याद नेताजी की कर लें,
हिन्द की आज़ाद सैना की हृदय में याद भर लें,
खून तुम मुझको अगर दो तो मैं आज़ादी तुम्हें दूँ,
इस अमर ललकार को सब हिन्दवासी उर में धर लें।

(2122*4)
*********

तुलसीदास जी की जयंती पर मुक्तक पुष्प

लय:- इंसाफ की डगर पे

तुलसी की है जयंती सावन की शुक्ल सप्तम,
मानस सा ग्रन्थ जिसने जग को दिया है अनुपम,
चरणों में कर के वन्दन करता 'नमन' में तुमको,
भारत के गर्व तुम हो हिन्दी की तुमसे सरगम।।

(221 2122)*2
*********

(चन्द्र शेखर आज़ादजी की पुण्य तिथि पर। जन्म 1906।)

तुम शुभ्र गगन में भारत के, चमके जैसे चन्दा उज्ज्वल।
ऐंठी मूंछे, चोड़ी छाती, आज़ाद खयालों के थे प्रतिपल।
अंग्रेजों को दहलाया था, दे अपना उत्साही यौवन।
हे शेखर! 'नमन' तुम्हें शत शत, जो खिले हृदय में बन शतदल।।

(मत्त सवैया आधारित)
***********

(ताटंक छंद में झांसी की रानी को श्रद्धांजलि)

बुन्देलखण्ड की ज्वाला थी, झांसी की तू रानी थी।
करवाने आज़ाद देश ये, तूने मन में ठानी थी।
भारतवासी के हृदयों में, स्थान अमर रानी तेरा।
खूब लड़ी थी अंग्रेजों से, ना तेरी ही सानी थी।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-02-18

मुक्तक (घमण्ड, गुमान)

इतना भी ऊँची उड़ान में, खो कर ना इतराओ,
पाँव तले की ही जमीन का, पता तलक ना पाओ,
मत रौंदो छोटों को अपने, भारी भरकम तन से,
भारी जिनसे हो उनसे ही, हल्के ना हो जाओ।

(सार छंद)
*********

बिल्ले की शह से चूहा भी, शेर बना इतराता है,
लगे गन्दगी वह बिखेरने, फूल फुदकता जाता है,
खोया ही रहता गुमान में, वह नादान नहीं जाने,
हँसे जमाना उसकी मति पर, और तरस ही खाता है।

(ताटंक छंद)
*********

हवा बहुत ही भारी भारी, दम सा घुटता लगता है,
अहंकार की गर्म हवा में, तन मन जलता लगता है,
पंछी हम आज़ाद गगन के, अपनी दुनिया में चहकें,
रोज झपटते बाजों से अब, हृदय धड़कता लगता है।

(लावणी छंद)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-12-16

विविध मुक्तक -6

अर्थ जीवन का है बढना ये नदी समझा रही,
खिल सदा हँसते ही रहना ये कली समझा रही,
हों कभी पथ से न विचलित झेलना कुछ भी पड़े,
भार हर सह धीर रखना ये मही समझा रही।

(2122*3 212)

1-09-20
********

हबीब जो थे हमारे रकीब अब वे हुए,
हमारे जितने भी दुश्मन करीब उन के हुए,
हक़ीम बन वे दिखाएँ हमारे जख्मों के,
हमारे वास्ते सारे सलीब जैसे हुए।

(1212  1122  1212  22)
*********

चाहे नहीं तू खेद जताने के लिये आ,
पर घर से निकल हाथ हिलाने के लिये आ,
मैं खुद की ही ढ़ो लाश रहा जा तेरे घर से,
जीते का ही मातम तो मनाने के लिये आ।

(221 1221 1221 122)
***********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-09-20

Wednesday, February 10, 2021

दोहे (क्रोध)

दोहा छंद

मन वांछित जब हो नहीं, प्राणी होता क्रुद्ध।
बुद्धि काम करती नहीं, हो विवेक अवरुद्ध।।

नेत्र और मुख लाल हो, अस्फुट उच्च जुबान।
गात लगे जब काम्पने, क्रोध चढ़ा है जान।।

सदा क्रोध को जानिए, सब झंझट का मूल।
बात बढ़ाए चौगुनी, रह रह दे कर तूल।।

वशीभूत मत होइए, कभी क्रोध के आप।
काम बिगाड़े आपका, मन को दे संताप।।

वश में हो कर क्रोध के, रावण मारी लात।
मिला विभीषण शत्रु से, किया सर्व कुल घात।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2016

ताटन्क छंद "भ्रष्टाचारी सेठों ने"

(मुक्तक शैली की रचना)

अर्थव्यवस्था चौपट कर दी, भ्रष्टाचारी सेठों ने।
छीन निवाला दीन दुखी का, बड़ी तौंद की सेठों ने।
केवल अपना ही घर भरते, घर खाली कर दूजों का।
राज तंत्र को बस में कर के, सत्ता भोगी सेठों ने।।

कच्चा पक्का खूब करे ये, लूट मचाई सेठों ने।
काली खूब कमाई करके, भरी तिजौरी सेठों ने।
भ्रष्ट आचरण के ये पोषक, शोषक जनता के ये हैं।
दो खाते रख करी बहुत है, कर की चोरी सेठों ने।।

देकर रिश्वत पाल रखे हैं, मंत्री संत्री सेठों ने।
काले धन से काली दुनिया, अलग बसाई सेठों ने।
ढोंग धर्म का भारी करते, काले पाप छिपाने में।
दान दक्षिणा सभी दिखावा, साख खरीदी सेठों ने।

लोगों की कुचली सांसों से, दौलत बाँटी सेठों ने।
सुख सुविधाएँ इस दुनिया की, सारी छाँटी सेठों ने।
दुखियों के दिन फिरने वाले, अंत सभी का होता है।
सारी साख गँवा दी है अब, शोषणकारी सेठों ने।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-11-2016

गणेश-वंदन (कुण्डलिया)

पूजा प्रथम गणेश की, संकट देती टाल।
रिद्धि सिद्धि के नाथ ये, गज का इनका भाल।
गज का इनका भाल, पेट है लम्बा जिनका।
काया बड़ी विशाल, मूष है वाहन इनका।
विघ्न करे सब दूर, कौन ऐसा है दूजा।
भाद्र शुक्ल की चौथ, करो गणपति की पूजा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-09-2016

Thursday, February 4, 2021

ग़ज़ल (जब से अंदर और बाहर)

बह्र:- 2122 2122 2122 212

जब से अंदर और बाहर एक जैसे हो गये,
तब से दुश्मन और प्रियवर एक जैसे हो गये।

मन की पीड़ा आँख से झर झर के बहने जब लगी,
फिर तो निर्झर और सागर एक जैसे हो गये।

लूट हिंसा और चोरी, उस पे सीनाजोरी है,
आजकल तो जानवर, नर एक जैसे हो गये।

अर्थ के या शक्ति के या पद के फिर अभिमान में,
आज नश्वर और ईश्वर एक जैसे हो गये।

हाल कुछ ऐसा ही है संसद का इस जन-तंत्र में,
फिर से क्या नर और वानर एक जैसे हो गये।

साफ़ छवि रख काम कोई कैसे कर सकता यहाँ,
भ्रष्ट सब जब एक होकर एक जैसे हो गये।

जब से याराना फकीरी से 'नमन' का हो गया,
मान अरु अपमान के स्वर एक जैसे हो गये।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-09-20

ग़ज़ल (शुक सा महान)

बह्र:- 221  2121 1221 212

शुक सा महान कोई भी ज्ञानी नहीं मिला,
भगवत-कथा का ऐसा बखानी नहीं मिला।

गाथा अमर है कर्ण की सुन जिसको सब कहें,
उसके समान सृष्टि को दानी नहीं मिला।

संसार छान मारा है ऋषियों के जैसा अब,
बगुलों को छोड़ कोई भी ध्यानी नहीं मिला।

भगवान के मिले हैं अनुग्रह सभी जिसे,
संतुष्ट फिर भी हो जो वो प्रानी नहीं मिला।

मतलब के यार खूब मिले किंतु एक भी,
दुख दर्द बाँट ले जो वो जानी नहीं मिला।

जो दूसरे ही पल में मुकर जाते बात से,
चहरों पे ऐसों के कभी पानी नहीं मिला।

ले दे के ये 'नमन' की नयी पेश है ग़ज़ल,
ऊला नहीं मिला कभी सानी नहीं मिला।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-05-19

ग़ज़ल (कब से प्यासे नैना दो)

बहरे मीर:- 22  22  22  2

कब से प्यासे नैना दो,
अब तो सूरत दिखला दो।

आज सियासत बस इतनी,
आग लगा कर भड़का दो।

बदली में ओ घूँघट में,
छत पर चमके चन्दा दो।

आगे आकर नवयुवकों,
देश की किस्मत चमका दो।

दीन दुखी पर ममता का,
अपना आँचल फैला दो।

मंसूबों को दुश्मन के,
ज्वाला बन कर दहका दो।

रमते जोगी अपना क्या,
लेना एक न देना दो।

रच कर काव्य 'नमन' ऐसा,
तुम क्या हो ये बतला दो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-11-2019