Wednesday, February 23, 2022

सेदोका-विधान

 सेदोका विधान -

सेदोका कविता कुल छह पंक्तियों की जापानी विधा की रचना है। इसमें प्रति पंक्ति निश्चित संख्या में वर्ण रहते हैं। सेदोका कविता दो 'कतौता' के मेल से बनती है। कतौता 5,7,7 वर्ण प्रति पंक्ति के क्रम में तीन पंक्ति की रचना है। एक पूर्ण सेदोका में निम्न क्रम में वर्ण रहते हैं।

प्रथम पंक्ति - 5 वर्ण
द्वितीय पंक्ति - 7 वर्ण
तृतीय पंक्ति - 7 वर्ण

चतुर्थ पंक्ति - 5 वर्ण
पंचम पंक्ति - 7 वर्ण
षष्ठ पंक्ति - 7 वर्ण

(वर्ण गणना में लघु, दीर्घ और संयुक्ताक्षर सब मान्य हैं। अन्य जापानी विधाओं की तरह ही सेदोका छंद में भी पंक्तियों की स्वतंत्रता निभाना अत्यंत आवश्यक है। हर पंक्ति अपने आप में स्वतंत्र हो परंतु कविता को एक ही भाव में समेटे अग्रसर भी करती रहे।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

Friday, February 18, 2022

चौपाई छंद

 चौपाई छंद विधान

चौपाई छंद 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। चौपाई के दो चरण अर्द्धाली या पद कहलाते हैं। जैसे-

"जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।।"

ऐसी चालीस अर्द्धाली की रचना चालीसा के नाम से प्रसिद्ध है। इसके एक चरण में आठ से सोलह वर्ण तक हो सकते हैं, पर मात्राएँ 16 से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। दो दो चरण समतुकांत होते हैं। चरणान्त गुरु या दो लघु से होना आवश्यक है।

चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती  है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और  दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएँ निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4

चौपाई में कल निर्वहन केवल चतुष्कल और अठकल से होता है। अतः एकल या त्रिकल का प्रयोग करें तो उसके तुरन्त बाद विषम कल शब्द रख समकल बना लें। जैसे 3+3 या 3+1 इत्यादि। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।

चौकल = 4 - चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।

(1) चौकल में पूरित जगण (121) शब्द, जैसे विचार महान उपाय आदि नहीं आ सकते। 
(2) चौकल की प्रथम मात्रा पर कभी भी शब्द समाप्त नहीं हो सकता। 
चौकल में 3+1 मान्य है परन्तु 1+3 मान्य नहीं है। जैसे 'व्यर्थ न' 'डरो न' आदि मान्य हैं। 'डरो न' पर ध्यान चाहूँगा 121 होते हुए भी मान्य है क्योंकि यह पूरित जगण नहीं है। डरो और न दो अलग अलग शब्द हैं। वहीं चौकल में 'न डरो' मान्य नहीं है क्योंकि न शब्द चौकल की  प्रथम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।

3+1 रूप खंडित-चौकल कहलाता है जो चरण के आदि या मध्य में तो मान्य है पर अंत में मान्य नहीं है। 'डरे न कोई' से चरण का अंत हो सकता है 'कोई डरे न' से नहीं।

अठकल = 8 - अठकल के दो रूप हैं। प्रथम 4+4 अर्थात दो चौकल। दूसरा 3+3+2 है जिसमें त्रिकल के तीनों (111, 12 और 21) तथा द्विकल के दोनों रूप (11 और 2) मान्य हैं।

(1) अठकल की 1 से 4 मात्रा पर और 5 से 8 मात्रा पर पूरित जगण - 'उपाय' 'सदैव 'प्रकार' जैसा शब्द नहीं आ सकता।
(2) अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। 'राम नाम जप' सही है जबकि 'जप राम नाम' गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।   

पूरित जगण अठकल की तीसरी या चौथी मात्रा से ही प्रारंभ हो सकता है क्योंकि 1 और 5 से वर्जित है तथा दूसरी मात्रा से प्रारंभ होने का प्रश्न ही नहीं है, कारण कि प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता।  'तुम सदैव बढ़' में जगण तीसरी मात्रा से प्रारंभ हो कर 'तुम स' और 'दैव' ये दो त्रिकल तथा 'बढ़' द्विकल बना रहा है।
'राम सहाय न' में जगण चौथी मात्रा से प्रारंभ हो कर 'राम स' और 'हाय न' के रूप में दो खंडित चौकल बना रहा है।

एक उदाहरणार्थ रची चौपाई में ये नियम देखें-
"तुम गरीब से रखे न नाता।
बने उदार न हुये न दाता।।"

"तुम गरीब से" अठकल तथा तीसरी मात्रा से जगण प्रारंभ।
"रखे न" खंडित चौकल "नाता" चौकल। "नाता रखे न" लिखना गलत है क्योंकि खंडित चौकल चरण के अंत में नहीं आ सकता।
"बने उदार न" अठकल तथा चौथी मात्रा से जगण प्रारंभ।

किसी भी गंभीर सृजक का चौपाई छंद पर अधिकार होना अत्यंत आवश्यक है। आल्हा छंद, ताटंक छंद, लावणी छंद, सार छंद, सरसी छंद इत्यादि प्रमुख छंदों का आधार चौपाई ही है क्योंकि इन छंदों के पद का प्रथम 16 मात्रिक चरण चौपाई छंद का ही चरण है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
16-03-19

Saturday, February 12, 2022

काव्य कौमुदी "साझा काव्य संग्रह"

काव्य कुञ्ज पटल के साझा काव्य संग्रह काव्य कौमुदी के आभासी संस्करण में प्रकाशित मेरी रचनाएँ।

काव्य कौमुदी डाउनलोड लिंक:-


चंचला छंद
बुदबुद छंद
रक्ता छंद

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया



Friday, February 11, 2022

ग़ज़ल (मुस्कुराता ही रहे बाग़ में)

बह्र:- 2122  1122  1122  22

मुस्कुराता ही रहे बाग़ में गुल खिल तन्हा,
फ़िक्र क्या ज़िंदगी में तू है अगर दिल तन्हा।

मुश्किलें सामने आयीं तो गये छोड़ सभी,
रह गया मैं ही ज़माने के मुक़ाबिल तन्हा।

बज़्म-ए-दुनिया की तो रौनक़ ही मेरे यारों से,
गर नहीं साथ वे लगती भरी महफ़िल तन्हा।

खुद की हिम्मत ही नहीं साथ तो क्या दुनिया करे,
हौसला गर है तो सब हो सके हासिल तन्हा।

पास में नाव न, पतवार न, तूफाँ है ज़बर,
तैर कर ढूंढ़ना हम को ही है साहिल तन्हा।

अपनी नफ़रत को जो अंज़ाम दे बंदूकों से,
खुद भी दहशत में वे रह मरते हैं तिल तिल तन्हा।

खून खुद का ही मैं कर बैठा हूँ फँस दुनिया में,
मर गया कब का 'नमन' रह गया क़ातिल तन्हा।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-10-19

Wednesday, February 9, 2022

निधि छंद

 निधि छंद "सुख-सार"

उनका दे साथ।
जो लोग अनाथ।।
ले विपदा माथ।
थामो तुम हाथ।।

दुखियों के कष्ट।
कर दो तुम नष्ट।।
नित बोलो स्पष्ट।
मत होना भ्रष्ट।।

मन में लो धार।
अच्छा व्यवहार।।
मत मानो हार।
दुख कर स्वीकार।।

जग की ये रीत।
सुख में सब मीत।।
दुख से कर प्रीत।
लो जग को जीत।।

जीवन का भार।
चलना दिन चार।।
अटके मझधार।
कैसे हो पार।।

कलुष घटा घोर।
तम चारों ओर।।
दिखता नहिं छोर।
कब होगी भोर।।

आशा नहिं छोड़।
भाग न मुख मोड़।।
साधन सब जोड़।
निकलेगा तोड़।।

सच्ची पहचान।
बन जा इंसान।।
जग से पा मान।
ये सुख की खान।।
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निधि छंद विधान -

यह नौ मात्रा का सम मात्रिक चार चरणों का छंद है। इसका चरणान्त ताल यानी गुरु लघु से होना आवश्यक है। बची हुई 6 मात्राएँ छक्कल होती हैं।  तुकांतता दो दो चरण या चारों चरणों में समान रखी जाती है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
19-07-16 

Thursday, February 3, 2022

स्रग्धरा छंद

    स्रग्धरा छंद "शिव स्तुति"

शम्भो कैलाशवासी, सकल दुखित की, पूर्ण आशा करें वे।
भूतों के नाथ न्यारे, भव-भय-दुख को, शीघ्र सारा हरें वे।।
बाघों की चर्म धारें, कर महँ डमरू, कंठ में नाग साजें।
शाक्षात् हैं रुद्र रूपी, मदन-मद मथे, ध्यान में वे बिराजें।।

गौरा वामे बिठाये, वृषभ चढ़ चलें, आप ऐसे दुलारे।
माथे पे चंद्र सोहे, रजत किरण से, जो धरा को सँवारे।।
भोले के भाल साजे, शुचि सुर-सरिता, पाप की सर्व हारी।
ऐसे न्यारे त्रिनेत्री, विकल हृदय की, पीड़ हारें हमारी।।

काशी के आप वासी, शुभ यह नगरी, मोक्ष की है प्रदायी।
दैत्यों के नाशकारी, त्रिपुर वध किये, घोर जो आततायी।।
देवों की पीड़ हारी, भयद गरल को, कंठ में आप धारे।
देवों के देव हो के, परम पद गहा, सृष्टि में नाथ न्यारे।।

भक्तों के प्राण प्यारे, घट घट बसते, दिव्य आशीष देते।
भोलेबाबा हमारे, सब अनुचर की, क्षेम की नाव खेते।।
कापाली शूलपाणी, असुर लख डरें, भक्त का भीत टारे।
हे शम्भो 'बासु' माथे, वरद कर धरें, आप ही हो सहारे।।

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स्त्रग्धरा छंद विधान -

"माराभाना ययाया", त्रय-सत यति दें, वर्ण इक्कीस या में।
बैठा ये सूत्र न्यारा, मधुर रसवती, 'स्त्रग्धरा' छंद राचें।।

"माराभाना ययाया"= मगण, रगण, भगण, नगण, तथा लगातार तीन यगण।
222  212  2,11  111  12,2  122  122 =  कुल 21 वर्ण की वर्णिक छंद।
त्रय-सत यति दें= सात सात वर्ण पर यति।
चार पद, दो दो पद समतुकांत।

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया