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Monday, February 10, 2020

विमला छंद "सच्चा सुख"

मन का मारो रावण सब ही।
लगते सारे पावन तब ही।।
सब बाधाओं की मन जड़ है।
बस में ये तो वैभव-झड़ है।।

त्यज दो तृष्णा मत्सर मन से।
जग की सेवा लो कर तन से।।
सब का सोचो नित्य तुम भला।
यह जीने की उच्चतम कला।।

जग-ज्वाला से प्राण सिहरते।
पर-पीड़ा से लोचन भरते।।
लखता जो संसार बिलखता।
दुखियों का वो दर्द समझता।।

जग की पीड़ा जो नर हरता।
अबलों की रक्षा नित करता।।
सबके प्यासे नैन निरखता।
नर वो ही सच्चा सुख चखता।।
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लक्षण छंद:-

"समनालागा" वर्ण सब रखो।
'विमला' प्यारी छंद रस चखो।।

"समनालागा"= सगण मगण नगण लघु गुरु

112  222  111  12 = 11 वर्ण
चार चरण। दो दो समतुकांत
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-07-17