Friday, March 31, 2023

दोहा छंद "दोहामाल" (वयन सगाई अलंकार)


वयन सगाई अलंकार / वैण सगाई अलंकार


आदि देव दें आसरा, आप कृपालु अनंत।
अमल बना कर आचरण, अघ का कर दें अंत।।

काली भद्रा कालिका, कर में खड़ग कराल।
कल्याणी की हो कृपा, कटे कष्ट का काल।।

गदगद ब्रज की गोपियाँ, गिरधर मले गुलाल।
ग्वालन होरी गावते, गउन लखे गोपाल।।

चन्द्र खिलाये चांदनी, चहकें चारु चकोर।
चित्त चुराके चंचला, चल दी सजनी चोर।।

जगमग मन दीपक जले, जब मैं हुई जवान।
जबर विकल होगा जिया, जरा न पायी जान।।

ठाले करते ठाकरी, ठाकुर बने ठगेस।
ठेंगा दिखला ठगकरी, ठग करके दे ठेस।।

डगमग चलती डोकरी, डट के लेय डकार।
डिग डिग तय करती डगर, डांड हाथ में डार।।

तड़प राह पिय की तकूँ, तन के बिखरे तार।
तारों की लगती तपिश, तीखी ज्यों तलवार।।

दान हड़पने की दिखे, दर-दर आज दुकान।
दाता ऐसों को न दे, दे सुपात्र लख दान।।

नख सिख दमकै नागरी, नस नस भरा निखार।
नागर क्यों ललचे नहीं, निरख निराली नार।।

पथ वैतरणी है प्रखर, पापों की सर पोट।
पार करें किस विध प्रभू, पातक जगत-प्रकोट।।

भूखे पेट न हो भजन, भर दे शिव भंडार।
भक्तों का करके भरण, भोले मेटो भार।।

मधुर ओष्ठ हैं मदभरे, मोहक ग्रीव मृणाल।
मादक नैना मटकते, मन्थर चाल मराल।।

यत्न सहित सब योजना, योजित करें युवान।
यज्ञ रूप तब देश यह, यश के चढ़ता यान।।

रे मन तुझ को रमणियाँ, रह रह रहें रिझाय।
राम-भजन में अब रमो, राह दिखाती राय।।

लोभी मन जग-लालसा, लेवे क्यों तु लगाय।
लप लप करती यह लपट, लगातार ललचाय।।

वारिज कर में शुभ्र वर, वाहन हंस विहार।
विद्या दे वागीश्वरी, वारण करो विकार।।

सदा भजो मन साँवरा, सारे जग का सार।
सजन मात पितु या सखा, सभी रूप साकार।।

हरि की मोहक छवि हृदय, हरपल रहे हमार।
हर विपदा भव की हरे, हरि के हाथ हजार।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-11-2018

Saturday, March 25, 2023

बसंत और पलाश (कुण्डलिया)

कुण्डलिया छंद


दहके झूम पलाश सब, रतनारे हों आज।
मानो खेलन फाग को, आया है ऋतुराज।
आया है ऋतुराज, चाव में मोद मनाता।
संग खेलने फाग, वधू सी प्रकृति सजाता।
लता वृक्ष सब आज, नये पल्लव पा महके।
लख बसंत का साज, हृदय रसिकों के दहके।।

शाखा सब कचनार की, करने लगी धमाल।
फागुन की मनुहार में, हुई फूल के लाल।
हुई फूल के लाल, बैंगनी और गुलाबी।
आया देख बसंत, छटा भी हुई शराबी।
'बासुदेव' है मग्न, रूप जिसने यह चाखा।
जलती लगे मशाल, आज वन की हर शाखा।।

हर पतझड़ के बाद में, आती सदा बहार।
परिवर्तन पर जग टिका, हँस के कर स्वीकार।
हँस के कर स्वीकार, शुष्क पतझड़ की ज्वाला।
चाहो सुख-रस-धार, पियो दुख का विष-प्याला।
कहे 'बासु' समझाय, देत शिक्षा हर तरुवर।
सेवा कर निष्काम, जगत में सब के दुख हर।।

कागज की सी पंखुड़ी, संख्या बहुल पलास।
शोभा सभी दिखावटी, थोड़ी भी न सुवास।
थोड़ी भी न सुवास, वृक्ष पे पूरे छाते।
झड़ के यूँ ही व्यर्थ, पैर से कुचले जाते।
ओढ़ें झूठी आभ, बनें बैठे ये दिग्गज।
चमके ज्यों बिन लेख, साफ सुथरा सा कागज।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
14-03-2017

Wednesday, March 15, 2023

ग़ज़ल (मैं उजाले की लिए चाह)

बह्र:- 2122  1122  1122  22

मैं उजाले की लिए चाह सफ़र पर निकला,
पर अँधेरों में भटकने का मुकद्दर निकला।

जो दिखाता था सदा बन के मेरा हमराही,
मेरी राहों का वो सबसे बड़ा पत्थर निकला।

दोस्त कहलाते जो थे उन पे रहा अब न यकीं,
आजमाया जिसे भी, जह्र का खंजर निकला।

पास जिसके भी गया प्रीत का दरिया मैं समझ,
पर अना में ही मचलता वो समंदर निकला।

कारवाँ ज़ीस्त की राहों का मैं समझा था जिसे,
नफ़रतों से ही भरा बस वो तो लश्कर निकला।

जीत के जो भी यहाँ आया था रहबर बन के,
सिर्फ अदना सा हुकूमत का वो चाकर निकला।

दोस्तों पर था बड़ा नाज़ 'नमन' को हरदम,
काम पड़ते ही हर_इक आँख बचा कर निकला।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-06-19

Friday, March 10, 2023

छंदा सागर (गुरु छंदाएँ)

                        पाठ - 08

छंदा सागर ग्रन्थ

"गुरु छंदाएँ"

इसके पिछले पाठ में हमने वृत्त छंदाओं का विस्तारपूर्वक अध्ययन किया। इस पाठ में हम गुरु छंदाओं पर प्रकाश डालेंगे। पंचम पाठ "छंद के घटक - छंदा" में गुरु छंदा की परिभाषा दी गई है। गुरु छंदाएँ वाचिक, मात्रिक, वर्णिक तीनों स्वरूप में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। अतः इस पाठ में भी वृत्त छंदाओं की तरह तीनों स्वरूप की छंदाएँ दी गई हैं। साथ ही अंत में लघु वृद्धि की भी अलग से छंदाएँ दी गई हैं।

वर्णिक स्वरूप की गुरु छंदाओं में रचना सपाट होती है क्योंकि उनमें गुरु वर्ण सदैव दीर्घ रहता है। इसे शास्वत दीर्घ के रूप में नहीं तोड़ा जा सकता। मात्रिक स्वरूप में इन पर रचना बहुत ही लोचदार और लययुक्त होती है। हिंदी मात्रिक छंदों की संरचना समकल पर आधारित है जिनमें कल संयोजन पर बल दिया जाता है न कि लघु गुरु के क्रम पर। छठे पाठ में समकलों की विस्तृत व्याख्या की गई है जो कि मात्रिक गुरु छंदाओं का आधार है। मात्रिक स्वरूप में रचना करते समय चौकल, अठकल और छक्कल का कल संयोजन आवश्यक है न कि लघु और दीर्घ कहाँ और कैसे गिर रहे हैं। वाचिक स्वरूप में शास्वत दीर्घ यानी एक शब्द में साथ साथ आये दो लघु को गुरु वर्ण माना जाता है।

गुरु छंदाओं के संदर्भ में वाचिक में हम गुरु वर्ण को दो लघु में तोड़ सकते हैं जो एक शब्द में भी हो सकते हैं अथवा दो शब्द में भी पर इनमें मात्रा पतन के नियम सामान्य नियम से भिन्न हैं। वैसे तो गुरु छंदाओं में मात्रा पतन मान्य नहीं है, पर यदि 'उगाल' वर्ण (21) के पश्चात एक अक्षरी गुरु शब्द जैसे का, की, है, में, मैं, वे आदि हैं तो उन्हें लघु के रूप में लिया जा सकता है। जैसे 'राम की माया राम ही जाने' में 'की' 'ही' को लघु उच्चरित करते हुए 2222*2 माना जा सकता है। एक अक्षरी संयुक्ताक्षर शब्द जैसे क्या, क्यों की मात्रा नहीं गिराई जा सकती। 

एक मीबम छंदा (2222*3  222) का मेरा द्विपदी मुक्ता देखें जिसमें कई स्थान पर मात्रा पतन है पर लय भटकी हुई नहीं है। 

"उसके हुस्न की' आग में' जलते दिल को चैन की' साँस मिले,
होश को' खो के जोश में' जब भी वह आगोश में' आए तो।"

मीबम में तीन अठकल और एक छक्कल है। ऐसा मात्रा पतन अठकल या छक्कल में एक बार ही होना चाहिए।

अब हम गुरु छंदाओं की संरचना करते हैं। गुरु छंदाओं में अठकल (2222) को आधार माना गया है इसलिए छंदाओं का नामकरण उसी के अनुसार है। साथ ही छक्कल आधारित छंदाएँ भी हैं।

(1) 2222 = मीका, मीकण (अखण्ड छंद), मीकव (तिन्ना छंद)
22221 = मींका, मींकण, मींकव

(2) 2222 2 = मीगा, मीगण, मीगव (सम्मोहा छंद)
2222 21 = मीगू, मीगुण, मीगुव

(3) 2222 22 = मीगी, मीगिण, मीगिव (विद्युल्लेखा,शेषराज छंद)
2222  22 +1 = मीगिल, मीगीलण, मीगीलव

(4) 2222  222 = मीमा, मीमण (मानव छंद),
मीमव (शीर्षा/शिष्या छंद)
2222  2221 = मीमल, मीमालण, मीमालव

(5) 2222*2 = मीदा, मीदण, मीदव
2222, 2222 = मीधव (विद्युन्माला छंद)
2222*2 + 1= मीदल, मीदालण, मीदालव

(6) 2222*2  2 = मीदग, मीदागण, मीदागव
2222*2  21 = मिदगू, मीदागुण (तमाल छंद), मीदागुव
2222 2, 2222 2 = मीगध, मीगाधण, मीगाधव
2222 2, 2222 2 +1 = मीगाधल, मीगधलण, मीगधलव
2222 21, 2222 21  = मीगुध, मीगूधण, मीगूधव

(7) 2222*2  22 = मिदगी, मीदागिण, मीदागिव (शोभावती छंद)
2222*2  22 +1 = मीदागिल, मिदगीलण, मिदगीलव

(8) 2222*2  222 = मीदम, मीदामण, मीदामव
2222*2  2221 = मीदामल, मीदमलण, मीदमलव

(9) 2222*3 = मीबा, मीबण, मीबव
 2222*3 + 1 = मीबल, मीबालण, मीबालव
2222 22, 2222 22 = मीगिध, मीगीधण, मीगीधव
2222 22, 2222 22 +1 = मीगीधल, मीगिधलण, मीगिधलव
2222 22+1, 2222 22+1 = मीगींधा, मीगींधण, मीगींधव

(10) 2222*3  2 = मीबग, मीबागण, मीबागव
2222*3 21 = मिबगू, मीबागुण, मीबागुव

(11) 2222*3  22 = मिबगी, मीबागिण, मीबागिव
2222*3  22 +1 = मीबागिल, मिबगीलण, मिबगीलव
2222  222, 2222  222 = मीमध, मीमाधण, मीमाधव
2222  222, 2222  222 +1 = मीमाधल, मीमधलण, मीमधलव
2222  2221, 2222  2221 = मीमंधा, मीमंधण, मीमंधव

(12) 2222*3  222 = मीबम, मीबामण, मीबामव
2222*3  2221 = मीबामल, मीबमलण, मीबमलव
2222*2, 2222 222 = मीदंमिम, मीदंमीमण, मीदंमीमव (सारंगी छंद)
(दं संकेतक ईमग गुच्छक को द्विगुणित भी कर रहा है तथा वहाँ पर यति भी दर्शा रहा है।)

(13) 2222*4 = मीचा, मीचण, मीचव
2222*4 + 1= मीचल, मीचालण, मीचालव
2222*2, 2222*2  = मीदध, मीदाधण, मीदाधव
2222*2, 2222*2 + 1 = मीदाधल, मीदधलण, मीदधलव
2222*2 + 1, 2222*2 + 1 = मीदालध, मीदलधण, मीदलधव
***

केवल छक्कल आधारित छंदाएँ:-

222*2 = मादा, मादण, मादव

2221*2 = मंदा, मंदण (सुलक्षण छंद), मंदव

2221, 2221 =  मंधव  = (वापी छंद)

222*3 = माबा, माबण, माबव

222*4 = माचा, माचण, माचव
222*2, 222*2  = मादध, मदधण, मदधव (विद्याधारी छंद)
222*2 + 1, 222*2 + 1 = मदलध, मादलधण, मादलधव
***

उपरोक्त छंदाओं की मात्रा बाँट के विषय में प्रमुखता इस बात की है कि 4 से विभाजित छंदाओं की मात्रा जैसे 2*4, 2*6, 2*10, 2*14 आदि में चौकल अठकल का कोई भी संभावित क्रम लिया जा सकता है। 4 से विभाजन के बाद यदि 2 शेष बचता है तो यह छंदाओं के अंत में ही आयेगा, मध्य में नहीं। एक मीदामण (2222*2  222) छंदा की मात्रा बाँट ध्यान पूर्वक देखें -

8*2 + 4 + 2; 
8 + 4*3 + 2;
4 + 8*2 + 2;
4 + 8 + 4*2 + 2;
4*2 + 8 + 4 + 2;
4*3 + 8 + 2;
4*5 + 2;

इस छंदा की 7 संभावित मात्रा बाँट है और रचना के किसी भी पद में कोई सी भी एक बाँट प्रयुक्त की जा सकती है।

(विशेष:- चतुर्थ पाठ में बताये गये संख्यावाचक संकेतकों का ध्यानपूर्वक अध्ययन करें और देखें कि इन छंदाओं में उन संकेतक का किस प्रकार प्रयोग किया गया है।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Saturday, March 4, 2023

ताँका विधान

ताँका कविता कुल पाँच पंक्तियों की जापानी विधा की रचना है। इसमें प्रति पंक्ति निश्चित संख्या में वर्ण रहते हैं। प्रति पंक्ति निम्न क्रम में वर्ण रहते हैं।

प्रथम पंक्ति - 5 वर्ण
द्वितीय पंक्ति - 7 वर्ण
तृतीय पंक्ति - 5 वर्ण
चतुर्थ पंक्ति - 7 वर्ण
पंचम पंक्ति - 7 वर्ण

(वर्ण गणना में लघु, दीर्घ और संयुक्ताक्षर सब मान्य हैं। अन्य जापानी विधाओं की तरह ही ताँका में भी पंक्तियों की स्वतंत्रता निभाना अत्यंत आवश्यक है। हर पंक्ति अपने आप में स्वतंत्र हो परंतु कविता को एक ही भाव में समेटे अग्रसर भी करती रहे।)

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया