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Friday, July 9, 2021

बाल गीत (हम सारे ही एक हैं)

 बाल गीत

बालक मन के नेक हैं,
हम सारे ही एक हैं।

हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,
सारे ही हैं भाई भाई।
अलग सभी का खान-पान है,
पहनावे की अलग शान है।
दिखते सभी अनेक हैं,
पर सारे ही एक हैं।

अभी पढ़ाई में कुछ कच्चे,
धुन के पक्के, मन के सच्चे।
इक दूजे से लड़ भी लेते,
आँखें दिखा पटखनी देते।
ऊँची रखते टेक हैं,
किंतु इरादे नेक हैं।

मिलजुल के त्योहार मनाते,
झूम झूम कर हँसते गाते।
जन्म दिवस यारों का पड़ता,
जोश हमारा नभ पर चढ़ता।
उपहारों के पेक हैं,
मिल के खाते केक हैं।

स्वप्न अनेकों मन में पलते,
हाथ मिला हम सब से चलते।
मुसीबतों में भी हम हँसते,
बहकावों में कभी न फँसते।
रखते पूर्ण विवेक हैं,
भारत के अभिषेक हैं।

बालक मन के नेक हैं,
हम सारे ही एक हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-10-19

Tuesday, December 15, 2020

गीत (आज हिमालय भारत भू की)

लावणी छंद आधारित

भारत के उज्ज्वल मस्तक पर, मुकुट बना जो है शोभित,
जिसके पुण्य तेज से पूरा, भू मण्डल है आलोकित,
महादेव के पुण्य धाम को, आभा से वह सजा रहा,
आज हिमालय भारत भू की, यश-गाथा को सुना रहा।

तूफानों को अंक लगा कर, तड़ित उपल की वृष्टि सहे,
शीत ताप छाती पर झेले, बन मशाल अनवरत दहे, 
झेल झेल झंझावातों को, लगातार मुस्कुरा रहा,
आज हिमालय भारत भू की, यश-गाथा को सुना रहा।।

केतु सभ्यता का लहराये, गीत जगद्गुरु के गाये,
उन्नत भाल उठा कर अपना, महिम देश की दर्शाये,
प्रखर शिखर का दीपक न्यारा, जग के तम को मिटा रहा,
आज हिमालय भारत भू की, यश-गाथा को सुना रहा।

उत्तर की दीवार अटल है, त्राण शत्रु से यह देता,
स्वयं निरंतर गल करके भी, कोटिश जन की सुध लेता,
यह सर्वस्व लूटा कर अपना, आन देश की बचा रहा,
आज हिमालय भारत भू की, यश-गाथा को सुना रहा।

यह भंडार देव-संस्कृति का, है समाधि स्थल ऋषियों का,
सर्व रत्न की दिव्य खान ये, उद्गम पावन नदियों का,
अक्षय कोष देश का कैसे, रखे सुरक्षित बता रहा।
आज हिमालय भारत भू की, यश-गाथा को सुना रहा।

दीप-शिखा इस गिरि पुंगव की, एक वस्तु की मांग करे,
वीर पतंगों को ललकारे, जो जल इसके लिये मरे,
बलिदानों से वीरों के ही, मस्तक इसका उठा रहा।
आज हिमालय भारत भू की, यश-गाथा को सुना रहा।

इसकी रक्षा में उठना क्या, हम सब का है धर्म नहीं,
शीश उठाये इसका रखना, क्या हम सब का कर्म नहीं
हमरे तन के बहे स्वेद से, दीपक यह जगमगा रहा,
आज हिमालय भारत भू की, यश-गाथा को सुना रहा।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-05-2016

Monday, May 18, 2020

गीत (क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली)

हे अबोध सुन! क्या तूने भी, देखी कहीं दिवाली?
कहीं मिली तमपूर्ण निशा में, क्या तुझको उजियाली?

मैंने तो उजियालों में, उजियाले होते देखे,
विद्युत से जगमग महलों में, दीपक जलते देखे,
फुलझड़ियों के बीच छूटते, अनार अनेकों देखे,
सजी दुकानों में जगमग, करती देखी दिवाली।
हे नन्हे ! क्या तुझे दिखी, अँधियारों में खुशियाली?

कहकहों ठहाकों बीच, गरजते हुए पटाखे सुने,
मैंने मधुर आरती बीच, मंगलगीत सुरीले सुने,
और और के अपने जन के, आग्रह भोजन मध्य सुने,
बीच बधाई सन्देशों के, मैंने सुनी दिवाली।
हे भूखे ! सड़कों पर क्या तुम, गाते रहे कौव्वाली?

भरे पेट में भी मुझको तो, मिष्ठान्न अनेक मिले,
वैभव वृद्धि के नव अवसर, नये नये परिधान मिले,
मंत्री, संत्री, अफसर, चाकर, सबके ही सत्कार मिले,
डलिया भर भर उपहारों में, मुझे मिली दिवाली।
हे पतझड़ से शुष्क हृदय ! क्या तुझे मिली हरियाली?

हे अबोध सुन! क्या तूने भी, देखी कहीं दिवाली?
कहीं मिली तमपूर्ण निशा में, क्या तुझको उजियाली?

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-10-2016

Saturday, July 20, 2019

सावन विरह-गीत

सावन मनभावन तन हरषावन आया।
घायल कर पागल करता बादल छाया।।

क्यों मोर पपीहा मन में आग लगाये।
सोयी अभिलाषा तन की क्यों ये जगाये।
पी की यादों ने क्यों इतना मचलाया।
सावन -----

ये झूले भी मन को ना आज रिझाये।
ना बाग बगीचों की हरियाली भाये।
बेदर्द पिया ने कैसा प्यार जगाया।
सावन------

जब उमड़ घुमड़ के बैरी बादल कड़के।
तड़के जब बिजली आतुर जियरा धड़के।
याद करूँ ऐसे में पिय ने जब चिपटाया।
सावन-----

झूम झूम के सावन बीते क्या कहती।
यादों में उनकी ही मैं खोई रहती।
क्यों सखि ऐसे में निष्ठुर ने बिसराया।
सावन-----

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-07-16

Friday, June 7, 2019

गीत (देश हमारा न्यारा प्यारा)

देश हमारा न्यारा प्यारा,
देश हमारा न्यारा प्यारा।
सब देशों से है यह प्यारा,
देश हमारा न्यारा प्यारा।।

उत्तर में गिरिराज हिमालय,
इसका मुकुट सँवारे।
दक्षिण में पावन रत्नाकर,
इसके चरण पखारे।
अभिसिंचित इसको करती है,
गंगा यमुना की जलधारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा -----।।

विंध्य, नीलगिरि, कंचनजंघा,
इसका गगन सजाते।
इसके कानन, उपवन आगे,
सुर के बाग लजाते।
सुरम्य क्षेत्रों की हरियाली,
इसकी है जन-मन  की हारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा ----।।

उगले कनक सम शस्य फसल,
इसकी रम्य धरा नित।
इसकी अलग विविधता करती,
जन जन को सदा चकित।
कलरव से पशु-पक्षि लगाएँ
यहाँ स्वतन्त्रता का नारा ।
देश हमारा न्यारा प्यारा ----।।

सब जाति धर्म के नर नारी,
इस में खुश हों पलते।
बल, बुद्धि और सद्विद्या के,
स्वामी इसपे बसते।
इनके ही सद्गुण के बल पर,
आश्रित देश हमारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा ----।।

न्योछावर कर दें सब कुछ,
हम इस के ही कारण।
बलशाली बन हम दुखियों के,
दुख का करें निवारण।
भारत के नभ में विकास का,
चमकाएं ध्रुवतारा।
देश हमारा न्यारा प्यारा ----।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
06-05-2016

Saturday, May 11, 2019

गीत (आज बसंत की छाई लाली)

आज बसंत की छायी लाली,
बागों में छायी खुशियाली,
आज बसंत की छायी लाली॥

वृक्ष वृक्ष में आज एक नूतन है आभा आयी।
बीत गयी पतझड़ की उनकी वह दुखभरी रुलायी।
आज खुशी में झूम झूम मुसकाती डाली डाली।
आज बसंत की छायी लाली॥1॥

इस बसंतने किये प्रदान हैं उनको नूतन पल्लव।
चहल पहल में बदल गया अब उनका जीवन नीरव।
गूँज रही है अब उन सब पर मधुकर की गूँजाली।
आज बसंत की छायी लाली॥2॥

स्वर्णिम आभा छिटक रही आज रम्य अमराई में।
महक उठी बौरों से डालें बाला ज्यों तरुणाई में।
फिर कानों में मिश्री घोल रही कोयल मतवाली।
आज बसंत की छायी लाली॥3॥

आज चाव में फूल रहे हैं पौधे वृक्ष लता हर।
बाग बगीचे सजा रहे मृदु आभा को बिखरा कर।
कैसी छायी दिग दिगंत में ये मोहक हरियाली।
आज बसंत की छायी लाली॥4॥

मंद पवन के हल्के झोंके तन को करते सिहरित।
फूलों की मादक सौरभ है मन को करती मोहित।
श्रवणों में संगीत के स्वर दे पुर्वा पाली पाली।
आज बसंत की छायी लाली॥5॥

बिखरा सुंदर नीलापन इस विस्तृत नभ मंडल में।
संध्या की लाली छायी फिर मोहक नील पटल में।
उस पर पक्षी चहक रहे हैं भर मन में खुशियाली।
आज बसंत की छायी लाली॥6॥

आज जगत की सकल वस्तु में नव उमंग है छायी।
इस बसंत की खुशियां जा हर मन में आज समायी।
जिसकी रचना ऐसी फिर वह कितना सुंदर माली।
आज बसंत की छायी लाली॥7॥

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-04-2016