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Sunday, September 24, 2023

राधेश्यामी छंद "वंचित"

 राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया


ये दुनिया अजब निराली है, सब कुछ से बहुतेरे वंचित।
पूँजी अनेक पीढ़ी तक की, करके रखली कुछ ने संचित।।
जिस ओर देख लो क्रंदन है, सबका है अलग अलग रोना।
अधिकार कहीं मिल पाते नहिं, है कहीं भरोसे का खोना।।

पग पग पर वंचक बिखरे हैं, बचती न वंचना से जनता।
आशा जिन पर जब वे छलते, कुछ भी न उन्हें कहना बनता।।
जिनको भी सत्ता मिली हुई, मनमानी मद में वे करते।
स्वारथ के वशीभूत हो कर, सब हक वे जनता के हरते।।

पग पग पर अबलाएँ लुटती, बहुएँ घर में अब भी जलती।
जो दूध पिला बच्चे पालीं, वृद्धाश्रम में वे खुद पलती।।
मिलता न दूध नवजातों को, पोषण से दूध मुँहे वंचित।
व्यापार पढ़ाई आज बनी, बच्चे हैं शिक्षा से वंचित।।

मजबूर दिखें मजदूर कहीं, मजदूरी से वे हैं वंचित।
जो अन्न उगाएँ चीर धरा, वे अन्न कणों से हैं वंचित।।
शासन की मनमानी से है, जनता अधिकारों से वंचित।
अधिकारी की खुदगर्जी से, दफ्तर सब कामों से वंचित।।

हैं प्राण देश के गाँवों में, पर प्राण सड़क से ये वंचित।
जल तक भी शुद्ध नहीं मिलता, विद्युत से बहुतेरे वंचित।।
कम अस्पताल की संख्या है, सब दवा आज मँहगी भारी।
है आज चिकित्सा से वंचित, जो रोग ग्रसित जनता सारी।।

निज-धंधा करे चिकित्सक अब, हैं अस्पताल सूने रहते।
जज से वंचित न्यायालय हैं, फरियादी कष्ट किसे कहते।।
सब कुछ है आज देश में पर, जनता सुविधाओं से वंचित।
हों अधिकारों के लिए सजग, वंचित न रहे कोई किंचित।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-04-17

Saturday, June 17, 2023

राधेश्यामी छंद "नसबन्दी बनाम नोटबन्दी"

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया

आपातकाल पचहत्तर का, जिसकी यादें मन में ताजा।
तब नसबन्दी ने लोगों का, था खूब बजाया जम बाजा,
कोई भी बचे नहीं इससे, वे विधुर, वृद्ध, या फिर बच्चे।
सब ली चपेट में नसबन्दी, किन्नर तक भी झूठे सच्चे।

है ज़रा न बदला अब भी कुछ, सरकार नई पर सोच वही,
छाया आर्थिक आपातकाल, जनता जिस में छटपटा रही।
आपातकाल ये कुछ ऐसा, जो घोषित नहीं अघोषित है,
कुछ ही काले धन वालों से, जनता अब सारी शोषित है।

तब कहर मचाई नसबन्दी, थी त्राहि त्राहि हर ओर मची,
अब नोटों की बन्दी कर के, मोदी ने वैसी व्यथा रची।
तब जोर जबरदस्ती की उस, बन्दी का दुख सबने झेला,
अब आकस्मिक इस बन्दी में, लोगों का बैंकों में रेला।

भारत की सरकारों का तो, बन्दी से है गहरा नाता,
लेकिन बेबस जनता को यह, थोड़ा भी रास नहीं आता।
नस की हो, नोटों की हो या, बन्दी चाहे हो भारत की,
जनता को सब में पिसना है, कोई न सुने कुछ आरत की।

तर्कों में, वाद विवादों में, संकट का हल है कभी नहीं,
सरकारी लचर व्यवस्था का, रहता हरदम परिणाम वहीं।
तब भी न ज़रा तैयारी थी, वह अब भी साफ़ अधूरी है,  
सरकार स्वप्न सुंदर दिखला, जनता से रखती दूरी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-11-16

Saturday, April 10, 2021

राधेश्यामी छंद "शशिकला"

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया

रात्री देवी के आँगन में, जब गगन मार्ग से शशि जाता।
शीतल किरणों को फैला कर, यह शुभ्र ज्योत्स्ना है छाता।।
कर व्योम मार्ग को आलोकित, बढ़ता मयंक नभ-मंडल पे।
आनन से छिटका मुस्काहट, दिन जैसा करे धरा तल पे।।

खेले जब आंखमिचौली यह, प्यारे तारों से मिलजुल के।
बादल समूह के पट में छिप, रह जाये कभी कभी घुल के।।
लुकछिप कर कभी देखता है, रख ओट मेघ के अंबर की।
घूंघट-पट से नव वधु जैसे, निरखे छवि अपने मन-हर की ।।

चञ्चलता लिये नवल-शिशु सी, दिन प्रति दिन रूप बदलता है।
ले पूर्ण रूप को निखर कभी, हर दिन घट घट कर चलता है।।
रजनी जब सुंदर थाल सजा, इसका आ राजतिलक करती।
आरूढ़ गगन-सिंहासन हो, कर दे यह रजतमयी धरती।।

बुध तारागण के बैठ संग, यह राजसभा में अंबर की।
संचालन करे राज्य का जब, छवि देखे बनती नृप वर की।।
यह रजत-रश्मि को बिखरा कर, भूतल को आलोकित करता।
शीतल सुरम्य किरणों से फिर, दाहकता हृदयों की हरता।।

जो शष्य कनक सम खेतों का, पा रजत रश्मियों की शोभा।
वह हेम रजतमय हो कर के, छवि देता है मन की लोभा।।
धरती का आँचल धवल हुआ, सरिता-धारा झिलमिल करती।
ग्रामीण गेह की शुभ्रमयी, प्रांजल शोभा मन को हरती।।

दे मधुर कल्पना कवियों को, मृगछौना सा भोलाभाला।
मनमोहन सा प्यारा चंदा, सब के मन को हरने वाला।।
रजनी के शासन में करके, यह 'नमन' धरा अरु अम्बर को।
यह भोर-पटल में छिप जाता, दे कर पथ प्यारे दिनकर को।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-05-2016

Thursday, July 11, 2019

मत्त सवैया मुक्तकमाला (2019 चुनाव)

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया

हर दल जो टुकड़ा टुकड़ा था, इस बार चुनावों ने छाँटा;
बाहर निकाल उसको फेंका, ज्यों चुभा हुआ हो वो काँटा;
जो अपनी अपनी डफली पर, बस राग स्वार्थ का गाते थे;
उस भ्रष्ट तंत्र के गालों पर, जनता ने मारा कस चाँटा।

इस बार विरोधी हर दल ने, ऐसा भारी झेला घाटा;
चित चारों खाने सभी हुए, हर ओर गया छा सन्नाटा।
जन-तंत्र-यज्ञ की वेदी में, उन सबकी आहुति आज लगी;
वे राजनीति को हाथ हिला, जल्दी करने वाले टा टा।

भारत में नव-उत्साह जगा, रिपु के घर में क्रंदन होगा;
बन विश्व-शक्ति उभरेंगे हम, जग भर में अब वंदन होगा;
हे मोदी! तुम कर्मठ नरवर, गांधी की पुण्य धरा के हो;
अब ओजपूर्ण नेतृत्व तले, भारत का अभिनंदन होगा।

तुम राष्ट्र-प्रेरणा के नायक, तुम एक सूत्र के दायक हो;
जो सकल विश्व को बेध सके, वैसे अमोघ तुम सायक हो;
भारत भू पर अवतरित हुये, ये भाग्य हमारा आज प्रबल;
तुम धीर वीर तुम शक्ति-पुंज, तुम जन जन के अधिनायक हो।

लिंक ---> राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-05-19

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया 'विधान'

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया

राधेश्यामी छंद मत्त सवैया के नाम से भी प्रसिद्ध है। पंडित राधेश्याम ने राधेश्यामी रामायण 32 मात्रिक पद में रची। छंद में कुल चार पद होते हैं तथा क्रमागत दो-दो पद तुकान्त होते हैं। प्रति पद पदपादाकुलक छंद का दो गुना होता है l तब से यह छंद राधेश्यामी छंद के नाम से प्रसिद्धि पा गया।

पदपादाकुलक छंद के एक चरण में 16 मात्रा होती हैं , आदि में द्विकल (2 या 11) अनिवार्य होता है किन्तु त्रिकल (21 या 12 या 111) वर्जित होता है।

राधेश्यामी छंद का मात्रा बाँट इस प्रकार तय होता है:
2 + 12 + 2 = 16 मात्रा (पद का प्रथम चरण)
2 + 12 + 2 = 16 मात्रा (पद का द्वितीय चरण)
द्विकल के दोनों रूप (2 या 1 1) मान्य है। तथा 12 मात्रा में तीन चौकल, अठकल और चौकल या चौकल और अठकल हो सकते हैं। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।

चौकल:- (1) प्रथम मात्रा पर शब्द का समाप्त होना वर्जित है। 'करो न' सही है जबकि 'न करो' गलत है।
(2) चौकल में पूरित जगण जैसे सरोज, महीप, विचार जैसे शब्द वर्जित हैं।

अठकल:- (1) प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द समाप्त होना वर्जित है। 'राम कृपा हो' सही है जबकि 'हो राम कृपा' गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है। यह ज्ञातव्य हो कि 'हो राम कृपा' में विषम के बाद विषम शब्द पड़ रहा है फिर भी लय बाधित है।
(2) 1-4 और 5-8 मात्रा पर पूरित जगण शब्द नहीं आ सकता।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया