Friday, November 24, 2023

छंदा सागर "सवैया छंदाए"

                     पाठ - 22


छंदा सागर ग्रन्थ


"सवैया छंदाए"


हिंदी के रीतिकालीन, भक्तिकालीन युग से ही सवैया बहुत ही प्रचलित छंद रहा है। सवैया वर्णिक छंद है जिसमें वर्णों की संख्या सुनिश्चित रहती है। अतः दो लघु के स्थान पर गुरु वर्ण तथा गुरु वर्ण के स्थान पर दो लघु नहीं आ सकते।  प्राचीन कवियों की रचनाओं का अवलोकन करने से पता चलता है कि सवैया में सहायक क्रियाओं (है, था, थी आदि) तथा विभक्ति (का, में, से आदि) की मात्रा गिराना सामान्य बात थी। 

सवैया में यति का कोई रूढ़ नियम नहीं है। सवैया में 22 से 26 वर्ण तक होते हैं और एक सांस में इतने लंबे पद का उच्चारण संभव नहीं होता अतः 10 से 14 वर्ण के मध्य जहाँ भी शब्द समाप्त होता है स्वयंमेव यति हो जाती है। इसलिए यति-युक्त छंदाएँ न दे कर सीधी छंदाएँ दी गयी हैं। 24 वर्णी सवैयों में 12 वर्ण पर यति के साथ की छंदा भी दी गयी है तथा सीधी छंदा भी दी गयी है, यह रचनाकार पर निर्भर है कि किस छंदा में रचना कर रहा है। 

सवैया में एक ही गण की कई आवृत्ति रहती है तथा अंत में कुछ वर्ण या अन्य गुच्छक रहता है। सात की संख्या के लिए 'ड' वर्ण तथा आठ की संख्या के लिए 'ठ' वर्ण प्रयुक्त होता है जिसका परिचय संकेतक के पाठ में कराया गया था। ये वर्ण अ, आ, की मात्रा के साथ प्रयुक्त होते हैं। सवैयों की छंदाएँ ण व स्वरूप संकेतक के बिना ही दी जा रही हैं। अब यह रचनाकार पर निर्भर है कि वह विशुद्ध वर्णिक स्वरूप में रचना कर रहा है या मान्य मात्रा पतन के आधार पर।

'भगण' (211) आश्रित सवैये:- 

211*7 +2 = भाडग (मदिरा सवैया)
211*7 +22 = भडगी  (मत्तगयंद सवैया)
211*7 +21 = भडगू (चकोर सवैया)
211*7 212 = भाडर (अरसात सवैया)
211*8 = भाठा (किरीट सवैया)
211*4, 211*4 = भाचध (किरीट, 12 वर्ण पर यति)
211*4  21122*2 = भचभेदा (मोद सवैया) 
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'जगण' (121) आश्रित सवैये:- 

121*7 +12 = जडली   (सुमुखी सवैया)
121*7 122 = जाडय  (बाम सवैया)
121*8 = जाठा  (मुक्ताहरा सवैया)
121*4, 121*4 = जाचध (मुक्ताहरा सवैया यति-युक्त)
121*8 +1 = जाठल (लवंगलता सवैया)
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'सगण' (112) आश्रित सवैये:- 

112*8  = साठा  (दुर्मिला सवैया)
112*4, 112*4  = साचध  (दुर्मिला यति-युक्त)
112*8 +2 = साठग  (सुंदरी सवैया)
112*8 +1 = साठल  (अरविंद सवैया)
112*8 +11 = सठलू (सुखी सवैया)
112*8 +12 = सठली  (पितामह सवैया)
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'यगण' (122) आश्रित सवैये:- 

122*8 = याठा (भुजंग सवैया)
122*4, 122*4 = याचध (भुजंग सवैया यति-युक्त)
122*7 +12 = यडली  (वागीश्वरी सवैया)
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'रगण' (212) आश्रित सवैये:- 

212*8 = राठा   (गंगोदक सवैया)
212*4, 212*4 = राचध (गंगोदक सवैया यति-युक्त)
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'तगण' (221) आश्रित सवैये:- 

221*7 +2 = ताडग   (मंदारमाला सवैया)
221*7 +22 = तडगी  (सर्वगामी सवैया)
221*8 = ताठा  (आभार सवैया)
221*4, 221*4 = ताचध (आभार सवैया यति-युक्त)
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ऊपर मगण और नगण को छोड़ बाकी छह गण पर आश्रित सभी प्रचलित सवैयों की छंदाएँ दी गयी हैं। भगण की सात या आठ आवृत्ति के पश्चात वर्ण संयोजन से प्राप्त सवैयों की संभावित छंदाएँ देखें-
सात आवृत्ति के पश्चात छह वर्ण के संयोजन से प्राप्त सवैये- भाडल, भाडग, भडगी, भडली, भडगू,भडलू।

आठ आवृत्ति के तथा छह वर्ण के संयोजन से प्राप्त - भाठा, भाठल, भाठग, भठगी, भठली, भठगू,भठलू।

चार आवृत्ति तथा अंतिम दो आवृत्ति में युग्म वर्ण के संयोजन से प्राप्त चार सवैये - भचभेदा, भचभूदा, भचभींदा, भचभोदा।

इस प्रकार मगण नगण को छोड़ छहों गण के 17 - 17 सवैये बन सकते हैं।
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वर्ण-संयोजित सवैये:-

इसी पाठ के अंतर्गत विभिन्न गण आधारित वर्ण-संयोजित सवैयों की छंदाएँ सम्मिलित की गयी हैं जिनमें एक ही गण की आवृत्ति के मध्य विभिन्न वर्ण का संयोजन है। इन सवैया छंदाओं में भी एक ही गण की 6 आवृत्ति है तथा 22 से 26 वर्ण हैं।  कुल वर्ण 6 हैं जिनसे द्वितीय पाठ में हमारा परिचय हो चुका है। इन छंदाओं में इन छहों वर्णों का संयोजन देखने को मिलेगा। ऊपर सवैयों में विभिन्न गणों की सात या आठ आवृत्ति के अंत में इन्हीं वर्ण का संयोजन है पर इन वर्ण संयोजित सवैयों में इन वर्णों का गणों के मध्य में भी संयोजन है और अंत में भी। 

मगण और नगण में केवल एक ही वर्ण दीर्घ या लघु रहता हैं। एक ही वर्ण की आवृत्ति से सवैये की विशेष लय नहीं आती है। सवैया चार पद की समतुकांत छंद है। यहाँ हम भगण को आधार बना कर छंदाएँ दे रहे हैं इसी आधार पर तगण, रगण, यगण, जगण और सगण में भी छंदाएँ बनेंगी।

211*3 +22 211*3 +22 = भबगीधू
(इस छंदा में तीन आवृत्ति के पश्चात इगागा वर्ण के संयोजन के दो खंड हैं। चारों युग्म वर्ण के दोनों स्थानों पर हेरफेर से इस छंदा के 4*4 कुल 16 रूप बनेंगे। 
भबगीधू, भबगीभबली, भबगीभबगू, भबगीभबलू
भबलीधू, भबलीभबगी, भबलीभबगू, भबलीभबलू
भबगूधू, भबगूभबगी, भबगूभबली, भबगूभबलू
भबलूधू, भबलूभबगी, भबलूभबली, भबलूभबगू

इन छंदाओं की मध्य यति की छंदाएँ-
भबगिध, भबगिणभबली, भबगिणभबगू, भबगिणभबलू आदि।
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(211*2 +22)*3 22 = भदगीथूगी
(इस छंदा में दो स्थान पर वर्ण संयोजन है और दोनों स्थान पर छहों वर्ण जुड़ सकते हैं। इस छंदा के कुल 36 रूप बनेंगे।
भादलथुल, भादलथुग, भादलथूली, भादलथूगी, भादलथूलू, भादलथूगू।
इसी प्रकार ये छहों छंदाएँ भादग, भदगी, भदली, भदगू तथा भदलू के साथ बनेंगी।
चार युग्म वर्ण संयोजन की बिना अंतिम वर्ण संयोजित किये भी छंदाएँ बनेंगी।
भदगीथू, भदलीथू, भदगूथू, भदलूथू
इस प्रकार इस मेल से 40 वर्ण-संयोजित सवैयों की छंदाएँ बनेंगी।

इन छंदाओं में थू के स्थान पर थ के प्रयोग से त्रियति छंदाएँ बन सकती हैं। जैसे -
211*2 +2, 211*2 +2, 211 2112 22 = भदगथगी (इस छंदा में भादग की यति सहित तीन आवृत्ति के पश्चात गी स्वतंत्र रूप से जुड़ा हुआ है। ऐसा अंत का वर्ण संयोजन अंतिम यति का ही हिस्सा माना जाता है। यही यदि वर्ण के स्थान पर कोई गुच्छक होता तो उसकी स्वतंत्र यति होती। जैसे भादगथर में भादग की तीन यति के पश्चात अंत के रगण की स्वतंत्र यति है।)

इस प्रकार वर्ण-संयोजित सवैयों की श्रेणी में छहों गण की 56 - 56 छंदा संभव है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
30-12-19

Wednesday, November 15, 2023

मनमोहन छंद "राजनीति"

राजनीति की, उठक पटक।
नेताओं की, चमक दमक।।
निज निज दल में, सभी मगन।
मातृभूमि की, कुछ न लगन।।

परिवारों की, छाँव सघन।
वंश वाद को, करे गहन।।
चाटुकारिता, हुई प्रबल।
पत्रकारिता, नहीं सबल।।

लगे समस्या, बड़ी विकट।
समाधान है, नहीं निकट।।
कैसे ढाँचा, सकूँ बदल।
किस विध लाऊँ, भोर नवल।।

आँखें रहती, नित्य सजल।
प्रतिदिन पीता, यही गरल।।
देश भक्ति की, लगी लगन।
रहता इसमें, सदा मगन।।

मन में भारी, उथल पुथल।
असमंजस में, हृदय पटल।।
राजनीति की, गहूँ शरण।
या फिर कविता, करूँ वरण।।

हर दिन पहले, बिखर बिखर।
धीरे धीरे, गया निखर।।
समझा किसका, करूँ चयन।
'नमन' काव्य का, करे सृजन।।
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मनमोहन छंद विधान -

मनमोहन छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत नगण (111) से होना आवश्यक है। इसमें 8 और 6 मात्राओं पर यति अनिवार्य है। यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट अठकल, छक्कल है जिसका अंत 111 से जरूरी है। अठकल में 4 4 या 3 3 2 हो सकते हैं। छक्कल की यहाँ संभावनाएँ:-
3 + नगण (3 = 12, 21 या 111)
2 +1111 (2 = 2 या 11)
211 + 11 (2 = 2 या 11)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
02-06-22

Friday, November 10, 2023

छंदा सागर "कवित्त छंदाएँ विभेद"

                       पाठ - 21


छंदा सागर ग्रन्थ


"कवित्त छंदाएँ विभेद"


(1) मनहरण घनाक्षरी:- "छूचणछुबफग" 

कुल वर्ण संख्या = 31। यहाँ समशब्द आधारित सरलतम छंदा दी गयी है। पिछले पाठ में छू यानी 4 वर्ण के खण्ड के और भी दो रूप बताये गये हैं जिनके प्रयोग से अनेक प्रकार की विविधता लायी जा सकती है। पदान्त हमेशा गुरु ही रहता है।
छूचण = 4×4 (16 वर्ण और यति सूचक ण)
छुब = 4×3
फग = कोई भी दो वर्ण और अंत में दीर्घ।
यति 8-8 वर्ण पर भी "छूदथछूफग" के रूप में रखी जा सकती है।

(2) जनहरण घनाक्षरी:- "नंचणनंबस"

नंचण का अर्थ- नगण के संकेतक में अनुस्वार से 1111 रूप बना। अतः नंचण का अर्थ हुआ 1111*4, 
नंबस- 1111*3 तथा अंत में सगण(112)।
जनहरण कुल 31 वर्ण की घनाक्षरी है जिसके प्रथम 30 वर्ण लघु तथा अंतिम वर्ण दीर्घ। यति 8-8 वर्ण पर 'नंदथनंसा' के रूप में भी रखी जा सकती है।
इसकी रचना में कल संयोजन बहुत महत्वपूर्ण है। 8 वर्ण की यति या तो समवर्ण शब्द पर रखें जिसमें केवल 4 या 2 वर्ण के शब्द होंगे। या फिर 3-3-2 के 3 शब्द रखें। 3-3-2 के प्रथम 3 को 2-1 के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं जबकि बाद वाले 3 को 1-2 वर्ण के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं।

(3) रूप घनाक्षरी:- "छूचणछूबफगू"

फगू का अर्थ कोई भी दो वर्ण तथा उगाल वर्ण (21)। यह 32 वर्ण की घनाक्षरी है। यहाँ समवर्ण आधारित सरल छंदा दी गयी है। इस घनाक्षरी के प्रथम 28 वर्ण ठीक मनहरण घनाक्षरी वाले हैं जो पूर्व पाठ में विस्तार से बताये गये हैं। उन्हीं के आधार पर छूचणछूबा के विभिन्न रूप लिये जा सकते हैं। यति 8-8 वर्ण पर भी "छूदथछुफगू" के रूप में रखी जा सकती है।

(4) जलहरण घनाक्षरी:- "छूचणछूबफलू'

यह भी 32 वर्ण की घनाक्षरी है तथा इस में और रूप घनाक्षरी में केवल अंतिम दो वर्ण का अंतर है। रूप के अंत में उगाल वर्ण (21) है तथा जलहरण के अंत में ऊलल वर्ण (11) है। बाकी 30 वर्ण छूचणछूबफ के रूप में एक समान हैं। इसमें भी यति 8-8 वर्ण पर "छूदथछुफलू" के रूप में रखी जा सकती है।

(5) मदन घनाक्षरी:- "छूचणछूबफगी"

यह भी 32 वर्ण की घनाक्षरी है तथा इस में भी केवल अंतिम दो वर्ण का ही अंतर है। रूप के अंत में उगाल (21) है, जलहरण के अंत में ऊलल (11) तथा मदन में इगागा (22) है। बाकी सब समान हैं। यति 8-8 वर्ण पर "छूदथछुफगी" के रूप में भी रखी जा सकती है।

(6) डमरू घनाक्षरी:- "ठींदध"

'ठीं' का अर्थ है मात्रा रहित 8 वर्ण। इन में संयुक्ताक्षर वर्जित हैं। 'ठी' संकेतक मात्रा रहित 8 वर्ण का है जिसमें संयुक्ताक्षर मान्य हैं। परंतु 'ठीं का अर्थ मात्रा रहित 8 वर्ण का समूह जिसमें संयुक्ताक्षर भी मान्य नहीं हैं। 'द' इस ठीं संकेतक को द्विगुणित कर रहा है तथा अंत में 'ध' इसे दोहराकर दो यति में विभक्त कर रहा है। 

यह घनाक्षरी चार यति में बहुत रोचक होती है जिसकी छंदा "ठींचौ" है। मात्रिक छंदाओं में हम दौ, तौ आदि संकेतक से परिचित हुए थे। इस प्रकार डमरू घनाक्षरी में 32 मात्रा रहित वर्ण होते हैं। यति या तो समवर्ण शब्द पर रखें जिसमें केवल 4 या 2 वर्ण के शब्द होंगे। या फिर 3-3-2 के 3 शब्द रखें। 3-3-2 के प्रथम 3 को 2-1 के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं जबकि बाद वाले 3 को 1-2 वर्ण के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं।

(7) कृपाण घनाक्षरी:- "छूदथछुफगू सर्वानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32; 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।  पहले की 6 घनाक्षरियों की छंदाऐँ दो यति की दी गयी थी परन्तु इसकी 4 यति की दी गयी है जो कि अनिवार्य है। 'फगू' का अर्थ कोई भी दो वर्ण तथा उगाल वर्ण (21)। साथ ही इसकी छंदा में सर्वानुप्रासी शब्द जोड़ा गया है। इसके एक पद में 4 यति होती है और कृपाण घनाक्षरी में चारों समतुकांत होनी चाहिए। घनाक्षरी में कुल चार समतुकांत पद होते हैं और इस प्रकार कृपाण घनाक्षरी की 4*4 = 16 यति समतुकांत रहनी चाहिए।

(8) विजया घनाक्षरी:- "छूदथछुफली सानुप्रासी" तथा  "छूदथछूखन सानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32; 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य। पदान्त में सदैव इलगा वर्ण (12) अथवा नगण (111) आवश्यक। पदांत इलगा (12) की छंदा का नाम "छूदथछुफली" और अंत में यदि नगण है तो "छूदथछूखन" नाम है। इसकी छंदा में सानुप्रासी शब्द जोड़ा गया है जिसका अर्थ आंतरिक तीनों यतियाँ भी समतुकांत होनी चाहिए। आंतरिक यतियाँ भी पदान्त यति (12) या (111) के अनुरूप रखें तो उत्तम।

(9) हरिहरण घनाक्षरी:- "छूदथछुफलू सानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32 । 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य। पदान्त में सदैव ऊलल वर्ण (11) आवश्यक। पद की प्रथम तीन यति भी समतुकांत होनी चाहिए।

(10) देव घनाक्षरी:- "छूदथछूफन" - 
कुल वर्ण = 33। 8, 8, 8, 9 पर यति अनिवार्य।
पदान्त में सदैव 3 लघु (111) आवश्यक। यह पदान्त भी पुनरावृत रूप में जैसे 'चलत चलत' रहे तो उत्तम।

(11) सूर घनाक्षरी:- "छूदथछुफ" - यह 30 वर्ण की घनाक्षरी है। 8, 8, 8, 6 पर यति अनिवार्य।
पदान्त की कोई बाध्यता नहीं, कुछ भी रख सकते हैं।

जनहरण और डमरू को छोड़ हर घनाक्षरी के प्रथम 28 वर्ण "छूदथछू" अथवा "छूचणछूबा" के रूप में समान हैं। इसके पिछले पाठ में इन 28 वर्ण की लगभग सभी संभावनाओं पर विचार किया गया है। उन विविध रूपों का इन घनाक्षरियों में भी प्रयोग कर रचना में अनेक प्रकार की विविधता लायी जा सकती है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
3-12-19

Sunday, November 5, 2023

सेदोका (आतंकवाद)

(5 7 7 5 7 7 वर्ण प्रति पंक्ति)

आतंकवाद
गोली या निर्लज्जता? 
फर्क नहीं पड़ता।
करे छलनी
ये एकबार तन
वो रह रह मन।
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पर्यावरण
चाहे हर जगह
लगे वृक्ष ही वृक्ष।
विकास चाहे
कंक्रीट के जंगल
कट कट के वृक्ष।
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अमोल नेत्र
जो मरने के बाद
यूँ ही जल जाएंगे।
कर दो दान
किसीको रोशनी दे
खुशियाँ सजाएंगे।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-04-16