इस ब्लॉग को “नयेकवि” जैसा सार्थक नाम दे कर निर्मित करने का प्रमुख उद्देश्य नये कवियों की रचनाओं को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराना है जहाँ उन रचनाओं की उचित समीक्षा हो सके, साथ में सही मार्ग दर्शन हो सके और प्रोत्साहन मिल सके। यह “नयेकवि” ब्लॉग उन सभी हिन्दी भाषा के नवोदित कवियों को समर्पित है जो हिन्दी को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिये जी जान से लगे हुये हैं जिसकी वह पूर्ण अधिकारिणी है। आप सभी का इस नये ब्लॉग “नयेकवि” में हृदय की गहराइयों से स्वागत है।
Sunday, April 25, 2021
मौक्तिका (शहीदों की शहादत)
Thursday, January 21, 2021
मौक्तिका (रोटियाँ)
Friday, December 18, 2020
मौक्तिका (बेटियाँ हमारी)
Thursday, October 15, 2020
मौक्तिका (बालक)
(पदांत 'को जाने नहीं', समांत 'आन')
कितना मनोहर रूप पर अभिमान को जाने नहीं।।
पहना हुआ कुछ या नहीं लेटा किसी भी हाल में,
अवधूत सा निर्लिप्त जग के भान को जाने नहीं।।
मनमर्जियों का बादशाह किस भाव में खोने लगे।
कुछ भी कहो कुछ भी करो पड़ता नहीं इसको फ़रक,
ना मान को ये मानता सम्मान को जाने नहीं।।
किलकारियों की गूँज से श्रवणों में मधु-रस घोलता।
खिलवाड़ करता था अभी सोने लगा क्यों लाल अब,
नन्हा खिलौना लाडला चिपका रहे माँ से अगर,
मुट्ठी में जकड़ा सब जगत ना दीन दुनिया की खबर।
ममतामयी खोयी हुई खोया हुआ ही लाल है,
अठखेलियाँ बिस्तर पे कर उलटे कभी सुलटे कभी,
मासूमियत इसकी हरे चिंता फ़िकर झट से सभी।
खोया हुआ धुन में रहे अपने में हरदम ये मगन,
अपराध से ना वासता जग के छलों से दूर है,
मुसकान से घायल करे हर आँख का ये नूर है।
करता 'नमन' इस में छिपी भगवान की मूरत को मैं,
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-08-2016
Wednesday, March 25, 2020
नव संवत्सर स्वागत गीत
नया आया है संवत्सर, करें स्वागत सभी मिल के;
नये सपने नये अवसर, नया ये वर्ष लाया है।
करें सम्मान इसका हम, नई आशा बसा मन में;
नई उम्मीद ले कर के, नया ये साल आया है।
लगी संवत् सत्ततर की, चलाया उसको नृप विक्रम;
सुहाना शुक्ल पखवाड़ा, महीना चैत्र तिथि एकम;
बधाई कर नमस्ते हम, सभी को आज जी भर दें;
नये इस वर्ष में सब में, नया इक जोश छाया है।
दिलों में मैल है बाकी, पुराने साल का कुछ गर;
मिटाएँ उसको पहले हम, नये रिश्तों से सब जुड़ कर।
सुहाने रंग घोले हैं, छटा मधुमास की सब में;
नये उल्लास में खो कर, सभी की मग्न काया है।
गरीबी ओ अमीरी के, मिटाएँ भेद भावों को;
अशिक्षित ना रहे कोई, करें खुशहाल गाँवों को।
'नमन' सब को गले से हम, लगाएँ आज आगे बढ़;
नया यह वर्ष अपना है, सभी का मन लुभाया है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-03-2020
Monday, February 24, 2020
मौक्तिका (छाँव)
(पदांत का लोप, समांत 'अर')
जिंदगी जीने की राहें मुश्किलों से हैं भरी,
चिलचिलाती धूप जैसा जिंदगी का है सफर।।
हैं घने पेड़ों के जैसे इस सफर में रिश्ते सब,
छाँव इनकी जो मिले तो हो सहज जाती डगर।।
पेड़ की छाया में जैसे ठण्ड राही को मिले,
छाँव में रिश्तों के त्यों गम जिंदगी के सब ढ़ले।
कद्र रिश्तों की करें कीमत चुकानी जो पड़े,
कौन रिश्ते की दुआ ही कब दिखा जाए असर।।
भाग्यशाली वे बड़े जिन पर किसी की छाँव है,
मुख में दे कोई निवाला पालने में पाँव है।
पूछिए क्या हाल उनका सर पे जिनके छत नहीं,
मुफलिसी का जिनके ऊपर टूटता हर दिन कहर।।
छाँव देने जो तुम्हें हर रोज झेले धूप को,
खुद तो काले पड़ तुम्हारे पर निखारे रूप को।
उनके उपकारों को जीवन में 'नमन' तुम नित करो,
उनकी खातिर कुछ भी करने की नहीं छोड़ो कसर।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-05-2017
Saturday, July 20, 2019
मौक्तिका (नव वर्ष स्वागत)
(पदांत का लोप, समांत 'आएगा')
नया जो वर्ष आएगा, करें मिल उसका हम स्वागत;
नये सपने नये अवसर, नया ये वर्ष लाएगा।
करें सम्मान इसका हम, नई आशा बसा मन में;
नई उम्मीद ले कर के, नया ये साल आएगा।
मिला के हाथ सब से ही, सभी को दें बधाई हम;
जहाँ हम बाँटते खुशियाँ, वहीं बाँटें सभी के ग़म।
करें संकल्प सब मिल के, उठाएँगे गिरें हैं जो;
तभी कुछ कर गुजरने का, नया इक जोश छाएगा।
दिलों में मैल है बाकी, पुराने साल का कुछ गर;
मिटाएँ उसको पहले हम, नये रिश्तों से सब जुड़ कर।
कसक मन की मिटा करके, दिखावे को परे रख के;
दिलों की गाँठ को खोलें, तभी नव वर्ष भाएगा।
गरीबी ओ अमीरी के, मिटाएँ भेद भावों को;
अशिक्षित ना रहे कोई, करें खुशहाल गाँवों को।
'नमन' नव वर्ष में जागें, ये' सपने सब सजा दिल में;
तभी ये देश खुशियों के, सुहाने गीत गाएगा।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-12-16
Monday, May 6, 2019
मौक्तिका (पापा का लाडला)
(पदांत 'तुम्हें पापा', समांत 'आऊँगा')
अभी नन्हा खिलौना हूँ , बड़ा प्यारा दुलारा हूँ;
उतारो गोद से ना तुम, मनाऊँगा तुम्हें पापा।।
भरूँ किलकारियाँ प्यारी, करूँ अठखेलियाँ न्यारी;
करूँ कुछ खाश मैं नित ही, रिझाऊँगा तुम्हें पापा।।
इजाजत जो तुम्हारी हो, करूँ मैं पेश शैतानी;
हवा में जोर से उछलूँ, दिखाऊँ एक नादानी।
खुला है आसमाँ फैला, लगाऊँगा छलाँगें मैं;
अभी नटखट बड़ा हूँ मैं, सताऊँगा तुम्हें पापा।।
बलैयाँ खूब मेरी लो, गले से तुम लगा कर अब;
करूँ शैतानियाँ मोहक, करो तुम प्यार जी भर अब।
नहीं कोई खता मेरी, लड़कपन ये सुहाना है;
बड़ा ही हूँ खुरापाती, भिजाऊँगा तुम्हें पापा।।
चलाओ चाल अंगुल से, पढ़ाओ पाठ जीवन का;
बताओ बात मतलब की, सिखाओ मोल यौवन का।
जमाना याद जो रखता, वही शिक्षा मुझे देओ;
'नमन' मेरा तुम्हें अर्पण, बढाऊँगा तुम्हें पापा।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-07-2016