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Thursday, April 4, 2019

ग़ज़ल (क़ज़ा है, कज़ा है, क़ज़ा है)

बह्र:- 122  122 122

यहाँ अब न कोई बचा है,
सगा है, सगा है, सगा है।

मुहब्बत की बुनियाद क्या है?
वफ़ा है, वफ़ा है, वफ़ा है।

जिधर देखिए इस जहाँ में,
दगा है, दगा है, दगा है।

खुदा तेरी दुनिया में जीना,
सज़ा है, सज़ा है, सज़ा है।

हर_इंसान इंसान से क्यों,
खफ़ा है, खफ़ा है, खफ़ा है।

भलाई किसी की भी करना,
ख़ता है, ख़ता है, ख़ता है।

'नमन' दिल किसीसे लगाना,
क़ज़ा है, क़ज़ा है, क़ज़ा है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-07-17

ग़ज़ल (महारास)

बह्र:- 122   122   122

बजे कृष्ण की बंसिया है,
हुई मग्न वृषभानुजा है।

यहाँ जितनी हैं गोपबाला,
उते रूप मोहन रचा है।

हर_इक गोपी संग_एक कान्हा,
मिला हाथ घेरा बना है।

लगा गोल चक्कर वे नाचेंं,
महारास की क्या छटा है।

बजे पैंजनी और घूँघर,
सुहाना समा ये बँधा है।

मधुर मास सावन का आया,
हरित हो गई ब्रज धरा है।

करूँ मैं 'नमन' ब्रज की रज को,
यहाँ श्याम कण कण बसा है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
09-07-2017

ग़ज़ल (मधुर मास सावन लगा है)

बह्र: 122   122   122

मधुर मास सावन लगा है,
दिवस सोम पावन पड़ा है।

महादेव को सब रिझाएँ,
उसीका सभी आसरा है।

तेरा रूप सबसे निराला,
गले सर्प माथे जटा है।

सजे माथ चंदा ओ गंगा,
सवारी में नंदी सजा है।

कुसुम बिल्व चन्दन चढ़ाएँ,
ये शुभ फल का अवसर बना है।

शिवाले में अभिषेक जल से,
करें भक्त मोहक छटा है।

करें कावड़ें तुझको अर्पित,
सभी पुण्य पाते महा है।

करो पूर्ण आशा सभी शिव,
'नमन' हाथ जोड़े खड़ा है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-07-2017

(भगवान शिव को अर्पित एक मुसलसल ग़ज़ल)