बह्र:- 2122 1122 1122 22
मुस्कुराता ही रहे बाग़ में गुल खिल तन्हा,
फ़िक्र क्या ज़िंदगी में तू है अगर दिल तन्हा।
मुश्किलें सामने आयीं तो गये छोड़ सभी,
रह गया मैं ही ज़माने के मुक़ाबिल तन्हा।
बज़्म-ए-दुनिया की तो रौनक़ ही मेरे यारों से,
गर नहीं साथ वे लगती भरी महफ़िल तन्हा।
खुद की हिम्मत ही नहीं साथ तो क्या दुनिया करे,
हौसला गर है तो सब हो सके हासिल तन्हा।
पास में नाव न, पतवार न, तूफाँ है ज़बर,
तैर कर ढूंढ़ना हम को ही है साहिल तन्हा।
अपनी नफ़रत को जो अंज़ाम दे बंदूकों से,
खुद भी दहशत में वे रह मरते हैं तिल तिल तन्हा।
खून खुद का ही मैं कर बैठा हूँ फँस दुनिया में,
मर गया कब का 'नमन' रह गया क़ातिल तन्हा।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-10-19
ख़ूबसूरत ग़ज़ल …
ReplyDeleteदिगंबर नासवा जी आपका आत्मिक आभार।
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