Showing posts with label विजया घनाक्षरी. Show all posts
Showing posts with label विजया घनाक्षरी. Show all posts

Friday, October 18, 2019

विजया घनाक्षरी (कामिनी)

(8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।
प्रत्येक यति के अंत में हमेशा लघु गुरु (1 2) अथवा 3 लघु (1 1 1) आवश्यक।
आंतरिक तुकान्तता के दो रूप प्रचलित हैं। प्रथम हर चरण की तीनों आंतरिक यति समतुकांत। दूसरा समस्त 16 की 16 यति समतुकांत। आंतरिक यतियाँ भी चरणान्त यति (1 2) या (1 1 1) के अनुरूप रखें तो उत्तम।)


तम में घिरी यामिनी, चमक रही दामिनी,
पिया में रमी कामिनी, कौन यह सुहासिनी।

आयी मिलने की घड़ी, व्याकुलता लिये बड़ी,
घर से निकल पड़ी, काम-विह्वल मानिनी।

सुनसान डगरिया, तन की न खबरिया,
लचकाय कमरिया, ठुमक चले भाविनी।

मन हरषाय रही, तन को लुभाय रही,
मद छलकाय रही, नार यह उमंगिनी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-19