Sunday, January 30, 2022

मुक्तक "टूलकिट"

(गीतिका छंद वाचिक)

टूलकिट से देश की छवि लोग धूमिल कर रहे,
शील भारत भूमि का बेशर्म हो ये हर रहे,
देशवासी इन सभी की असलियत पहचान लो,
पीढियों से देश को चर घर ये अपना भर रहे।

लोभ में सत्ता के कितने लोग अब गिरने लगे,
हो गये हैं टूलकिट के आज ये सारे सगे,
बाहरी की हैसियत क्या हम पे जो शासन करें,
लोग वे अपने ही जिन से हम रहे जाते ठगे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
03-01-22

Wednesday, January 26, 2022

गीतिका छंद “26 जनवरी”


 गीतिका छंद

“26 जनवरी”

ग़ज़ल (वाचिक स्वरूप)

जनवरी के मास की छब्बीस तारिख आज है,
आज दिन भारत बना गणतन्त्र सबको नाज़ है।

ईशवीं उन्नीस सौ पच्चास की थी शुभ घड़ी,
तब से गूँजी देश में गणतन्त्र की आवाज़ है।

आज के दिन देश का लागू हुआ था संविधान,
है टिका जनतन्त्र इस पे ये हमारी लाज है।

सब रहें आज़ाद हो रोजी कमाएँ खुल यहाँ,
एक हक़ सब का यहाँ जो एकता का राज़ है।

राजपथ पर आज दिन जब फ़ौज़ की देखें झलक,
छातियाँ दुश्मन की दहले उसकी ऐसी गाज़ है।

संविधान_इस देश की अस्मत, सुरक्षा का कवच,
सब सुरक्षित देश में सर पे ये जब तक ताज है।

मान दें सम्मान दें गणतन्त्र को नित कर ‘नमन’,
ये रहे हरदम सुरक्षित ये सभी का काज है।

****   ****

गीतिका छंद विधान – (वाचिक स्वरूप) <– लिंक

गीतिका छंद 26 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है जो 14 – 12 मात्रा के दो यति खंडों में विभक्त रहता है। छंद चार चार पदों के खंड में रचा जाता है। छंद में 2-2 अथवा चारों पदों में समतुकांतता रखी जाती है।

संरचना के आधार पर गीतिका छंद निश्चित वर्ण विन्यास पर आधारित मापनी युक्त छंद है। जिसकी मापनी 2122*3 + 212 है। इसमें गुरु (2) को दो लघु (11) में तोड़ा जा सकता है जो सदैव एक ही शब्द में साथ साथ रहने चाहिए।

ग़ज़ल और गीतिकाओं में यह छंद वाचिक स्वरूप में अधिक प्रसिद्ध है जिसमें उच्चारण के आधार पर काफी लोच संभव है। वाचिक स्वरूप में यति के भी कोई रूढ नियम नहीं है और उच्चारण अनुसार गुरु वर्ण को लघु मानने की भी छूट है।

****   ****

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

Thursday, January 20, 2022

मुक्तक "याद"

मुक्तक

हमें वे याद आते भी नहीं है,
कभी हमको सुहाये भी नहीं है,
मगर समझायें नादाँ दिल को कैसे,
कि पूरे इस से जाते भी नहीं है।

(1222  1222  122)
**********

ये तन्हाई सताती है नहीं बर्दास्त अब होती,
बसी यादें जो दिल में है नहीं बर्खास्त अब होती,
सनम तुझ को मनाते हम गए हैं ऊब जीवन से,
मिटा दो दूरियाँ दिल से नहीं दर्खास्त अब होती।

(1222*4)
*********

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
02-07-19

Wednesday, January 12, 2022

रास छंद "कृष्णावतार"

हाथों में थी, मात पिता के, सांकलियाँ।
घोर घटा में, कड़क रहीं थी, दामिनियाँ।
हाथ हाथ को, भी नहिं सूझे, तम गहरा।
दरवाजों पर, लटके ताले, था पहरा।।

यमुना मैया, भी ऐसे में, उफन पड़ी।
विपदाओं की, एक साथ में, घोर घड़ी।
मास भाद्रपद, कृष्ण पक्ष की, तिथि अठिया।
कारा-गृह में, जन्म लिया था, मझ रतिया।।

घोर परीक्षा, पहले लेते, साँवरिया।
जग को करते, एक बार तो, बावरिया।
सीख छिपी है, हर विपदा में, धीर रहो।
दर्शन चाहो, प्रभु के तो हँस, कष्ट सहो।।

अर्जुन से बन, जीवन रथ का, स्वाद चखो।
कृष्ण सारथी, रथ हाँकेंगे, ठान रखो।
श्याम बिहारी, जब आते हैं, सब सुख हैं।
कृष्ण नाम से, सारे मिटते, भव-दुख हैं।।
====================

रास छंद विधान -

रास छंद 22 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है जिसमें 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है। पदान्त 112 से होना आवश्यक है। चार पदों का एक छंद होता है जिसमें 2-2 पद सम तुकांत होने चाहिये। मात्रा बाँट प्रथम और द्वितीय यति में एक अठकल या 2 चौकल की है। अंतिम यति में 2 - 1 - 1 - 2(ऽ) की है।
********************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
24-08-2016

Saturday, January 8, 2022

ग़ज़ल (राह-ए-उल्फ़त में डट गये होते)

बह्र:- 2122  1212  22

राह-ए-उल्फ़त में डट गये होते,
खुद ब खुद ख़ार हट गये होते।

ज़ीस्त से भागते न मुँह को चुरा,
सब नतीज़े उलट गये होते।

प्यार की इक नज़र ही काफी थी,
पास हम उनके झट गये होते।

इश्क़ में खुश नसीब होते हम,
सारे पासे पलट गये होते।

सब्र का बाँध तोड़ देते गर,
अब्र अश्कों के फट गये होते,

बेहया ज़िंदगी न है 'मंज़ूर',
शर्म से हम तो कट गये होते।

साथ अपनों का गर हमें मिलता,
दर्द-ओ-ग़म कुछ तो घट गये होते।

दूर क्यों उनसे हो गये थे 'नमन',
उनके दर से लिपट गये होते।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
17-09-19

Wednesday, January 5, 2022

पुटभेद छंद "बसंत छटा"

छा गये ऋतुराज बसंत बड़े मन-भावने।
दृश्य आज लगे अति मोहक नैन सुहावने।
आम्र-कुंज हरे चित, बौर लदी हर डाल है।
कोयली मधु राग सुने मन होत रसाल है।।

रक्त-पुष्प लदी टहनी सब आज पलास की।
सूचना जिमि देवत आवन की मधुमास की।।
चाव से परिपूर्ण छटा मनमोहक फाग की।
चंग थाप कहीं पर, गूँज कहीं रस राग की।।

ठंड से भरपूर अभी तक मोहक रात है।
शीत से सित ये पुरवा सिहरावत गात है।।
प्रेम-चाह जगा कर व्याकुल ये उसको करे।
दूर प्रीतम से रह आह भयावह जो भरे।।

काम के सर से लगते सब घायल आज हैं।
देखिये जिस और वहाँ पर ये मधु साज हैं।।
की प्रदान नवीन उमंग तरंग बसंत ने।
दे दिये नव भाव उछाव सभी ऋतु-कंत ने।।
==================

पुटभेद छंद विधान-

"राससाससुलाग" सुछंद रचें अति पावनी।
वर्ण सप्त दशी 'पुटभेद' बड़ी मन भावनी।।

"राससाससुलाग" = रगण सगण सगण सगण सगण लघु गुरु।

(212  112  112   112  112  1 2)
17 वर्ण प्रति चरण,
4 चरण,2-2 चरण समतुकान्त।
*****************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-01-19

Saturday, January 1, 2022

आंग्ल नव-वर्ष दोहे

दोहा छंद


प्रथम जनवरी क्या लगी, काम दिये सब छोड़।
शुभ सन्देशों की मची, चिपकाने की होड़।।

पराधीनता की हमें, जिनने दी कटु पाश।
उनके इस नव वर्ष में, हम ढूँढें नव आश।।

सात दशक से ले रहे, आज़ादी में साँस।
पर अब भी हम जी रहे, डाल गुलामी फाँस।।

व्याह पराया हो रहा, मची यहाँ पर धूम।
अब्दुल्ला इस देश का, नाच रहा है झूम।।

अपनों को दुत्कारते, दूजों से रख चाह।
सदियों से हम भोगते, आये इसका दाह।।

सत्य सनातन छोड़ कर, पशुता से क्यों प्रीत।
'बासुदेव' मन है व्यथित, लख यह उलटी रीत।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
01-01-2019