Showing posts with label बह्र:- 1212 1122 1212 22. Show all posts
Showing posts with label बह्र:- 1212 1122 1212 22. Show all posts

Wednesday, December 4, 2019

ग़ज़ल (मुसीबतों में जो घिर के बिखरते जाते हैं)

बह्र: 1212  1122  1212  22

मुसीबतों में जो घिर के बिखरते जाते हैं,
समझ लो पंख वे खुद के कतरते जाते हैं।

अकेले आहें भरें और' सिहरते जाते हैं,
किसी की यादों में लम्हे गुजरते जाते हैं।

हजार आफ़तों में भी जो मुस्कुरा के जियें,
वे ज़िंदगी में सदा ही निखरते जाते हैं।

सभी के साथ मिलाकर क़दम जो चलते नहीं,
वो हर मक़ाम पे यारो ठहरते जाते हैं।

किसी के इश्क़ का ऐसा असर हुआ उनपर
कि देख आइना घँटों सँवरते जाते हैं।

उलझ के दुनिया की बातों में जो नहीं रहते,
वो ज़िन्दगी में बड़े काम करते जाते हैं

'नमन' तू उनसे बचा कर ही चलना दामन को,
जो दूसरों पे ही इल्ज़ाम धरते जाते हैं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-10-19

Wednesday, February 13, 2019

एक मज़ाहिया ग़ज़ल (नये अमीर हैं)

बह्र:- 1212  1122  1212   22/112

नये अमीर हैं लटके जुराब पहने हुए,
बड़ी सी तोंद पे टाई जनाब पहने हुए।

अकड़ तो देखिए इनकी नबाब जैसे यही,
चमकता सूट है जूते खराब पहने हुए,

फटी कमीज पे लगता है ऐसा सूट नया,
सुनहरे कोट को जैसे उकाब पहने हुए।

चबाके पान बिखेरे हैं लालिमा मुख की,
गज़ब की लाल है आँखें शराब पहने हुए।

हुजूर वक्त की चाँदी जो सर पे बिखरी है,
ढ़के हुए हैं इसे क्यों खिजाब पहने हुए।

भरा है दाग से दामन नहीं कोई परवाह,
छिपाए शक्ल को बैठे निकाब पहने हुए।

फ़लक से उतरा नमूना रईसजादा 'नमन',
ख़याल छोटे मगर खूब ख्वाब पहने हुए।

उकाब=एक पौराणिक बहुत बड़ा पक्षी

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-10-2016

धुन- खिजाँ के फूल पे आती कभी बहार नहीं।

ग़ज़ल- (बड़ा खुदा से न कोई)

बह्र:- 1212 1122 1212 22/112

बड़ा खुदा से न कोई ये एतबार की बात,
बड़ी खुदा से मुहब्बत ये जानकार की बात।

दुकान में न बिके ये इजारे पे न मिले,
रही कभी न मुहब्बत नगद उधार की बात।

सितम हजारों सहूँ कोशिशें करूँ लाखों,
है उनके प्यार का मिलना न इख़्तियार की बात।

पिया जो जामे मुहब्बत कहानी वो न बने,
लबों से चू जो पड़े ये तो है प्रचार की बात।

सुनो वतन के जवानों न पीछे हटना तुम,
कभी भी इसके लिए जो हो जाँ निसार की बात।

मैं गीत और ग़ज़ल में हूँ गूँथता रो कर,
सदा गरीब के दुख, दर्द और प्यार की बात।

लगाया दिल जो किसी से न हटना पीछे फिर,
'नमन' हो चाहे ये कितने भी इंतज़ार की बात।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-02-2017

Saturday, February 9, 2019

ग़ज़ल (बला हो जितनी बड़ी)

बह्र:- 1212  1122  1212  22/112

बला हो जितनी बड़ी फिर भी टल तो सकती है,
हो आस कितनी भी हल्की वो पल तो सकती है।

बुरी हो जितनी भी किस्मत बदल तो सकती है,
कि लड़खड़ाके भी हालत सँभल तो सकती है।

ये सोच प्यार का इज़हार तक न उनसे किया,
कहे न कुछ वे मगर बात खल तो सकती है।

ये रोग इश्क़ का आखिर गुजर गया हद से,
मिले जो उनकी दुआ अब भी फल तो सकती है।

सनम निकाब न महफ़िल में तुम उठा देना,
झलक से सब की तबीअत मचल तो सकती है।

अवाम जाग रही है ओ लीडरों सुन लो,
चली न उसकी जो अब तक वो चल तो सकती है।

अगर तुम्हारे में है टीस देख जुल्मों को,
समय के साथ 'नमन' वो उबल तो सकती है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-04-2018

ग़ज़ल (जिधर वो रहते मैं क्योंकर)

बह्र:- 1212  1122  1212  22/112

जिधर वो रहते मैं क्योंकर उधर से निकला था,
बड़ा मलाल जो उनकी नज़र से निकला था।

मिले थे राह में पर आँख भी उठाई नहीं,
उन्हीं से मिलने की ले आस घर से निकला था।

कदम कदम पे मुझे ज़िंदगी में ख़ार मिले,
गुलों की चाह में मैं हर डगर से निकला था।

बुला रहीं हैं मुझे अब भी उनकी यादें क्यों,
मैं मुश्किलों से ही उनके असर से निकला था।

रकीब सारे मिले पर न हमसफ़र कोई,
मैं ज़िंदगी की सभी रहगुज़र से निकला था।

टिकी गणित है हमारे ही जिन उसूलों पर,
तमाम फ़लसफ़ा वो इक सिफ़र से निकला था,

'नमन' जो गुम हों अँधेरों में क्या हो उन को खबर,
सितारा आस का उनकी किधर से निकला था।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-05-17