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Monday, October 5, 2020

ग़ज़ल (रोग या कोई बला है)

बह्र:- 2122*2

रोग या कोई बला है,
जिस में नर से नर जुदा है।

हाय कोरोना की ऐसी,
बंद नर घर में पड़ा है।

दाव पर नारी की लज्जा,
तंत्र का चौसर बिछा है।

हो नशे में चूर अभिनय,
रंग नव दिखला रहा है।

खुद ही अपनी खोदने में,
आदमी जड़ को लगा है।

आज मतलब के हैं रिश्ते,
कौन किसका अब सगा है।

लेखनी मुखरित 'नमन' कर,
हाल बदतर देश का है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-09-20