Showing posts with label त्रिभंगी छंद. Show all posts
Showing posts with label त्रिभंगी छंद. Show all posts

Thursday, March 24, 2022

त्रिभंगी छंद

 त्रिभंगी छंद "भारत की धरती"


भारत की धरती, दुख सब हरती, 
हर्षित करती, प्यारी है।
ये सब की थाती, हमें सुहाती, 
हृदय लुभाती, न्यारी है।।
ऊँचा रख कर सर, हृदय न डर धर, 
बसा सुखी घर, बसते हैं।
सब भेद मिटा कर, मेल बढ़ा कर, 
प्रीत जगा कर, हँसते हैं।।

उत्तर कशमीरा, दक्षिण तीरा, 
सागर नीरा, दे भेरी।।
अरुणाचल बाँयी, गूजर दाँयी, 
बाँह सुहायी, है तेरी।
हिमगिरि उत्तंगा, गर्जे गंगा, 
घुटती भंगा, मदमाती।।
रामेश्वर पावन, बृज वृंदावन, 
ताज लुभावन, है थाती।

संस्कृत मृदु भाषा, योग मिमाँसा, 
सारी त्रासा, हर लेते।
अज्ञान निपातन, वेद सनातन, 
रीत पुरातन, हैं देते।।
तुलसी रामायन, गीता गायन, 
दिव्य रसायन, हैं सारे।
पादप हरियाले, खेत निराले, 
नद अरु नाले, दुख हारे।।

नित शीश झुकाकर, वन्दन गाकर, 
जीवन पाकर, रहते हैं।
इस पर इठलाते, मोद मनाते, 
यश यह गाते, कहते हैं।।
नव युवकों आओ, आस जगाओ, 
देश बढ़ाओ, तुम आगे।
भारत की महिमा, पाये गरिमा, 
बढ़े मधुरिमा, सब जागे।।
==================

त्रिभंगी छंद विधान -

त्रिभंगी छंद प्रति पद 32 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है। यह 4 पद का छंद है। प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत होनी आवश्यक है। परन्तु अभ्यांतर समतुकांतता यदि तीनों यति में निभाई जाय तो सर्वश्रेष्ठ है। पदान्त तुकांतता दो दो पद की आवश्यक है।

प्राचीन आचार्य केशवदास, भानु कवि, भिखारी दास के जितने उदाहरण मिलते हैं उनमें अभ्यान्तर तुकांतता तीनों यति में है, परंतु रामचरित मानस में तुकांतता प्रथम दो यति में ही निभाई गई है। कई विद्वान मानस के इन छंदों को दंडकला छंद का नाम देते हैं जिसमें यति 10, 8, 14 मात्रा की होती है।

मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है:-
प्रथम यति- 2+4+4
द्वितीय यति- 4+4
तृतीय यति- 4+4
पदान्त यति- 4+S (2)
चौकल में पूरित जगण वर्जित रहता है तथा चौकल की प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता।

पदान्त में एक दीर्घ (S) आवश्यक है लेकिन दो दीर्घ हों तो सौन्दर्य और बढ़ जाता है।
****************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
18-02-18