Tuesday, December 28, 2021

रूपमाला छंद "राम महिमा"

रूपमाला छंद / मदन छंद

राम की महिमा निराली, राख मन में ठान।
अन्य रस का स्वाद फीका, भक्ति रस की खान।
जागती यदि भक्ति मन में, कृपा बरसी जान।
नाम साँचो राम को है, लो हृदय में मान।।

राम को भज मन निरन्तर, भक्ति मन में राख।
इष्ट पे रख पूर्ण आश्रय, मत बढ़ाओ शाख।
शांत करके मन-भ्रमर को, एक का कर जाप।
राम-रस को घोल मन में, दूर हो सब ताप।।

नाम प्रभु का दिव्य औषधि, नित करो उपभोग।
दाह तन मन की हरे ये, काटती भव-रोग।।
सेतु सम है राम का जप, जग समुद्र विशाल।
आसरा इसका मिले तो, पार हो तत्काल।।

रत्न सा जो है प्रकाशित, राम का वो नाम।
जीभ पे इसको धरो अरु, देख इसका काम।।
ज्योति इसकी जगमगा दे, हृदय का हर छोर।
रात जो बाहर भयानक, करे उसकी भोर।।

गीध, शबरी और बाली, तार दीन्हे आप।
आप सुनते टेर उनकी, जो करें नित जाप।।
राम का जप नाम हर क्षण, पवनसुत हनुमान।
सकल जग के पूज्य हो कर, बने महिमावान।।

राम को जो छोड़ थामे, दूसरों का हाथ।
अंत आयेगा निकट जब, कौन देगा साथ।
नाम पे मन रख भरोसा, सब बनेंगे काज।
राम से बढ़कर जगत में, कौन दूजो आज।।
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रूपमाला छंद / मदन छंद विधान -

रूपमाला छंद जो कि मदन छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम-पद मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद में 14 और 10 के विश्राम से 24 मात्राएँ और पदान्त गुरु-लघु से होता है। यह चार पदों का छंद है, जिसमें दो-दो पदों पर तुकान्तता होती है। 

इसकी मात्रा बाँट 3 सतकल और अंत ताल यानी गुरु लघु से होती है। इस छंद में सतकल की मात्रा बाँट 3 2 2 है जिसमें द्विकल के दोनों रूप (2, 11) और त्रिकल के तीनों रूप (2 1, 1 2, 111) मान्य है। अतः निम्न बाँट तय होती है:
3 2 2  3 2 2 = 14 मात्रा और

3 2 2  2 1 = 10 मात्रा

इस छंद को 2122  2122, 2122  21 के बंधन में बाँधना उचित नहीं। प्रसाद जी का कामायनी के वासना सर्ग का उदाहरण देखें।

स्पर्श करने लगी लज्जा, ललित कर्ण कपोल,
खिला पुलक कदंब सा था, भरा गदगद बोल।
किन्तु बोली क्या समर्पण, आज का हे देव!
बनेगा-चिर बंध नारी, हृदय हेतु सदैव।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-08-2016

Saturday, December 25, 2021

हाइकु (नारी)

नारी की पीड़ा
दहेज रूपी कीड़ा
कौन ले बीड़ा?
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दहेज तुला
एक पल्ले समाज
दूजे अबला।
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पंचाली नार
पुरुष धर्मराज
चढ़ाते दाव।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-07-19

Sunday, December 12, 2021

शक्ति छंद "फकीरी"

शक्ति छंद 

फकीरी हमारे हृदय में खिली।
बड़ी मस्त मौला तबीयत मिली।।
कहाँ हम पड़ें और किस हाल में।
किसे फ़िक्र हम मुक्त हर चाल में।।

वृषभ से पड़ें हम रहें हर कहीं।
जहाँ मन, बसेरा जमा लें वहीं।।
बना हाथ तकिया टिका माथ लें।
उड़ानें भरें नींद को साथ लें।।

मिले जो उसीमें गुजारा करें।
मिले कुछ न भी तो न आहें भरें।।
कमंडल लिये हाथ में हम चलें।
इसी के सहारे सदा हम पलें।

जगत से न संबंध कुछ भी रखें।
स्वयं में रमे स्वाद सारे चखें।।
सुधा सम समझ के गरल सब पिएँ।
रखें आस भगवान की बस जिएँ।।
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शक्ति छंद विधान -

यह (122 122 122 12) मापनी पर आधारित मात्रिक छंद है। चूंकि यह एक मात्रिक छंद है अतः गुरु (2) वर्ण को दो लघु (11) में तोड़ने की छूट है। दो दो चरण समतुकांत होने चाहिए।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
12-02-19

Friday, December 10, 2021

ग़ज़ल (पास बैठे तो हैं पर आँख)

बह्र: 2122 1122 1122  22

पास बैठे तो हैं पर आँख उठाते भी नहीं,
मुझसे क्या उन को शिकायत है बताते भी नहीं।

झूठे वादों से रिझा मुँह को छुपाते भी नहीं,
ढीट नेता ये बड़े भाग के जाते भी नहीं।

ख्वाब झूठे जो दिखा वोट बटोरे हम से,
ऐसे मक्कार कभी दिल में समाते भी नहीं।

रंग गिरगिट से बदलते हैं जो मतलब के लिए,
लोग जो दिल से खरे उनको वो भाते भी नहीं।

ज़ख्म गहरे जो मिले ज़ीस्त से, रह रह रिसते,
दर्द सहते हैं तो क्या! अश्क़ बहाते भी नहीं।

सामने रहके भी महबूब सितमगर मेरे,
पास आये न सही पास बुलाते भी नहीं।

एक चहरे पे चढ़ा लेते जो दूजा चहरा,
भेष रहबर का 'नमन' राह दिखाते भी नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-08-18

Tuesday, December 7, 2021

पुण्डरीक छंद "राम-वंदन"

मेरे तो हैं बस राम एक स्वामी।
अंतर्यामी करतार पूर्णकामी।।
भक्तों के वत्सल राम चन्द्र न्यारे।
दासों के हैं प्रभु एक ही सहारे।।

माया से आप अतीत शोक हारी।
हाथों में दिव्य प्रचंड चाप धारी।
संधानो तो खलु घोर दैत्य मारो।
बाढ़े भू पे जब पाप आप तारो।।

पित्राज्ञा से वनवास में सिधाये।
सीता सौमित्र तुम्हार संग आये।।
किष्किन्धा में हनु सा सुवीर पाई।
लंका पे सागर बाँध की चढ़ाई।।

संहारे रावण को कुटुंब साथा।
गाऊँ सारी महिमा नवाय माथा।।
मेरे को तो प्रभु राम नित्य प्यारे।
वे ऐसे जो भव-भार से उबारे।।

सीता संगे रघुनाथ जी बिराजे।
तीनों भाई, हनुमान साथ साजे।।
शोभा कैसे दरबार की बताऊँ।
या के आगे सुर-लोक तुच्छ पाऊँ।।

ये ही शोभा मन को सदा लुभाये।
ये सारे ही नित 'बासुदेव' ध्याये।।
वो अज्ञानी चरणों पड़ा भिखारी।
आशा ले के बस भक्ति की तिहारी।।
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पुण्डरीक छंद विधान -

"माभाराया" गण से मिले दुलारी।
ये प्यारी छंदस 'पुण्डरीक' न्यारी।।

"माभाराया" = मगण भगण रगण यगण

(222  211  212 122)
12 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद। 4 चरण, 2-2 चरण समतुकान्त।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-01-19

Saturday, December 4, 2021

ग़ज़ल (मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें)

बह्र:- 2122  1212  22

मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें,
नेकियाँ थोड़ी अपने नाम करें।

कुछ सलीका दिखा मिलें पहले,
बात लोगों से फिर तमाम करें।

सर पे औलाद को न इतना चढ़ा,
खाना पीना तलक हराम करें।

दिल में सच्ची रखें मुहब्बत जो,
महफिलों में न इश्क़ आम करें।

वक़्त फिर लौट के न आये कभी,
चाहे जितना भी ताम झाम करें।

या खुदा सरफिरों से तू ही बचा,
रोज हड़तालें, चक्का जाम करें।

पाँच वर्षों तलक तो सुध ली नहीं,
कैसे अब उनको हम सलाम करें।

खा गये देश लूट नेताजी,
आप अब और कोई काम करें।

आज तक जो न कर सका था 'नमन',
काम वो उसके ये कलाम करें।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-11-2018