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Thursday, April 13, 2023

मनहरण घनाक्षरी "शादी के लड्डू"

काम सा अनंग हो या, शिव सा मलंग बाबा,
व्याह के तो लडूवन, सब को ही भात है।

जैसे बड़ा पूत होवे, मात कल्पना में खोवे,
सोच उसके व्याह की, मन पुलकात है।

घोड़ी चढ़ने का चाव, दूल्हा बनने का भाव,
किसका हृदय भला, नहीं तरसात है।

शादी के जो लड्डू खाये, फिर पाछे पछताये,
नहीं जो अभागा खाये, वो भी पछतात है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
16-09-17

Sunday, August 15, 2021

मनहरण घनाक्षरी "विदेशी पिट्ठुओं पर व्यंग"

देश से जो पाएं मान, जान और पहचान,
यहाँ के ही खान-पान, से वो पेट भरते।

देश का वे अपमान, करें भूल स्वाभिमान,
जो विदेशी गुणगान, लाज छोड़ करते।

यहाँ तोड़ वहाँ जोड़, अपनों से मुख मोड़।
देश का जो साथ छोड़, दूसरों पे मरते।

देश बीच आँख मीच, रहते जो ऐसे नीच,
खींच उन्हें राह बीच, प्राण क्यों न हरते।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-12-16

Friday, July 9, 2021

मनहरण घनाक्षरी "राम महिमा"

मनहरण घनाक्षरी

शिशु रोये बिन क्षीर, राँझा रोये बिन हीर,
दुआ दे फ़कीर नहीं, पीर कैसे मिटेगी?

नीड़ बिन हीन कीर, वीर बिन शमशीर,
कोई भी तुणीर कैसे, तीर बिन सोहेगी?

शेर बिन सूना गीर, हीन मीन बिन नीर,
जब है जमीर खाली, धीर कैसे आयेगी?

बिन कोई तदवीर, जगे नहीं तकदीर,
राम नहीं सीर कैसे, भव-भीर छूटेगी?

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-11-18

Wednesday, May 12, 2021

मनहरण घनाक्षरी "राहुल पर व्यंग"

मनहरण घनाक्षरी

राजनायिकों के गले, मोदी का लगाना देख,
राहुल तिहारी नींद, उड़ने क्यों लगी है।

हाथ मिला हाथ झाड़, लेने की तिहारी रीत,
रीत गले लगाने की, यहाँ मन पगी है।

देश की परंपरा का, उपहास करो नित,
और आज तक किन्ही, बस महा ठगी है।

दुनिया से भाईचारा, कैसे है निभाया जाता,
तुझे क्या, तेरी तो बस, इटली ही सगी है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-01-18

Thursday, March 25, 2021

मनहरण घनाक्षरी "होली के रंग"

(1)

होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,
मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।

हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,
मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।

रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर,
शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।

ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग,
'बासु' कैसे एकता का, रस बरसात है।।

****************
(2)

फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए,
गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।

बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय,
ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।

बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत,
कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।

पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम,
कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।

****************
(3)

बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ,
उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।

उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब,
करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।

मार पिचकारी भीगा डारी गोरी साड़ी सारी,
भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।

'बासु' कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़,
किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
07-03-2017

Sunday, January 10, 2021

मनहरण घनाक्षरी "मौन त्याग दीजिये"

जुल्म का हो बोलबाला, मुख पे न जड़ें ताला,
बैठे बैठे चुपचाप, ग़म को न पीजिये।

होये जब अत्याचार, करें कभी ना स्वीकार,
पुरजोर प्रतिकार, जान लगा कीजिये।

देश का हो अपमान, टूटे जब स्वाभिमान,
कभी न तटस्थ रहें, मन ठान लीजिये।

हद होती सहने की, बात कहें कहने की,
सदियों पुराना अब, मौन त्याग दीजिये।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-17

Wednesday, August 12, 2020

मनहरण घनाक्षरी "प्रीत"

प्रीत की है तेज धार, पैनी जैसे तलवार,
इसपे कदम आगे, सोच के बढ़ाइए।

मुख पे हँसी है छाई, दिल में जमी है काई,
प्रीत को निभाना है तो, मैल ये हटाइए।

छोटा-बड़ा ऊँच-नीच, चले नहीं प्रीत बीच,
पहले समस्त ऐसे, भेद को मिटाइए।

मान अपमान भूल, मन में रखें न शूल,
प्रीत में तो शीश को ही, हाथ में सजाइए।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-06-2017

Wednesday, May 13, 2020

मनहरण घनाक्षरी "जिन्ना का जिन्न"

(फारूक अब्दुल्ला के जिन्ना-प्रेम पर व्यंग)

भारत का अबदुल्ला, जिन्ना पे पराये आज,
हुआ है दिवाना कैसा, ध्यान आप दीजिए।

खून का असर है या, गहरी सियासी चाल,
देशवासी हलके में, इसे नहीं लीजिए।

लगता है जिन्ना का ही, जिन्न इसमें है घुसा,
इसका उपाय अब, सब मिल कीजिए।

जिन्ना वहाँ परेशान, ये भी यहाँ बिना चैन,
दोनों की मिलाने जोड़ी, इसे वहाँ भेजिए।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
04-03-18

Wednesday, April 22, 2020

मनहरण घनाक्षरी "गुजरात चुनाव"

गुजरात के चुनाव, लगें हैं सभी के दाव,
उल्टी गंगा कैसी कैसी, नेता ये बहा रहे।

मन्दिरों में भाग भाग, बोले भाग जाग जाग,
भोले बाबा पर डोरे, डाल ये रिझा रहे।

करते दिखावा भारी, लाज शर्म छोड़ सारी,
आसथा का ढोल देखो, कैसा वे बजा रहे।

देश छोड़ा वेश छोड़ा, धर्म और कर्म छोड़ा,
मन्दिरों में जाय अब, जात छोड़ आ रहे।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-12-17

Sunday, February 16, 2020

मनहरण घनाक्षरी "गीता महिमा"

हरि मुख से जो झरी, गीता जैसी वाणी खरी,
गीता का जो रस पीता, होता बेड़ा पार है।

ज्ञान-योग कर्म-योग, भक्ति-योग से संयोग,
गीता के अध्याय सारे, अमिय की धार है।

कर्म का संदेश देवे, शोक सारा हर लेवे,
एक एक श्लोक या का, भाव का आगार है।

शास्त्र की निचोड़ गीता, सहज सरल हिता,
पंक्ति पंक्ति रस भरी, शब्द शब्द सार है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-07-17

Saturday, December 21, 2019

मनहरण घनाक्षरी "गीत ऐसे गाइए"

माटी की महक लिए, रीत की चहक लिए,
प्रीत की दहक लिए, भाव को उभारिए।

छातियाँ धड़क उठें, हड्डियाँ कड़क उठें,
बाजुवें फड़क उठें, वीर-रस राचिए।

दिलों में निवास करें, तम का उजास करें,
देश का विकास करें, मन में ये धारिए।

भारती की आन बान, का हो हरदम भान,
विश्व में दे पहचान, गीत ऐसे गाइए।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-05-17

Tuesday, November 19, 2019

मनहरण घनाक्षरी "कतार की महिमा"


                               (1)
जनसंख्या भीड़ दिन्ही, भीड़ धक्का-मुक्की किन्ही,
धक्का-मुक्की से ही बनी, व्यवस्था कतार की।

राशन की हो दुकान, बैंकों का हो भुगतान,
चाहे लेना हो मकान, महिमा कतार की।

देना हो जो इम्तिहान, लेना हो या अनुदान,
दर्श भगवान का हो, है छटा कतार की।

दिखलाओ चाहे मर्ज, लेना हो या फिर कर्ज,
वोट देने नोट लेने, में प्रभा कतार की।।

                       (2)
माचे खलबली घोर, छाये चहुँ ओर शोर,
नियंत्रित भीड़ झट, करत कतार है।

हड़कम्प मचे जब, उथल-पुथल सब,
सीख अनुशासन की, देवत कतार है।

भीड़ सुशासित करे, अव्यवस्था झट हरे,
धैर्य की भी पहचान, लेवत कतार है।

मोतियों की माल जैसे, लोग जुड़ते हैं वैसे,
संगठन के बल से, बनत कतार है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
7-12-16

Saturday, April 27, 2019

मनहरण घनाक्षरी 'भारत महिमा"

उत्तर बिराज कर, गिरिराज रखे लाज,
तुंग श्रृंग रजत सा, मुकुट सजात है।

तीन ओर पारावार, नहीं छोर नहीं पार,
मारता हिलोर भारी, चरण धुलात है।

जाग उठे तेरे भाग, गर्ज गंगा गाये राग,
तेरी इस शोभा आगे, स्वर्ग भी लजात है।

तुझ को 'नमन' मेरा, अमन का दूत तू है,
जग का चमन हिन्द, सब को रिझात है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-12-16

मनहरण घनाक्षरी "समाज-सेवी"

करे खुद विष-पान, रखके सभी का मान,
रखता समाज को जो, हरदम जोड़ के।

सब को ले साथ चले, नहीं भेदभाव रखे,
एकता में बाँध रखे, बिन तोड़-फोड़ के।

थोथी बातें नहीं करे, सदा खुद आगे आये,
बने वो उदाहरण, रूढ़ियों को तोड़ के।

सर पे बिठाते लोग, ऐसे कर्मवीर को जो,
करता समाज-सेवा, स्वार्थ सब छोड़ के।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-17