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Wednesday, January 26, 2022

गीतिका छंद “26 जनवरी”


 गीतिका छंद

“26 जनवरी”

ग़ज़ल (वाचिक स्वरूप)

जनवरी के मास की छब्बीस तारिख आज है,
आज दिन भारत बना गणतन्त्र सबको नाज़ है।

ईशवीं उन्नीस सौ पच्चास की थी शुभ घड़ी,
तब से गूँजी देश में गणतन्त्र की आवाज़ है।

आज के दिन देश का लागू हुआ था संविधान,
है टिका जनतन्त्र इस पे ये हमारी लाज है।

सब रहें आज़ाद हो रोजी कमाएँ खुल यहाँ,
एक हक़ सब का यहाँ जो एकता का राज़ है।

राजपथ पर आज दिन जब फ़ौज़ की देखें झलक,
छातियाँ दुश्मन की दहले उसकी ऐसी गाज़ है।

संविधान_इस देश की अस्मत, सुरक्षा का कवच,
सब सुरक्षित देश में सर पे ये जब तक ताज है।

मान दें सम्मान दें गणतन्त्र को नित कर ‘नमन’,
ये रहे हरदम सुरक्षित ये सभी का काज है।

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गीतिका छंद विधान – (वाचिक स्वरूप) <– लिंक

गीतिका छंद 26 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है जो 14 – 12 मात्रा के दो यति खंडों में विभक्त रहता है। छंद चार चार पदों के खंड में रचा जाता है। छंद में 2-2 अथवा चारों पदों में समतुकांतता रखी जाती है।

संरचना के आधार पर गीतिका छंद निश्चित वर्ण विन्यास पर आधारित मापनी युक्त छंद है। जिसकी मापनी 2122*3 + 212 है। इसमें गुरु (2) को दो लघु (11) में तोड़ा जा सकता है जो सदैव एक ही शब्द में साथ साथ रहने चाहिए।

ग़ज़ल और गीतिकाओं में यह छंद वाचिक स्वरूप में अधिक प्रसिद्ध है जिसमें उच्चारण के आधार पर काफी लोच संभव है। वाचिक स्वरूप में यति के भी कोई रूढ नियम नहीं है और उच्चारण अनुसार गुरु वर्ण को लघु मानने की भी छूट है।

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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

Thursday, March 14, 2019

गीतिका छंद "चातक पक्षी"

मास सावन की छटा सारी दिशा में छा गयी।
मेघ छाये हैं गगन में यह धरा हर्षित भयी।।
देख मेघों को सभी चातक विहग उल्लास में।
बूँद पाने स्वाति की पक्षी हृदय हैं आस में।।

पूर्ण दिन किल्लोल करता संग जोड़े के रहे।
भोर की करता प्रतीक्षा रात भर बिछुड़न सहे।।
'पी कहाँ' है 'पी कहाँ' की तान में ये बोलता।
जो विरह से हैं व्यथित उनका हृदय सुन डोलता।।

नीर बरखा बूँद का सीधा ग्रहण मुख में करे।
धुन बड़ी पक्की विहग की अन्यथा प्यासा मरे।।
एक टक नभ नीड़ से लख धैर्य धारण कर रखे।
खोल के मुख पूर्ण अपना बाट बरखा की लखे।।

धैर्य की प्रतिमूर्ति है यह सीख इससे लें सभी।
प्रीत जिससे है लगी छाँड़ै नहीं उसको कभी।।
चातकों सी धार धीरज दुख धरा के हम हरें।
लक्ष्य पाने की प्रतीक्षा पूर्ण निष्ठा से करें।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08-07-2017

गीतिका/हरिगीतिका छंद विधान

गीतिका छंद :- ये चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद है. प्रति पंक्ति 26 मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक पद 14-12 अथवा 12-14 मात्राओं की यति के अनुसार होता है.
इसका वर्ण विन्यास निम्न है।
2122  2122  2122  212

चूँकि गीतिका छंद एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 3 री, 10 वीं, 17 वीं और 24 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।

हरिगीतिका छंद :- इसकी भी लय गीतिका छंद वाली ही है तथा गीतिका छंद के प्राम्भ में गुरु वर्ण बढ़ा देने से हरिगीतिका हो जाती है। यह चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद है. प्रति पंक्ति 28 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 और 12 मात्राओं पर होती है। यति 14 और 14 मात्रा पर भी रखी जा सकती है। गुप्त जी का उदाहरण देखें:-

मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती।
भगवान ! भारतवर्ष में गूँजे हमारी भारती।

गीतिका छंद में एक गुरु बढ़ा देने से इसका वर्ण विन्यास निम्न प्रकार होता है।
2212  2212  2212  2212

चूँकि हरिगीतिका छंद एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 5 वीं, 12 वीं, 19 वीं, 26 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।

इस छंद की धुन  "श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन" वाली है।

एक उदाहरण:-
मधुमास सावन की छटा का, आज भू पर जोर है।
मनमोद हरियाली धरा पर, छा गयी चहुँ ओर है।
जब से लगा सावन सुहाना, प्राणियों में चाव है।
चातक पपीहा मोर सब में, हर्ष का ही भाव है।।
(बासुदेव अग्रवाल रचित)