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Tuesday, March 12, 2019

ग़ज़ल (सारी मुसीबतों की)

बह्र:- (221  2122)*2

सारी मुसीबतों की, जड़ पाक तू नकारा,
आतंकियों का गढ़ तू, है झूठ का पिटारा।

औकात कुछ नहीं पर, आता न बाज़ फिर भी, 
तू भूत जिसको लातें, खानी सदा गवारा।

किस बात की अकड़ है, किस जोर पे तू नाचे,
रह जाएगा अकेला, कर लेगा जग किनारा।

तुझसा नमूना जग में, मिलना बड़ा है मुश्किल,
अब तुझ पे हँस रहा है, दुनिया का हर सितारा।

सद्दाम से दिये चल, हिटलर से टिक न पाये,
किस खेत की तू मूली, जाएगा यूँ ही मारा।

सदियों से था, वो अब भी, आगे वही रहेगा,
तेरा तो बाप बच्चे, हिन्दोस्तां हमारा।

हर हिन्द वासी कहता, नापाक पाक सुनले,
तुझको बचा सके बस, अब हिन्द का सहारा।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
5-2-18

ग़ज़ल (ये हुस्न मौत का तो)

बह्र:- (221  2122)*2

ये हुस्न मौत का तो सामान हो न जाए,
मेरी ये जिंदगी अब तूफान हो न जाए।

बातें जुदाई की तू मुझसे न यूँ किया कर,
सुनके जिन्हें मेरा जी हलकान हो न जाए।

तूने दिया जफ़ा से हरदम वफ़ा का बदला,
इस सिलसिले में उल्फ़त कुर्बान हो न जाए।

वापस वो जब से आई मन्नत ये तब से मेरी,
तकरार फिर से अब इस दौरान हो न जाए।

तब तक दिखे न हमको सब में हमारी सूरत,
जब तक जगत ये पूरा भगवान हो न जाए।

मतलब परस्त इंसां को रब न दे तु इतना,
पा के जिसे कहीं वो हैवान हो न जाए।

ये इल्तिज़ा 'नमन' की उससे कभी किसी का,
नुक्सान हो न जाए, अपमान हो न जाए।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-1-18