Sunday, April 25, 2021

समान सवैया मुक्तक

क्षणिक सुखों में खो कर पहले, नेह बन्धनों को त्यज भागो,
माथ झुका फिर स्वांग रचाओ, नीत दोहरी से तुम जागो,
जीम्मेदारी घर की केवल, नारी पर नहिँ निर्भर रहती,
पुरुष प्रकृति ने तुम्हें बनाया, ये अभिमान हृदय से त्यागो।

(समान सवैया)



मौक्तिका (शहीदों की शहादत)

सीता छंद आधारित = 2122*3+212
(पदांत 'मन में राखलो', समांत 'आज')

भेंट प्राणों की दी जिनने आन रखने देश की,
उन जवानों के हमैशा काज मन में राखलो।।
भूल जाना ना उन्हें तुम ऐ वतन के दोस्तों,
उन शहीदों की शहादत आज मन में राखलो।।

छोड़ के घरबार सारा सरहदों पे जो डटे,
बीहड़ों में जागकर के जूझ रातें दिन कटे।
बर्फ के अंबार में से जो बनायें रासते,
उन इरादों का ओ यारो राज मन में राखलो।।

हाथ उठते जब हजारों एक लय, सुर, ताल में,
वर्दियों में पाँव उठते धाक रहती चाल में।
आसमानों को हिलाती गूँज उनके कूच की,
उन उड़ाकों की सभी परवाज मन में राखलो।।

पर्वतों की चोटियों में तार पहले बाँधते,
बन्दरों से फिर लटक के चोटियाँ वे लाँघते।
प्रेत से प्रगटें अचानक दुश्मनों के सामने,
शत्रु की धड़कन की तुम आवाज मन में राखलो।।

खाइयों को खोदते वे और उनको पाटते,
प्यास उनको जब लगे तो ओस को ही चाटते।
बंकरों को घर बना के कोहनी बल लेट के,
गोलियों की बारिसों की गाज मन में राखलो।।

मस्तियाँ कैंपों में करते नाचते, गाते जहाँ,
साथ मिलके बाँटते ये ग़म, खुशी, दुख सब यहाँ।
याद घर की ये भुलाते हँस कभी तो रो कभी,
झूमती उन मस्तियों का साज मन में राखलो।।

ये अनेकों प्रान्त के हैं जात, मजहब, वेश के,
हिन्द की सेना सजाते वीर सैनिक देश के।
मोरचे पे जा डटें तो मुड़ के देखें ना कभी,
देश की जो वे बचाते लाज मन में राखलो।।

गीत इनकी वीरता के गा रही माँ भारती,
देश का हर नौजवाँ इनकी उतारे आरती।
सर झुका इनको 'नमन' कर मान इनपे तुम करो,
हिन्द की सेना का तुम सब नाज मन में राखलो।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-07-16

Wednesday, April 21, 2021

लावणी छंद आधारित गीत (आओ सब मिल कर संकल्प करें)

आओ सब मिल कर संकल्प करें।
चैत्र शुक्ल नवमी है कुछ तो, नूतन आज करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥

मर्यादा में रहना सीखें, सागर से बन कर हम सब।
सिखलाएँ इस में रहना हम, तोड़े कोई इसको जब।
मर्यादा के स्वामी की यह, धारण सीख करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥
 
मात पिता गुरु और बड़ों की, सेवा का हरदम मन हो।
भाई मित्र और सब के ही, लिए समर्पित ये तन हो।
समदर्शी सा बन कर सबसे, हम व्यवहार करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥

आज रामनवमी के दिन हम, दृढ हो कर व्रत यह लेवें।
दीन दुखी आरत जो भी हैं, उन्हें सहारा हम देवें।
राम-राज्य का सपना भू पर, हम साकार करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥

उत्तम आदर्शों को अपना, जीवन सफल बनाएँ हम।
कर चरित्र निर्माण स्वयं का, जग का दूर करें सब तम।
उत्तम बन कर पुरुषोत्तम को, हम सब 'नमन' करें।
आओ सब मिल कर संकल्प करें॥

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-04-16

Friday, April 16, 2021

मुक्तक (दुख, दर्द)

बेजुबां की पीड़ा का गर न दर्द सीने में,
सार कुछ नहीं फिर है इस जहाँ में जीने में।
मारते हो जीवों को ढूँढ़ते ख़ुदा को हो,
गर नहीं दया मन में क्या रखा मदीने में।

(212  1222)*2
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इस जमीं के सिवा कोई बिस्तर नहीं, आसमाँ के सिवा सर पे है छत नहीं।
मुफ़लिसी को गले से लगा खुश हैं हम, ये हमारे लिये कुछ मुसीबत नहीं।
उन अमीरों से पूछो जरा दोस्तों, जितना रब ने दिया उससे खुश हैं वो क्या।
पेट खाली भी हो तो न परवाह यहाँ, इस जमाने से फिर भी शिकायत नहीं।।

(212×8)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-06-17

राजस्थानी डाँखला (2)

(1)

ढोकलास गाँव रो यो ढोकलो हलवाइड़ो,
जिस्यो नाँव बिस्यो डोल ढोलकी सो भाइड़ो।
धोलै बालाँ री है सिर पर छँटणी,
लागै लिपटी है नारैलाँ री चटणी।
तण चालै जिंया यो ही गाँव रो जँवाइड़ो।।
*****
(2)

नेता बण्या जद से ही गाँव रा ये लप्पूजी,
राजनीति माँय बे चलाण लाग्या चप्पूजी।
बेसुरी अलापै राग,
सुण सारा जावै भाग।
बाजण लाग्या तब से ही गाँव में वे भप्पूजी।।
*****
(3)

रेल रा पुराना इंजन धुआँलाल सेठ जी,
कलकत्ता री गल्याँ माँय डोले जमा पेठ जी।
मुँह में दबा धोली नाल,
धुआँ छोड़े धुआँलाल,
पुलिस्यां के सागै पुग्या ठिकाणा में ठेठ जी।।
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
5-11-20

Saturday, April 10, 2021

पड़ोसन (कुण्डलिया)

हो पड़ोस में आपके, कोई सुंदर नार।
पत्नी करती प्रार्थना, साजन नैना चार।
साजन नैना चार, रात दिन गुण वो गाते।
सजनी नित श्रृंगार, करे सैंया मन भाते।
मनमाफिक यदि आप, चाहते सजनी हो तो।
नई पड़ोसन एक,  बसालो सुंदर जो हो।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-09-2016

दोहे (लगन)

दोहा छंद

मन में धुन गहरी चढ़े, जग का रहे न भान।
कार्य असम्भव नर करे, विपद नहीं व्यवधान।।

तुलसी को जब धुन चढ़ी, हुआ रज्जु सम व्याल।
मीरा माधव प्रेम में, विष पी गयी कराल।।

ज्ञान प्राप्ति की धुन चढ़े, कालिदास सा मूढ़।
कवि कुल भूषण वो बने, काव्य रचे अति गूढ़।।

ज्ञानार्जन जब लक्ष्य हो, करलें चित्त अधीन।
ध्यान ध्येय पे राखलें, लखे सर्प ज्यों बीन।।

आस पास को भूल के, मन प्रेमी में लीन।
गहरा नाता जोड़िए, ज्यों पानी से मीन।।

अंतर में जब ज्ञान का, करता सूर्य प्रकाश।
अंधकार अज्ञान का, करे निशा सम नाश।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-10-2016

राधेश्यामी छंद "शशिकला"

राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया

रात्री देवी के आँगन में, जब गगन मार्ग से शशि जाता।
शीतल किरणों को फैला कर, यह शुभ्र ज्योत्स्ना है छाता।।
कर व्योम मार्ग को आलोकित, बढ़ता मयंक नभ-मंडल पे।
आनन से छिटका मुस्काहट, दिन जैसा करे धरा तल पे।।

खेले जब आंखमिचौली यह, प्यारे तारों से मिलजुल के।
बादल समूह के पट में छिप, रह जाये कभी कभी घुल के।।
लुकछिप कर कभी देखता है, रख ओट मेघ के अंबर की।
घूंघट-पट से नव वधु जैसे, निरखे छवि अपने मन-हर की ।।

चञ्चलता लिये नवल-शिशु सी, दिन प्रति दिन रूप बदलता है।
ले पूर्ण रूप को निखर कभी, हर दिन घट घट कर चलता है।।
रजनी जब सुंदर थाल सजा, इसका आ राजतिलक करती।
आरूढ़ गगन-सिंहासन हो, कर दे यह रजतमयी धरती।।

बुध तारागण के बैठ संग, यह राजसभा में अंबर की।
संचालन करे राज्य का जब, छवि देखे बनती नृप वर की।।
यह रजत-रश्मि को बिखरा कर, भूतल को आलोकित करता।
शीतल सुरम्य किरणों से फिर, दाहकता हृदयों की हरता।।

जो शष्य कनक सम खेतों का, पा रजत रश्मियों की शोभा।
वह हेम रजतमय हो कर के, छवि देता है मन की लोभा।।
धरती का आँचल धवल हुआ, सरिता-धारा झिलमिल करती।
ग्रामीण गेह की शुभ्रमयी, प्रांजल शोभा मन को हरती।।

दे मधुर कल्पना कवियों को, मृगछौना सा भोलाभाला।
मनमोहन सा प्यारा चंदा, सब के मन को हरने वाला।।
रजनी के शासन में करके, यह 'नमन' धरा अरु अम्बर को।
यह भोर-पटल में छिप जाता, दे कर पथ प्यारे दिनकर को।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-05-2016

Monday, April 5, 2021

ग़ज़ल (आ गयी होली)

बह्र:- 2122 2122 2122 2

पर्वों में सब से सुहानी आ गयी होली,
फागुनी रस में नहाई आ गयी होली।

टेसुओं की ले के लाली आ गयी होली,
रंग बिखराती बसंती आ गयी होली।

देखिए अमराइयों में कोयलों के संग,
मंजरी की ओढ़ चुनरी आ गयी होली।

चंग की थापों से गुंजित फाग की धुन में,
होलियारों की ले टोली आ गयी होली।

दूर जो परदेश में हैं उनके भावों में,
याद अपनों की जगाती आ गयी होली।

होलिका के संग सारे हम जला कर भेद,
भंग पी लें देश-हित की आ गयी होली।

एकता के सूत्र में बँध हम 'नमन' झूमें,
प्रीत की अनुभूति देती आ गयी होली।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-3-21

ग़ज़ल (जब तलक उनकी करामात)

बह्र:- 2122 1122 1122 22

जब तलक उनकी करामात नहीं होती है,
आफ़तों की यहाँ बरसात नहीं होती है।

जिनकी बंदूकें चलें दूसरों के कंधों से,
उनकी खुद लड़ने की औक़ात नहीं होती है।

आड़ ले दोस्ती की भोंकते खंजर उनकी,
दोस्ती करने की ही जा़त नहीं होती है।

अब हमारी भी हैं नज़दीकियाँ उनसे यारो,
यार कहलाने लगे बात नहीं होती है।

राह चुनते जो सदाक़त की यकीं उनका यही,
इस पे चलने से कभी मात नहीं होती है।

वे भला समझेंगे क्या ग़म के अँधेरे जिनकी,
ग़म की रातों से मुलाक़ात नहीं होती है।

ऐसी दुनिया से 'नमन' दूर ही रहना जिस में,
चैन से सोने की भी रात नहीं होती है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-07-2020

ग़ज़ल (झूठे रोज बहाना कर)

बह्र:- 22  22  22  2

झूठे रोज बहाना कर,
क्यों तरसाओ ना ना कर।

फ़िक्र जमाने की छोड़ो,
दिल का कहना माना कर।

मेटो मन से भ्रम सारे,
खुद को तो पहचाना कर।

कब तक जग भरमाओगे,
झूठे जोड़ घटाना कर।

चैन तभी जब सोओगे,
कुछ नेकी सिरहाना कर।

जग में रहना है फिर तो,
इस जग से याराना कर।

दुखियों का दुख दूर 'नमन',
कोशिश कर रोजाना कर।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन',
तिनसुकिया
3-1-19