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Saturday, February 24, 2024

भजन (कान्हा वस्त्र हमारे दे दउ)

कान्हा वस्त्र हमारे दे दउ।
थर थर काँपत विनवत गोपिन यमुना जल बिच ठाडी गल तउ।।

सुन बोले मृदु हाँसी धर के बैठे शाख कदम्ब कन्हाई।
एक एक कर या फिर सँग में तोकु पड़ेगा बाहर आई।
बन कर भोले कान्ह कहे ये बाहर आ वस्त्रन ले जाहउ।
कान्हा वस्त्र हमारे दे दउ।।

परम ब्रह्म का रूप तिहारा भला बुरा जो सारा जानें।
तुम्हीं बताओ अब हे ज्ञानी अनुचित कहना कैसन मानें।
चीर देय दउ सो घर जाएँ देर भई तो डाँटिन पड़हउ।
कान्हा वस्त्र हमारे दे दउ।।

नग्न होय शुचि यमुना पैठो बात ज्ञान की हमें सिखावत।
शुद्धि मिलन की तभी भएगी तन मन से जो हो प्रायश्चत।
'बासु' कहे शुचि मन बाहर आ ब्रह्म प्रकृति का भेद मिटाहउ।
कान्हा वस्त्र हमारे दे दउ।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
17-12-2018

Thursday, April 25, 2019

भजन "माता के दरबार चलो"

माता के दरबार चलो।
माता बेड़ा पार करेगी, करके ये स्वीकार चलो।।

जग के बन्धन यहीं रहेंगे, प्राणी क्यों भरमाया है।
मात-चरण की शरण धार के, मन से त्यज संसार चलो।।
माता के दरबार चलो।।

जितना रस लो उतना घेरे, जग की तृष्णा ऐसी है।
रिश्ते-नाते लोभ मोह का, छोड़ यहाँ व्यापार चलो।।
माता के दरबार चलो।

आदि शक्ति जगदम्ब भवानी, जग की पालनहारा है।
माँ से बढ़ कर कोउ न दूजा, मन में ये तुम धार चलो।।
माता के दरबार चलो।

नवरात्री की महिमा न्यारी, अवसर पावन आया है।
'नमन' कहे माँ के धामों में, सारे ही नर नार चलो।।
माता के दरबार चलो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-09-17

भजन "चरण-छटा श्रीजी की न्यारी"

चरण-छटा श्रीजी की न्यारी।
मैं छिन छिन जाऊँ बलिहारी।।

वृषभानु और कीर्ति की प्यारी बरसाने की दुलारी।
निश्छल अरु निस्वार्थ प्रेम की मूरत यह मनहारी।
चरण-छटा श्रीजी की न्यारी।।

उर में जोड़ी बसी रहे श्याम सलोने और तिहारी।
नैनों से कभी अलग ना हो ये जोड़ी प्यारी प्यारी।
चरण-छटा श्रीजी की न्यारी।।

जो अनुराग रखे माता में उसकी सब विपदा टारी।
गोलोकधाम की महारानी की शोभा जग में भारी।
चरण-छटा श्रीजी की न्यारी।

उर में बसो हे राधा रानी पीर हरो मेरी सारी।
शत शत 'नमन' करूँ नित ही अरु महिमा गाऊँ थारी।
चरण-छटा श्रीजी की न्यारी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
09-07-2016

Thursday, April 4, 2019

भजन "गजवदन-भजन अब मन कर"

(मात्रा रहित रचना)

गजवदन-भजन अब मन कर।
सफल समस्त जन्म नर कर।।

गज-मस्तक पर सजत वक्र कर,
चरण खम्भ सम कमल-नयन वर,
वरद-हस्त हरपल रख सर पर।
गजवदन-भजन अब मन कर।
सफल समस्त जन्म नर कर।।

शन्कर-नन्दन कष्ट सब हरण,
प्रथम-नमन मम तव अर्पण,
भव-बन्धन-हरण सकल कर।
गजवदन-भजन अब मन कर।
सफल समस्त जन्म नर कर।।

डगर डगर भटकत भ्रमर-मन,
मद, मत्सर मध्य लगत यह तन,
वन्दन भक्त करत सन्कट हर।
गजवदन-भजन अब मन कर।
सफल समस्त जन्म नर कर।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-09-2016

भजन "शिव बिन कौन सहारा मेरा"

शिव बिन कौन सहारा मेरा।
आशुतोष तुम औघड़दानी, एक आसरा तेरा।।

मैं अनाथ हूँ निपट अकेला, चारों तरफ अँधेरा।
जीवन नौका डोल रही है, जगत भँवर ने घेरा।।
शिव बिन कौन सहारा मेरा।।

काम क्रोध का नाग हृदय में, डाले बैठा डेरा।
मैं अचेत हूँ मोह-निशा में, करदो ज्ञान-सवेरा।।
शिव बिन कौन सहारा मेरा।।

नित ही ध्यान हरे चंचल मन, ये तो बड़ा लुटेरा।
इसकी भटकन का तुम ही प्रभु, जल्दी करो निबेरा।।
शिव बिन कौन सहारा मेरा।।

हे शिव शंकर कृपा दृष्टि रख, मन में करो बसेरा।
शंभु मिटाओ 'बासुदेव' का, चौरासी का फेरा।।
शिव बिन कौन सहारा मेरा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
1-09-17