इस ब्लॉग को “नयेकवि” जैसा सार्थक नाम दे कर निर्मित करने का प्रमुख उद्देश्य नये कवियों की रचनाओं को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराना है जहाँ उन रचनाओं की उचित समीक्षा हो सके, साथ में सही मार्ग दर्शन हो सके और प्रोत्साहन मिल सके। यह “नयेकवि” ब्लॉग उन सभी हिन्दी भाषा के नवोदित कवियों को समर्पित है जो हिन्दी को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिये जी जान से लगे हुये हैं जिसकी वह पूर्ण अधिकारिणी है। आप सभी का इस नये ब्लॉग “नयेकवि” में हृदय की गहराइयों से स्वागत है।
Saturday, December 26, 2020
मुक्तक (कांटे, फूल, मौसम)
विविध मुक्तक -5
Friday, December 18, 2020
मौक्तिका (बेटियाँ हमारी)
पिरामिड (तू, ईश)
गुर्वा (मन)
Tuesday, December 15, 2020
गीत (आज हिमालय भारत भू की)
Thursday, December 10, 2020
लावणी छन्द "विष कन्या"
सरसी छंद "बच्चों का आजादी पर्व"
सार छंद "भारत गौरव"
Friday, December 4, 2020
एक हास्य ग़ज़ल (मूली में है झन्नाट जो)
ग़ज़ल (साथ सजन तो चाँद सुहाना)
ग़ज़ल (यादों के जो अनमोल क्षण)
Sunday, November 22, 2020
गुर्वा (प्रकृति-1)
विविध मुक्तक -4
मुक्तक (इंसान-2)
Sunday, November 15, 2020
जनहरण घनाक्षरी
कर्मठता (कुण्डलिया)
दोहा गीतिका (सम्मान)
Wednesday, November 11, 2020
32 मात्रिक छंद "हम और तुम"
पीयूष वर्ष छंद "वर्षा वर्णन"
शीर्षा छंद (शैतानी धारा)
Thursday, November 5, 2020
ग़ज़ल (जो गिरे हैं उन्हें हम उठाते रहे)
ग़ज़ल (रहे जो गर्दिशों में ऐसे अनजानों)
ग़ज़ल (कैसी ये मज़बूरी है)
Friday, October 23, 2020
पिरामिड (बूंद)
हाइकु (कोरोना)
Thursday, October 15, 2020
गुर्वा (प्रशासन)
कठिन बड़ा अब पेट भरण,
शरण कहाँ? केवल शोषण,
***
ले रहा जनतंत्र सिसकी,
स्वार्थ की चक्की चले,
पाट में जनता विवस सी।
***
चुस्त प्रशासन भी बेकार,
जनता सुस्त निकम्मी,
लोकतंत्र की लाचारी।
***
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-05-20
मौक्तिका (बालक)
(पदांत 'को जाने नहीं', समांत 'आन')
कितना मनोहर रूप पर अभिमान को जाने नहीं।।
पहना हुआ कुछ या नहीं लेटा किसी भी हाल में,
अवधूत सा निर्लिप्त जग के भान को जाने नहीं।।
मनमर्जियों का बादशाह किस भाव में खोने लगे।
कुछ भी कहो कुछ भी करो पड़ता नहीं इसको फ़रक,
ना मान को ये मानता सम्मान को जाने नहीं।।
किलकारियों की गूँज से श्रवणों में मधु-रस घोलता।
खिलवाड़ करता था अभी सोने लगा क्यों लाल अब,
नन्हा खिलौना लाडला चिपका रहे माँ से अगर,
मुट्ठी में जकड़ा सब जगत ना दीन दुनिया की खबर।
ममतामयी खोयी हुई खोया हुआ ही लाल है,
अठखेलियाँ बिस्तर पे कर उलटे कभी सुलटे कभी,
मासूमियत इसकी हरे चिंता फ़िकर झट से सभी।
खोया हुआ धुन में रहे अपने में हरदम ये मगन,
अपराध से ना वासता जग के छलों से दूर है,
मुसकान से घायल करे हर आँख का ये नूर है।
करता 'नमन' इस में छिपी भगवान की मूरत को मैं,
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-08-2016
राजस्थानी हेली गीत (विरह गीत)
ओळ्यूँ आवै सारी रात।
हिया मँ उमड़ै काली कलायण म्हारी हेली!
मनड़ा रो मोर करै पिऊ पिऊ म्हारी हेली!
पिया मेघा ने दे पुकार।
सूखी पड्योरी बेल सींचो ये म्हारी हेली!
आखा तीजड़ गई सावण भी सूखो म्हारी हेली!
दिवाली घर ल्याई सून।
कटणो घणो है दोरो वैरी सियालो म्हारी हेली!
तनड़ो बिंधैगी पौ री पून।।
हिवड़ै में बळरी है आग।
सुणा दे संदेशो सैंया आवण रो म्हारी हेली!
जगा दे सोया म्हारा भाग।।
तिनसुकिया
09-12-2018
Saturday, October 10, 2020
सारवती छंद "विरह वेदना"
छोड़ चला मन भाव जगा।।
आवन की सजना धुन में।
धीर रखी अबलौं मन में।।
खावन दौड़त रात महा।
आग जले नहिं जाय सहा।।
पावन सावन बीत रहा।
अंतस हे सखि जाय दहा।।
मोर चकोर मचावत है।
शोर अकारण खावत है।।
बाग-छटा नहिं भावत है।
जी अब और जलावत है।।
ये बरखा भड़कावत है।
जो विरहाग्नि बढ़ावत है।।
गीत नहीं मन गावत है।
सावन भी न सुहावत है।।
===================
लक्षण छंद:-
"भाभभगा" जब वर्ण सजे।
'सारवती' तब छंद लजे।।
"भाभभगा" = भगण भगण भगण + गुरु
211 211 211 2,
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत
**********************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21/9/2020
कुंडल छंद "ताँडव नृत्य"
डगमग कैलाश आज, काँप रहे सारे।।
बाघम्बर को लपेट, प्रलय-नेत्र खोले।
डमरू का कर निनाद, शिव शंकर डोले।।
लपटों सी लपक रहीं, ज्वाल सम जटाएँ।
वक्र व्याल कंठ हार, जीभ लपलपाएँ।।
ठाडे हैं हाथ जोड़, कार्तिकेय नंदी।
काँपे गौरा गणेश, गण सब ज्यों बंदी।।
दिग्गज चिघ्घाड़ रहें, सागर उफनाये।
नदियाँ सब मंद पड़ीं, पर्वत थर्राये।।
चंद्र भानु क्षीण हुये, प्रखर प्रभा छोड़े।
उच्छृंखल प्रकृति हुई, मर्यादा तोड़े।।
सुर मुनि सब हाथ जोड़, शीश को झुकाएँ।
शिव शिव वे बोल रहें, मधुर स्तोत्र गाएँ।।
इन सब से हो उदास, नाचत हैं भोले।
वर्णन यह 'नमन' करे, हृदय चक्षु खोले।।
***********************
कुंडल छंद *विधान*
22 मात्रा का सम मात्रिक छंद। 12,10 यति। अंत में दो गुरु आवश्यक; यति से पहले त्रिकल आवश्यक।मात्रा बाँट :- 6+3+3, 6+SS
चार चरण, दो दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत।
====================
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-08-20
मानव छंद "नारी की व्यथा"
Monday, October 5, 2020
ग़ज़ल (परंपराएं निभा रहे हैं)
ग़ज़ल (रोग या कोई बला है)
Saturday, October 3, 2020
हरिणी छंद "राधेकृष्णा नाम-रस"
इन रस भरे, नामों का तो, महत्त्व अपार है।।
चिर युगल ये, जोड़ी न्यारी, त्रिलोक लुभावनी।
जहँ जहँ रहे, राधा प्यारी, वहीं घनश्याम हैं।
परम द्युति के, श्रेयस्कारी, सभी परिणाम हैं।।
बहुत महिमा, नामों की है, इसे सब जान लें।
सब हृदय से, संतों का ये, कहा सच मान लें।।
अति व्यथित हो, झेलूँ पीड़ा, गिरा भव-कूप में।
मन विकल है, डूबूँ कैसे, रमा हरि रूप में।।
भुवन भर में, गाथा गाऊँ, सदा प्रभु नाम की।
मन-नयन से, लीला झाँकी, लखूँ ब्रज-धाम की।।
मन महँ रहे, श्यामा माधो, यही अरदास है।
जिस निलय में, दोनों सोहे, वहीं पर रास है।।
युगल छवि की, आभा में ही, लगा मन ये रहे।
'नमन' कवि की, ये आकांक्षा, इसी रस में बहे।।
=============
लक्षण छंद: (हरिणी छंद)
मधुर 'हरिणी', राचें बैठा, "नसामरसालगे"।
प्रथम यति है, छै वर्णों पे, चतुष् फिर सप्त पे।
"नसामरसालगे" = नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।
111 112, 222 2,12 112 12
चार चरण, दो दो समतुकांत।
****************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-10-20
Friday, September 25, 2020
विविध मुक्तक -3
पुछल्लेदार मुक्तक "खुदगर्ज़ी नेता"
Sunday, September 20, 2020
गुर्वा (पीड़ा)
अत्याचार देख भागें,
शांति शांति चिल्लाते,
छद्म छोड़ अब तो जागें।
***
पीड़ा सारी कहता,
नीर नयन से बहता,
अंधी दुनिया हँसती।
***
बाढ कहीं तो सूखा है,
सिसक रहे वन उजड़े,
मनुज लोभ का भूखा है,
***
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-04-20
Wednesday, September 16, 2020
ग्रंथि छंद (गीतिका, देश का ऊँचा सदा, परचम रखें)
देश का ऊँचा सदा, परचम रखें,
विश्व भर में देश-छवि, रवि सम रखें।
मातृ-भू सर्वोच्च है, ये भाव रख,
देश-हित में प्राण दें, दमखम रखें।
विश्व-गुरु भारत रहा, बन कर कभी,
देश फिर जग-गुरु बने, उप-क्रम रखें।
देश का गौरव सदा, अक्षुण्ण रख,
भारती के मान को, चम-चम रखें।
आँख हम पर उठ सके, रिपु की नहीं,
आत्मगौरव और बल, विक्रम रखें।
सर उठा कर हम जियें, हो कर निडर,
मूल से रिपु-नाश का, उद्यम रखें।
रोटियाँ सब को मिलेंं, छत भी मिले,
दीन जन की पीड़ लख, दृग नम रखें।
हम गरीबी को हटा, संपन्न हों,
भाव ये सारे 'नमन', उत्तम रखें।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
09-08-20
Wednesday, September 9, 2020
दोहे (श्राद्ध-पक्ष)
दोहा छंद
वंदन पितरों का करें, उनका धर हम ध्यान।।
रीत सनातन श्राद्ध है, इस पर हो अभिमान।
श्रद्धा पूरित भाव रख, मानें सभी विधान।।
द्विज भोजन बलिवैश्व से, करें पितर संतुष्ट।
उनके आशीर्वाद से, होते हैं हम पुष्ट।।
पितर लोक में जो बसे, कर असीम उपकार।
बन कृतज्ञ उनका सदा, प्रकट करें आभार।।
मिलता हमें सदा रहे, पितरों का वरदान।
भरें रहे भंडार सब, हों हम आयुष्मान।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-09-20
मधुमती छंद
शुक पिक चहके।।
जन-मन सरसे।
मधु रस बरसे।।
ब्रज-रज उजली।
कलि कलि मचली।।
गलि गलि सुर है।
गिरधर उर है।।
नयन सजल हैं।
वयन विकल हैं।।
हृदय उमड़ता।
मति मँह जड़ता।।
अति अघकर मैं।
तव पग पर मैं।।
प्रभु पसरत हूँ।
'नमन' करत हूँ।
===========
लक्षण छंद:-
"ननग" गणन की।
मधुर 'मधुमती'।।
"ननग" :- 111 111 2 (नगण नगण गुरु)
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत
*************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-08-20
Saturday, September 5, 2020
ग़ज़ल (जगमगाते दियों से मही खिल उठी)
ग़ज़ल (नहीं जो चाहते रिश्ते)
ग़ज़ल (इरादे इधर हैं उबलते हुए)
इरादे इधर हैं उबलते हुए,
उधर सारे दुश्मन दहलते हुए।
नये जोश में हम उछलते हुए,
चलेंगे ज़माना बदलते हुए।
हुआ पांच सदियों का वनवास ख़त्म,
विरोधी दिखे हाथ मलते हुए।
अगर देख सकते जरा देख लो,
हमारे भी अरमाँ मचलते हुए।
रहे जो सिखाते सदाकत हमें,
मिले वो जबाँ से फिसलते हुए।
न इतना झुको देख पाओ नहीं,
रकीबों के पर सब निकलते हुए।
बढेंगे 'नमन' सुन लें गद्दार सब,
तुम्हें पाँव से हम कुचलते हुए।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-08-20
Saturday, August 22, 2020
गुर्वा (भक्ति)
वंदन वीणा वादिनी,
मात ज्ञान की दायिनी,
काव्य बोध का मैं कांक्षी।
***
राम नाम:-
राम नाम है सार प्राणी,
बैल बना तू अंधा,
जग है चलती घाणी।
***
सरयू के तट पर बसी,
धूम अयोध्या में मची,
ज्योत राम मंदिर की जगी।
***
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-08-20
Tuesday, August 18, 2020
मुक्तक (उद्देश्य,स्वार्थ)
मुक्तक (इश्क़, दिल -2)
पुछल्लेदार मुक्तक 'आधुनिक फैशन'
ऊंची सैंडल में तन लचके, ज्यों पतली सी डाल है।
ठक ठक करती चाल देख के, धक धक जी का हाल है,
इस फैशन के कारण जग में, इतना मचा बवाल है।।
आधुनिकता का है बोलबाला,
दिमागों का दिवाला,
आफत का परकाला,
बासुदेव कहाँ लेकर ये जाये,
हम तो देख देख इसको अघाये।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-02-19
Wednesday, August 12, 2020
सार छंद "कुत्ता और इंसान"
इधर उधर भोजन को टोहा, कई देर भरमाया।।
तभी पिंजरा में विलायती, कुत्ता दिया दिखाई।
ज्यों देखा, उसके समीप आ, हमदर्दी जतलाई।।
हाय सखा क्या हालत कर दी, आदम के बच्चों ने।
बीच सलाखों दिया कैद कर, तुझको उन लुच्चों ने।।
स्वामिभक्त बन नर की सेवा, तन मन से हमने की।
अत्याचारों की सीमा पर, सदा पार इसने की।।
जिन पशुओं ने कदम कदम पर, इसका साथ दिया है।
पर इसने बेदर्दी दिखला, उनका कत्ल किया है।।
रंग बदलने में इसकी नहिं, जग में कोई सानी।
गिरगिट को भी करे पराजित, इसकी मधुरिम बानी।।
सत्ता पाकर जब ये मद में, गज-सम हो जाता है।
जग को भी अपने समक्ष तब, ये अति लघु पाता है।।
गेह बनाना इससे सीखें, दूजों की आहों पर।
अपने से अबलों को रौंदे, नित नव चालें रच कर।।
मृदु वचनों से मन ये जीते, पर मन में विष भारी।
ढोंग दिखावा कर के ही ये, बनता धर्माचारी।।
सर्वश्रेष्ठ संपूर्ण जगत में, भगवन इसे बनाये।
स्वार्थ लोभ में घिर परन्तु ये, जग में रुदन मचाये।।
मतलब के अंधे मानव ने, छोड़े कब अपने ही।
रच प्रपंच दिखलाता रहता, बस झूठे सपने ही।।
हम कुत्तों की फिर क्या गिनती, उसके आगे भाई।
जग में इस नर-पशु से बढ़कर, आज नहीं हरजाई।।
मनहरण घनाक्षरी "प्रीत"
इसपे कदम आगे, सोच के बढ़ाइए।
मुख पे हँसी है छाई, दिल में जमी है काई,
प्रीत को निभाना है तो, मैल ये हटाइए।
छोटा-बड़ा ऊँच-नीच, चले नहीं प्रीत बीच,
पहले समस्त ऐसे, भेद को मिटाइए।
मान अपमान भूल, मन में रखें न शूल,
प्रीत में तो शीश को ही, हाथ में सजाइए।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
03-06-2017
दोहे (आस)
दोहा छंद
लगे निराशा हाथ तो, रहे सदा मन खिन्न।।
गीता के सिद्धांत को, मन में लेवें धार।
कर्म आपके हाथ में, फल पर नहिं अधिकार।।
आस तहाँ नहिं पालिए, लोग खींचते पैर।
मीनमेख निकले सदा, राख हृदय में वैर।।
नहीं अन्य से बांधिए, कभी आस की डोर।
सबकी अपनी सोच है, नहीं किसी पे जोर।।
मन के सारे कष्ट की, अधिक आस है मूल।
पूरित जब नहिं आस हो, रहे हृदय में शूल।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-11-16
Friday, August 7, 2020
ग़ज़ल (रोज ही काम को टाल के आलसी)
ग़ज़ल (बुझी आग फिर से जलाने लगे हैं)
बुझी आग फिर से जलाने लगे हैं,
वे फितरत पुरानी दिखाने लगे हैं।
गुलों से नवाजा सदा जिनको हम ने,
वे पत्थर से बदला चुकाने लगे हैं।
जबाब_उन की हिम्मत लगी जब से देने,
वे चूहों से हमको डराने लगे हैं।
दुनाली का बदला मिला तोप से जब,
तभी होश उनके ठिकाने लगे हैं।
मजा आ रहा देख कर उनको यारो,
जो खा मुँँह की अब तिलमिलाने लगे हैं।
मिली चोट ऐसी भुलाये न भूले,
हकी़क़त वे इसकी छिपाने लगे हैं।
'नमन' बाज़ आयें वे हरक़त से ओछी,
जो भारत पे आँखें गड़ाने लगे हैं।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-06-20
ग़ज़ल (कोरोना का क्यों रोना है)
कोरोना का क्यों रोना है,
हाथों को रहते धोना है।
दो गज की दूरी रख कर के,
सुख की नींद हमें सोना है।
बीमारी है या दुनिया पर,
ये चीनी जादू टोना है।
यह संकट भी टल जायेगा,
धैर्य हमें न जरा खोना है।
तन मन का संयम बस रखना,
चाहे फिर हो जो होना है।
कोरोना की बंजर भू पर,
हिम्मत की फसलें बोना है।
चाल नमन गहरी ये जिससे,
पीड़ित जग का हर कोना है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-07-20
Wednesday, July 22, 2020
आरोही अवरोही पिरामिड (रिश्ते नाते)
नये
पुराने
रिश्ते नाते
जो बन गये।
हिचकोले खाते
दिलों में सज गये।
कभी तो हँसाते हैं
कभी रुलाते ये।
अब तो बस
धीरे धीरे
जा रहे
खोते
ये।
*****
(भारत देश)
ये
देश
हमारा
दुनिया में
सबसे न्यारा।
प्राणों से भी ज्यादा
ये है हमको प्यारा।
धर्म भेरी गूंजाई
ज्ञान विश्व को दे।
दूत शांति का
सदा रहा
भारत
देश
ये।
*****
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-04-18
गुर्वा (कोरोना)
कोरोना बीमारी,
सांसों पर भारी,
दुनिया सारी हारी।
***
(2)
चीन देश का नया खिलौना,
कोविड रोग भयंकर,
खेल रहा जग आंसू भर।
***
(3)
विपद बड़ी है कोरोना,
मास्क धार धर धीर सहो,
धोते सारे हाथ रहो।
***
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-06-20
चोका (किसान)
क्षणिका (शैतान का खिलौना)
शैतान का खिलौना
एक मानवी पुलिंदा,
जो मौत का दरिंदा
आग में जल मरने को
तैयार परिंदा,,,,
जल रहा अलाव
उसमें कुछ बेखबर
तप रहे आग।
वह उसी में आ धमका,
हुआ जोर का धमाका
हुआ जब सब शांत
न लोग, न आग
न वह मौत का नाग
बस बची,,,,
कुछ क्षत विक्षत लाश।
ठगा सा गाँव
लकीर पीटते ग्रामीण
और हँसता शैतान।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-02-19
Thursday, July 16, 2020
कोड कोड मँ (राजस्थानी गीत)
कोड कोड मँ ही सीख्या चून छाणनो सासुजी।।
दो भोजायाँरी म्हे लाडो नखराली म्हे बाई सा,
न्हेरा म्हारा मा काडै तो चिड़ी चुगावै ताई सा।
कोनी सीख्या म्हे पीहर मँ जीमण जिमाणो सासुजी,
कोड कोड मँ ही सीख्या थाल सजाणो सासुजी।।
बिरध्यो दर्जी घर मँ बैठै छठ बारा ही म्हारै,
टाँको साँको बो ही जाणै म्हे इकै कोनी सारै।
कोनी सीख्या म्हे पीहर मँ टाँको देणो सासुजी,
कोड कोड मँ ही सीख्या सुई पिरोणो सासुजी।।
नाल पिरोयोड़ी म्हारै है नौकर, ठाकर, बायाँ री,
धन भंडारा भर्या पङ्या है सगळी माया भायाँ री।
कोनी सीख्या म्हे पीहर मँ धोणो माजणो सासुजी,
कोड कोड मँ ही सीख्या घर नै सजाणो सासुजी।।
भारी झाड़ो कदै न कियो नहीं लगायो पोंछो,
नाम बड़ो बाबुल रो म्हारो कियाँ करद्यां ओछो।
कोनी सीख्या म्हे पीहर मँ घाबा धोणो सासुजी,
कोड कोड मँ ही सीख्या घाबा भैणों सासुजी।।
शौकीन सदा का म्हे हाँ जी मेवा मिश्री चुगबा का,
म्हाने तो केवल छाँटी गैणा, गाठी, पोशाकाँ।
कोनी सीख्या म्हे पीहर मँ नाज छाँटणो सासुजी,
कोड कोड मँ ही सीख्या चुग्गो चुगणो सासुजी।।
लाड प्यार मँ बडी हुयोड़ी सिरकी थोड़ी सुज्योड़ी,
धणी थी म्हारी मर्जी की ठरका सै मँ जियोड़ी।
कोनी सीख्या म्हे पीहर मँ सामी बोलणो सासुजी,
कोड कोड मँ ही सीख्या हँसी घालणो सासुजी।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-07-16
मौक्तिका (रोती मानवता)
Saturday, July 11, 2020
जनक छंद (जल-संकट)
व्यथा जीव की अनकही,
संकट की भारी घड़ी।
***
नीर-स्रोत कम हो रहे,
कैसे खेती ये सहे,
आज समस्या ये बड़ी।
***
तरसै सब प्राणी नमी,
पानी की भारी कमी,
मुँह बाये है अब खड़ी।
***
पर्यावरण उदास है,
वन का भारी ह्रास है,
भावी विपदा की झड़ी।
***
जल-संचय पर नीति नहिं,
इससे कुछ भी प्रीति नहिं,
सबको अपनी ही पड़ी।
***
चेते यदि हम अब नहीं,
ठौर हमें ना तब कहीं,
दुःखों की आगे कड़ी।
***
नहीं भरोसा अब करें,
जल-संरक्षण सब करें,
सरकारें सारी सड़ी।
***
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-05-19
राम रहीम पर व्यंग (कुण्डलिया))
फैलाते पाखण्ड फिर, साधे अपना काम।
साधे अपना काम, धर्म की देत दुहाई।
बहका भोले भक्त, करें ये खूब कमाई।
'बासुदेव' विक्षुब्ध, काम सब इनके लख कर।
रोज करें ये ऐश, 'हनी' सी बिटिया रख कर।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-08-17
Saturday, July 4, 2020
ग़ज़ल (खुशियों ने जब साथ निभाना छोड़ दिया)
खुशियों ने जब साथ निभाना छोड़ दिया,
हमने भी अपने को तन्हा छोड़ दिया।
झेल गरीबी को हँस जीना सीखे तो,
गर्दिश ने भी साथ हमारा छोड़ दिया।
हमें पराई लगती ये दुनिया जैसे,
ग़ुरबत में अपनों ने पल्ला छोड़ दिया।
थोड़ी आज मुसीबत सर पे आयी तो,
अहबाबों ने घर का रस्ता छोड़ दिया।
जब से अपने में झाँका है, आईना
हमने लोगों को दिखलाना छोड़ दिया।
नेताओं ने अपना गेह बसाने में,
जनता का आँगन ही सूना छोड़ दिया।
धनवानों ने अपनी ख़ातिर देख 'नमन',
मुफ़लिस को तो आज बिलखता छोड़ दिया।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
1-10-19
ग़ज़ल (देते हमें जो ज्ञान का भंडार)
देते हमें जो ज्ञान का भंडार वे गुरु हैं सभी,
दुविधाओं का सर से हरें जो भार वे गुरु हैं सभी।
हम आ के भवसागर में हैं असहाय बिन पतवार के,
जो मन की आँखें खोल कर दें पार वे गुरु हैं सभी।
ये सृष्टि क्या है, जन्म क्या है, प्रश्न सारे मौन हैं,
जो इन रहस्यों से करें निस्तार वे गुरु हैं सभी।
छंदों का सौष्ठव, काव्य के रस का न मन में भान है,
साहित्य के साधन का दें आधार वे गुरु हैं सभी।
चर या अचर जो सृष्टि में देते हैं शिक्षा कुछ न कुछ,
जिनसे हमारा ये खिला संसार वे गुरु हैं सभी।
गीता हो, रामायण हो या फिर दूसरे सद्ग्रन्थ हों,
जो सद्विचारों का करें संचार वे गुरु हैं सभी।
गुरुपूर्णिमा के दिन करें गुरु वृंद का वंदन, 'नमन',
संसार का जिनसे मिला है सार वे गुरु हैं सभी।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-07-19
ग़ज़ल (माहोल ने बिगाड़ रखा आचरन)
Sunday, June 21, 2020
आरोही अवरोही पिरामिड (बात)
जो
तुम
आँखों से
कह देते
तो मान जाते।
हम भी जुबाँ पे
कोई बात ना लाते।
अब ना हो सकेगी
वापस बात वो।
कह जाती है
खामोशियाँ
ना सके
जुबाँ
जो।
*****
जो
बात
नयन
कह देते
चुप रह के।
वहीं रहे लाख
शब्द बौने बन के।
जो कभी हुए नहीं
आँखों से घायल।
नैनों की भाषा
क्या समझे
वे रूखे
मन
के।।
*****
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-2-17
सेदोका (नेता)
वो रईस कुलीन
है आज सत्तासीन,
बाकी हैं हीन
गिड़गिड़ाते दीन
****
आज का नेता
अनचाहा चहेता
पाखण्डी अभिनेता,
बड़ाई खोता
स्वार्थ भरा पुलिंदा
जो आ, खा, भाग जाता।
****
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-02-19
हाइकु (उलझी डोर)
यदि हाथ न छोर-
व्यर्थ है जोर।
**
लय से युक्ता
रस भाव सज्जिता-
वाणी कविता।
**
लुटा दे जान
सबका रख मान-
वो ही महान
**
समय खोटा
रिश्ते नातों का टोटा-
पैसा ही मोटा
**
शहरीपन
गायब उपवन-
ऊँचे भवन।
**
दीपक काया
सारी माटी की माया-
आलोक छाया।
**
हिन्दी की दुर्वा
अंग्रेजी जूते तले-
कुचली जाये।
**
शिखर चढ़ा
धन बल से बढ़ा
पतित नर।
**
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-19
Saturday, June 13, 2020
मुक्तक (इंसान-1)
मुक्तक (सैनिक, क्रांतिकारी)
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो (राजस्थानी गीत)
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
सुणकै मुळकी, हुयो हियो है तब सै बागाँ बागाँ।
आज खटिनै से बागाँ माँ ये कोयलड़ी कूकी,
पाणी सिंच्यो आज बेल माँ पड़ी जकी थी सूकी,
मुख सै म्हारो नाँव सुन्यो तो म्हे तो मरग्या लाजाँ,
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
मनरै मरुवै री खुशबू अंगाँ सै फूटण लागी,
सगळै तन में एक धूजणी सी इब छूटण लागी,
राग सुनावै मन री कुरजाँ म्हे तो चढ़ग्या नाजाँ,
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
नेह-मेह बरसावण खातिर मन-बादलियो माच्यो,
आज पिया रे रंग मँ सारो मेरो तन-मन राच्यो,
सुध-बुध भूल्या पिउजी रै म्हे लारै लारै भाजाँ,
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
धरती पर जद पाँव पड़ै तो लागै घूंघर बाजै,
साँसाँ चालै तो यूँ लागै जिंयाँ बादल गाजै,
दिवला चासाँ म्हे तो सोलह सिंगाराँ माँ साजाँ,
रोज 'सुणै है कै' कै बाळो जद बोल्यो 'सुण धापाँ'।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-04-18
Tuesday, June 9, 2020
आल्हा छंद "मूर्खो पर मुक्तक माला"
मूर्ख जुगाली करते रहते, मग्न भजे अपने ही राम।
सिर धुन धुन फिर भाग्य कोसते, दूजों को वे दे कर दोष।
नाम कमा लेते प्रवीण जो, रह जाते हैं मूर्ख अनाम।।
मूर्खों के वोटों पर करते, नेता सत्ता-सुख का पान।
इनके ही चंदे पर चलते, ढोंगी बाबा के संस्थान।
काव्य-मंच पर लफ्फाजों को, आसमान में टांगे मूर्ख।
बाजारों में इनके बल पर, चले छूट की खूब दुकान।।
मूर्ख बनाये असुर गणों को, रूप मोहनी धर भगवान।
कृष्ण हरे गोपिन-मन ब्रज में, छेड़ बाँसुरी की मधु तान।
पृथ्वी-जन को छलते आये, वेश बदल कर सुर पति इंद्र।
कथित बुद्धिजीवी पिछड़ों का, खा लेते हैं सब अनुदान
निपट अनाड़ी गर्दभ जैसे, मूर्ख रहे त्यों सोच-विहीन।
आस पास की खबर न रखते,अपनी धुन में रहते लीन।
धूर्त और चालाक आदमी, ऐसों का कर इस्तेमाल।
जग की हर सुविधा को भोगे, भूखे मरते मूरख दीन।।
32 मात्रिक छंद "काग दही पे"
नज़र पड़ी माँ की त्योंही वह, बेलन खींच उसे दे मारी।।
लालच का मारा वह कागा, साँस नहीं फिर से ले पाया।
यह लख करुणा मेरी फूटी, काग दही पे जान लुटाया।।
रहता एक पड़ौसी बनिया, कागद मल से जाता जाना।
पंक्ति सुनी उसने भी मेरी, समझा अपने ऊपर ताना।।
कान खुजाता हरदम रहता, रहे कागदों में चकराया।
उसने इसको यूँ कुछ समझा, कागद ही पे जान लुटाया।।
एक पड़ौसी छैले के भी, ये उद्गार पड़े कानों में।
बनिये की थुलथुल बेटी को, रोज रिझाता वो गानों में।।
तंज समझ अपने ऊपर वो, गरदन नीची कर सकुचाया।
उसने इसको यूँ कुछ समझा, का गदही पे जान लुटाया।।
देश काल अरु पात्र देख के, कई अर्थ निकले बातों के।
वाणी पर जो रखें न अंकुश, बनें पात्र वे नर लातों के।।
'नमन' शब्द के चमत्कार ने, मंचों पर सम्मान दिलाया,
शब्दों के कारण कइयों ने, जग में अपना नाम गमाया।।
Wednesday, June 3, 2020
ग़ज़ल (इश्क़ के चक्कर में)
ग़ज़ल (फँस गया गिर्दाब में मेरा सफ़ीना है)
ग़ज़ल (आपकी दिल में समातीं चिट्ठियाँ)
Monday, May 18, 2020
गीत (मैं भर के आहें तकूँ ये राहे)
12122 अरकान पर आधारित।
मैं भर के आहें तकूँ ये राहें,
सजन तु आजा सता न इतना, सता न इतना।
सिंगार सोलह मैं कर के बैठी,
बिना तिहारे क्या काम इनका, क्या काम इनका।।
तु ही है मंदिर तु मेरी मूरत,
बसी है मन में ये एक सूरत,
सजा के पूजा का थाल बैठी,
मैं घर की चौखट पे, दर्श अब दे, दर्श अब दे।
तेरी अगर जिद तु घर न आये,
यूँ रात भर नित मुझे सताये,
मेरी भी जिद है पड़ी रहूँगी,
यहीं पे माला मैं तेरी जपती, तेरी जपती।
किसी के ग़म का असर न तुझ पर,
पराई गलियों के काटे चक्कर,
ये घर का प्याला पड़ा उपेक्षित,
लगा के होठों से तृप्त कर दे, तृप्त कर दे।
मैं भर के आहें तकूँ ये राहें,
सजन तु आजा सता न इतना, सता न इतना।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-04-18
गीत (क्या तूने भी देखी कहीं दिवाली)
कहीं मिली तमपूर्ण निशा में, क्या तुझको उजियाली?
मैंने तो उजियालों में, उजियाले होते देखे,
विद्युत से जगमग महलों में, दीपक जलते देखे,
फुलझड़ियों के बीच छूटते, अनार अनेकों देखे,
सजी दुकानों में जगमग, करती देखी दिवाली।
हे नन्हे ! क्या तुझे दिखी, अँधियारों में खुशियाली?
कहकहों ठहाकों बीच, गरजते हुए पटाखे सुने,
मैंने मधुर आरती बीच, मंगलगीत सुरीले सुने,
और और के अपने जन के, आग्रह भोजन मध्य सुने,
बीच बधाई सन्देशों के, मैंने सुनी दिवाली।
हे भूखे ! सड़कों पर क्या तुम, गाते रहे कौव्वाली?
भरे पेट में भी मुझको तो, मिष्ठान्न अनेक मिले,
वैभव वृद्धि के नव अवसर, नये नये परिधान मिले,
मंत्री, संत्री, अफसर, चाकर, सबके ही सत्कार मिले,
डलिया भर भर उपहारों में, मुझे मिली दिवाली।
हे पतझड़ से शुष्क हृदय ! क्या तुझे मिली हरियाली?
हे अबोध सुन! क्या तूने भी, देखी कहीं दिवाली?
कहीं मिली तमपूर्ण निशा में, क्या तुझको उजियाली?
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-10-2016
Wednesday, May 13, 2020
मनहरण घनाक्षरी "जिन्ना का जिन्न"
भारत का अबदुल्ला, जिन्ना पे पराये आज,
हुआ है दिवाना कैसा, ध्यान आप दीजिए।
खून का असर है या, गहरी सियासी चाल,
देशवासी हलके में, इसे नहीं लीजिए।
लगता है जिन्ना का ही, जिन्न इसमें है घुसा,
इसका उपाय अब, सब मिल कीजिए।
जिन्ना वहाँ परेशान, ये भी यहाँ बिना चैन,
दोनों की मिलाने जोड़ी, इसे वहाँ भेजिए।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
04-03-18
दोहा मुक्तक (यमक युक्त-जलजात)
लोभ, स्वार्थ घिर पर मनुज, कृत्य करे अति घोर।
लख उसके इन कर्म को, हरि भी आज लजात।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-19
केवट प्रसंग (कुण्डलिया)
बोला धुलवाएं चरण, फिर उतरो प्रभु पार।।
फिर उतरो प्रभु पार, काठ की नौका मेरी।
बनी अगर ये नार, बजेगी मेरी भेरी।।
हँस धुलवाते पैर, राम सिय गंगा के तट।
भरे अश्रु की धार, कठौते में ही केवट।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-04-2020
Sunday, May 10, 2020
शोभावती छंद (हिन्दी भाषा)
हिन्दुस्तां के माथे की है बिन्दी।।
दोहों, छंदों, चौपाई की माता।
मीरा, सूरा के गीतों की दाता।।
हिंदुस्तानी साँसों में है छाई।
पाटे सारे भेदों की ये खाई।।
अंग्रेजी में सारे ऐसे पैठे।
हिन्दी से नाता ही तोड़े बैठे।।
भावों को भाषा देती लोनाई।
भाषा से प्राणों की भी ऊँचाई।।
हिन्दी की भू पे आभा फैलाएँ।
सारे हिन्दी के गीतों को गाएँ।।
हिन्दी का लोहा माने भू सारी।
भाषा के शब्दों की शोभा न्यारी।।
ओजस्वी सारे हिन्दी भाषाई।
हिन्दी जो भी बोलें वे हैं भाई।।
==================
मगण*3+गुरु (कुल 10 वर्ण सभी दीर्घ)
चार चरण, दो दो समतुकांत
***********************
बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
26-09-18
सुमति छंद (भारत देश)
बहत वक्ष पे सुरसरि धारा।।
पद पखारता जलनिधि खारा।
अनुपमेय भारत यह प्यारा।।
यह अनेकता बहुत दिखाये।
पर समानता सकल बसाये।।
विषम रीत हैं अरु पहनावा।
सकल एक हों जब सु-उछावा।।
विविध धर्म हैं, अगणित भाषा।
पर समस्त की यक अभिलाषा।।
प्रगति देश ये कर दिखलाये।
सकल विश्व का गुरु बन छाये।।
हम विकास के पथ-अनुगामी।
सघन राष्ट्र के नित हित-कामी।।
'नमन' देश को शत शत देते।
प्रगति-वाद के परम चहेते।।
=================
लक्षण छंद:-
गण "नरानया" जब सज जाते।
'सुमति' छंद की लय बिखराते।।
"नरानया" = नगण रगण नगण यगण
(111 212 111 122)
2-2चरण समतुकांत, 4चरण।
***************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
04-07-19
Tuesday, May 5, 2020
ग़ज़ल (मेरी आँखों में मेरा प्यार)
ग़ज़ल (दिल में कैसी ये)
दिल में कैसी ये बे-क़रारी है,
शायद_उन की ही इंतिज़ारी है।
इश्क़ में जो मज़ा वो और कहाँ,
इस नशे की अजब खुमारी है।
आज भर पेट, कल तो फिर फाका,
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।
दौर आतंक, लूट का ऐसा,
साँस लेना भी इसमें भारी है।
जिससे मतलब उसी से बस नाता,
आज की ये ही होशियारी है।
अब तो रहबर ही बन गये रहजन,
डर हुकूमत का सब पे तारी है।
उस नई सुब्ह की है आस 'नमन',
जिसमें दुनिया ही ये हमारी है।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-07-19
ग़ज़ल (उनके फिर से बहाने, तमाशे शुरू)
ग़ज़ल (न पैमाना वो जो फिर से भरा)
Sunday, April 26, 2020
हाइकु (आभासी जग)
खा मनन, चिंतन
करे मगन।
**
शाख बिछुड़ा
फूल न जान पाया
गड़ा या जला।
**
गलियाँ ढूंढ़े
बच्चों के गिल्ली डंडे-
बस्ते में ठंडे।
**
प्रीत का गर्व
कुछेक खास पर्व
समेटे सर्व।
**
कब की भोर
रे राही सुन शोर
निद्रा तो छोड़।
**
ओखली, घड़े
विकास तले गड़े
गाँव सिकुड़े।
**
आज ये देश
प्रतिभा क्यों समेट?
भागे विदेश।
**
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-01-2019
आसरो थारो बालाजी (जकड़ी विधा का गीत)
भव सागर से पार उतारो, नाव फंसी मझ धाराँ जी।।
जद रावण सीता माता नै, लंका में हर ल्यायो,
सौ जोजन का सागर लाँघ्या, माँ को पतो लगायो।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।
जद जद भीर पड़ै भक्तन में, थे ही आय उबारो,
थारै चरणां में जो आवै, वाराँ सब दुख टारो।
आसरो थारो बालाजी, काज सब सारो बालाजी।
भव सागर से पार उतारो, नाव फंसी मझ धाराँ जी।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-5-19
तर्ज- तावड़ा मन्दो पड़ ज्या रै
Wednesday, April 22, 2020
मनहरण घनाक्षरी "गुजरात चुनाव"
उल्टी गंगा कैसी कैसी, नेता ये बहा रहे।
मन्दिरों में भाग भाग, बोले भाग जाग जाग,
भोले बाबा पर डोरे, डाल ये रिझा रहे।
करते दिखावा भारी, लाज शर्म छोड़ सारी,
आसथा का ढोल देखो, कैसा वे बजा रहे।
देश छोड़ा वेश छोड़ा, धर्म और कर्म छोड़ा,
मन्दिरों में जाय अब, जात छोड़ आ रहे।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-12-17
Saturday, April 18, 2020
32 मात्रिक छंद "अनाथ"
दीन दशा मुख से बिखेरता, भीषण दुख-ज्वाला से चिपटा।।
किस गुदड़ी का लाल निराला, किन आँखों का है ये मोती।
घोर उपेक्षा जग की लख कर, इसकी आँखें निशदिन रोती।।
यह अनाथ बालक चिथड़ों में, आनन लुप्त रखा पीड़ा में।
बिता रहा ये जीवन अपना, दारुण कष्टों की क्रीड़ा में।।
गेह द्वार से है ये वंचित, मात पिता का भी नहिं साया।
सभ्य समझते जो अपने को, पड़ने दे नहिं इस पर छाया।।
स्वार्थ भरे जग में इसका बस, भिक्षा का ही एक सहारा।
इसने उजियारे कब देखे, छाया जीवन में अँधियारा।।
इसकी केवल एक धरोहर, कर में टूटी हुई कटोरी।
हाय दैव पर भाग्य लिखा क्या, वह भी तो है बिल्कुल कोरी।।
लघु ललाम लोचन चंचल अति, आस समेट रखे जग भर की।
शुष्क ओष्ठ इसके कहते हैं, दर्द भरी पीड़ा अंतर की।।
घर इसका पदमार्ग नगर के, जीवन यापन उन पे करता।
भिक्षाटन घर घर में करके, सदा पेट अपना ये भरता।।
परम दीन बन करे याचना, महा दीनता मुख से टपके।
रूखा सूखा जो मिल जाता, धन्यवाद कह उसको लपके।।
रोम रोम से करुणा छिटके, ये अनाथ कृशकाय बड़ा है।
सकल जगत की पीड़ा सह कर, पर इसका मन बहुत कड़ा है।।
है भगवान सहारा इसका, टिका हुआ है उसके बल पर।
स्वार्थ लिप्त संसार-भावना, जीता यह नित उसको सह कर।।
आश्रय हीन जगत में जो हैं, उनका बस होता है ईश्वर।
'नमन' सदा मैं उसको करता, जो पाले यह सकल चराचर।।