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Thursday, December 21, 2023

विविध कुण्डलिया

1- नोट-बंदी

होगा अब इस देश में, नोट रहित व्यापार।
बैंकों में धन राखिए, नगदी है बेकार।
नगदी है बेकार, जेबकतरे सब रोए।
घर में जब नहिँ नोट, सेठ अब किस पर सोए।
नोट तिजौरी राख, बहुत सुख सब ने भोगा।
रखे 'नमन' कवि आस, कछु न काला अब होगा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
15-12-16

2- सच्चा सुख

रखना मन में शांति का, सर्वोत्तम व्यवहार।
पर कायरपन मौन है, लख कर अत्याचार।
लख कर अत्याचार, और भी दह कर निखरो।
बाधाएँ हों लाख, नहीं जीवन में बिखरो।
सच्चे सुख का स्वाद, अगर तुम चाहो चखना।
रख खुद पर विश्वास, धीर को धारे रखना।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-06-19

Saturday, March 25, 2023

बसंत और पलाश (कुण्डलिया)

कुण्डलिया छंद


दहके झूम पलाश सब, रतनारे हों आज।
मानो खेलन फाग को, आया है ऋतुराज।
आया है ऋतुराज, चाव में मोद मनाता।
संग खेलने फाग, वधू सी प्रकृति सजाता।
लता वृक्ष सब आज, नये पल्लव पा महके।
लख बसंत का साज, हृदय रसिकों के दहके।।

शाखा सब कचनार की, करने लगी धमाल।
फागुन की मनुहार में, हुई फूल के लाल।
हुई फूल के लाल, बैंगनी और गुलाबी।
आया देख बसंत, छटा भी हुई शराबी।
'बासुदेव' है मग्न, रूप जिसने यह चाखा।
जलती लगे मशाल, आज वन की हर शाखा।।

हर पतझड़ के बाद में, आती सदा बहार।
परिवर्तन पर जग टिका, हँस के कर स्वीकार।
हँस के कर स्वीकार, शुष्क पतझड़ की ज्वाला।
चाहो सुख-रस-धार, पियो दुख का विष-प्याला।
कहे 'बासु' समझाय, देत शिक्षा हर तरुवर।
सेवा कर निष्काम, जगत में सब के दुख हर।।

कागज की सी पंखुड़ी, संख्या बहुल पलास।
शोभा सभी दिखावटी, थोड़ी भी न सुवास।
थोड़ी भी न सुवास, वृक्ष पे पूरे छाते।
झड़ के यूँ ही व्यर्थ, पैर से कुचले जाते।
ओढ़ें झूठी आभ, बनें बैठे ये दिग्गज।
चमके ज्यों बिन लेख, साफ सुथरा सा कागज।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
14-03-2017

Sunday, April 17, 2022

कुण्डलिया छंद

 कुण्डलिया छंद "विधान"


कुण्डलिया छंद दोहा छंद और रोला छंद के संयोग से बना विषम छंद है। इस छंद में ६ पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं। यह छंद दो छंदों के मेल से बना है जिसके पहले दो पद दोहा छंद के तथा शेष चार पद रोला छंद से बने होते हैं।

दोहा छंद एक अर्द्ध समपद छंद है। इसका हर पद यति चिन्ह द्वारा दो चरणों में बँटा होता है और दोनों चरणों का विधान एक दूसरे से अलग रहता है इसीलिए इसकी संज्ञा अर्द्ध समपद छंद है। इस प्रकार दोहा छंद के दोनों दल में चार चरण होते हैं। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण यानी विषम चरण १३-१३ मात्राओं के तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण यानी सम चरण ११-११ मात्राओं के होते हैं। 

कुण्डलिया छंद में दोहे का चौथा चरण रोला छंद के प्रथम चरण में सिंहावलोकन की तरह यथावत दोहरा दिया जाता है। रोला छंद के प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं। चूँकि दोहे का चौथा चरण कुण्डलिया छंद में रोला के प्रथम चरण में यथावत रख दिया जाता है इसलिए इस छंद में रोला छंद के चारों पदों की सम रूपता बनाये रखने के लिए रोला के चारों विषम चरणों की यति ११वीं मात्रा पर रखनी आवश्यक है, साथ ही इस चरण का अंत भी ताल यानी गुरु लघु से होना आवश्यक है। 

वैसे तो रोला छंद की मात्रा बाँट तीन अठकल की है पर कुण्डलिया छंद में रोला की प्रथम यति ताल अंत (21) के साथ ११ मात्रा पर सुनिश्चित है जिसकी मात्रा बाँट ८-३(गुरु लघु) है। अतः बाकी बची १३ मात्राएँ केवल ३-२-८ की मात्रा बाँट में ही हो सकती हैं क्योंकि रोला छंद का दूसरा अठकल केवल ३-३-२ में ही विभक्त होगा। शायद इसी कारण से इसी मात्रा बाँट में रोला छंद आजकल रूढ हो गया है।

कुण्डलिया छंद का प्रारंभ जिस शब्द या शब्द-समूह से होता है, छंद का अंत भी उसी शब्द या शब्द-समूह से होता है। सोने में सुहागा तब है जब कुण्डलिया के प्रारंभ का और अंत का शब्द एक होते हुए भी दोनों जगह अलग अलग अर्थ रखता हो। साँप की कुण्डली की तरह रूप होने के कारण ही इसका नाम कुण्डलिया पड़ा है। मेरी एक स्वरचित कुण्डलिया:-

 *कुण्डलिया छंद* (चौपाल)

धोती कुर्ता पागड़ी, धवल धवल सब धार।
सुड़क रहे हैं चाय को, करते गहन विचार।।
करते गहन विचार, किसी की शामत आई।
बैठे सारे साथ, गाँव के बूढ़े भाई।।
झगड़े सब निपटाय, समस्या सब हल होती।
अद्भुत यह चौपाल, भेद जो सब ही धोती।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Saturday, April 10, 2021

पड़ोसन (कुण्डलिया)

हो पड़ोस में आपके, कोई सुंदर नार।
पत्नी करती प्रार्थना, साजन नैना चार।
साजन नैना चार, रात दिन गुण वो गाते।
सजनी नित श्रृंगार, करे सैंया मन भाते।
मनमाफिक यदि आप, चाहते सजनी हो तो।
नई पड़ोसन एक,  बसालो सुंदर जो हो।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-09-2016

Wednesday, February 10, 2021

गणेश-वंदन (कुण्डलिया)

पूजा प्रथम गणेश की, संकट देती टाल।
रिद्धि सिद्धि के नाथ ये, गज का इनका भाल।
गज का इनका भाल, पेट है लम्बा जिनका।
काया बड़ी विशाल, मूष है वाहन इनका।
विघ्न करे सब दूर, कौन ऐसा है दूजा।
भाद्र शुक्ल की चौथ, करो गणपति की पूजा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-09-2016

Sunday, November 15, 2020

कर्मठता (कुण्डलिया)

कर्मठता नहिँ त्यागिए, करें सदा कुछ काम।
कर्मवीर नर पे टिका, देश धरा का नाम।
देश धरा का नाम, करें वो कुल को रौशन।
कर्म कभी नहिँ त्याग, यही गीता का दर्शन।
कहे 'बासु' समझाय, करो मत कभी न शठता।
सौ झंझट भी आय, नहीं छोड़ो कर्मठता।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-12-16

Saturday, July 11, 2020

राम रहीम पर व्यंग (कुण्डलिया))

रख कर राम रहीम का, पावन ढोंगी नाम।
फैलाते पाखण्ड फिर, साधे अपना काम।
साधे अपना काम, धर्म की देत दुहाई।
बहका भोले भक्त, करें ये खूब कमाई।
'बासुदेव' विक्षुब्ध, काम सब इनके लख कर।
रोज करें ये ऐश, 'हनी' सी बिटिया रख कर।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-08-17

Wednesday, May 13, 2020

केवट प्रसंग (कुण्डलिया)

केवट की ये कामना, हरि-पद करूं पखार।
बोला धुलवाएं चरण, फिर उतरो प्रभु पार।।
फिर उतरो प्रभु पार, काठ की नौका मेरी।
बनी अगर ये नार, बजेगी मेरी भेरी।।
हँस धुलवाते पैर, राम सिय गंगा के तट।
भरे अश्रु की धार, कठौते में ही केवट।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
05-04-2020

Sunday, February 16, 2020

प्रजातन्त्र (कुण्डलिया)

चक्की के दो पाट सा, प्रजातन्त्र का तंत्र।
जनता उनमें पिस जपे, अच्छे दिन का मंत्र।
अच्छे दिन का मंत्र, छलावा आज बड़ा है।
कैसा सत्ता हाथ, हाय ये शस्त्र पड़ा है।
नेताओं को फ़िक्र, मौज उनकी हो पक्की।
रहें पीसते लोग, भले जीवन भर चक्की।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-04-18

Monday, December 9, 2019

चौपाल (कुण्डलिया)

धोती कुर्ता पागड़ी, धवल धवल सब धार।
सुड़क रहे हैं चाय को, करते गहन विचार।।
करते गहन विचार, किसी की शामत आई।
बैठे सारे साथ, गाँव के बूढ़े भाई।।
झगड़े सब निपटाय, समस्या सब हल होती।
अद्भुत यह चौपाल, भेद जो सब ही धोती।।

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया
29-06-18

Friday, October 25, 2019

गीता महिमा (कुण्डलिया)

गीता अद्भुत ग्रन्थ है, काटे भव की दाह।
ज्ञान अकूत भरा यहाँ, जिसकी कोइ न थाह।
जिसकी कोइ न थाह, लगाओ जितना गोता।
कटे पाप की पाश, गात मन निर्मल होता।
कहे 'बासु' समझाय, ग्रन्थ यह परम पुनीता।
सब ग्रन्थों का सार, पढें सारे नित गीता।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
17-12-18

Friday, July 19, 2019

कुर्सी की महिमा (कुण्डलिया))

महिमा कुर्सी की बड़ी, इससे बचा न कोय।
राजा चाहे रंक हो, कोउ न चाहे खोय।
कोउ न चाहे खोय, वृद्ध या फिर हो बालक।
समझे इस पर बैठ, सभी का खुद को पालक।
कहे 'बासु' कविराय, बड़ी इसकी है गरिमा।
उन्नति की सौपान, करे मण्डित ये महिमा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-12-2018

Friday, May 10, 2019

आधुनिक नारी (कुण्डलिया)

सारी पहने लहरिया, घर से निकली नार।
रीत रिवाजों में फँसी, लम्बा घूँघट डार।
लम्बा घूँघट डार, फोन यह कर में धारे।
शामत उसकी आय, हाथ इज्जत पर डारे।
अबला इसे न जान, लाज की खुद रखवारी।
कर देती झट दूर, अकड़ चप्पल से सारी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-5-17

कुण्डलिया "मोबॉयल"

मोबॉयल से मिट गये, बड़ों बड़ों के खेल।
नौकर, सेठ, मुनीमजी, इसके आगे फेल।
इसके आगे फेल, काम झट से निपटाता।
मुख को लखते लोग, मार बाजी ये जाता।
निकट समस्या देख, करो नम्बर को डॉयल।
सौ झंझट इक साथ, दूर करता मोबॉयल।।

मोबॉयल में गुण कई, सदा राखिए संग।
नूतन मॉडल हाथ में, देख लोग हो दंग।
देख लोग हो दंग, पत्नियाँ आहें भरती।
कैसी है ये सौत, कभी आराम न करती।
कहे 'बासु' कविराय, लोग अब इतने कायल।
दिन देखें ना रात, हाथ में है मोबॉयल।।

मोबॉयल बिन आज है, सूना सब संसार।
जग के सब इसपे चले, रिश्ते कारोबार।
रिश्ते कारोबार, व्हाटसप इस पर फलते।
वेब जगत के खेल, फेसबुक यहाँ मचलते।
मधुर सुनाए गीत, दिखाए छमछम पायल।
झट से फोटो लेत, सौ गुणों का मोबॉयल।।

मोबॉयल क्या चीज है, प्रेमी जन का वाद्य।
नारी का जेवर बड़ा, बच्चों का आराध्य।
बच्चों का आराध्य, रखे जो खूबी सारी।
नहीं देखते लोग, दाम कितने हैं भारी।
दो पल भी विलगाय, कलेजा होता घायल।
कहे 'बासु' कविराय, मस्त है ये मोबॉयल।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-06-2016