Friday, September 29, 2023

छंदा सागर (मात्रिक छंद छंदाएँ)

छंदा सागर 
                      पाठ - 18


छंदा सागर ग्रन्थ


"मात्रिक छंद छंदाएँ"


इस पाठ से हम हिंदी की छांदसिक छंदाओं के विस्तृत संसार में प्रविष्ट हो रहे हैं। संकेतक के पाठ में हमारा विभिन्न संकेतक से परिचय हुआ था, जिनमें से कई अब तक की छंदाओं में प्रयुक्त नहीं हुये थे, पर अब छांदसिक छंदाओं में उनका प्रयोग होगा। अब तक की छंदाओं में दो से अधिक लघु का एक साथ प्रयोग नहीं हुआ था और ऐसे दोनों लघु स्वतंत्र लघु माने जाते थे। परन्तु हिंदी छंदों में स्वतंत्र लघु की अवधारणा नहीं है। हिंदी छंदों में अक्सर दो से अधिक लघु एक साथ प्रयोग में आते हैं और वे स्वतंत्र लघु या शास्वत दीर्घ दोनों  ही रूप में प्रयुक्त हो सकते हैं।

हिंदी के मात्रिक छंदों में प्रति चरण मात्रा तो सुनिश्चित रहती है, परन्तु वर्णों की संख्या प्रतिबंधित नहीं है। इन छंदों में गुरु वर्ण को दो लघु में तोड़ा जा सकता है। परन्तु किसी गुच्छक में यदि दो लघु वर्ण साथ साथ आये हैं तो उन्हें गुरु नहीं कर सकते, उन्हें दो लघु के रूप में ही रखना होगा। हिंदी छंदों में स्वतंत्र लघु की अवधारणा नहीं है अतः दो लघु एक ही शब्द में हो या दो विभिन्न शब्दों में, कोई अंतर नहीं पड़ता। 

हिंदी छंदों में यति का बहुत महत्व है।  छंदाओं में यति या तो 'ण' या 'णा' संकेतक से दर्शायी जाती है अथवा संख्यावाचक संकेतक में अनुस्वार का प्रयोग करके जैसे दं बं आदि से। कई हिंदी छंदों में गुरु या गुरु वर्णों को दीर्घ रूप में रखा जाता है। इसके लिये छंदा के यदि अंतिम गुरु को दीर्घ रूप में रखना है तो हम छंदा के अंत में 'के' जोड़ देते हैं। दो दीर्घ के लिये 'दे' जोड़ा जाता है और तीन दीर्घ के लिये 'बे' जोड़ा जाता है। कुछेक छंदा में 'के' का प्रयोग छंदा के आदि या मध्य में भी हुआ है।

इन छंदाओं के अंत में ण या णा संकेतक का प्रयोग छंदा का मात्रिक स्वरूप दर्शाने के लिये होता है। परन्तु छंदा में यदि विषमकल द्योतक बु, पु, डु, वु का प्रयोग है तो ण णा संकेतक का लोप भी है क्योंकि ये विषमकल द्योतक संकेतक केवल मात्रिक स्वरूप में ही प्रयोग में आते हैं। छंदा में के, दे, बे तथा दौ और बौ संकेतक का प्रयोग होने से भी ण णा संकेतक का लोप है।

मात्रिक छंद प्रायः समकल आधारित रहते हैं। अतः इन छंदाओं में ईमग (2222) और मगण (222) तथा ईगागा (22) और गुरु (2) वर्ण की प्रधानता रहती है। इन छंदाओं पर काव्य सृजन कल विवेचना के पाठ में वर्णित नियमों के आधार पर होता है। गुरु छंदाओं की तरह ही इन छंदाओं के नामकरण में भी अठकल अर्थात ईमग गणक को प्राथमिकता दी गयी है। हिंदी छंदों में मात्रा पतन मान्य नहीं है। सभी छंदाओं में कोष्टक में छंद का नाम दिया गया है।

छंद में प्रयुक्त मात्रा संख्याओं के आधार पर प्रत्येक छंद की शास्त्रों में जाति निर्धारित की गयी है। इस पाठ में हिन्दी में प्रचलित मात्रिक छंदों की छंदाएँ जाति के आधार पर वर्गीकृत की गयी हैं। 32 मात्रा तक के छंद सामान्य जाति छंदों की श्रेणी में आते हैं तथा इससे अधिक मात्रा के छंद दण्डक मात्रिक छंदों की श्रेणी में आते हैं। यहाँ आधार कम से कम 7  मात्रा सुनिश्चित किया गया है। 7 से कम मात्रा के छंद विशेष महत्व नहीं रखते।

7. मात्रा (लौकिक जाति के छंद)

5 S = पूके (सुगति/शुभगति) = 7 मात्रा।
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8. मात्रा (वासव जाति के छंद)

22 121 = गीजण या 3 1121 बूसल  (छवि/मधुभार) = 8मात्रा।

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9. मात्रा (आँक जाति के छंद)

22221 = मींणा (निधि) = 9 मात्रा।
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5 SS =  पूदे (गंग) = 9 मात्रा।
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10. मात्रा (दैशिक जाति के छंद)

5, 5 = पूधा (एकावली) = 10 मात्रा।
(5*2 यह छंद पूदा रूप में भी प्रचलित है।)
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2211 121 = तंजण (दीप) = 10 मात्रा।
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11. मात्रा (रौद्र जाति के छंद)

8 1S = मीलिण या 6 1SS = मलदे (भव)
 = 11 मात्रा।
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2121 212 = रंरण = (शिव) = 11 मात्रा।
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22 3 121 = गीबुज  या  22211 21 = मोगुण (अहीर) = 11 मात्रा।
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12. मात्रा (आदित्य जाति के छंद)

9 12 =  वूली (नित छंद) = 12 मात्रा।
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1 22 22 21 = लागिदगुण (तांडव) = 12 मात्रा।
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2222 121 = मीजण (लीला) = 12 मात्रा।
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2 7 21 = गाडूगुण (तोमर) = 12 मात्रा।
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13. मात्रा (भागवत जाति के छंद)

2222, S1S = मिणकेलके/मिणराहू (चंडिका/धरणी) = 8+5 = 13 मात्रा
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2222 212  = मीरण (चंद्रमणि) = 8+5 = 13 मात्रा
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2222 3 2 =  मीबुग (प्रदोष) = 13 मात्रा। (इस छंद का दूसरा रूप 'बुगमी' = 3 2 2222 भी प्रचलन में है।)
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14. मात्रा (मानव जाति के छंद)

1222 1222 =  यीदण (विजात) = 7+7 = 14 मात्रा।
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2 5, 22 111 =  गापुणगीना (सरस छंद) = 7+7 = 14 मात्रा।
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S 1222 122 = केयीयण (मनोरम) = 14 मात्रा।
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2 7 212 = गाडूरण (गुरु तोमर) = 14 मात्रा।
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2 2222 SS = गमिदे (कुंभक) = 14 मात्रा।
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(22 21)*2 = गीगूधुण = (सुलक्षण) = 14 मात्रा।
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22*2 211S = गीदभके (हाकलि) = 14 मात्रा।
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22*2 2SS = गिदगादे (सखी) = 14 मात्रा।
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2222 222 = मीमण (मानव) = 14 मात्रा।
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2222 3 21 =  मीबूगू (कज्जल) = 14 मात्रा।
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2222 3 111 =  मीबूनण (मनमोहन) = 14 मात्रा।
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15. मात्रा (तैथिक जाति के छंद)

3 2 2222 S = बुगमीके (गोपी) = 15 मात्रा
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22 222 SS1 = गिमदेला (पुनीत) = 15 मात्रा।
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2222 2*2 21 = मीगदगुण (चौपई, जयकरी) = 15 मात्रा।
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2222, 22 1S = मिणगिलके (चौबोला ) = 15 मात्रा।
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2222 2 S1S = मिगकेलके (उज्ज्वला) = 15 मात्रा।
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2222 3 121 = मीबुज (गुपाल/भुजंगिनी) = 15 मात्रा।
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16. मात्रा (संस्कारी जाति के छंद)

11 2222 211 S = लूमीभाके (सिंह) = 16 मात्रा।
(द्विगुणित रूप में यह छंद 'कामकला' छंद कहलाता है। यथा 'लूमीभाकेधा' 16, 16 = 32 मात्रा)
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3 2 2222 21 = बुगमीगू (श्रृंगार) = 16 मात्रा।
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2 2222 222 = गामीमण (पदपादाकुलक) = 16 मात्रा।
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22*4 = गीचण (पादाकुलक) = 16 मात्रा।
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2 2222 2211 = गमितालण (अरिल्ल) = 16मात्रा।
(2222 21 1SS = मीगुलदे (अरिल्ल) इस छंद का यह विधान भी मिलता है।)
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2 2222 3 1S = गामीबुलके (सिंह विलोकित) = 16 मात्रा।
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2 2222 2 121 = गमिगाजण (पद्धरि) = 16 मात्रा।
(कहीं कहीं इसी छंद का अन्य नाम पज्झटिका भी मिलता है।)
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2222 22*2  = मीगीदण (चौपाई) = 16 मात्रा।
(चौपाई के अंत में चौकल रहना चाहिए। अनेक छंदाओं की प्रथम यति में चौपाई रहती है जहाँ यह मीदा रूप = 2222*2 में रहती है।
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2222 22211 = मीमोणा (डिल्ला) = 16 मात्रा।
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2222 S 22S = मीकेगीके (पज्झटिका/उपचित्रा) = 16 मात्रा।
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17. मात्रा (महासंस्कारी जाति के छंद)

5*2 3 SS  = पुदबूदे (बिमल) = 17 मात्रा।
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9, 31SS = वूणाबुलदे (राम) = 17 मात्रा।
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18. मात्रा (पौराणिक जाति के छंद)

9*2 = वूदा (राजीवगण) = 18 मात्रा।
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122*3 12 = यबलिण (शक्ति) = 18 मात्रा।
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2 2222*2 = गामीदण (कलहंस) = 18 मात्रा।
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2221, 1 2222 S = मंणालमिके (पुरारी) = 7+11 = 18 मात्रा।
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22222, 22121 = मेणातींणा (बंदन) = 10+8 = 18 मात्रा।
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19. मात्रा (महापौराणिक जाति के छंद)

3 2 22, 222 SS = बूगागिणमादे (दिंडी) = 19 मात्रा।
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122*3 121 = यबजण (सगुण) = 19 मात्रा
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1222*2 122 = यीदायण = (सुमेरु) = 19 मात्रा

(इस छंद के मध्य यति के रूप भी मिलते हैं जो:-
1222 122, 2122 = यीयणरीणा
122 212, 22122 = यारणतेणा हैं।)
अंत के 22 को SS में रखने से छंद कर्ण मधुर होता है।
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212 221, 2221 S = रातणमंके = (पियूषवर्ष) = 10+9 = 19 मात्रा।
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2122*2 212 = रीदारण = (आनन्दवर्धक) = 19 मात्रा।
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2122 212, 221 S = रीरणताके = (ग्रंथि) = 12+7 = 19 मात्रा।
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2 2222 22, 111S = गामीगिणनाके (नरहरि) = 14+5 = 19 मात्रा।
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2222*2 21 = मीदागुण (तमाल) = 19 मात्रा।
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20. मात्रा (महादैशिक जाति के छंद)

5, 5*3 =  पुणपूबा (कामिनीमोहन या मदनअवतार) = 5+15 =20 मात्रा।
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5*3 S1S = पुबकेलके (हेमंत) = 20 मात्रा।
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5, 5, 5 21S = पूदौपूगूके (अरुण) = 5+ 5+10 = 20 मात्रा।
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9 12, 22 121  = वूलिणगीजा (मंजुतिलका) = 12+8 = 20 मात्रा।
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1222*2 1221 = यिदयंणा = (शास्त्र) = 20 मात्रा
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2222*2 SS = मिददे (मालिक) = 20 मात्रा।
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2222 21, 3 2SS   = मीगुणबुगदे (सुमंत) = 11+9 = 20 मात्रा।
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2222 22, 3 1SS = मीगिणबुलदे (योग) = 12+8 = 20 मात्रा।
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2222 21, 3 2 22 = मीगुणबुगगी (हंसगति) = 11+9 = 20 मात्रा।
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21. मात्रा (त्रैलोक जाति के छंद)

7 121, 5 S1S = डूजणपूरा (चांद्रायण) = 11+10 = 21 मात्रा।

( एक छंद के चार पद में यदि 'केमणमोरा' रूप की प्लवंगम = S 222, 22211 S1S तथा चांद्रायण का मिश्रण हो तो उस मिश्रित छंद का नाम 'तिलोकी' है।)
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12 222*2 211S = लीमदभाके (संत) = 21 मात्रा।
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222, 2222 2221 = मणमीमंणा (भानु) = 6+15 = 21 मात्रा।
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2222*2 212 = मिदरण (प्लवंगम) = 21 मात्रा। (इस छंद का प्राचीन स्वरूप 'गामणमोकेलके' = S 222, 22211 S1 S माना गया है।)
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2222 21, 3 221 S = मीगुणबुतके (त्रिलोकी) = 11+10 = 21 मात्रा।
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22. मात्रा (महारौद्र जाति के छंद)

2 2222 3, 3 2*3 = गामीबुणबुगबा (राधिका) = 13 + 9 = 22 मात्रा।
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2211*2 2, 21122 = तंदागणभेणा (बिहारी) = 14+8 = 22 मात्रा।
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222 3*2, 22211 S = मबुदंंमोके (उड़ियाना) = 12+10 = 22 मात्रा।
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222 3*2, 222 SS = मबुदंमादे (कुंडल) = 12+10 = 22 मात्रा।
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2222, 2222, 211S = मीधभके (रास) = 8+8+6 = 22 मात्रा।
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2222 22, 2222 2 = मीगिणमीगण (सोमधर) = 12+10 = 22 मात्रा।
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2222 22, 2222 S = मीगिणमीके (सुखदा) = 12+10 = 22 मात्रा।
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2222 21, 3 2 222 = मीगुणबूगम (मंगलवत्थु) = 11+11 = 22 मात्रा।
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23. मात्रा (रौद्राक जाति के छंद)

2122*2, 2122 S = रीदणरीके = (रजनी) = 14 + 9 = 23 मात्रा।

2 22221, 2222 121 = गामींणामीजण (संपदा छंद) = 11+12 = 23 मात्रा।
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2 2222 12, 2 3 212 = गामीलिणगाबुर (अवतार) = 13+10= 23 मात्रा।
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2 22221 21, 22221 = गामींगुणमींणा (सुजान) = 14+9 = 23 मात्रा।
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S22, 222, 22221 S = केगिणमणमींके (हीर/हीरक) = 6+6+11 = 23 मात्रा।
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22222, 2222, 221 = मेणामिणतण (जग) = 10+8+5 = 23 मात्रा।
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22222, 2222, 1121 = मेणामिणसालण (दृढपद छंद) 10+8+5 = 23 मात्रा।
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212, 222, 222, 22S = रणमादौगीके (मोहन) = 5+6+6+6 = 23 मात्रा।
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2222*2, 22 21= मीदंगीगुण (निश्चल) = 16+7 = 23 मात्रा।
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2222 212, 2222 S = मीरणमीके (उपमान/दृढपद) = 13+10= 23 मात्रा।

"मीरणमादे" से यह छंद कर्णप्रिय लगता है।
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2222 221, 2222 S = मीतणमीके (मदनमोहन) = 13+10 = 23 मात्रा।
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24. मात्रा (अवतारी जाति के छंद)

7*2, 222 112 = डूदंमस  (लीला) = 14+10 = 24 मात्रा।
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121 222, 22222 121 = जामणमेजण (सुमित्र) = 10+14 = 24 मात्रा। (इसका 'रसाल' नाम भी मिलता है।)
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(3 22)*2, 3 2221 = बूगीधुणबूमल (रूपमाला/मदन) = 14+10 = 24 मात्रा। 
(इसका दूसरा बहु प्रचलित रूप) :-
2122*2, 212 221 =  रीदंरातण।
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221 2122, 221 2122 = तारीधण (दिगपाल/मृदु गति) = 12+12 = 24 मात्रा।
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(5 2)*2, 212 1121 = पुगधुणरासंणा (शोभन/सिंहिका) = 14+10 = 24 मात्रा।
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2112*2, 2112*2 = भीदधणा (सारस छंद) = 12+12 = 24 मात्रा।
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2222 21, 3 2 2222 = मीगुणबुगमी (रोला) = 11+13 = 24 मात्रा। 
(2222*3 = 'मीबण' यति 11, 12, 14, 16 पर ऐच्छिक। रोला छंद की इस रूप में भी कई कवि रचना करते हैं।)
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2222, 2222, 2222 = मीथण (मधुर ध्वनि) = 8+8+8 = 24 मात्रा।
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25. मात्रा ( महावतारी के छंद)

1 2122*2, 212 221 = लारीदंरातण (सुगीतिका) = 15+10 = 25 मात्रा।
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1222*2 12, 222S = यीदालिणमाके (मदनाग) = 17+8 = 25 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2221 = गमिदौमंणा (नाग) = 10+8+7 = 25 मात्रा।
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2222 212, 2222 22 = मीरणमीगिण
(मुक्तामणि) = 13+12 = 25 मात्रा।

"मीरणमीदे" में यह छंद कर्णप्रिय है जो कुछ ग्रंथों में विधान के अंतर्गत है।
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2222*2, 22 S1S = मीदणगीरह (गगनांगना) = 16+9 = 25 मात्रा।
(रह का अर्थ रगण वर्णिक रूप में।)
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26. मात्रा (महाभागवत जाति के छंद)

2 2122, 2122, 212 221 = गरिदौरातण (कामरूप) = 9+7+10 = 26 मात्रा।
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2212, 2212, 2212, 221 = तिथतण = (झूलना) = 7 + 7 + 7 + 5 = 26 मात्रा।
(इस छंद को कई साहित्यकार "डूथातण = 7, 7, 7, 221" के रूप में भी सृजन करते हैं)
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2212*2, 2212 221 = तीदंतीतण (गीता) = 14+12 = 26 मात्रा।
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2222*2, 2222 S = मीदंमीके (विष्णुपद) = 16+10 = 26 मात्रा। 'के' संकेतक यह दर्शाता है कि छंदा के अंत में दीर्घ रखना है।
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2222*2, 7 21 = मीदंडूगू (शंकर) = 16+10 = 26 मात्रा।
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27. मात्रा (नाक्षत्रिक जाति के छंद)

1 2122*2, 2122 S1S = लारीदंरीकेलके (शुभगीता) = 15+12 = 27 मात्रा।
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2122*2, 2122 2121 = रीदंरीरंणा (शुद्ध गीता) = 14+13 = 27 मात्रा।
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2222*2, 2222 21 = मीदंमीगुण (सरसी) = 16+11 = 27 मात्रा।
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यह छंद द्वि पदी रूप में रची जाने पर 'हरिपद' छंद कहलाती है।

2222*2, 2222 21 = मीदंमिगुणी (हरिपद) = 16 + 11 = 27 मात्रा।
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28. मात्रा (यौगिक जाति के छंद)

1221 3 221, 2 222 11 SS =  यंबूतणगमलूदे (विद्या) = 14+14 = 28 मात्रा।
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2 2222 2*2, 2 2222 2*2 = गामीगदधण (आँसू) = 14+14 = 28 मात्रा।
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222, 2 2222*2 22 = मणगामिदगी (दीपा) = 6+22 = 28 मात्रा। पदांत में दो दीर्घ (SS) रखने से छंद रोचक होता है।
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2222*2, 2222 22 = मीदंमीगिण (सार) = 16+12 = 28 मात्रा। (इस छंदा को मीदंमीदे रखने से गेयता रोचक होती है।)
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2222*2, 222 SSS = मीदंमाबे (रजनीश) = 16+12 = 28 मात्रा।
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29. मात्रा (महायौगिक जाति के छंद)

2 2222, 2222, 2222 21 = गमिदौमीगुण = (मरहठा) = 10 + 8 + 11 = 29 मात्रा।
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2222 3, 3 2 3, 3 2 21S = मीबुणबुगबुणबुगगूके (मरहठा माधवी) = 11+8+10 = 29 मात्रा।
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2222 2221, 2222 22S = मीमंणामीगीके (धारा) = 15+14 = 29 मात्रा।
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2222*2, 2222 21 S = मीदंमीगूके (प्रदीप) = 16+13 = 29 मात्रा।

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30. मात्रा (महातैथिक जाति के छंद)

2 2222, 2222, 2222 SS = गमिदौमीदे = (चतुष्पदी) = 10+8+12 = 30 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222 2S = गमिदौमिगके = (चौपइया/चवपैया) = 10 + 8 + 12 = 30 मात्रा। '
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2 2222 21, 12221 122 SS = गामीगुणयींयादे (कर्ण) = 13+17 = 30 मात्रा।
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2222, 2222, 2222, 22S = मिथगीके (शोकहर) = 8+8+8+6 = 30 मात्रा। (चारों पद में समतुकांतता अनिवार्य)
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2222*2, 2222 222 = मीदंमीमण (लावणी) = 16+14 = 30 मात्रा।
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2222*2, 2222 2SS = मीदंमिगदे (कुकुभ) = 16+14 = 30 मात्रा।
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2222*2, 2222 SSS = मीदंमीबे (ताटंक) = 16+14 = 30 मात्रा।
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2222 222, 2 2222 22S = मीमणगमिगीके (रुचिरा) = 14+16 = 30 मात्रा।
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31. मात्रा (अश्वावतारी जाति के छंद)

2222*2, 2222 22 21 = मीदंमीगीगुण (आल्हा या वीर) = 16+15 = 31 मात्रा।
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32. मात्रा (लाक्षणिक जाति के छंद)

3 2 2222 21, 3 2 2222 21 = बुगमीगुध (महाश्रृंगार) = 16+16 = 32 मात्रा।।
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2 3 21, 2 3 21, 2 3 21, 2 3 21= गाबूगुथगाबूगू (पल्लवी) = 8+8+8+8 = 32 मात्रा।
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2 22*2, 22*2, 22*2, 22S = गागिदबौगीके = (त्रिभंगी) = 10+8+8+6 = 32 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222 22S = गमिदौमीगीके = (पद्मावती) = 10+8+14 = 32 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222 211S = गमिदौमिभके = (दंडकला) = 10+ 8+14 = 32 मात्रा। 
(यही छंद "गमिदौमोबे" रूप में 'दुर्मिल' के नाम से भी जाना जाता है।)
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2 222, 222, 2222, 2 2222 = गमदौमिणगामी = (खरारी) = 8+6+8+10 = 32 मात्रा।
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2 2222 222, 2 2222 22S  = गामीमणगमिगीके (राधेश्यामी या मत्त सवैया) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2 2222 3 21, 2 2222 3 21 = गमिबूगुध (लीलावती) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2222, 2222, 222, 2 2222 = मिधमणगामी 
(तंत्री) = 8+8+6+10 = 32 मात्रा।
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2222*2, 2222*2 = मीदाधण (32 मात्रिक) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2222*2, 2222 22 S11 = मीदंमीगीकेलू (समान सवैया / सवाई छंद) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2222 2221, 122 2222 SS = मीमंणायामीदे (कमंद) = 15+17 = 32 मात्रा।
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द्विपदी छंद:- (छंदा के अंत में जुड़ा णि या णी इन छंदाओं का मात्रिक स्वरूप तथा द्विपद रूप दर्शाता है।)

2222 22, 2221 = मीगिणमंणी (बरवै) = 12+7 = 19 मात्रा।
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2222 212, 2222 21 = मीरणमिगुणी (दोहा) = 13+11= 24 मात्रा।
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2222 21, 2222 212 = मीगुणमिरणी (सोरठा) = 11+13 = 24 मात्रा।
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2 2222 212, 2222 21 = गामीरणमिगुणी (दोही) = 15+11= 26 मात्रा।
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2222 212, 2222 212 = मीरधणी (उल्लाला) = 13+13 = 26 मात्रा।
2 2222 212, 2222 212 = गामीरणमिरणी (गुरु उल्लाला) = 15+13 = 28 मात्रा।
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2222 212, 2222 21 1211 = मीरणमीगूजंणी (चुलियाला) = 13 + 16 = 29 मात्रा।
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2222 212 = मीरण-त्रिपदा (जनक) = 13 मात्रा। यह तीन पदों की छंद है।
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दण्डक छंद:- 32 से अधिक मात्रा के छंद दण्डक छंद कहलाते हैं। यहाँ कुछ छंद विशेष की छंदाएँ दी जा रही हैं। दण्डक छंदों में प्रायः 3 अंतर्यति पायी जाती है और लगभग समस्त रचनाकारों ने इन तीन यतियों में समतुकांतता निभाई है। इसके अतिरिक्त दो दो पद में पदांत तुकांतता तो रहती ही है।

5*2, 5*2, 5*2, 21SS  = पूदथगूदे =  (झूलना-दंडक) = 10+10+10+7 = 37 मात्रा।
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5 3, 5*2 2, 5 3, 22 1SS = पूबुणपुदगणपूबुणगिलदे =  (करखा-दंडक) = 8+12+8+9 = 37 मात्रा।
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2 5*2, 5*2, 5*2, 5 3 = गापूबौपूबू = (दीपमाला) = 12+10+10+8 = 40 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222, 222, 222S = गमिबौमणमाके = (मदनहर) = 10 + 8 + 8 + 6 + 8= 40 मात्रा।
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5 212, 5 212, 5 212, 5 21 S = पूरथपूगूके = (विजया) = 10+10+10+10 = 40 मात्रा।
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5 221, 5 221, 5 221, 5 S 21 = पूतथपूकेगू = (शुभग) = 10+10+10+10 = 40 मात्रा।
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2 2222, 2 2222, 2 2222, 212 221 = गामिथरातण = (उद्धत) = 10+10+10+10 = 40 मात्रा।
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222*2, 222*2, 222*2, 222 SS = मदथमदे (चंचरीक) = 12 + 12 + 12 + 10 = 46 मात्रा। इसका हरिप्रिया नाम भी मिलता है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Sunday, September 24, 2023

राधेश्यामी छंद "वंचित"

 राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया


ये दुनिया अजब निराली है, सब कुछ से बहुतेरे वंचित।
पूँजी अनेक पीढ़ी तक की, करके रखली कुछ ने संचित।।
जिस ओर देख लो क्रंदन है, सबका है अलग अलग रोना।
अधिकार कहीं मिल पाते नहिं, है कहीं भरोसे का खोना।।

पग पग पर वंचक बिखरे हैं, बचती न वंचना से जनता।
आशा जिन पर जब वे छलते, कुछ भी न उन्हें कहना बनता।।
जिनको भी सत्ता मिली हुई, मनमानी मद में वे करते।
स्वारथ के वशीभूत हो कर, सब हक वे जनता के हरते।।

पग पग पर अबलाएँ लुटती, बहुएँ घर में अब भी जलती।
जो दूध पिला बच्चे पालीं, वृद्धाश्रम में वे खुद पलती।।
मिलता न दूध नवजातों को, पोषण से दूध मुँहे वंचित।
व्यापार पढ़ाई आज बनी, बच्चे हैं शिक्षा से वंचित।।

मजबूर दिखें मजदूर कहीं, मजदूरी से वे हैं वंचित।
जो अन्न उगाएँ चीर धरा, वे अन्न कणों से हैं वंचित।।
शासन की मनमानी से है, जनता अधिकारों से वंचित।
अधिकारी की खुदगर्जी से, दफ्तर सब कामों से वंचित।।

हैं प्राण देश के गाँवों में, पर प्राण सड़क से ये वंचित।
जल तक भी शुद्ध नहीं मिलता, विद्युत से बहुतेरे वंचित।।
कम अस्पताल की संख्या है, सब दवा आज मँहगी भारी।
है आज चिकित्सा से वंचित, जो रोग ग्रसित जनता सारी।।

निज-धंधा करे चिकित्सक अब, हैं अस्पताल सूने रहते।
जज से वंचित न्यायालय हैं, फरियादी कष्ट किसे कहते।।
सब कुछ है आज देश में पर, जनता सुविधाओं से वंचित।
हों अधिकारों के लिए सजग, वंचित न रहे कोई किंचित।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-04-17

Monday, September 18, 2023

भव छंद "जागो भारत"

जागो देशवासी।
त्यागो अब उदासी।।
जाति वाद तोड़ दो।
क्षुद्र स्वार्थ छोड़ दो।।

देश पर गुमान हो।
इससे पहचान हो।।
भारती सदा बढे।
कीर्तिमान नव गढे।।

जागरुक सभी हुवें।
आसमान हम छुवें।।
संस्कृति का भान हो।
भू पे अभिमान हो।।

देश से दुराव की।
बातें अलगाव की।।
लोग यहाँ जो करें।
मुल्य कृत्य का भरें।।

सोयों को जगायें।
आतंकी मिटायें।।
लहु रिपुओं का पियें।
बलशाली बन जियें।।

देश भक्ति रीत हो।
जग भर में जीत हो।।
सुरपुर देश प्यारा।
'नमन' इसे हमारा।।
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भव छंद विधान -

भव छंद 11 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु वर्ण (S) से होना आवश्यक है । यह रौद्र जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। चरणांत के आधार पर इन 11 मात्राओं के दो विन्यास हैं। प्रथम 8 1 2(S) और दूसरा 6 1 22(SS)। 1 2 और 1 22 अंत के पश्चात बची हुई क्रमशः 8 और 6 मात्राओं के लिये कोई विशेष आग्रह नहीं है। परंतु जहाँ तक संभव हो सके इन्हें अठकल और छक्कल के अंतर्गत रखें।
अठकल (4 4 या 3 3 2)
छक्कल (2 2 2 या 3 3)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-05-22

Sunday, September 10, 2023

समस्त श्रेणियों की बहुप्रचलित छंदाएँ

छंदा सागर 

                      पाठ - 17

छंदा सागर ग्रन्थ

"समस्त श्रेणियों की बहुप्रचलित छंदाएँ"


हमने वृत्त छंदा, गुरु छंदा और आदि गण आधारित सात मिश्र छंदाओं के पाठों में अनेक छंदाओं का अवलोकन किया। इन्हीं पाठों से छाँट कर यहाँ कुछ बहुप्रचलित छंदाएँ दी जा रही हैं।

मगणाश्रित छंदाएँ:-

2222*3  222 = मीबम, मिबमण, मिबमव

22212 212 = मूरा, मूरण, मूरव
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तगणाश्रित छंदाएँ:-

2212*2 = तीदा
2212*3 = तीबा
2212*4 = तीचा

221*2 2 = तादग, तदगण, तदगव

2211*3 2 = तंबग, तंबागण, तंबागव (रुबाइयों में प्रचलित)
2211*3 22 = तंबागी, तंबागिण, तंबागिव (बिहारी छंद)

22112 22 22112 22 = तूगीधू, तूगीधुण, तूगीधुव
22112 22 22112 2 = तूगीतुग, तूगीतूगण, तूगीतूगव
22112 2222 = तूमी, तूमिण, तूमिव

22121 22 22121 22 = तींगीधू, तींगीधुण, तींगीधुव
22121 22 22121 2 = तींगीतींगा, तींगीतींगण, तींगीतींगव
22121 211 22121 2 = तींभातींगा, तींभातींगण, तींभातींगव
22122 22 22122 22 = तेगीधू, तेगीधुण, तेगीधुव

22121 212 = तींरा, तींरण, तींरव

2212 22122 22 = तातेगी, तातेगिण, तातेगिव
***

रगणाश्रित छंदाएँ:-

212*3 = राबा, राबण, राबव
212*3 2 = राबग, रबगण, रबगव
212*4 = राचा, राचण, राचव

212*2 +2 21222 = रादगरे, रादगरेण, रादगरेव

212*2 2, 212*2 2 = रदगध, रादगधण, रादगधव

2121 212 2121 212 = रंराधू, रंराधुण, रंराधुव
2121*2 212 = रंदर, रंदारण, रंदारव
2121*3 212 = रंबर, रंबारण, रंबारव


2122*2 = रीदा, रीदण, रीदव
2122*2 212 = रीदर, रिदरण, रिदरव
2122*3 = रीबा, रीबण, रीबव
2122*3 2 = रीबग, रिबगण, रिबगव
2122*3 212 = रीबर, रिबरण, रिबरव
2122*4 = रीचा, रीचण, रीचव

2122 1122*2 22 = रीसिदगी, रीसिदगिण, रीसिदगिव

21221 212 22 = रींरागी, रींरागिण, रींरागिव
21221 122 22 = रींयागी, रींयागिण, रींयागिव

21212 22 21212 22 = रूगीधू, रूगीधुण, रूगीधुव

21222 21221 = रेरिल, रेरीलण, रेरीलव

2122*2 2 212 = रिदगर, रीदगरण, रीदगरव
***

यगणाश्रित छंदाएँ:-

122*3 = याबा, याबण, याबव
122*3 12 = यबली, यबलिण, यबलिव
122*4= याचा, याचण, याचव

1222*2 = यीदा, यीदण, यीदव
1222*2 21 = यिदगू, यिदगुण, यिदगुव
1222*2 122 = यीदय, यिदयण, यिदयव
1222*3 = यीबा, यीबण, यीबव
1222*4 = यीचा, यीचण, यीचव

12222 122 = येया, येयण, येयव

1222 122 = यीया, यीयण, यीयव
1222 122, 1222 122 = यीयध, यियधण, यियधव
***

जगणाश्रित छंदाएँ:-

12112*2 = जूदा, जूदण, जूदव

12122*4 = जेचा, जेचण, जेचव

1212*4 = जीचा, जीचण, जीचव

1212 222 1212 22 = जिमजीगी, जिमजीगिण, जिमजीगिव
12121 122 1212 22 = जींयाजीगी, जींयाजीगिण, जींयाजीगिव
12121 122 12121 122 = जींयाधू, जींयाधुण, जींयाधुव
***

सगणाश्रित छंदाएँ:-

11212*4 = सूचा, सूचण, सूचव

112121 22 112121 22 = सूंगीधू, सूंगीधुण, सूंगीधुव

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Monday, September 4, 2023

सेदोका (कँवल खिलो)

कँवल खिलो
मानव हृदयों में
तुम छोड़ पंक को।
जिससे कभी
तुषार न चिपके
मद की मानव पे।
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शांत सरिता
किनारों में सिमटी
सुशांत प्रवाहिता,
हो उच्छृंखल
तोड़े सकल बांध
ज्यों मतंग मदांध।
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जीवन-मुट्ठी
रिसती उम्र-रेत
अनजान मानव,
सोचता रहा
रेत अभी है बाकी
पर वह जा चुकी।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-04-17