Showing posts with label चंचला छंद. Show all posts
Showing posts with label चंचला छंद. Show all posts

Friday, March 22, 2019

चंचला छंद "बसन्त वर्णन"

छा गयी सुहावनी बसन्त की छटा अपार।
झूम के बसन्त की तरंग में खिली बहार।।
कूँज फूल से भरे तड़ाग में खिले सरोज।
पुष्प सेज को सजा किसे बुला रहा मनोज।।

धार पीत चूनड़ी समस्त क्षेत्र हैं विभोर।
झूमते बयार संग ज्यों समुद्र में हिलोर।।
यूँ लगे कि मस्त वायु छेड़ घूँघटा उठाय।
भू नवीन व्याहता समान ग्रीव को झुकाय।।

कोयली सुना रही सुरम्य गीत कूक कूक।
प्रेम-दग्ध नार में रही उठाय मूक हूक।।
बैंगनी, गुलाब, लाल यूँ भए पलाश आज।
आ गया बसन्त फाग खेलने सजाय साज।।

आम्र वृक्ष स्वर्ण बौर से लदे झुके लजाय।
अप्रतीम ये बसन्त की छटा रही लुभाय।।
हास का विलास का सुरम्य भाव दे बसन्त।
काव्य-विज्ञ को प्रदान कल्पना करे अनन्त।।
===============
लक्षण छंद:-

"राजराजराल" वर्ण षोडसी रखो सजाय।
'चंचला' सुछंद राच आप लें हमें लुभाय।।
===============

"राजराजराल" = रगण जगण रगण जगण रगण लघु
21×8 = 16 वर्ण प्रत्येक चरण में। 4 चरण, 2-2 चरण समतुकांत।
*******************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-12-2016