Showing posts with label राजहंसी छंद. Show all posts
Showing posts with label राजहंसी छंद. Show all posts

Thursday, June 3, 2021

इंदिरा छंद "पथिक"

(इंदिरा छंद / राजहंसी छंद)

तमस की गयी ये विभावरी।
हृदय-सारिका आज बावरी।।
वह उड़ान उन्मुक्त है भरे।
खग प्रसुप्त जो गान वो करे।।

अरुणिमा रही छा सभी दिशा।
खिल उठा सवेरा, गयी निशा।।
सतत कर्म में लीन हो पथी।
पथ प्रतीक्ष तेरे महारथी।।

अगर भूत तेरा डरावना।
पर भविष्य आगे लुभावना।।
रह न तू दुखों को विचारते।
बढ़ सदैव राहें सँवारते।।

कर कभी न स्वीकार हीनता।
जगत को दिखा तू न दीनता।।
सजग तू बना ले शरीर को।
'नमन' विश्व दे कर्म वीर को।।
==============
राजहंसी छंद / इंदिरा छंद विधान:-

"नररलाग" से आप लो बजा।
मधुर 'इंदिरा' छंद को सजा।।

"नररलाग"  =  नगण रगण रगण + लघु गुरु
111 212  212 12,
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत।

"राजहंसी छंद" के नाम से भी यह छंद प्रसिद्ध है।
********************

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-01-19