Saturday, November 27, 2021

पिरामिड "सेवा"


(1)

हाँ 
सेवा,
कलेवा
युक्त मेवा,
परम तुष्टि
जीवन की पुष्टि
वृष्टि-मय ये सृष्टि।
***

(2)

दो 
सेवा?
प्रथम
दीन-हित
कर्म में रत,
शरीर विक्षत?
सेवा-भाव सतत।
***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-07-19

Sunday, November 21, 2021

पुट छंद "रामनवमी"

नवम तिथि सुहानी, चैत्र मासा।
अवधपति करेंगे, ताप नासा।।
सकल गुण निधाना, दुःख हारे।
चरण सर नवाएँ, आज सारे।।

मुदित मन अयोध्या, आज सारी।
दशरथ नृप में भी, मोद भारी।।
हरषित मन तीनों, माइयों का।
जनम दिवस चारों, भाइयों का।।

नवल नगर न्यारा, आज लागे।
इस प्रभु-पुर के तो, भाग्य जागे।।
घर घर ढ़प बाजे, ढोल गाजे।
गलियन रँगरोली, खूब साजे।।

प्रमुदित नर नारी, गीत गायें।
जहँ तहँ मिल धूमें, वे मचायें।।
हम सब मिल के ये, पर्व मानें।
रघुवर-गुण प्यारे, ही बखानें।।
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पुट छंद विधान -

"ननमय" यति राखें, आठ चारा।
'पुट' मधुर रचायें, छंद प्यारा।।

"ननमय" = नगण नगण मगण यगण
111  111  22,2  122 = 12वर्ण, यति 8,4
चार पद दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Thursday, November 18, 2021

मुक्तक (पर्व विशेष-3)

(दिवाली)

दिवाली की बधाई है मेरी साहित्य बन्धुन को,
सभी बहनें सभी भाई करें स्वीकार वन्दन को,
भरे भण्डार लक्ष्मी माँ सभी के प्रार्थना मेरी,
रखें सौहार्द्र नित धारण करें साहित्य चन्दन को।

(1222×4)

दीपोत्सव के, जगमग करें, दीप यूँ ही उरों में।
सारे वैभव, हरदम रहें, आप सब के घरों में।
माता लक्ष्मी, सहज कर दें, आपकी जिंदगी को।
दिवाली पे, 'नमन' करता, मात को गा सुरों में।।

(मन्दाक्रांता छंद)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2016

Sunday, November 14, 2021

गुर्वा (मानव)

भगवन भी पछताये,
शक्तिमान रच मानव,
सृष्टि नष्ट करता दानव।
***

ओस कणों सा है मानव,
संघर्षों की धूप,
अब अस्तित्व करे तांडव।
***

धैर्य धीर धर के निर्लिप्त,
कुटिल हृदय झुँझलाएँ,
कमल पंक में इठलाएँ।
***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-07-20

Friday, November 12, 2021

चामर छंद "मुरलीधर छवि"

गोप-नार संग नन्दलालजू बिराजते।
मोर पंख माथ पीत वस्त्र गात साजते।
रास के सुरम्य गीत गौ रँभा रँभा कहे।
कोकिला मयूर कीर कूक गान गा रहे।।

श्याम पैर गूँथ के कदंब के तले खड़े।
नील आभ रत्न बाहु-बंद में कई जड़े।।
काछनी मृगेन्द्र लंक में लगे लुभावनी।
श्वेत पुष्प माल कंठ में बड़ी सुहावनी।।

शारदीय चन्द्र की प्रशस्त शुभ्र चांदनी।
दिग्दिगन्त में बिखेरती प्रभा प्रभावनी।।
पुष्प भार से लदे निकुंज भूमि छा रहे।
मालती पलाश से लगे वसुंधरा दहे।।

नन्दलाल बाँसुरी रहे बजाय चाव में।
गोपियाँ समस्त आज हैं विभोर भाव में।।
देव यक्ष संग धेनु ग्वाल बाल झूमते।।
'बासुदेव' ये छटा लखे स्वभाग्य चूमते।।
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चामर छंद विधान -

"राजराजरा" सजा रचें सुछंद 'चामरं'।
पक्ष वर्ण छंद गूँज दे समान भ्रामरं।।

"राजराजरा" = रगण जगण रगण जगण रगण
पक्ष वर्ण = पंद्रह वर्ण।

(गुरु लघु ×7)+गुरु = 15 वर्ण

चार चरण दो- दो  या चारों चरण समतुकान्त।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-12-16

Thursday, November 11, 2021

मुक्तक (पर्व विशेष-2)

(रक्षा बंधन)

आज राखी आज इस त्योहार की बातें करें।
भाई बहनों के सभी हम प्यार की बातें करें।
नाम बहनों के लिखें हम साल का प्यारा ये दिन।
आज तो बहनों के ही मनुहार की बातें करें।।

(2122*3  212)
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(दशहरा के पावन अवसर पर)

आज दिन रावण मरा था, ये कथा मशहूर जग में,
दिन इसी से दशहरे की, रीत का है नूर जग में,
हम भलाई की बुराई पे मनाएं जीत मिल कर,
है पतन उनका सुनिश्चित, हों जो मद में चूर जग में।

(2122*4)

लोभ बुराई का दुनिया से, हो विनष्ट जब वास,
राम राज्य का लोगों को हो, मन में तब आभास,
विजया दशमी पर हम प्रण कर, अच्छाई लें धार,
धरा पाप से हो विमुक्त जब, वो सच्चा उल्लास।

(सरसी)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2016

Monday, November 8, 2021

ग़ज़ल (देखली है शानो शौकत)

 ग़ज़ल (देखली है शानो शौकत)

बहर:- 2122  2122  212

देखली है शान-ओ-शौकत आपकी,
देखनी है अब हक़ीक़त आपकी।

झेलते आए हैं जिसको अब तलक,
दी हुई सारी ही आफ़त आपकी।

ट्वीटरों पर लम्बी लम्बी झाड़ते,
जानते सारे शराफ़त आपकी।

दुश्मनों की फ़िक्र नफ़रत देश से,
अब न भाती ये तिज़ारत आपकी।

खानदानी देश की संसद समझ,
हो गई काफ़ी सियासत आपकी।

हर जगह मासूमियत के चर्चे हैं,
हाय अल्लाह क्या नज़ाकत आपकी।

वक़्त अब भी कर दिखादें कुछ 'नमन',
इससे ही बच जाये इज्जत आपकी।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-2018

Sunday, November 7, 2021

ग़ज़ल (हर सू बीमारी नहीं तो)

बह्र:- 2122  2122  2122  212

हर सू बीमारी नहीं तो और क्या है दोस्तो,
ज़िंदगी भारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

रोग से रिश्वत के कोई अब नहीं महफ़ूज़ है,
ये महामारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

सर छुपाने को न छत है, लोग भूखे सो रहे,
मुफ़लिसी ज़ारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

नारियाँ अस्मत को बेचें, भीख बच्चे माँगते,
घोर बेकारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

रहनुमा जिनको बनाया दुह रहे जनता को वे,
उनकी बदकारी नहीं तो और क्या है दोस्तो। 

जो गया है बीत उसको भूल हम आगे बढ़ें,
ये समझदारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

जो वतन को भूल दुश्मन से मिलाये सुर 'नमन',
उनकी मक्कारी नहीं तो और क्या है दोस्तो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-9-19