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Saturday, January 11, 2020

सोरठा "राम महिमा"

मंजुल मुद आनंद, राम-चरित कलि अघ हरण।
भव अधिताप निकंद, मोह निशा रवि सम दलन।।

हरें जगत-संताप, नमो भक्त-वत्सल प्रभो।
भव-वारिध के आप, मंदर सम नगराज हैं।।

शिला और पाषाण, राम नाम से तैरते।
जग से हो कल्याण, जपे नाम रघुनाथ का।।

जग में है अनमोल, विमल कीर्ति प्रभु राम की।
इसका कछु नहिं तोल, सुमिरन कर नर तुम सदा।।

हृदय बसाऊँ राम, चरण कमल सिर नाय के।
सभी बनाओ काम, तुम बिन दूजा कौन है।।

गले लगा वनबास, बनना चाहो राम तो।
मत हो कभी उदास, धीर वीर बन के रहो।।

रखो राम पे आस, हो अधीर मन जब कभी।
प्राणी तेरे पास, कष्ट कभी फटके नहीं।।

सदा रहे आनन्द, रामकृपा बरसे जहाँ।
मन में परमानन्द, माया का बन्धन कटे।।

राम करे उद्धार, दीन पतित जन का सदा।
भव से कर दे पार,  प्रभु से बढ़ कर कौन जो।।

सुध लेवो रघुबीर, दर्शन के प्यासे नयन।
कबसे हृदय अधीर, अब तो प्यास मिटाइये।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-04-19

Sunday, November 10, 2019

सोरठा "कृष्ण महिमा"

नयन भरा है नीर, चखन श्याम के रूप को।
मन में नहिं है धीर, नयन विकल प्रभु दरस को।।

शरण तुम्हारी आज, आया हूँ घनश्याम मैं।
सभी बनाओ काज, तुम दीनन के नाथ हो।।

मन में नित ये आस, वृन्दावन में जा बसूँ।
रहूँ सदा मैं पास, फागुन में घनश्याम के।।

फूलों का श्रृंगार, माथे सजा गुलाल है।
तन मन जाऊँ वार, वृन्दावन के नाथ पर।।

पड़त नहीं है चैन, टपक रहे दृग बिंदु ये।
दिन कटते नहिं रैन, श्याम तुम्हारे दरस बिन।।

हे यसुमति के लाल, मन मोहन उर में बसो।
नित्य नवाऊँ भाल, भव बन्धन सारे हरो।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-04-19

सोरठा छंद 'विधान'

सोरठा छंद

दोहा छंद की तरह सोरठा छंद भी अर्ध सम मात्रिक छंद है। इसमें भी चार चरण होते हैं। प्रथम व तृतीय चरण विषम तथा द्वितीय व चतुर्थ चरण सम कहे जाते हैं। सोरठा में दोहा की तरह दो पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में २४ मात्राएँ होती हैं। सोरठा छंद और दोहा छंद के विधान में कोई अंतर नहीं है केवल चरण पलट जाते हैं। दोहा के सम चरण सोरठा में विषम बन जाते हैं और दोहा के विषम चरण सोरठा के सम। तुकांतता भी वही रहती है। यानी सोरठा छंद में विषम चरण में तुकांतता निभाई जाती है जबकि पंक्ति के अंत के सम चरण अतुकांत रहते हैं।

दोहा छंद और सोरठा छंद में मुख्य अंतर गति तथा यति में है। दोहा में 13-11 पर यति होती है जबकि सोरठा छंद में 11 - 13 पर यति होती है। यति में अंतर के कारण गति में भी भिन्नता रहती है।

मात्रा बाँट प्रति पंक्ति
8+2+1, 8+2+1+2

परहित कर विषपान, महादेव जग के बने।
सुर नर मुनि गा गान, चरण वंदना नित करें।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया