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Tuesday, June 15, 2021

मुक्तक (राजनीति-2)

जो भी सत्ता पा जाता है, दिखता मद में चूर है,
संवेदन से जनता लेकिन, भारत की भरपूर है,
लोकतंत्र को कम मत आँको, हरदम इसका भान हो,
काम करो तो सत्ता भोगो, वरना दिल्ली दूर है।

(16+13 मात्रा)
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प्रथम विरोधी को शह दे कर, दिल के घाव दुखाते हैं,
फिर उन रिसते घावों पर वे, मलहम खूब लगाते हैं,
'फूट डालके राज करो' का, है सिद्धांत पुराना ये,
बचके रहना ऐसों से जो, अपना बन दिखलाते हैं।

(ताटंक छंद आधारित)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-11-18

Saturday, June 13, 2020

मुक्तक (सैनिक, क्रांतिकारी)

सरहद पे जो लड़ते हैं, कुछ याद उन्हें कर लें,
जज़्बात जरा उनके, सीने में सभी भर लें,
जो जान लुटाने में, परवाह नहीं करते, 
हम ऐसे ही वीरों के, चरणों में झुका सर लें।

(221 1222)*2
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क्रांतिकारी वीरों से ही देश ये आज़ाद है,
नौनिहालों से वतन के बस यही फ़रियाद है,
भूल मत जाना उन्हें कुर्बानियाँ जिनने हैं दी,
नित 'नमन' उनको करें जिनसे वतन आबाद है।

जिन शहीदों की अमर गाथा घरों में आज है,
देश का उनके ही' कारण अब सुरक्षित ताज है,
इस वतन पे जिसने भी आँखें गड़ा के हैं रखी,
जान ले वो इस वतन का हर जवाँ जाँबाज है।

(2122*3   212)
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सीमा में घुस कर हम ने दुश्मन को ललकारा है,
खैर नहीं दहशतगर्दों पाकिस्तान हमारा है,
ढूँढ ढूँढ के मारेंगे छुपने का अब ठौर नहीं,
भारत की सेना का ये उत्तर बड़ा करारा है।

(2*14)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-01-17

Thursday, January 16, 2020

मुक्तक (संस्कृति, संस्कार, शिक्षा)

संस्कृति अरु संस्कार हमारे, होते विकशित शिक्षा से,
रहन-सहन, उद्देश्य, आचरण,  हों निर्धारित शिक्षा से,
अंधाधुंध पढ़ाते फिर भी, हम बच्चों को अंग्रेजी,
सही दिशा क्या देश सकेगा, पा इस कलुषित शिक्षा से।

जीवन-उपवन के माली हैं, गुरुवर वृन्द हमारे ये,
भवसागर में डगमग नौका, उसके दिव्य सहारे ये,
भावों का आगार बना कर, जीवन सफल बनाते हैं,
बन्द नयन को ज्ञान ज्योति से, खोलें गुरुजन न्यारे ये।

(ताटंक छंद आधारित)
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चरैवेति का मूल मन्त्र ले, आगे बढ़ते जाएंगे,
जीव मात्र से प्रेम करेंगे, सबको गले लगाएंगे,
ऐतरेय ब्राह्मण ने हमको, अनुपम ये सन्देश दिया,
परि-व्राजक बन सदा सत्य का, अन्वेषण कर लाएंगे।

(लावणी छंद आधारित)
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मुक्तक (समर्पण)

उपकार को जो मानने में मन से ही असमर्थ है,
मन में नहीं यदि त्याग तो जीने का फिर क्या अर्थ है,
माता, पिता, गुरु, देश हित जिसमें समर्पण है नहीं,
ऐसे अधम पशु तुल्य का जीना जगत में व्यर्थ है।

(2212*4)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-11-16

Monday, October 14, 2019

मुक्तक (देश भक्ति)

सभी देशों में अच्छा देश भारतवर्ष प्यारा है,
खिले हम पुष्प इसके हैं बगीचा ये हमारा है,
हजारों आँधियाँ झकझोरती इसको सदा आईं,
मगर ये बाँटता सौरभ रहा उनसे न हारा है।

(1222*4)
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यह देश हमारी माँ, हम आन रखें इसकी।
चरणों में झुका माथा, सब शान रखें इसकी।
इस जन्म-धरा का हम, अब शीश न झुकने दें।
सब प्राण लुटा कर के, पहचान रखें इसकी।

(221 1222)*2
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देश के गद्दार जो हैं जान लो सब,
उनके' मंसूबों को' तुम पहचान लो सब,
नाग कोई देश में ना फन उठाए,
नौजवानों आज मन में ठान लो सब।

देश का ऊँचा करें मिल नाम हम सब,
देश-हित के ही करें बस काम हम सब,
एकता के बन परम आदर्श जग में,
देश को पावन बनाएं धाम हम सब।

(2122*3)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-04-18

Saturday, July 20, 2019

मुक्तक (राजनीति-1)

हम जैसों के अच्छे दिन तो, आ न सकें कुछ ने ठाना,
पास हमारे फटक न सकते, बुरे दिवस कुछ ने माना,
ये झुनझुना मगर अच्छा है, अच्छे दिन के ख्वाबों का,
मात्र खिलौना कुछ ने इसको, जी बहलाने का जाना 

(ताटंक छंद आधारित)
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(फाइव ट्रिलियन अर्थव्यवस्था पर)

आज देश में जहाँ देख लो काले घन मँडराये हैं,
मँहगाई की बारिश में सब जमकर खूब नहाये हैं,
अच्छे दिन का अर्थ व्यवस्था में कुछ छोंक लगाने को,
पंजे पर दर्जन भर जीरो रख अब सपना लाये हैं।

(ताटंक छंद आधारित)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-11-18