Friday, December 29, 2023

हाइकु (प्रकृति)

धूप बटोरे
रात के छिटकाये
दूब पे मोती।
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सुबह हुई
ज्यों चाँद से बिछुड़ी
रजनी रोई।
**

ग्रीष्म फटका
पसीने का मटका
फिर छिटका।
**

गर्मी का जोर
आतंक जैसा घोर
कहाँ है ठोर?
**

सुबह लायी
झोली भर के मोती
धूप ले उड़ी।
**

कुसुम लदी
लता लज्जा में पगी
ज्यों नव व्याही।
**

सावन आया
हरित धरा कर
रंग जमाया।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
28-12-19

Thursday, December 21, 2023

विविध कुण्डलिया

1- नोट-बंदी

होगा अब इस देश में, नोट रहित व्यापार।
बैंकों में धन राखिए, नगदी है बेकार।
नगदी है बेकार, जेबकतरे सब रोए।
घर में जब नहिँ नोट, सेठ अब किस पर सोए।
नोट तिजौरी राख, बहुत सुख सब ने भोगा।
रखे 'नमन' कवि आस, कछु न काला अब होगा।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
15-12-16

2- सच्चा सुख

रखना मन में शांति का, सर्वोत्तम व्यवहार।
पर कायरपन मौन है, लख कर अत्याचार।
लख कर अत्याचार, और भी दह कर निखरो।
बाधाएँ हों लाख, नहीं जीवन में बिखरो।
सच्चे सुख का स्वाद, अगर तुम चाहो चखना।
रख खुद पर विश्वास, धीर को धारे रखना।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-06-19

Monday, December 11, 2023

छंदा सागर "यति और अंत्यानुप्रास"

                    पाठ - 23


छंदा सागर ग्रन्थ


"यति और अंत्यानुप्रास"


इस पाठ में अंत्यानुप्रास तथा यति विषयक चर्चा की जायेगी। हिन्दी के छंदों में यति का अत्यंत महत्व है और इसी को दृष्टिगत रखते हुये जहाँ तक संभव हो सका है इस ग्रन्थ में स्थान स्थान पर यतियुक्त छंदाएँ दी गयी हैं। किसी भी पद का बीच का ठहराव यति कहलाता है। एक सह यति पद से वही बिना यति का पद संरचना और लय के आधार पर बिल्कुल अलग हो जाता है। वाचिक स्वरूप की अनेक छंदाओं में यह आप सबने देखा होगा।

साधरणतया एक पद में मध्य यति और स्वयं सिद्ध पदांत यति के रूप में ये दो ही यतियाँ रहती हैं। पर कुछ छंद विशेष में दो से अधिक यतियाँ भी पद में रहती हैं जिनकी कई छंदाऐँ मात्रिक छंदाओं के पाठ में 'बहु यति छंद' शीर्षक से दी गयी हैं। यदि कोई छंदा यति युक्त है तो वह या तो सम यति होगी या विषम यति। सम यति छंदा में मध्य यति और पदांत यति की मात्राएँ एक समान रहती हैं जबकि विषम यति में अलग अलग। जैसे दोहा विषम यति छंद है, जिसकी मध्य यति 13 मात्रा की है तथा पदांत यति 11 मात्रा की। दो से अधिक यति के छंद बहु यति छंद की श्रेणी में आते हैं। जैसे त्रिभंगी छंद की प्रथम यति 10 मात्रा की, द्वितीय यति 8 मात्रा की, तृतीय यति भी 8 मात्रा की तथा पदांत यति 6  मात्रा की रहती है।  
यति के अनुसार चार प्रकार की छंदाएँ हैं।
सम यति छंदा - दो समान यतियों की छंदा।
विषम यति छंदा - दो असमान यतियों की छंदा।
सम बहु यति छंदा - दो से अधिक समान यतियों की छंदा।
विषम बहु यति छंदा - दो से अधिक असमान यतियों की छंदा। जैसे त्रिभंगी।
यति कभी भी शब्द के मध्य में नहीं पड़नी चाहिए।

अंत्यानुप्रास:-

छंद के वर्णिक विन्यास या मात्रिक विन्यास से उस छंद विशेष के पदों के क्रमागत उच्चारण में समरूपता रहती है। वर्ण वृत्तों में तो पदों के उच्चारण में यह समरूपता अत्यधिक रहती है। इसके साथ साथ यदि पदांत सम स्वर या समवर्ण या दोनों ही रहे तो फिर माधुर्य में चार चांद लग जाते हैं। पदांत की यही समानता अंत्यानुप्रास या तुक मिलाना कहलाती है। हिन्दी भाषा के अधिकांश छंद मात्रिक विन्यास पर आधारित रहते हैं और लगभग सभी छंदो में अंत्यानुप्रास या तुक की अनिवार्यता रहती है। 

पाठकों के लाभ की आशा से इस ग्रन्थ में अंत्यानुप्रास के कुछ नियम निर्धारित किये गये हैं। इसके लिए इससे संबंधित कुछ पारिभाषिक शब्दों को समझना आवश्यक है।

पदांत:- किसी भी छंद के पद का अंत ही पदांत है। सम पदांतता के कुछ नियम हैं जो निम्न हैं।
1- पदों का अंतिम वर्ण मात्रा सहित एक समान रहना चाहिए। इसमें 'है' को 'हे' या 'हैं' से नहीं मिलाया जा सकता, इसी प्रकार 'लो' के स्थान पर 'लौ' भी स्वीकार्य नहीं।
2- नियम 1 के अनुसार मिले वर्ण के उपांत वर्ण में भी स्वर साम्य होना आवश्यक है। चले के साथ खिले, घुले की तुक या सोना के साथ बिछौना की तुक निम्न स्तर की है। चले के साथ तले, पले जैसे शब्द ही आने चाहिए। इस संदर्भ में 
नींद ले,
वे चले।
तुक ठीक है।

किसी भी छंद की तुक दो प्रकार से मिलाई जा सकती है। प्रथम तो पदांत का मिलान कर देना। दूसरे ध्रुवांत के साथ समांत का आना।

ध्रुवांत :- ध्रुव का अर्थ है जो अटल हो। किसी भी छंद का अंत कोई न कोई शब्द से तो होना ही है। अतः ध्रुवांत शब्द की परिभाषा है छंद के पद के अंत के अटल शब्द। उर्दू भाषा का रदीफ़ शब्द इसका समानार्थी है। यह अंत का ध्रुव शब्द एक वर्णी है, हैं, था, थी जैसी सहायक क्रिया या फिर ने, से, में जैसी विभक्ति भी हो सकता है। ध्रुवांत एक शब्द का भी हो सकता है या एक से अधिक शब्दों का भी।

समांत :- केवल ध्रुवांत के मिलने से छंद के पद सानुप्रासी नहीं हो सकते। इसके लिए ध्रुवांत से ठीक पहले ध्वन्यात्मक रूप से एक समान अंत वाले शब्द रहने चाहिए और ऐसे शब्द ही समांत कहलाते हैं। पदांत की तरह इसके भी नियम हैं।
1- समांतता के लिए एक शब्द के अंत में यदि (आ, ई, ऊ, ए, ओ, अं आदि) जैसी दीर्घ मात्रा है तो दूसरे शब्द के अंत में ठीक उसी मात्रा का रहना यथेष्ट है। नदी, ही, की, कोई आदि समांत हैं क्योंकी ई की समांतता है। आया, रोका, मेला समांत हैं।  पुराने, के, पीले समांत हैं।
2- यदि एक शब्द का अंत लघुमात्रिक (अ,इ ,उ,ऋ) है तो समांत मिलाने के लिए यह लघुमात्रिक वर्ण उसी मात्रा के साथ दूसरे शब्द में भी रहना चाहिए। इसके साथ ही इस के उपांत वर्ण का भी स्वरसाम्य रहना चाहिए। जैसे पतन के समांत मन, उपवन, संशोधन आदि हो सकते हैं परन्तु दिन, सगुन आदि नहीं हो सकते। पतन का 'न' लघुमात्रिक है इसलिये 'न' के साथ साथ इसके पूर्व के वर्ण का अकार होना भी आवश्यक है। छवि के समांत रवि, कवि आदि हो सकते हैं।

हिन्दी के अधिकांश छंद चतुष्पदी होते हैं और इनमें क्रमागत दो दो पद समतुकांत रहते हैं। सवैया, घनाक्षरी आदि कुछ ही छंद ऐसे हैं जिनमें चारों पद की समतुकांतता आवश्यक है। इसी प्रकार द्विपदी छंदों के दोनों पद समतुकांत रहते हैं जैसे दोहा, बरवे, उल्लाला आदि। द्वि पदी छंदों में सोरठा इसका अपवाद है जिसमें तुक मध्य यति की मिलायी जाती है। कुछ छंदों में कविगण उस छंद के पद की द्विगुणित रूप में रचना कर तुकांतता दूसरे और चौथे पद की रखते हैं। हिन्दी में मुक्तक भी बहुत प्रचलित हैं जिनके प्रथम, द्वितीय और चतुर्थ पद समतुकांत रहते हैं। हिन्दी में कई बहु यति छंद भी हैं जिन में सम पदांतता रखते हुये प्रथम दो यतियाँ की तुक भी आपस में मिलायी जाती है जैसे चौपइया, त्रिभंगी आदि। यह आभ्यंतर तुक कहलाती है।

हिन्दी में गजल शैली में भी रचना करने का प्रचलन तेजी से बढा है जिसमें ध्रुवांत समांत आधारित तुकांतता रहती है। हिन्दी के छंदों में रचना की प्रत्येक द्विपदी की तुकांतता अपने आप में स्वतंत्र है परन्तु इस शैली में तुकांतता स्वतंत्र नहीं है। प्रथम द्विपदी के आधार पर जो तुकांतता बंध गयी रचना में अंत तक वही निभानी पड़ती है। इस शैली के दो रूप का कुछ नवीन संज्ञाओं और अवधारणा के साथ इसके अगले पाठ में विस्तृत विवरण दिया जायेगा।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
01-05-20

Thursday, December 7, 2023

मनोरम छंद "वीर सैनिक"

पर्वतों का चीर अंचल।
मोड़ नदियों का धरातल।।
बर्फ के अंबार काटें।
जो असमतल भूमि पाटें।।

काट जंगल पथ बनातें।
पाँव फिर सैनिक बढातें।।
दुश्मनों के काल वे बन।
मोरचा ले कर डटें तन।।

ये अनेकों प्रांत के हैं।
वेश, मजहब, जात के हैं।।
देश के ये गीत गाते।
याद घर की सब भुलाते।।

जी हिलाती घाटियों में।
मार्च करते वर्दियों में।।
मस्तियों में नाचते हैं।
साथ मिल गम बाँटते हैं।।

गोलियों की बारिशों में।
तोप, बम्बों के सुरों में।।
हिन्द की सेना सजाते।
बैंड दुश्मन का बजाते।।

देश की पावन धरोहर।
है इन्हीं के स्कंध ऊपर।।
कृत्य इनके हैं अलौकिक।
ये 'नमन' के पात्र सैनिक।।
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मनोरम छंद विधान -

मनोरम छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- S122 21SS या S122 21S11 है। S का अर्थ गुरु वर्ण है। 2 को 11 करने की छूट है पर S को 11 नहीं कर सकते।

यह कुछ सीमा तक 2122*2 की मापनी पर आधारित छंद है। परंतु इस छंद के चरण के प्रारंभ में गुरु वर्ण आवश्यक है। चरणांत यगण (1SS) या भगण (S11) से आवश्यक है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
04-06-22

Friday, November 24, 2023

छंदा सागर "सवैया छंदाए"

                     पाठ - 22


छंदा सागर ग्रन्थ


"सवैया छंदाए"


हिंदी के रीतिकालीन, भक्तिकालीन युग से ही सवैया बहुत ही प्रचलित छंद रहा है। सवैया वर्णिक छंद है जिसमें वर्णों की संख्या सुनिश्चित रहती है। अतः दो लघु के स्थान पर गुरु वर्ण तथा गुरु वर्ण के स्थान पर दो लघु नहीं आ सकते।  प्राचीन कवियों की रचनाओं का अवलोकन करने से पता चलता है कि सवैया में सहायक क्रियाओं (है, था, थी आदि) तथा विभक्ति (का, में, से आदि) की मात्रा गिराना सामान्य बात थी। 

सवैया में यति का कोई रूढ़ नियम नहीं है। सवैया में 22 से 26 वर्ण तक होते हैं और एक सांस में इतने लंबे पद का उच्चारण संभव नहीं होता अतः 10 से 14 वर्ण के मध्य जहाँ भी शब्द समाप्त होता है स्वयंमेव यति हो जाती है। इसलिए यति-युक्त छंदाएँ न दे कर सीधी छंदाएँ दी गयी हैं। 24 वर्णी सवैयों में 12 वर्ण पर यति के साथ की छंदा भी दी गयी है तथा सीधी छंदा भी दी गयी है, यह रचनाकार पर निर्भर है कि किस छंदा में रचना कर रहा है। 

सवैया में एक ही गण की कई आवृत्ति रहती है तथा अंत में कुछ वर्ण या अन्य गुच्छक रहता है। सात की संख्या के लिए 'ड' वर्ण तथा आठ की संख्या के लिए 'ठ' वर्ण प्रयुक्त होता है जिसका परिचय संकेतक के पाठ में कराया गया था। ये वर्ण अ, आ, की मात्रा के साथ प्रयुक्त होते हैं। सवैयों की छंदाएँ ण व स्वरूप संकेतक के बिना ही दी जा रही हैं। अब यह रचनाकार पर निर्भर है कि वह विशुद्ध वर्णिक स्वरूप में रचना कर रहा है या मान्य मात्रा पतन के आधार पर।

'भगण' (211) आश्रित सवैये:- 

211*7 +2 = भाडग (मदिरा सवैया)
211*7 +22 = भडगी  (मत्तगयंद सवैया)
211*7 +21 = भडगू (चकोर सवैया)
211*7 212 = भाडर (अरसात सवैया)
211*8 = भाठा (किरीट सवैया)
211*4, 211*4 = भाचध (किरीट, 12 वर्ण पर यति)
211*4  21122*2 = भचभेदा (मोद सवैया) 
*****

'जगण' (121) आश्रित सवैये:- 

121*7 +12 = जडली   (सुमुखी सवैया)
121*7 122 = जाडय  (बाम सवैया)
121*8 = जाठा  (मुक्ताहरा सवैया)
121*4, 121*4 = जाचध (मुक्ताहरा सवैया यति-युक्त)
121*8 +1 = जाठल (लवंगलता सवैया)
*****

'सगण' (112) आश्रित सवैये:- 

112*8  = साठा  (दुर्मिला सवैया)
112*4, 112*4  = साचध  (दुर्मिला यति-युक्त)
112*8 +2 = साठग  (सुंदरी सवैया)
112*8 +1 = साठल  (अरविंद सवैया)
112*8 +11 = सठलू (सुखी सवैया)
112*8 +12 = सठली  (पितामह सवैया)
*****

'यगण' (122) आश्रित सवैये:- 

122*8 = याठा (भुजंग सवैया)
122*4, 122*4 = याचध (भुजंग सवैया यति-युक्त)
122*7 +12 = यडली  (वागीश्वरी सवैया)
*****

'रगण' (212) आश्रित सवैये:- 

212*8 = राठा   (गंगोदक सवैया)
212*4, 212*4 = राचध (गंगोदक सवैया यति-युक्त)
*****

'तगण' (221) आश्रित सवैये:- 

221*7 +2 = ताडग   (मंदारमाला सवैया)
221*7 +22 = तडगी  (सर्वगामी सवैया)
221*8 = ताठा  (आभार सवैया)
221*4, 221*4 = ताचध (आभार सवैया यति-युक्त)
*****

ऊपर मगण और नगण को छोड़ बाकी छह गण पर आश्रित सभी प्रचलित सवैयों की छंदाएँ दी गयी हैं। भगण की सात या आठ आवृत्ति के पश्चात वर्ण संयोजन से प्राप्त सवैयों की संभावित छंदाएँ देखें-
सात आवृत्ति के पश्चात छह वर्ण के संयोजन से प्राप्त सवैये- भाडल, भाडग, भडगी, भडली, भडगू,भडलू।

आठ आवृत्ति के तथा छह वर्ण के संयोजन से प्राप्त - भाठा, भाठल, भाठग, भठगी, भठली, भठगू,भठलू।

चार आवृत्ति तथा अंतिम दो आवृत्ति में युग्म वर्ण के संयोजन से प्राप्त चार सवैये - भचभेदा, भचभूदा, भचभींदा, भचभोदा।

इस प्रकार मगण नगण को छोड़ छहों गण के 17 - 17 सवैये बन सकते हैं।
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*****

वर्ण-संयोजित सवैये:-

इसी पाठ के अंतर्गत विभिन्न गण आधारित वर्ण-संयोजित सवैयों की छंदाएँ सम्मिलित की गयी हैं जिनमें एक ही गण की आवृत्ति के मध्य विभिन्न वर्ण का संयोजन है। इन सवैया छंदाओं में भी एक ही गण की 6 आवृत्ति है तथा 22 से 26 वर्ण हैं।  कुल वर्ण 6 हैं जिनसे द्वितीय पाठ में हमारा परिचय हो चुका है। इन छंदाओं में इन छहों वर्णों का संयोजन देखने को मिलेगा। ऊपर सवैयों में विभिन्न गणों की सात या आठ आवृत्ति के अंत में इन्हीं वर्ण का संयोजन है पर इन वर्ण संयोजित सवैयों में इन वर्णों का गणों के मध्य में भी संयोजन है और अंत में भी। 

मगण और नगण में केवल एक ही वर्ण दीर्घ या लघु रहता हैं। एक ही वर्ण की आवृत्ति से सवैये की विशेष लय नहीं आती है। सवैया चार पद की समतुकांत छंद है। यहाँ हम भगण को आधार बना कर छंदाएँ दे रहे हैं इसी आधार पर तगण, रगण, यगण, जगण और सगण में भी छंदाएँ बनेंगी।

211*3 +22 211*3 +22 = भबगीधू
(इस छंदा में तीन आवृत्ति के पश्चात इगागा वर्ण के संयोजन के दो खंड हैं। चारों युग्म वर्ण के दोनों स्थानों पर हेरफेर से इस छंदा के 4*4 कुल 16 रूप बनेंगे। 
भबगीधू, भबगीभबली, भबगीभबगू, भबगीभबलू
भबलीधू, भबलीभबगी, भबलीभबगू, भबलीभबलू
भबगूधू, भबगूभबगी, भबगूभबली, भबगूभबलू
भबलूधू, भबलूभबगी, भबलूभबली, भबलूभबगू

इन छंदाओं की मध्य यति की छंदाएँ-
भबगिध, भबगिणभबली, भबगिणभबगू, भबगिणभबलू आदि।
*****

(211*2 +22)*3 22 = भदगीथूगी
(इस छंदा में दो स्थान पर वर्ण संयोजन है और दोनों स्थान पर छहों वर्ण जुड़ सकते हैं। इस छंदा के कुल 36 रूप बनेंगे।
भादलथुल, भादलथुग, भादलथूली, भादलथूगी, भादलथूलू, भादलथूगू।
इसी प्रकार ये छहों छंदाएँ भादग, भदगी, भदली, भदगू तथा भदलू के साथ बनेंगी।
चार युग्म वर्ण संयोजन की बिना अंतिम वर्ण संयोजित किये भी छंदाएँ बनेंगी।
भदगीथू, भदलीथू, भदगूथू, भदलूथू
इस प्रकार इस मेल से 40 वर्ण-संयोजित सवैयों की छंदाएँ बनेंगी।

इन छंदाओं में थू के स्थान पर थ के प्रयोग से त्रियति छंदाएँ बन सकती हैं। जैसे -
211*2 +2, 211*2 +2, 211 2112 22 = भदगथगी (इस छंदा में भादग की यति सहित तीन आवृत्ति के पश्चात गी स्वतंत्र रूप से जुड़ा हुआ है। ऐसा अंत का वर्ण संयोजन अंतिम यति का ही हिस्सा माना जाता है। यही यदि वर्ण के स्थान पर कोई गुच्छक होता तो उसकी स्वतंत्र यति होती। जैसे भादगथर में भादग की तीन यति के पश्चात अंत के रगण की स्वतंत्र यति है।)

इस प्रकार वर्ण-संयोजित सवैयों की श्रेणी में छहों गण की 56 - 56 छंदा संभव है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
30-12-19

Wednesday, November 15, 2023

मनमोहन छंद "राजनीति"

राजनीति की, उठक पटक।
नेताओं की, चमक दमक।।
निज निज दल में, सभी मगन।
मातृभूमि की, कुछ न लगन।।

परिवारों की, छाँव सघन।
वंश वाद को, करे गहन।।
चाटुकारिता, हुई प्रबल।
पत्रकारिता, नहीं सबल।।

लगे समस्या, बड़ी विकट।
समाधान है, नहीं निकट।।
कैसे ढाँचा, सकूँ बदल।
किस विध लाऊँ, भोर नवल।।

आँखें रहती, नित्य सजल।
प्रतिदिन पीता, यही गरल।।
देश भक्ति की, लगी लगन।
रहता इसमें, सदा मगन।।

मन में भारी, उथल पुथल।
असमंजस में, हृदय पटल।।
राजनीति की, गहूँ शरण।
या फिर कविता, करूँ वरण।।

हर दिन पहले, बिखर बिखर।
धीरे धीरे, गया निखर।।
समझा किसका, करूँ चयन।
'नमन' काव्य का, करे सृजन।।
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मनमोहन छंद विधान -

मनमोहन छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत नगण (111) से होना आवश्यक है। इसमें 8 और 6 मात्राओं पर यति अनिवार्य है। यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट अठकल, छक्कल है जिसका अंत 111 से जरूरी है। अठकल में 4 4 या 3 3 2 हो सकते हैं। छक्कल की यहाँ संभावनाएँ:-
3 + नगण (3 = 12, 21 या 111)
2 +1111 (2 = 2 या 11)
211 + 11 (2 = 2 या 11)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
02-06-22

Friday, November 10, 2023

छंदा सागर "कवित्त छंदाएँ विभेद"

                       पाठ - 21


छंदा सागर ग्रन्थ


"कवित्त छंदाएँ विभेद"


(1) मनहरण घनाक्षरी:- "छूचणछुबफग" 

कुल वर्ण संख्या = 31। यहाँ समशब्द आधारित सरलतम छंदा दी गयी है। पिछले पाठ में छू यानी 4 वर्ण के खण्ड के और भी दो रूप बताये गये हैं जिनके प्रयोग से अनेक प्रकार की विविधता लायी जा सकती है। पदान्त हमेशा गुरु ही रहता है।
छूचण = 4×4 (16 वर्ण और यति सूचक ण)
छुब = 4×3
फग = कोई भी दो वर्ण और अंत में दीर्घ।
यति 8-8 वर्ण पर भी "छूदथछूफग" के रूप में रखी जा सकती है।

(2) जनहरण घनाक्षरी:- "नंचणनंबस"

नंचण का अर्थ- नगण के संकेतक में अनुस्वार से 1111 रूप बना। अतः नंचण का अर्थ हुआ 1111*4, 
नंबस- 1111*3 तथा अंत में सगण(112)।
जनहरण कुल 31 वर्ण की घनाक्षरी है जिसके प्रथम 30 वर्ण लघु तथा अंतिम वर्ण दीर्घ। यति 8-8 वर्ण पर 'नंदथनंसा' के रूप में भी रखी जा सकती है।
इसकी रचना में कल संयोजन बहुत महत्वपूर्ण है। 8 वर्ण की यति या तो समवर्ण शब्द पर रखें जिसमें केवल 4 या 2 वर्ण के शब्द होंगे। या फिर 3-3-2 के 3 शब्द रखें। 3-3-2 के प्रथम 3 को 2-1 के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं जबकि बाद वाले 3 को 1-2 वर्ण के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं।

(3) रूप घनाक्षरी:- "छूचणछूबफगू"

फगू का अर्थ कोई भी दो वर्ण तथा उगाल वर्ण (21)। यह 32 वर्ण की घनाक्षरी है। यहाँ समवर्ण आधारित सरल छंदा दी गयी है। इस घनाक्षरी के प्रथम 28 वर्ण ठीक मनहरण घनाक्षरी वाले हैं जो पूर्व पाठ में विस्तार से बताये गये हैं। उन्हीं के आधार पर छूचणछूबा के विभिन्न रूप लिये जा सकते हैं। यति 8-8 वर्ण पर भी "छूदथछुफगू" के रूप में रखी जा सकती है।

(4) जलहरण घनाक्षरी:- "छूचणछूबफलू'

यह भी 32 वर्ण की घनाक्षरी है तथा इस में और रूप घनाक्षरी में केवल अंतिम दो वर्ण का अंतर है। रूप के अंत में उगाल वर्ण (21) है तथा जलहरण के अंत में ऊलल वर्ण (11) है। बाकी 30 वर्ण छूचणछूबफ के रूप में एक समान हैं। इसमें भी यति 8-8 वर्ण पर "छूदथछुफलू" के रूप में रखी जा सकती है।

(5) मदन घनाक्षरी:- "छूचणछूबफगी"

यह भी 32 वर्ण की घनाक्षरी है तथा इस में भी केवल अंतिम दो वर्ण का ही अंतर है। रूप के अंत में उगाल (21) है, जलहरण के अंत में ऊलल (11) तथा मदन में इगागा (22) है। बाकी सब समान हैं। यति 8-8 वर्ण पर "छूदथछुफगी" के रूप में भी रखी जा सकती है।

(6) डमरू घनाक्षरी:- "ठींदध"

'ठीं' का अर्थ है मात्रा रहित 8 वर्ण। इन में संयुक्ताक्षर वर्जित हैं। 'ठी' संकेतक मात्रा रहित 8 वर्ण का है जिसमें संयुक्ताक्षर मान्य हैं। परंतु 'ठीं का अर्थ मात्रा रहित 8 वर्ण का समूह जिसमें संयुक्ताक्षर भी मान्य नहीं हैं। 'द' इस ठीं संकेतक को द्विगुणित कर रहा है तथा अंत में 'ध' इसे दोहराकर दो यति में विभक्त कर रहा है। 

यह घनाक्षरी चार यति में बहुत रोचक होती है जिसकी छंदा "ठींचौ" है। मात्रिक छंदाओं में हम दौ, तौ आदि संकेतक से परिचित हुए थे। इस प्रकार डमरू घनाक्षरी में 32 मात्रा रहित वर्ण होते हैं। यति या तो समवर्ण शब्द पर रखें जिसमें केवल 4 या 2 वर्ण के शब्द होंगे। या फिर 3-3-2 के 3 शब्द रखें। 3-3-2 के प्रथम 3 को 2-1 के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं जबकि बाद वाले 3 को 1-2 वर्ण के दो शब्दों में तोड़ सकते हैं।

(7) कृपाण घनाक्षरी:- "छूदथछुफगू सर्वानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32; 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।  पहले की 6 घनाक्षरियों की छंदाऐँ दो यति की दी गयी थी परन्तु इसकी 4 यति की दी गयी है जो कि अनिवार्य है। 'फगू' का अर्थ कोई भी दो वर्ण तथा उगाल वर्ण (21)। साथ ही इसकी छंदा में सर्वानुप्रासी शब्द जोड़ा गया है। इसके एक पद में 4 यति होती है और कृपाण घनाक्षरी में चारों समतुकांत होनी चाहिए। घनाक्षरी में कुल चार समतुकांत पद होते हैं और इस प्रकार कृपाण घनाक्षरी की 4*4 = 16 यति समतुकांत रहनी चाहिए।

(8) विजया घनाक्षरी:- "छूदथछुफली सानुप्रासी" तथा  "छूदथछूखन सानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32; 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य। पदान्त में सदैव इलगा वर्ण (12) अथवा नगण (111) आवश्यक। पदांत इलगा (12) की छंदा का नाम "छूदथछुफली" और अंत में यदि नगण है तो "छूदथछूखन" नाम है। इसकी छंदा में सानुप्रासी शब्द जोड़ा गया है जिसका अर्थ आंतरिक तीनों यतियाँ भी समतुकांत होनी चाहिए। आंतरिक यतियाँ भी पदान्त यति (12) या (111) के अनुरूप रखें तो उत्तम।

(9) हरिहरण घनाक्षरी:- "छूदथछुफलू सानुप्रासी"

कुल वर्ण संख्या 32 । 8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य। पदान्त में सदैव ऊलल वर्ण (11) आवश्यक। पद की प्रथम तीन यति भी समतुकांत होनी चाहिए।

(10) देव घनाक्षरी:- "छूदथछूफन" - 
कुल वर्ण = 33। 8, 8, 8, 9 पर यति अनिवार्य।
पदान्त में सदैव 3 लघु (111) आवश्यक। यह पदान्त भी पुनरावृत रूप में जैसे 'चलत चलत' रहे तो उत्तम।

(11) सूर घनाक्षरी:- "छूदथछुफ" - यह 30 वर्ण की घनाक्षरी है। 8, 8, 8, 6 पर यति अनिवार्य।
पदान्त की कोई बाध्यता नहीं, कुछ भी रख सकते हैं।

जनहरण और डमरू को छोड़ हर घनाक्षरी के प्रथम 28 वर्ण "छूदथछू" अथवा "छूचणछूबा" के रूप में समान हैं। इसके पिछले पाठ में इन 28 वर्ण की लगभग सभी संभावनाओं पर विचार किया गया है। उन विविध रूपों का इन घनाक्षरियों में भी प्रयोग कर रचना में अनेक प्रकार की विविधता लायी जा सकती है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
3-12-19

Sunday, November 5, 2023

सेदोका (आतंकवाद)

(5 7 7 5 7 7 वर्ण प्रति पंक्ति)

आतंकवाद
गोली या निर्लज्जता? 
फर्क नहीं पड़ता।
करे छलनी
ये एकबार तन
वो रह रह मन।
****

पर्यावरण
चाहे हर जगह
लगे वृक्ष ही वृक्ष।
विकास चाहे
कंक्रीट के जंगल
कट कट के वृक्ष।
****

अमोल नेत्र
जो मरने के बाद
यूँ ही जल जाएंगे।
कर दो दान
किसीको रोशनी दे
खुशियाँ सजाएंगे।
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-04-16

Monday, October 30, 2023

चौपाई छंद "श्रावण-सोमवार"

सावन पावन भावन छाया।
सोमवार त्योहार सुहाया।।
शंकर किंकर-हृदय समाया।
वन्दन चन्दन देय सजाया।।

षटमुख गजमुख तात महानी।
तू शमशानी औघड़दानी।।
भंग भुजंग-सार का पानी।
आशुतोष तू दोष नसानी।।

चंदा गंगा सर पर साजे।
डमरू घुँघरू कर में बाजे।।
शैल बैल पर तू नित राजे।
शोभा आभा लख सब लाजे।।

गरिमा महिमा अति है न्यारी।
पापन-नाशी काशी प्यारी।।
वरदा गिरिजा प्रिया दुलारी।
पाप त्रि-ताप हरो त्रिपुरारी।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
29-07-19

Monday, October 23, 2023

छंदा सागर "कवित्त छंदाएँ"

                      पाठ - 20


छंदा सागर ग्रन्थ


"कवित्त छंदाएँ"


सवैया की तरह हिंदी में कवित्त या घनाक्षरी भी बहुत प्रचलित छंद है। कवित्त सवैया की तरह पूर्णतया गणाश्रित तो नहीं है परंतु वर्णों की संख्या  इसमें भी सुनिश्चित है। संकेतक आधारित पाठ में 'ख', 'फ', 'झ', 'छ' संकेतक से हमारा परिचय हुआ था जिनका कवित्त-छंदाओं में प्रचुर प्रयोग है। ये चारों संकेतक वर्ण की संख्या दर्शाते हैं जो क्रमशः 1, 2, 3, 4 है। यहाँ पुनः प्रत्येक संकेतक को विस्तार से समझाया गया है।

ख या खा :- एक वर्ण का शब्द जो लघु या दीर्घ कुछ भी हो सकता है।

फ या फा :- किसी भी मात्रा क्रम का द्विवर्णी शब्द। इसकी चार संभावनाएं हैं। 11, 12, 21, 22

झु या झू :- घनाक्षरी में यह संकेतक केवल झू या झु के रूप में प्रयुक्त होता है। इसका अर्थ है, तीन वर्ण का शब्द जिसके मध्य में लघु वर्ण हो। इसकी चार संभावनाएँ हैं -  111, 211, 112, 212।

छु या छू :- इसका अर्थ है लघु या दीर्घ कोई भी चार वर्ण जो केवल समवर्ण आधारित शब्द में हों। ये चार वर्ण दो द्विवर्णी शब्द में हो सकते हैं या एक चतुष्वर्णी शब्द में।

कवित्त या घनाक्षरी में मनहरण घनाक्षरी सबसे प्रमुख है और इसी को आधार बना कर यहाँ पर कुछ छंदाएँ प्रस्तुत हैं। घनाक्षरी का संसार अत्यंत विस्तृत है पर इन छंदाओं के आधार पर कोई भी सफल घनाक्षरी का सृजन कर सकता है।

घनाक्षरी में सम तुकांतता के चार पद होते हैं। घनाक्षरी के एक पद में 30 से 33 वर्ण तक होते हैं। इनमें से प्रथम 28 वर्ण के 4 - 4 वर्ण के सात खण्ड रहते हैं जो प्रत्येक घनाक्षरी में आवश्यक हैं। प्रायः घनाक्षरियों में इन 28 वर्ण का एक ही विधान रहता है जिस पर हम चर्चा करने जा रहे हैं। अंतिम खण्ड में घनाक्षरी के विभेद के अनुसार 2 से लेकर 5 वर्ण तक हो सकते हैं। मनहरण के पद के अंतिम खण्ड में 3 वर्ण रहते हैं। इस प्रकार मनहरण के पद में (28+3) कुल 31 वर्ण होते हैं।किसी भी घनाक्षरी के प्रथम 16 वर्ण के पश्चात यति अनिवार्य है। इस प्रकार मनहरण के पद में 16 वर्ण पर प्रथम यति तथा बाकी बचे 15 वर्ण के पश्चात पदांत यति रहती है। यह देखा गया है कि 8 - 8 वर्ण पर यति रखने से रचना में लालित्य की वृद्धि होती है अतः पद में चार यति रख कर रचना करें तो और अच्छा है जो कि कई घनाक्षरियों में तो नियमों के अंतर्गत भी है। ये चार यति 8, 8, 8, तथा बाकी बचे वर्ण पर रहती हैं।

घनाक्षरी की लय सम शब्द पर टिकी हुई है। घनाक्षरी में सबसे अधिक प्रयुक्त होने वाला संकेतक 'छु' या 'छू' है, जिसका अर्थ ऊपर स्पष्ट किया गया है।

घनाक्षरी में विविधता लाने के लिए सम वर्ण शब्द के अतिरिक्त विषम वर्ण शब्द भी रखने आवश्यक हैं। ऐसे विषम वर्ण शब्दों का घनाक्षरी के पद में सफल संयोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है। अतः जहाँ भी विषम वर्ण शब्द आये उसके तुरंत बाद दूसरा विषम वर्ण शब्द लाकर समकल बनाना आवश्यक है। इसकी संभावना के रूप में 3+1, 1+3, 1+1 आदि हैं। इस नियम के अपवाद के रूप में ऐसे दो विषम वर्ण शब्द के मध्य ऊलग (12) वर्ण का शब्द या शब्द आ सकते हैं जैसे दया, चलो आदि। उदाहरणार्थ "जो दया सभी पे करे"।

घनाक्षरी के किसी भी पद की रचना मुख्यतया 4 - 4 वर्णों के सात खण्ड पर आश्रित रहती है। अतः इसका प्रारूप समझना अत्यंत आवश्यक है।

चार वर्ण के खंड के तीन रूप हैं।

(1) 'छू' (2) झुख और (3) गन।

छू की व्याख्या कर दी गयी है।
'झू' की 4 संभावनाऐँ हैं - 111, 112, 211, 212
तथा 'खा' की 1 या 2 के रूप में दो संभावनाऐँ हैं।
झुख को निम्न रूप में भी रखा जा सकता है।
2 121 या 2 122
2 12 1 या 2 12 2 (तीन शब्द)
यह ध्यान में रहना चाहिये कि चार वर्ण के खण्ड का प्रथम वर्ण यदि एक अक्षरी शब्द है तो वह सदैव दीर्घ होना चाहिये।
'गन' अर्थात गुरु वर्ण तथा नगण। जिसका केवल 2 111 एक रूप है।

एक यति खण्ड के 4+4 के दो खण्डों का अष्टवर्णी खण्ड भी बनाया जा सकता है जिसके निम्न दो रूप हैं।
(1) झूलीखफ 
झूलीखफ की अनेक संभावनाऐँ हैं।
'झू' की 4 संभावनाऐँ ऊपर बताई गयी हैं।
'लीख' में 'ली' का अर्थ इलगा वर्ण (12) है, अतः इसके 121 और 122 ये दो रूप बनते हैं।
'फ' के (11, 12, 21, 22) चार रूप हैं।
(2) झूनफ
'न' का अर्थ नगण (111)।

8 वर्ण के यति खण्ड की संभावनाएँ देखें।

(1) छूदा - द्विगुणित 'छू'
(2) झुखधू - 'धू' संकेतक झुख का बिना यति का द्विगुणित रूप दर्शाता है।
(3) गनधू 
(4,5) छूझुख, झुखछू
(6,7) छूगन, गनछू
(8,9) झुखगन, गनझुख
(10) झूलीखफ  
(11) झूनफ

आठ वर्ण की यति उपरोक्त संभावना में से किसी भी संभावना की रखी जा सकती है।

इस प्रकार हमारे पास 8 वर्ण के यति खंड की समस्त संभावनाएं हैं। इन्हीं के आधार पर हम कुछ घनाक्षरी की छंदाएँ बनायेंगे।

छूदथछुर = यह मनहरण घनाक्षरी की 8 वर्ण पर यति की छंदा है। यह छंदा सम वर्णों पर आधारित है तथा सरलतम है। 'छू' संकेतक का अर्थ ऊपर स्पष्ट है। छूद का अर्थ चार चार वर्णों के दो खंड। 8 वर्णों की यति में सम-शब्दों के वर्ण की निम्न संभावनाऐँ बन सकती हैं।
4+4, 4+2+2, 2+4+2, 2+2+4, 2+2+2+2
किसी भी 2 को दो एक वर्णी शब्दों में तोड़ा जा सकता है। पर यदि चार के वर्ण खंड के प्रथम 2 को तोड़ते हैं तो प्रथम शब्द लघु नहीं होगा।
छूदथ का अर्थ हुआ यति के साथ 8 - 8 वर्णों के ऐसे 3 खंड। इसके पश्चात 'छु' का अर्थ फिर चार वर्णों का एक खंड। अंत का 'र' इसमें रगण (212) जोड़ता है। घनाक्षरी वर्ण आधारित संरचना है अतः 212 के किसी भी 2 को ओलल वर्ण यानी 11 में नहीं ले सकते। इस प्रकार इस छंदा का अर्थ हुआ-
8, 8, 8, 4 + (212) कुल 31 वर्ण।
8 में ऊपर वर्णित 11 संभावनाओं में से कोई भी ली जा सकती है। मनहरण में अंत में रगण (212) की विशेष लय आती है। पर विधान के अनुसार अंत में केवल गुरु वर्ण रहना चाहिए। अतः रगण के स्थान पर सगण (112), मगण (222) तथा यगण (122) भी रख सकते हैं।

झूलीखफ-थगनर:- झूलीखफ का अर्थ ऊपर स्पष्ट किया गया है।  'झूलीखफ' की तीन यति और अंत में गनर। झूलीखफ को छूझुख, झुखधू आदि से बदल कर छंदाओं के अनेक रूप बनाए जा सकते हैं।

छूगनथा-झूखय; 
गनझू-खथछुम
आदि विविध रूप की कई छंदाऐँ बन सकती हैं।

अब पद में केवल दो यति की छंदा:-

छूझूलिखफाछुण-छूझूलिखफर:-

इसमें अनेक संभावनाएं हैं। उनमें से उदाहरणार्थ एक रूप यह भी बन सकता है।
गाल लगा - गालगा लगाल गाल - ललगागा,
लगा गाल - गालल लगागा गागा गालगा।

'छुण' का अर्थ सम-वर्ण शब्द आधारित कोई भी चार वर्ण और यति।

छूझूलिखफझुखण-गनझुनफर:-

ऊपर चार वर्णी खंड तथा 8 वर्णी यति के कई संभावित रूप बताये गये हैं। घानाक्षरी के विविध पद तथा यति खंडों में इन रूप को अदल बदल कर अनेक प्रकार की विविधता से युक्त मनहरण घनाक्षरी का सृजन संभव है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-11-19

Monday, October 16, 2023

मधुमालती छंद "पर्यावरण"

पर्यावरण, मैला हुआ।
वातावरण, बिगड़ा हुआ।।
कोई नहीं, संयोग ये।
मानव रचित, इक रोग ये।।

धुंआ बड़ा, विकराल है।
साक्षात ये, दुष्काल है।।
फैला हुआ, चहुँ ओर ये।
जग पर विपद, घनघोर ये।।

पादप कटें, देखो जहाँ।
निर्मल हवा, मिलती कहाँ।।
मृतप्राय है, वन-संपदा।
सिर पर खड़ी, बन आपदा।।

दूषित हुईं, सरिता सभी।
भारी कमी, जल की तभी।।
मिलके तुरत, उपचार हो।
देरी न अब, स्वीकार हो।।

हम नींद से, सारे जगें।
लतिका, विटप, पौधे लगें।।
होकर हरित, वसुधा खिले।
फल, पुष्प अरु, छाया मिले।।

कलरव मधुर, पक्षी करें।
संगीत से, भू को भरें।।
दूषित हवा, सब लुप्त हों।
रोगाणु भी, सब सुप्त हों।।

दूषण रहित, संयंत्र हों।
वसुधा-हिती, जनतंत्र हों।।
वातावरण, स्वच्छंद हो।
मन में न कुछ, दुख द्वंद हो।।

क्यों नागरिक, पीड़ा सहें।
बन जागरुक, सारे रहें।।
बेला न ये, आये कभी।
विपदा 'नमन', टालें सभी।।
***********

मधुमालती छंद विधान -

मधुमालती छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। इसमें 7 - 7 मात्राओं पर यति तथा पदांत रगण (S1S) से होना अनिवार्य है । यह मानव जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 पद होते हैं और छंद के दो दो या चारों पद सम तुकांत होने चाहिए। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 2212, 2S1S है। S का अर्थ गुरु वर्ण है। 2 को 11 करने की छूट है पर S को 11 नहीं कर सकते।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
05-06-22

Sunday, October 8, 2023

छंदा सागर "वर्णिक छंद छंदाएँ"

                    पाठ - 19


छंदा सागर ग्रन्थ


"वर्णिक छंद छंदाएँ"


वर्णिक छंदों की विरासत हिंदी को संस्कृत साहित्य से प्राप्त हुई है। वर्णिक छंदों का अपना विशिष्ट महत्व है जिनमें लघु गुरु के क्रम सहित वर्ण सुनिश्चित रहते हैं। जब वर्ण सुनिश्चित हैं तो मात्राऐँ स्वयंमेव सुनिश्चित रहती हैं। 

वर्णिक छंदाओं में दो से अधिक लघु वर्ण का एक साथ प्रयोग प्रचुरता से होता है। इन छंदों में श्रृंखलाबद्ध लघु वर्ण का प्रयोग रचना में विविधता लाने के लिये किया जाता है। मात्रिक छंदाओं में समकल और विषमकल का प्रचुर प्रयोग हम देख चुके हैं। पर वर्णिक स्वरूप में कल के आधार पर मात्राओं में लोच संभव नहीं। क्योंकि इनमें ठीक प्रदत्त वर्णविन्यास के अनुसार रचना करना आवश्यक है। वर्णिक छंदों में इस कमी को लघु वर्णों के प्रयोग से दूर किया जाता है। 

जिन गणक में दो से अधिक लघु वर्ण एक साथ हैं वे निम्न हैं और इन गणक का इन छंदाओं में प्रचुर प्रयोग है।
1112 - ईनग 'नी'
11122 - एनागग 'ने'
11112 - ऊनालग 'नू'
11111 - ओनालल 'नो'
21112 - ऊभालग 'भू'
इनके अतिरिक्त नगण (111) तथा अंनल (1111) का भी प्रचुर प्रयोग इन छंदाओं में होता है। अंनल का संकेतक 'नं' है। कहीं कहीं अंभल (2111) 'भं' तथा ओभालल (21111) 'भो' का भी प्रयोग है।

वर्णिक छंदों में जहाँ भी तीन लघु एक साथ आते हैं वे त्रिकल का काम करते हैं। इन्हें 'नकल' 12 के रूप में, तथा 'भयानक लगे' 21 दोनों रूप में प्रयोग किया जा सकता है।

चार लघु को भी आवश्यकतानुसार 
22 - मधुरिम, 1 12 - खूब मधुर, 12 1 - मधुर बड़ा, 1 2 1 - खूब मृदु लगे आदि किसी भी रूप में लिया जा सकता है। जवकि दो गुरु का केवल 22 रूप - मीठा आदि ही संभव है।

1111*2 यह अठकल का काम करता है। जिसे 4+4, 3+3+2, 2+3+3 आदि अनेक रूप में तोड़ा जा सकता है।

शास्त्रों में मात्रिक छंदों की तरह ही वर्णिक छंदों को भी उन में प्रयुक्त वर्ण संख्याओं के आधार पर एक एक विशिष्ट नाम देकर वर्गीकृत किया गया है। इस पाठ में कोष्टक में वह शास्त्र वर्णित नाम दिया गया है।  26 वर्ण प्रति पद तक के वर्णिक छंद सामान्य वर्ण वृत्त की श्रेणी में आते हैं तथा इससे अधिक के छंद दण्डक वर्णिक छंदों की श्रेणी में आते हैं। यहाँ आधार कम से कम 4 वर्ण प्रति पद रखा गया है जो कि किसी भी छंदा के लिये आवश्यक है।

वर्णिक छंदाओं के अंत में व या वा संकेतक का प्रयोग छंदा का वर्णिक स्वरूप दर्शाने के लिये होता है। यदि छंदा में दो से अधिक लघु एक साथ हैं तो 'व' 'वा' संकेतक का प्रायः लोप है क्योंकि इसे हम वर्णिक स्वरूप का द्योतक मान कर चल रहे हैं। जबकी मात्रिक छंदाओं में इक्के दुक्के स्थान पर दो से अधिक लघु वर्ण एक साथ आये हैं तो वहाँ अंत में ण णा संकेतक का प्रयोग है।

4:- (प्रतिष्ठा वृत्त)

1111 = नंकव (हरि)
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1112 = नीकव (सती/तरणिजा)
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1121 = संकव (पुंज)
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1211 = जंकव (धर/हरा)
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1221 = यंकव (उषा)
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2111 = भंकव (निसि)
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2121 = रंकव (धारि)
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2211 = तंकव (कृष्ण/वपु)
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2221 =  मंकव (धार/तारा)
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5:- (सुप्रतिष्ठा वृत्त)

11111 = नोकव (यमक/यम)
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11112 = नूकव (करता)
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11121 = नींकव (भजन)
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11211 = सोकव (नायक)
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6:- (गायत्री वृत्त)

111*2 = नद (दमन)
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111 122 = नय (शशिवदना/ चंडरसा)
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121 112 = जस (अपरभा)
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121*2 = जादव (शुभमाल/मालती)
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211*2 = भादव (राजीव)
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211 222 = भामव (अम्बा)
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221*2 = तादव (मंथन/ज्योति)
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221 122 = तायव (तनुमध्या)
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221 112 = तासव (वसुमती)
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7:- (उष्णिक् वृत्त)

111*2 2 = नादग (मधुमती)
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1111 121 = नंजा (करहंस)
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1111 211 = नंभा (सुवास)
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1112 122 = नीया (मनोज्ञा)
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1122 122 = सीयव (हंसमाला)
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112*2 2 = सदगावा (सुमाला)
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1211 122 = जंया (कुमारललिता)
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1212 111 = जीना (शारदी)
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2111 212 = भंरव (धुनी)
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2112 212 = भीरव (लीला)
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211*2 2 = भदगावा (तपी)
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2121 212 = रंरव (रक्ता/समानिका)
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2211 222 = तंमव (भक्ति)
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2212 221 = तीतव (सूर)
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2221 122 = मंयव (मदलेखा)
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2222 222 = मीमव (शिष्या)
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8:- (अनुष्टुप् वृत्त)

1111*2 = नंदा (मलयज)
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111*2 12 = नदली (कुसुम)
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111*2 22 = नदगी (तुंग/तुरंग)
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11111 212 = नोरा (पद्म/कमल)
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1112*2 = नीदा (गजगति)
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11121 212 = नींरा (नाराचिका)
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11211 112 = सोसा (विमलजला)
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11212 122 = सूयव (ईश/अनघ)
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12112 211 = जूभव (रामा)
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21211 222 = रोमव (गाथ)
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2121*2 = रंदव (मल्लिका/समानी)
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212*2 21 = रदगूवा (लक्ष्मी)
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212*2 22 = रदगीवा (पद्ममाला)
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211*2 22 = भदगीवा (चित्रपदा)
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21121 211 = भींभव (विपुला)
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21121 222 = भींमव (विज्ञात)
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2112 2111 = भीभल (मानवक्रीडा)
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22121 222 = तींमव (विभा)
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22121 212 = तींरव (नाराचिका)
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2211*2 = तंदव (रामा)
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22211 122 = मोया (हंसरुत)
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2221, 2221= मंधव (वापी)
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9:- (वृहती वृत्त)

111*2 112 = नादस (रतिपद/कमला)
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111*2 222 =  नादम (स्यामा)
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111*2 2, 22 =  नदगणगी (भुजंगशिशुसुता/युक्ता)
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11111 2122 = नोरी (बिंब)
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11112 1122 = नूसी (अमी)
----

11112 2112 = नूभी (सारंगिक)
----

111 122*2 = नायद (श्याम)
----

111 121 212 =  नाजर (बुदबुद)
----

111 221, 212 = नातणरा (कामना)
----

112 121 212 = सजरावा (भुजंगसंगता)
----

112 121 222 = सजमावा (विजात)
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121*2 122 = जदयावा (महर्षि)
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121 122*2 = जयदावा (भुआल)
----

211 122*2 = भायद (निवास)
----

211*3 = भाबव (शुभोदर)
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21122 2112 = भेभिव (मणिमध्या)
----

212, 111 112 = रणनारा (हलमुखी)
----

212 111 212 = रानर (भद्रिका)
----

222 112*2 = मसदावा (रत्नकरा/रलका)
----

222 211 112 = माभस (पाईता/पवित्रा)
----

222 221 121 = मतयावा (वर्ष)
----

10:- (पंक्तिः वृत्त)

11112, 11112 = नूधा (अमृतगति/त्वरितगति)
----

111 212, 1212 = नारणजी (मनोरमा/सुन्दरी)
----

112*3 1 = सबलावा (गूजरी)
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112*3 2 = सबगावा (मेघवितान/ वेगवती/कीर्ति)
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112 121 1122 = सजसी (सिंहनाद)
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211 111*2 2 = भनदागा (कुसुमसमुदिता)
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211*3 2 = भबगावा (सारवती)
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211*2, 2222 = भादंमीवा (बिंदु)
----

2112 221 212 = भीतारव (दीपकमाला)
----

211 222 2112 = भमभीवा (पावक)
----

21122, 21122 = भेधव (चंपकमाला/रुक्मवती)
----

2121*2 22 = रंदागिव (मयूरसारिणी/मयूरी)
----

212*3 2 = रबगावा (बाला)
----

22, 112*2 12 = गीणा-सदलीवा (उपस्थिता)
----

22, 11222 112 = गीणासेसव (वामा)
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2211 112*2 = तंसद (चन्द्रमुखी)
----

2212, 121 122 = तीणाजायव (धरणी)
----

2212 121*2 = तीजादव (सेवा)
----

222 1121 212 = मासंरव (शुद्ध विराट)
----

2221 111 222 = मंनम (कुबलयमाला)
----

22211, 11222 = मोणासेवा (पणव/पंडव)
----

2222, 111 122 = मीणानय (मत्ता)
----

2222 111 112 = मीनस (हंसी)
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11:- (त्रिष्टुप् वृत्त)

1111*2 112 = नंदस (दमनक)
----

1111, 1111 222 = नंणा-नंमा (वृत्ता)
----

1111*2 222 = नंदम (रथपद)
----

111*2 21212 = नदरू (सुभद्रिका)
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11112 112*2 = नूसद (सुमुखी)
----

1111 211, 2222 = नंभणमी (बाधाहारी)
----

111 122, 21122 = नायण-भेवा (अनवसिता)
----

111 212*2 12 = नारदली (राजहंसी)

(कहीं कहीं इसका नाम "इंदिरा छंद" भी मिलता है।)
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11122 212*2 = नेरद (शिवा)
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11211, 112 222 = सोणा-सामव (हित)
----

112*3 11 = सबलूवा (शील)
----

112*3 22 = सबगीवा (गगन)
----

112*2, 11212 = सीदं-सूवा (उपचित्र)
----

1122*2 112 = सीदासव (सायक)
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11222 211 112 = सेभस (विमला)
----

121 112, 22122 = जासण-तेवा (उपस्थित)
----

1212*2 122 = जीदायव (विलासिनी)
----

121 221 12122 = जतजेवा (उपेन्द्रवज्रा)
----

122*3 12 =  यबलीवा (भुजंगी)
----

1222 122, 2122 = यीयण-रीवा (सुमेरु)
----

211*2 21222 = भदरेवा (रोचक)
----

211*3 12 = भबलीवा (कली)
----

211*3 22 = भबगीवा (दोधक)
----

2112 2111 121 = भीभंजा (सांद्रपद)
----

21122, 111 122 = भेणानय (अनुकूला)
----

2121 112*2 2 = रंसादग (स्वागता)
----

212 111 21212 = रनरू (रथोद्धता)
----

2121*2 212 = रंदारव (श्येनिका)
----

21212, 111 212 = रूणानर (द्रुता)
----

2122, 212*2 2 = रीणा-रदगावा (शाली)
----

2211 211*2 2 = तंभदगावा (मोटनक) 
----

22112 112 122 = तूसायव (उपस्थिता) 
----

22121 112*2 = तींसद (चपला)
----

221*2 12122 = तदजेवा (इन्द्रवज्रा)
----

221*2,  22122 = तादं-तेवा (विध्वंकमाला/ग्राहि)
----

22211, 111 122 = मोणानय (माता)
----

222 112, 11112 = मासणनू (मयतनया)
----

2222, 111*2 2 = मीणा-नादग (भ्रमरविलासिता)
----

2222, 1122 122 = मीणा-सीयव (वातोर्मि)
----

2222 212*2 2 = मीरदगावा (शालिनी) (यति के साथ मीणा-रदगावा)
----

222*2, 12212 = मादं-यूवा (भारती)
----

22222, 222*2 = मेणा-मादव (माली)
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12:- (जगती वृत्त)


111*4 = नाचा (तरलनयन)
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111*2 2, 11212 = नदगणसू (उज्ज्वला)
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111*2 212 121 = नदराजा (निवास)
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111*2 21, 2212 = नदगुणती (मंदाकिनी, चंचलाक्षिका)
----

111*2 222 112 = नदमासा (राधारमण)
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111*2 22, 2122 = नदगिणरी (पुट)
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111*2 222 212 = नदमारा (ललित)
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1111 122, 21121 = नंयणभीला (साधु)
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11111 2121 212 = नोरंरा (वासना)
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11111 2122 112 = नोरीसा (तारिणी)
----

11112 112*2 1 = नूसादल (मोतिमहार)
----

11112 112*2 2 = नूसादग (तामरस)
----

111 121, 121 212 = नाजण-जारा (वरतनु)
----

1111 211, 21212 = नंभणरू (मालती/यमुना)
----

11112 121, 1122 = नूजणसी (नवमालिनी/नवमालिका)
----

111 122 111 121 = नयनाजा (रमेश)
----

111 122, 111 122 = नायध (कुसुमविचित्रा)
----

111 122, 211 112 = नायण-भासा (मानस)
---

11112 211*2 2 = नूभादग (नभ)
----

1112 111*2 22 = नीनदगी (द्रुतपद)
----

1112*2 1122 = निदसी (मुरारी)
----

1112, 1112, 1212 = नीदौजी (प्रियवंदा)
----

1112 112*2 12 = नीसदली (द्रुतविलंबित/सुन्दरी)
----

111 212 111 122 = नरनाया (सुमति)
----

1112, 211*2 22 = नीणा-भदगी (श्रीपद)
----

11211 1122 112 = सोसिस (गिरिधारी)
----

112 121 112*2 = सजसादा (प्रमिताक्षरा)
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1122, 111*2 12 = सीणा-नदली (रति)
----

121 112, 121 112 = जासध (जलोद्धतगति)
----

121*4 = जाचव (मौक्तिकदाम)
----

121*3 122 = जबयावा (धारी)
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121 221 121 212 = जतजारव (वंशस्थ) 
----

122*3 121 = यबजावा (शैल)
----

1222*2 1221 = यिदयंवा (शास्त्र)
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211 112, 111 122 = भासणनाया (मदनारी)
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2111 121 21112 = भंजाभू (दान)
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211*4 = भाचव (मोदक)
----

2111*2 2112 = भंदाभी (सौरभ)
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21122, 111*2 2 = भेणा-नादग (पवन)
----

21122 211*2 2 = भेभदगावा (ललना)
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211 222, 112 222 = भामण-सामव (कांतोत्पीड़ा)
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212 11121 1112 = रानींनी (चंद्रवर्त्म)
----

2122*2 2121 = रिदरंवा (केहरी)
----

221 11121 1112 = तानींनी (सुरसरि)
----

221 121*2 212 = ताजदरावा (इंद्रवंशा)
----

221*4 = ताचव (सारंग/मैनावली)
----

22112 112*2 2 = तूसदगावा (गौरी)
----

221 122, 221 122 = तायाधव (मणिमाला)
----

221 211 121 212 = तभजारा (ललिता)
----

2212, 1122, 1211 = तीणा-सिणजालव (बनमाली)
----

2212 112, 22121 = तीसण-तींवा (भीम)
---

221*2 121 212 = तदजारव (इंद्रवंशा)
---

2212 222, 22122 = तीमण-तेवा (वाहिनी)
----

222 211 212 122 = मभरायव (पुंडरीक)
----

2222, 11112 222 = मीणानुम (जलधरमाला)
----

22222, 212*2 2 = मेणा-रदगावा (वैश्वदेवी)
----

2222*2,  2112 = मीदंभिव (भूमिसुता)
----

13:- (अति जगती वृत्त)

1111*2 21122 = नंदाभे (चंडी)
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111*2 1212 212 = नदजीरा (क्षमा)
----

111*2 212, 2122 = नदरणरी (पुष्पमाला)
----

111*2 2, 212*2 = नदगण-रादा (चंद्रिका/उत्पलिनी)
----

111 112, 212*2 2 = नासण-रादग (चन्दरेखा)
----

11112 11212 122 = नूसूया (मृगेन्द्रमुख)
----

112*4 2 = सचगावा (तारक)
----

(112 121)*2 2 = सजधूगव (मंजुभाषिणी/सुनंदिनी)
----

112 121 112*2 2 = सजसादग (कलहंस)
----

121 2111 121 212 = जाभंजर (रुचिरा)
----

122*4 1 = यचलावा (कंद)
----

122*4 2 = यचगावा (कंदुक)
----

12222, 21111 112 = येणाभोसा (सुरेन्द्र)
----

122 222, 212*2 2 = यामणरादग (चंचरीकावली)
----

2111 111 211*2 = भंनाभद (पंकजवाटिका/कंजावलि)
----

2121*3 2 = रंबागव (राग)
----

2122*2, 21222 = रीदंरेवा (राधा)
----

2212, 111 121 212 = तीणा-नाजर (रुचि/प्रभावती)
----

221 122, 1222 222 = तायण-यीमव (त्राता)
----

222, 1111 212 122 = माणा-नंरय (प्रहर्षिणी)
----

2222 2112*2 2 = मीभीदागव (मत्तमयूर छंद)
----

2222, 2112*2 2 = मीणा-भिदगावा (माया)
----

22222, 122, 22222 = मेणा-यणमेवा (विलासी)
----

14:- (शर्करी वृत्त)


1111*2, 111 122 = नंदण-नाया (सुपवित्रा)
----

(111*2 2)*2= नादगधू (प्रहरणकलिका)
----

111*2 2, 2112 122 = नदगण-भीया (नदी)
----

111*2 2, 212*2 2 = नदगण-रादग (नान्दीमुखी)
----

111*2 2, 121*2 2 = नदगण-जादग (अपराजिता)
----

11112 121, 112 122 = नूजण-साया (कुमारी)
----

11112 121 112*2 = नूजासद (प्रमदा)
----

(111 212)*2 12 = नरधूली (ललितकेसर)
----

112, 112 121, 21212 = सणसाजण-रूवा (मंगली)
----

112*4 11 = सचलूवा  (मनोरम)
----

11212, 111 121 212 = सूणा-साजर  (सुदर्शना)
----

(112 121)*2 22 = सजधूगी  (प्रबोधनी)
----

11212, 111 212*2 = सूणा-नारद (मंजरी)
----

1122, 111*2 2222 = सीणा-नदमी (कुटिल)
----

1122*2, 111 122 = सीदं-नाया (प्रतिभा)
----

1212*3 12 = जिबलीवा (अनंद)
----

2111 111, 111*2 2 = भंनण-नादग (चक्र) 
----

2111*3 22 = भंबागी (इंदुवदना)
----

2211*2 2, 21122 = तंदागण-भेवा (बिहारी)
----

22121 112*2 122 = तींसादय (वसंततिलका)
----

22121 112, 112 121 = तींसण-साजा (मुकुंद)
----

2212 122, 2212 122 = तीयाधव (दिगपाल) (यह छंद मात्रिक स्वरूप में भी प्रचलित है।)
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22211*2 1122 = मोदासी (रेवा)
----

222 1122, 222 1122 = मासीधव (अलोला)
----

2222, 111*2 2222 = मीणा-नदमी (मध्यक्षामा)
(यह छंद "मीनदमी" रूप में हंसश्येनी कहलाता है।)
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2222 111*2 2212 = मीनदती (चन्द्रौरसा)
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22222 111*2 222 = मेनादम (असबंधा) 
----

222 221, 1112 222 = मातण-नीमा (वासन्ती)
----

15:- (अतिशर्करी वृत्त)

111*2, 111*2 112 = नादण-नादस (शशिकला/चन्द्रावती/मणिगुण)
----

111*2 22, 212*2 2 = नदगीणा-रादग (मालिनी)
----

111*2 22, 121*2 2 = नदगीणा-जादग (उपमालिनी)
----

111 112 111 212*2 = नसनारद (विपिनतिलका)
----

1111 212 11121 212 = नंरानींरा (प्रभद्रिका/सुखेलक)
----

11112, 1211 121 212 = नूणा-जंजर (अतिरेखा) 
----

1121*2 221 1121 = संदतसंवा (दीपशिखा)
----

11212, 111*2 1122 = सूणा-नदसी (एला)
----

112 122 112, 112 122 = सायासण-सायव (ऋषभ)
----

1122 112, 2112*2 = सीसण-भीदव (मोहिनी)
----

1122 112, 211*2 22 = सीसण-भदगीवा (मंगल)
----

21111 112, 1121 112 = भोसण-संसा (पावन) = 15 वर्ण।
----

2111*3 212 = भंबर (निशिपाल) 
----

21122, 111 122, 2221 = भेणा-नायणमल (निश्चल)
----

2112 211 112, 21122 = भीभासणभे (दीपक)
----

21122 2112, 112*2 = भेभिण-सादव (भाम)
----

2121 112*3 12 = रंसबली (रमणीयक)
----

2121*3 212 = रंबारव (चामर)
----

212*2 2, 22112 122 = रदगण-तूयव (चन्द्रकांता)
----

2122*3 212 = रीबारव (सीता)
----

2212*3 221 = तीबातव (गीता)
----

22112 121, 2112 212 = तूजण-भीरव (कुंज)
----

2222 122, 221*2 22 = मीयण-तदगीवा (चंद्रलेखा)
----

22222, 112 122 1121 = मेणा-सयसंवा (धाम)
----

2222*2, 212*2 2 = मीदं-रदगावा (चित्रा)
----

16:- (अथाष्टिः वृत्त)

1111*4 = नंचा (अचलधृति)
----

1111 212 111 212*2 = नंरानारद (गरुड़रुत)

(यही छंद 'नंरानारय' रूप में  "वाणिनी" कहलाती है।)
----

1111 212 122, 112*2 = नंरायणसद (मणिकल्पलता)
----

1112, 11121 121, 1212 = निणनींजणजी (मंगलमंगना)
----

112 1111*2, 11122 = सानंदणने (रतिलेखा)
----

121*2, 211*3 2 = जादं-भबगावा (घनश्याम)
----

122 222, 1111 122*2 = यामण-नंयद (प्रवरललिता)
----

2121*4 = रंचव (ब्रह्मरूपक/चंचला)
----

211*5 2 = भपगावा (नील/अश्वगति)
----

21111 222, 22211 112 = भोमण-मोसा (चकिता)
----

2112 121, 111*2 112 = भीजण-नादस (ऋषभ गजविलसिता)
----

21121 211121 21112 = भिलभूंभू (धीरललिता)
----

211 212 122, 111*2 2 = भारायण-नादग (वरयुवती)
----

22212 122, 11212 112 = मूयण-सूसव (प्रीतिमाला)
----

2222, 111 112, 221 112 = मीणा-नासण-तासा (मदनललिता)
----

17:- (अथात्यष्टिः वृत्त)

111*2 2, 111 122, 1212 = नदगण-नायणजी (घनमयूर)
----

111 112, 2222, 121*2 2= नासण-मीणा-जादग (हरिणी)
----

111 112 121, 11212 212 = नसजाणासुर (मालाधर)
----

1111 212 111, 212 1112 = नंरानणरानी (समुदविलासिनी)
----

11112 121, 112*3 = नूजणसाबा (नर्दटक/नर्कुटक)
----

1111 212, 111 211*2 2 = नंरण-नभदागा (कोकिल)
----

1111 221, 121 111*2 2 = नंतण-जनदागा (रसना)
----

112*2 1212, 1112 122 = सदजीणा-नीया (अतिशायिनी)
----

112*3 1, 121*2 2 = सबलण-जदगावा (सारिका)
----

11222, 21122, 2222 222 = सेणा-भेणा-मीमव (तरंग)
----

1211 1212, 111 212*2 =  जंजिण-नारद (पृथ्वी)
----

1212*4 1 = जीचालव (भालचंद्र)
----

1222, 111 112, 121*2 2 = यीणा-नासण-जादग (कांता)
----

122 222, 1111 122 1112 = यामण-नंयानी  (शिखरिणी)
----

21121 21112, 111*2 2 = भींभुण-नादग (वंशपत्रपतिता)
----

21122, 21122, 2112 221 = भेधाभीतव (शूर)

212 112*4 12 = रासचलीवा (पुटभेद)
----

2222, 111 112, 121*2 2 = मीणा-नासण-जादग (भाराक्रांता)
----

2222, 111 112, 212*2 2 = मीणा-नासण-रादग (मंदाक्रांता)
----

2222, 111 112, 221*2 2 = मीणा-नासण-तादग (हारिणी)
----

2222 22211, 22112 222 = मीमोणा-तूमव (मंजारी)
----

18 :- (अथधृतिः वृत्त)


1111,1111 21122, 21122 = नंणानंभेणाभे (पंकजमुक्ता)
----

111*2 2122, 11212 212 = नदरीणासुर (लता)
----

11112 112, 11112 21121 = नूसण-नूभिल (अनुराग)
----

1111 212 1112, 1212 212 = नंरानिण-जीरा (नंदन)
----

111 122, 2222, 22211 222 = नायणमिण-मोमा (प्रज्ञा)
----

1112 121 122,  22111 222 = नीजायण-तोमा (मान)
----

112*3 1, 21111 212 = सबलणभोरा (केतकी)
----

11212 1122, 11212 1121 = सूसिण-सूसालव   (सिद्धिका)
----

12122, 121 112, 2112 221 = जेणा-जासण-भीता (अचल)
----

122 222, 111 112, 221 112 = यामण-नासण-तासा (सुधा)
----

21111*2, 21111 212 = भोदंभोरा (हीर)
----

211*5 112 = भापस (तीव्र)
----

211*3 21, 1211 112 = भबगुण-जंसा (मणिमाला)
----

21211*3 212 = रोबारव (हरनर्तक)
----

21211 212, 11212*2 = रोरण-सूदव (चंचरी/चर्चरी)
इसीका दूसरा प्रचलित रूप "रोबारव" है।

(यही 'रोरण-सुणसूवा' में "हरनर्तन" कहलाती है।
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2212 11212, 11212 1121 = तीसुण-सूसालव (शारद)
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2211 11212, 212*3 = तंसुण-राबव (लालसा)

(यही 'नदरण-राबव' में "नाराच/महामालिका" कहलाती है।)
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22211 212, 11212, 11212 = मोरण-सुणसूवा (हरिणिप्लुता)
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222 112 121 112, 221 112 = मसजासण-तासा (शार्दूल ललिता)
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2222, 111*2 2, 212*2 2 = मीणा-नदगण-रादग (चित्रलेखा)
(यही 'मीणा-नदगण-तादग' में "केसर" कहलाती है)
(यही 'मीणा-नदगण-जादग' में "चला" कहलाती है)
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22222, 111 112, 212*2 2 = मेणा-नासण-रादग (कुसुमित लता वेल्लिता)

(यही 'मेणा-तायण-रादग' में "सिंहविस्फूर्जिता" कहलाती है।)
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222*2 211, 222 112 222 = मादाभण-मसमावा (मंजीरा)
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19:- (अथातिधृतिः वृत्त)

11212*2 11, 2121 121 = सुदलूणा-रंजव (मणिमाल)
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11211 1122, 111 122 1112 = सोसिण-नयनी (तरल)
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11222, 1122 211, 222*2 2 = सेणा-सीभण-मदगावा (शम्भू)
----

12111, 12111, 12111, 1212 = जोथाजी (वरूथिनी)
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1211 1212, 1112, 2212 112 = जंजिण-नीणा-तीसव (समुद्रतता)
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121 112, 12111,  21211 122 = जासण-जोणा-रोयव (रतिलीला)
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122 222, 111 112,  212*2 2 = यामण-नासण-रादग (मेघविस्फूर्जिता)

(यही 'यामण-नासण-तादग' में "छाया" कहलाती है।)
(यही 'यामण-नासण-जादग' में "मकरंदिका" कहलाती है।)
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211 111 121, 2111 211*2 = भानाजण-भंभद (रसाल) = 19 वर्ण।
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22, 2112 222, 112*2 2221 = गीणाभीमण-सदमालव (गिरिजा)
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222 112 121 112, 221*2 2 = मसजासण-तादग (शार्दूलविक्रीडित)
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2222 122, 111 112, 221 112 = मीयण-नासण-तासा (सुमधुरा)
----

2222 122, 111*2 2, 21112 = मीयण-नदगणभू (सुरसा)
----

22222, 111*2 2, 212*2 2 = मेणा-नदगण-रादग (फुल्लदाम)

(यही 'मेणा-नदगण-तादग' में "बिम्ब" कहलाती है।)
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20:- (अथकृतिः वृत्त)

111*4, 111*2 21 = नाचंनदगू (भृंग)
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11112, 11112, 11112, 11112 = नूचौ (मदकलनी)
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11212*2 11, 21211 212 = सुदलूणा-रोरव (गीतिका/मुनिशेखर)
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1122 112121 112, 221*2 2 = सीसूंसण-तादग (मत्तेभविक्रीड़ित)
----

122 222, 111*2 2, 212*2 2 = यामण-नदगण-रादग (शोभा)
----

211, 111 122, 111*2 21212 = भणनायण-नदरू (दीपिकाशिखा)
----

2121*5 = रंपव (वृत्त)
----

2211*2 22, 1121 212 221 = तंदागिण-संरातव (सरिता)
----

2222 122, 111*2 2, 221 112 = मीयण-नदगण-तासा (सुवदना)
----

2222 122, 111 112, 212*2 2 = मीयण-नासण-रादग (सुवंशा)
----

21:- (अथप्रकृतिः वृत्त)

1111 212 1112, 112*2 1212 = नंरानिण-सदजी (सरसी)
----

11112 122, 21122, 211*2 21 = नूयणभेणा-भदगू (हरिहर)
----

21111*2, 21111, 21111 2 = भोदं-भोणाभोग (धर्म)
----

211*4, 211*2 222 = भाचं-भदमावा (अहि)
----

21121 21111 111,  21221 122 = भींभोनण-रींया (नरेन्द्र/समुच्चय)
----

211*3 2, 1121 111 1122 = भबगण-संनासी (मनविश्राम)
----

2222 122, 111*2 2, 212*2 2 = मीयण-नदगण-रादग (स्त्रग्धरा)

सूयण-नदगण-रादग ('महास्त्रग्धरा' 22 वर्ण का एक वृत्त)
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22:- (अथsकृतिः वृत्त)

112*2 1212, 1122 11212 122 = सदजिण-सीसूयव (वसन्तमालिका)
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2112, 121 112, 121 112, 121 112 = भीणा-जसबौ (भद्रक)
----

22211 2212, 11222, 11211 112 = मोतिण-सेणासोसव (लालित्य)
----

2222*2,111*4 22 = मीदण-नचगी (हंसी)
----

23:- (अथविकृतिः वृत्त)

1111 211*3, 211*3 2 = नंभाबण-भाबग (कनकमंजरी)
----

1111 211*6 2 = नंभाटग (शैलसुता)
----

1111 212 1112, (121 112)*2= नंरानिण-जसधू (आद्रितनया/अश्वललित)
----

2222*2, 11111, 111*3 2 = मीदंनोणा-नाबग (मत्ताक्रीड़ा)
----

24:- (अथसंस्कृतिः वृत्त)

21122, 111*2 2, 211*2 111 122 = भेणानदगण-भदनाया (तन्वी)
----

25:- (अथतिकृतिः वृत्त)

21122, 21122, 1111*2, 111*2 2 = भेदौनंदण-नदगा (क्रौंच)

26:- (अथोत्कृतिः वृत्त)

111 122, 111 122, 1111*2, 111 122 = नायध-नंदणनाया (मकरंदा)
----

2111 111, 2111 111, 2111 111, 21122 =  भंनथभे (रंजन)
----

2222*2, 111*3 12, 121*2 2 = मीदण-नाबालिण-जादग (भुजंगविजृम्भित)
----

31:-

2121*4, 2121*3 212 = रंचणरंबारव (कलाधर)
----

32:-

1212*8 = जीठव (अनंगशेखर)
****
****

अर्ध समपद वर्ण वृत्त:- जैसे मात्रिक छंदों में दोहा, सोरठा, उल्लाला आदि अर्ध समपद मात्रिक छंद हैं वैसे ही वर्ण वृत्त में भी अर्ध समपद वर्ण वृत्त होते हैं। अर्धसम छंदों में पद क्रमांक एक दो का जो विधान रहता है, पद क्रमांक तीन चार का भी वही विधान रहता है। पर इन दोनों विभाग के चरणों का विधान एक दूसरे से अलग रहता है। जैसे दोहा में प्रथम चरण में 13 मात्राएँ रहती हैं और दूसरे चरण में 11 मात्राएँ रहती हैं। अर्ध समपद छंद द्विपदी के रूप में लिखे जाते हैं और मात्रिक छंदों में दोनों चरण अर्ध विराम से एक दूसरे से अलग रहते हैं जबकि वर्णिक छंदों के चरण पूर्ण विराम चिन्ह से। द्विपदी स्वरूप दर्शाने के लिये मात्रिक छंदों की छंदाओं में अंत में ण के स्थान पर णी जोड़ा जाता वैसे ही वर्णिक छंदों में व के स्थान पर वी जोड़ा जाता है। वर्ण वृत्त के प्रथम चरण और द्वितीय चरण के अंत्याक्षर एक समान हों तो इन दोनों चरण की तुक मिलाई जाती है अन्यथा चरण एक और तीन तथा चरण दो और चार की तुक मिलाई जाती है।

111*2 21212, 1111 211 21212 = नदरूणा-नंभारूवी (अपरवक्त्र) 11, 12 वर्ण
----

111*2 212 122, 1111 211 212 122 =
नदरायण-नंभारयवी (पुष्पिताग्र) 12, 13 वर्ण
----

112*2 1122, 2 112*2 1122 = सदसिण-गासदसीवी (वेगवती) 10, 11 वर्ण
----

112*2 1212, 1122 112 1212 = सदजीणा-सिसजीवी (वियोगिनी/वैतालीय) 10, 11 वर्ण
----

112*3 12, 1112 112*2 12 = सबलीणा-नीसदलीवी (हरिणप्लुता) 11, 12 वर्ण
----

112121 1122, 2 112121 1122 = सूंसिण-गासूंसीवी (केतुमती) 10, 11 वर्ण
----

211*3 22, 1111 211*2 22 = भबगीणा-नंभदगीवी (द्रुतमध्या) 11, 12 वर्ण
----

2211 212 122, 2 2211 212 122 = तंरायण-गातंरयवी (भद्रविराट) 10, 11 वर्ण
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221*2 12122, 121 221 12122 = तदजेणा-जतजेवी (आख्यानिकी) 11, 11 वर्ण
****

112*3 12, 211*3 22 = सबलीणा-भबगीवी (उपचित्र) 11, 11 वर्ण
----

2121*3, 1212*3 2 = रंबण-जीबगवी (यवमती) 12, 13 वर्ण

"यवमती" पुकार:-

"शूलधारिणी महेश्वरी प्रचंड। निशुंभ और शुंभ की विनाशकारी।।
शत्रु को करो विदार खंड खंड। समस्त भक्त की सदैव पीड़ हारी।।

मात अंबिका धरो कराल वेश। सभी यहाँ निशंक आज आततायी।।
माँ पुकारता तुझे समस्त देश। सदैव तू रही अपार शांतिदायी।।"
****

4 1222, 4 1212 = छायिण-छाजीवी (अनुष्टुप) 8, 8 वर्ण (छ या छा संकेतक का अर्थ है चार वर्ण जिनमें लघु दीर्घ का कोई भी क्रम हो सकता है।)
******
******

वर्ण विषम छंद:- छंद के चारों पद विषम होते हैं। जिन पद का अंत समान होता है, उनकी तुक मिला दी जाती है। रचना चतुष्पदी के रूप में होती है। संकेतक अंत में 'वू' के रूप में है।

112 121 1121, 
1111 121 212, 
2121 112*2, 
(112 121)*2 2 = सजसंणा-नंजारण-रंसादण-सजधुगवू (सौरभक)

"सौरभक" चाह:-

"यह चाह एक मन माँहि।
हृदय बस कृष्ण में रहे।।
नित्य जीभ घनश्याम कहे।
मन श्याम नाम रस-धार में बहे।।"
----

222 1121 212 1122, 
11211 11212 122, 
(111*2 112)*2,
1111*2 112*2 2
मासंरासिण-सोसूयण-नदसाधुण-नंदासदगावू (वर्द्धमान)
****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Wednesday, October 4, 2023

हाइकु (ये बालक कैसा)

अस्थिपिंजर
कफ़न में लिपटा
एक ठूँठ सा।

पूर्ण उपेक्ष्य
मानवी जीवन का
कटु घूँट सा।

स्लेटी बदन
उसपे भाग्य लिखे
मैलों की धार।

कटोरा लिए
एक मूर्त ढो रही
तन का भार।

लाल लोचन
अपलक ताकते
राहगीर को।

सूखे से होंठ
पपड़ी में छिपाए
हर पीर को।

उलझी लटें
बरगद जटा सी
चेहरा ढके।

उपेक्षित हो
भरी राह में खड़ा
कोई ना तके।

शून्य चेहरा
रिक्त फैले नभ सा
है भाव हीन।

जड़े तमाचा
मानवी सभ्यता पे
बालक दीन।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-07-2016

Friday, September 29, 2023

छंदा सागर (मात्रिक छंद छंदाएँ)

छंदा सागर 
                      पाठ - 18


छंदा सागर ग्रन्थ


"मात्रिक छंद छंदाएँ"


इस पाठ से हम हिंदी की छांदसिक छंदाओं के विस्तृत संसार में प्रविष्ट हो रहे हैं। संकेतक के पाठ में हमारा विभिन्न संकेतक से परिचय हुआ था, जिनमें से कई अब तक की छंदाओं में प्रयुक्त नहीं हुये थे, पर अब छांदसिक छंदाओं में उनका प्रयोग होगा। अब तक की छंदाओं में दो से अधिक लघु का एक साथ प्रयोग नहीं हुआ था और ऐसे दोनों लघु स्वतंत्र लघु माने जाते थे। परन्तु हिंदी छंदों में स्वतंत्र लघु की अवधारणा नहीं है। हिंदी छंदों में अक्सर दो से अधिक लघु एक साथ प्रयोग में आते हैं और वे स्वतंत्र लघु या शास्वत दीर्घ दोनों  ही रूप में प्रयुक्त हो सकते हैं।

हिंदी के मात्रिक छंदों में प्रति चरण मात्रा तो सुनिश्चित रहती है, परन्तु वर्णों की संख्या प्रतिबंधित नहीं है। इन छंदों में गुरु वर्ण को दो लघु में तोड़ा जा सकता है। परन्तु किसी गुच्छक में यदि दो लघु वर्ण साथ साथ आये हैं तो उन्हें गुरु नहीं कर सकते, उन्हें दो लघु के रूप में ही रखना होगा। हिंदी छंदों में स्वतंत्र लघु की अवधारणा नहीं है अतः दो लघु एक ही शब्द में हो या दो विभिन्न शब्दों में, कोई अंतर नहीं पड़ता। 

हिंदी छंदों में यति का बहुत महत्व है।  छंदाओं में यति या तो 'ण' या 'णा' संकेतक से दर्शायी जाती है अथवा संख्यावाचक संकेतक में अनुस्वार का प्रयोग करके जैसे दं बं आदि से। कई हिंदी छंदों में गुरु या गुरु वर्णों को दीर्घ रूप में रखा जाता है। इसके लिये छंदा के यदि अंतिम गुरु को दीर्घ रूप में रखना है तो हम छंदा के अंत में 'के' जोड़ देते हैं। दो दीर्घ के लिये 'दे' जोड़ा जाता है और तीन दीर्घ के लिये 'बे' जोड़ा जाता है। कुछेक छंदा में 'के' का प्रयोग छंदा के आदि या मध्य में भी हुआ है।

इन छंदाओं के अंत में ण या णा संकेतक का प्रयोग छंदा का मात्रिक स्वरूप दर्शाने के लिये होता है। परन्तु छंदा में यदि विषमकल द्योतक बु, पु, डु, वु का प्रयोग है तो ण णा संकेतक का लोप भी है क्योंकि ये विषमकल द्योतक संकेतक केवल मात्रिक स्वरूप में ही प्रयोग में आते हैं। छंदा में के, दे, बे तथा दौ और बौ संकेतक का प्रयोग होने से भी ण णा संकेतक का लोप है।

मात्रिक छंद प्रायः समकल आधारित रहते हैं। अतः इन छंदाओं में ईमग (2222) और मगण (222) तथा ईगागा (22) और गुरु (2) वर्ण की प्रधानता रहती है। इन छंदाओं पर काव्य सृजन कल विवेचना के पाठ में वर्णित नियमों के आधार पर होता है। गुरु छंदाओं की तरह ही इन छंदाओं के नामकरण में भी अठकल अर्थात ईमग गणक को प्राथमिकता दी गयी है। हिंदी छंदों में मात्रा पतन मान्य नहीं है। सभी छंदाओं में कोष्टक में छंद का नाम दिया गया है।

छंद में प्रयुक्त मात्रा संख्याओं के आधार पर प्रत्येक छंद की शास्त्रों में जाति निर्धारित की गयी है। इस पाठ में हिन्दी में प्रचलित मात्रिक छंदों की छंदाएँ जाति के आधार पर वर्गीकृत की गयी हैं। 32 मात्रा तक के छंद सामान्य जाति छंदों की श्रेणी में आते हैं तथा इससे अधिक मात्रा के छंद दण्डक मात्रिक छंदों की श्रेणी में आते हैं। यहाँ आधार कम से कम 7  मात्रा सुनिश्चित किया गया है। 7 से कम मात्रा के छंद विशेष महत्व नहीं रखते।

7. मात्रा (लौकिक जाति के छंद)

5 S = पूके (सुगति/शुभगति) = 7 मात्रा।
====

8. मात्रा (वासव जाति के छंद)

22 121 = गीजण या 3 1121 बूसल  (छवि/मधुभार) = 8मात्रा।

====

9. मात्रा (आँक जाति के छंद)

22221 = मींणा (निधि) = 9 मात्रा।
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5 SS =  पूदे (गंग) = 9 मात्रा।
====

10. मात्रा (दैशिक जाति के छंद)

5, 5 = पूधा (एकावली) = 10 मात्रा।
(5*2 यह छंद पूदा रूप में भी प्रचलित है।)
----

2211 121 = तंजण (दीप) = 10 मात्रा।
====

11. मात्रा (रौद्र जाति के छंद)

8 1S = मीलिण या 6 1SS = मलदे (भव)
 = 11 मात्रा।
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2121 212 = रंरण = (शिव) = 11 मात्रा।
----

22 3 121 = गीबुज  या  22211 21 = मोगुण (अहीर) = 11 मात्रा।
====

12. मात्रा (आदित्य जाति के छंद)

9 12 =  वूली (नित छंद) = 12 मात्रा।
----

1 22 22 21 = लागिदगुण (तांडव) = 12 मात्रा।
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2222 121 = मीजण (लीला) = 12 मात्रा।
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2 7 21 = गाडूगुण (तोमर) = 12 मात्रा।
====

13. मात्रा (भागवत जाति के छंद)

2222, S1S = मिणकेलके/मिणराहू (चंडिका/धरणी) = 8+5 = 13 मात्रा
----

2222 212  = मीरण (चंद्रमणि) = 8+5 = 13 मात्रा
----

2222 3 2 =  मीबुग (प्रदोष) = 13 मात्रा। (इस छंद का दूसरा रूप 'बुगमी' = 3 2 2222 भी प्रचलन में है।)
====

14. मात्रा (मानव जाति के छंद)

1222 1222 =  यीदण (विजात) = 7+7 = 14 मात्रा।
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2 5, 22 111 =  गापुणगीना (सरस छंद) = 7+7 = 14 मात्रा।
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S 1222 122 = केयीयण (मनोरम) = 14 मात्रा।
----

2 7 212 = गाडूरण (गुरु तोमर) = 14 मात्रा।
----

2 2222 SS = गमिदे (कुंभक) = 14 मात्रा।
----

(22 21)*2 = गीगूधुण = (सुलक्षण) = 14 मात्रा।
----

22*2 211S = गीदभके (हाकलि) = 14 मात्रा।
----

22*2 2SS = गिदगादे (सखी) = 14 मात्रा।
----

2222 222 = मीमण (मानव) = 14 मात्रा।
----

2222 3 21 =  मीबूगू (कज्जल) = 14 मात्रा।
----

2222 3 111 =  मीबूनण (मनमोहन) = 14 मात्रा।
====

15. मात्रा (तैथिक जाति के छंद)

3 2 2222 S = बुगमीके (गोपी) = 15 मात्रा
----

22 222 SS1 = गिमदेला (पुनीत) = 15 मात्रा।
----

2222 2*2 21 = मीगदगुण (चौपई, जयकरी) = 15 मात्रा।
----

2222, 22 1S = मिणगिलके (चौबोला ) = 15 मात्रा।
----

2222 2 S1S = मिगकेलके (उज्ज्वला) = 15 मात्रा।
----

2222 3 121 = मीबुज (गुपाल/भुजंगिनी) = 15 मात्रा।
====

16. मात्रा (संस्कारी जाति के छंद)

11 2222 211 S = लूमीभाके (सिंह) = 16 मात्रा।
(द्विगुणित रूप में यह छंद 'कामकला' छंद कहलाता है। यथा 'लूमीभाकेधा' 16, 16 = 32 मात्रा)
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3 2 2222 21 = बुगमीगू (श्रृंगार) = 16 मात्रा।
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2 2222 222 = गामीमण (पदपादाकुलक) = 16 मात्रा।
----

22*4 = गीचण (पादाकुलक) = 16 मात्रा।
----

2 2222 2211 = गमितालण (अरिल्ल) = 16मात्रा।
(2222 21 1SS = मीगुलदे (अरिल्ल) इस छंद का यह विधान भी मिलता है।)
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2 2222 3 1S = गामीबुलके (सिंह विलोकित) = 16 मात्रा।
----

2 2222 2 121 = गमिगाजण (पद्धरि) = 16 मात्रा।
(कहीं कहीं इसी छंद का अन्य नाम पज्झटिका भी मिलता है।)
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2222 22*2  = मीगीदण (चौपाई) = 16 मात्रा।
(चौपाई के अंत में चौकल रहना चाहिए। अनेक छंदाओं की प्रथम यति में चौपाई रहती है जहाँ यह मीदा रूप = 2222*2 में रहती है।
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2222 22211 = मीमोणा (डिल्ला) = 16 मात्रा।
----

2222 S 22S = मीकेगीके (पज्झटिका/उपचित्रा) = 16 मात्रा।
====

17. मात्रा (महासंस्कारी जाति के छंद)

5*2 3 SS  = पुदबूदे (बिमल) = 17 मात्रा।
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9, 31SS = वूणाबुलदे (राम) = 17 मात्रा।
====

18. मात्रा (पौराणिक जाति के छंद)

9*2 = वूदा (राजीवगण) = 18 मात्रा।
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122*3 12 = यबलिण (शक्ति) = 18 मात्रा।
----

2 2222*2 = गामीदण (कलहंस) = 18 मात्रा।
----

2221, 1 2222 S = मंणालमिके (पुरारी) = 7+11 = 18 मात्रा।
----

22222, 22121 = मेणातींणा (बंदन) = 10+8 = 18 मात्रा।
====

19. मात्रा (महापौराणिक जाति के छंद)

3 2 22, 222 SS = बूगागिणमादे (दिंडी) = 19 मात्रा।
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122*3 121 = यबजण (सगुण) = 19 मात्रा
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1222*2 122 = यीदायण = (सुमेरु) = 19 मात्रा

(इस छंद के मध्य यति के रूप भी मिलते हैं जो:-
1222 122, 2122 = यीयणरीणा
122 212, 22122 = यारणतेणा हैं।)
अंत के 22 को SS में रखने से छंद कर्ण मधुर होता है।
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212 221, 2221 S = रातणमंके = (पियूषवर्ष) = 10+9 = 19 मात्रा।
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2122*2 212 = रीदारण = (आनन्दवर्धक) = 19 मात्रा।
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2122 212, 221 S = रीरणताके = (ग्रंथि) = 12+7 = 19 मात्रा।
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2 2222 22, 111S = गामीगिणनाके (नरहरि) = 14+5 = 19 मात्रा।
----

2222*2 21 = मीदागुण (तमाल) = 19 मात्रा।
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20. मात्रा (महादैशिक जाति के छंद)

5, 5*3 =  पुणपूबा (कामिनीमोहन या मदनअवतार) = 5+15 =20 मात्रा।
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5*3 S1S = पुबकेलके (हेमंत) = 20 मात्रा।
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5, 5, 5 21S = पूदौपूगूके (अरुण) = 5+ 5+10 = 20 मात्रा।
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9 12, 22 121  = वूलिणगीजा (मंजुतिलका) = 12+8 = 20 मात्रा।
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1222*2 1221 = यिदयंणा = (शास्त्र) = 20 मात्रा
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2222*2 SS = मिददे (मालिक) = 20 मात्रा।
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2222 21, 3 2SS   = मीगुणबुगदे (सुमंत) = 11+9 = 20 मात्रा।
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2222 22, 3 1SS = मीगिणबुलदे (योग) = 12+8 = 20 मात्रा।
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2222 21, 3 2 22 = मीगुणबुगगी (हंसगति) = 11+9 = 20 मात्रा।
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21. मात्रा (त्रैलोक जाति के छंद)

7 121, 5 S1S = डूजणपूरा (चांद्रायण) = 11+10 = 21 मात्रा।

( एक छंद के चार पद में यदि 'केमणमोरा' रूप की प्लवंगम = S 222, 22211 S1S तथा चांद्रायण का मिश्रण हो तो उस मिश्रित छंद का नाम 'तिलोकी' है।)
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12 222*2 211S = लीमदभाके (संत) = 21 मात्रा।
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222, 2222 2221 = मणमीमंणा (भानु) = 6+15 = 21 मात्रा।
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2222*2 212 = मिदरण (प्लवंगम) = 21 मात्रा। (इस छंद का प्राचीन स्वरूप 'गामणमोकेलके' = S 222, 22211 S1 S माना गया है।)
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2222 21, 3 221 S = मीगुणबुतके (त्रिलोकी) = 11+10 = 21 मात्रा।
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22. मात्रा (महारौद्र जाति के छंद)

2 2222 3, 3 2*3 = गामीबुणबुगबा (राधिका) = 13 + 9 = 22 मात्रा।
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2211*2 2, 21122 = तंदागणभेणा (बिहारी) = 14+8 = 22 मात्रा।
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222 3*2, 22211 S = मबुदंंमोके (उड़ियाना) = 12+10 = 22 मात्रा।
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222 3*2, 222 SS = मबुदंमादे (कुंडल) = 12+10 = 22 मात्रा।
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2222, 2222, 211S = मीधभके (रास) = 8+8+6 = 22 मात्रा।
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2222 22, 2222 2 = मीगिणमीगण (सोमधर) = 12+10 = 22 मात्रा।
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2222 22, 2222 S = मीगिणमीके (सुखदा) = 12+10 = 22 मात्रा।
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2222 21, 3 2 222 = मीगुणबूगम (मंगलवत्थु) = 11+11 = 22 मात्रा।
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23. मात्रा (रौद्राक जाति के छंद)

2122*2, 2122 S = रीदणरीके = (रजनी) = 14 + 9 = 23 मात्रा।

2 22221, 2222 121 = गामींणामीजण (संपदा छंद) = 11+12 = 23 मात्रा।
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2 2222 12, 2 3 212 = गामीलिणगाबुर (अवतार) = 13+10= 23 मात्रा।
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2 22221 21, 22221 = गामींगुणमींणा (सुजान) = 14+9 = 23 मात्रा।
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S22, 222, 22221 S = केगिणमणमींके (हीर/हीरक) = 6+6+11 = 23 मात्रा।
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22222, 2222, 221 = मेणामिणतण (जग) = 10+8+5 = 23 मात्रा।
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22222, 2222, 1121 = मेणामिणसालण (दृढपद छंद) 10+8+5 = 23 मात्रा।
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212, 222, 222, 22S = रणमादौगीके (मोहन) = 5+6+6+6 = 23 मात्रा।
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2222*2, 22 21= मीदंगीगुण (निश्चल) = 16+7 = 23 मात्रा।
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2222 212, 2222 S = मीरणमीके (उपमान/दृढपद) = 13+10= 23 मात्रा।

"मीरणमादे" से यह छंद कर्णप्रिय लगता है।
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2222 221, 2222 S = मीतणमीके (मदनमोहन) = 13+10 = 23 मात्रा।
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24. मात्रा (अवतारी जाति के छंद)

7*2, 222 112 = डूदंमस  (लीला) = 14+10 = 24 मात्रा।
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121 222, 22222 121 = जामणमेजण (सुमित्र) = 10+14 = 24 मात्रा। (इसका 'रसाल' नाम भी मिलता है।)
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(3 22)*2, 3 2221 = बूगीधुणबूमल (रूपमाला/मदन) = 14+10 = 24 मात्रा। 
(इसका दूसरा बहु प्रचलित रूप) :-
2122*2, 212 221 =  रीदंरातण।
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221 2122, 221 2122 = तारीधण (दिगपाल/मृदु गति) = 12+12 = 24 मात्रा।
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(5 2)*2, 212 1121 = पुगधुणरासंणा (शोभन/सिंहिका) = 14+10 = 24 मात्रा।
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2112*2, 2112*2 = भीदधणा (सारस छंद) = 12+12 = 24 मात्रा।
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2222 21, 3 2 2222 = मीगुणबुगमी (रोला) = 11+13 = 24 मात्रा। 
(2222*3 = 'मीबण' यति 11, 12, 14, 16 पर ऐच्छिक। रोला छंद की इस रूप में भी कई कवि रचना करते हैं।)
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2222, 2222, 2222 = मीथण (मधुर ध्वनि) = 8+8+8 = 24 मात्रा।
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25. मात्रा ( महावतारी के छंद)

1 2122*2, 212 221 = लारीदंरातण (सुगीतिका) = 15+10 = 25 मात्रा।
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1222*2 12, 222S = यीदालिणमाके (मदनाग) = 17+8 = 25 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2221 = गमिदौमंणा (नाग) = 10+8+7 = 25 मात्रा।
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2222 212, 2222 22 = मीरणमीगिण
(मुक्तामणि) = 13+12 = 25 मात्रा।

"मीरणमीदे" में यह छंद कर्णप्रिय है जो कुछ ग्रंथों में विधान के अंतर्गत है।
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2222*2, 22 S1S = मीदणगीरह (गगनांगना) = 16+9 = 25 मात्रा।
(रह का अर्थ रगण वर्णिक रूप में।)
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26. मात्रा (महाभागवत जाति के छंद)

2 2122, 2122, 212 221 = गरिदौरातण (कामरूप) = 9+7+10 = 26 मात्रा।
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2212, 2212, 2212, 221 = तिथतण = (झूलना) = 7 + 7 + 7 + 5 = 26 मात्रा।
(इस छंद को कई साहित्यकार "डूथातण = 7, 7, 7, 221" के रूप में भी सृजन करते हैं)
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2212*2, 2212 221 = तीदंतीतण (गीता) = 14+12 = 26 मात्रा।
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2222*2, 2222 S = मीदंमीके (विष्णुपद) = 16+10 = 26 मात्रा। 'के' संकेतक यह दर्शाता है कि छंदा के अंत में दीर्घ रखना है।
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2222*2, 7 21 = मीदंडूगू (शंकर) = 16+10 = 26 मात्रा।
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27. मात्रा (नाक्षत्रिक जाति के छंद)

1 2122*2, 2122 S1S = लारीदंरीकेलके (शुभगीता) = 15+12 = 27 मात्रा।
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2122*2, 2122 2121 = रीदंरीरंणा (शुद्ध गीता) = 14+13 = 27 मात्रा।
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2222*2, 2222 21 = मीदंमीगुण (सरसी) = 16+11 = 27 मात्रा।
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यह छंद द्वि पदी रूप में रची जाने पर 'हरिपद' छंद कहलाती है।

2222*2, 2222 21 = मीदंमिगुणी (हरिपद) = 16 + 11 = 27 मात्रा।
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28. मात्रा (यौगिक जाति के छंद)

1221 3 221, 2 222 11 SS =  यंबूतणगमलूदे (विद्या) = 14+14 = 28 मात्रा।
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2 2222 2*2, 2 2222 2*2 = गामीगदधण (आँसू) = 14+14 = 28 मात्रा।
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222, 2 2222*2 22 = मणगामिदगी (दीपा) = 6+22 = 28 मात्रा। पदांत में दो दीर्घ (SS) रखने से छंद रोचक होता है।
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2222*2, 2222 22 = मीदंमीगिण (सार) = 16+12 = 28 मात्रा। (इस छंदा को मीदंमीदे रखने से गेयता रोचक होती है।)
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2222*2, 222 SSS = मीदंमाबे (रजनीश) = 16+12 = 28 मात्रा।
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29. मात्रा (महायौगिक जाति के छंद)

2 2222, 2222, 2222 21 = गमिदौमीगुण = (मरहठा) = 10 + 8 + 11 = 29 मात्रा।
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2222 3, 3 2 3, 3 2 21S = मीबुणबुगबुणबुगगूके (मरहठा माधवी) = 11+8+10 = 29 मात्रा।
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2222 2221, 2222 22S = मीमंणामीगीके (धारा) = 15+14 = 29 मात्रा।
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2222*2, 2222 21 S = मीदंमीगूके (प्रदीप) = 16+13 = 29 मात्रा।

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30. मात्रा (महातैथिक जाति के छंद)

2 2222, 2222, 2222 SS = गमिदौमीदे = (चतुष्पदी) = 10+8+12 = 30 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222 2S = गमिदौमिगके = (चौपइया/चवपैया) = 10 + 8 + 12 = 30 मात्रा। '
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2 2222 21, 12221 122 SS = गामीगुणयींयादे (कर्ण) = 13+17 = 30 मात्रा।
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2222, 2222, 2222, 22S = मिथगीके (शोकहर) = 8+8+8+6 = 30 मात्रा। (चारों पद में समतुकांतता अनिवार्य)
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2222*2, 2222 222 = मीदंमीमण (लावणी) = 16+14 = 30 मात्रा।
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2222*2, 2222 2SS = मीदंमिगदे (कुकुभ) = 16+14 = 30 मात्रा।
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2222*2, 2222 SSS = मीदंमीबे (ताटंक) = 16+14 = 30 मात्रा।
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2222 222, 2 2222 22S = मीमणगमिगीके (रुचिरा) = 14+16 = 30 मात्रा।
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31. मात्रा (अश्वावतारी जाति के छंद)

2222*2, 2222 22 21 = मीदंमीगीगुण (आल्हा या वीर) = 16+15 = 31 मात्रा।
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32. मात्रा (लाक्षणिक जाति के छंद)

3 2 2222 21, 3 2 2222 21 = बुगमीगुध (महाश्रृंगार) = 16+16 = 32 मात्रा।।
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2 3 21, 2 3 21, 2 3 21, 2 3 21= गाबूगुथगाबूगू (पल्लवी) = 8+8+8+8 = 32 मात्रा।
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2 22*2, 22*2, 22*2, 22S = गागिदबौगीके = (त्रिभंगी) = 10+8+8+6 = 32 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222 22S = गमिदौमीगीके = (पद्मावती) = 10+8+14 = 32 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222 211S = गमिदौमिभके = (दंडकला) = 10+ 8+14 = 32 मात्रा। 
(यही छंद "गमिदौमोबे" रूप में 'दुर्मिल' के नाम से भी जाना जाता है।)
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2 222, 222, 2222, 2 2222 = गमदौमिणगामी = (खरारी) = 8+6+8+10 = 32 मात्रा।
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2 2222 222, 2 2222 22S  = गामीमणगमिगीके (राधेश्यामी या मत्त सवैया) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2 2222 3 21, 2 2222 3 21 = गमिबूगुध (लीलावती) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2222, 2222, 222, 2 2222 = मिधमणगामी 
(तंत्री) = 8+8+6+10 = 32 मात्रा।
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2222*2, 2222*2 = मीदाधण (32 मात्रिक) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2222*2, 2222 22 S11 = मीदंमीगीकेलू (समान सवैया / सवाई छंद) = 16+16 = 32 मात्रा।
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2222 2221, 122 2222 SS = मीमंणायामीदे (कमंद) = 15+17 = 32 मात्रा।
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द्विपदी छंद:- (छंदा के अंत में जुड़ा णि या णी इन छंदाओं का मात्रिक स्वरूप तथा द्विपद रूप दर्शाता है।)

2222 22, 2221 = मीगिणमंणी (बरवै) = 12+7 = 19 मात्रा।
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2222 212, 2222 21 = मीरणमिगुणी (दोहा) = 13+11= 24 मात्रा।
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2222 21, 2222 212 = मीगुणमिरणी (सोरठा) = 11+13 = 24 मात्रा।
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2 2222 212, 2222 21 = गामीरणमिगुणी (दोही) = 15+11= 26 मात्रा।
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2222 212, 2222 212 = मीरधणी (उल्लाला) = 13+13 = 26 मात्रा।
2 2222 212, 2222 212 = गामीरणमिरणी (गुरु उल्लाला) = 15+13 = 28 मात्रा।
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2222 212, 2222 21 1211 = मीरणमीगूजंणी (चुलियाला) = 13 + 16 = 29 मात्रा।
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2222 212 = मीरण-त्रिपदा (जनक) = 13 मात्रा। यह तीन पदों की छंद है।
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दण्डक छंद:- 32 से अधिक मात्रा के छंद दण्डक छंद कहलाते हैं। यहाँ कुछ छंद विशेष की छंदाएँ दी जा रही हैं। दण्डक छंदों में प्रायः 3 अंतर्यति पायी जाती है और लगभग समस्त रचनाकारों ने इन तीन यतियों में समतुकांतता निभाई है। इसके अतिरिक्त दो दो पद में पदांत तुकांतता तो रहती ही है।

5*2, 5*2, 5*2, 21SS  = पूदथगूदे =  (झूलना-दंडक) = 10+10+10+7 = 37 मात्रा।
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5 3, 5*2 2, 5 3, 22 1SS = पूबुणपुदगणपूबुणगिलदे =  (करखा-दंडक) = 8+12+8+9 = 37 मात्रा।
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2 5*2, 5*2, 5*2, 5 3 = गापूबौपूबू = (दीपमाला) = 12+10+10+8 = 40 मात्रा।
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2 2222, 2222, 2222, 222, 222S = गमिबौमणमाके = (मदनहर) = 10 + 8 + 8 + 6 + 8= 40 मात्रा।
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5 212, 5 212, 5 212, 5 21 S = पूरथपूगूके = (विजया) = 10+10+10+10 = 40 मात्रा।
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5 221, 5 221, 5 221, 5 S 21 = पूतथपूकेगू = (शुभग) = 10+10+10+10 = 40 मात्रा।
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2 2222, 2 2222, 2 2222, 212 221 = गामिथरातण = (उद्धत) = 10+10+10+10 = 40 मात्रा।
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222*2, 222*2, 222*2, 222 SS = मदथमदे (चंचरीक) = 12 + 12 + 12 + 10 = 46 मात्रा। इसका हरिप्रिया नाम भी मिलता है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Sunday, September 24, 2023

राधेश्यामी छंद "वंचित"

 राधेश्यामी छंद / मत्त सवैया


ये दुनिया अजब निराली है, सब कुछ से बहुतेरे वंचित।
पूँजी अनेक पीढ़ी तक की, करके रखली कुछ ने संचित।।
जिस ओर देख लो क्रंदन है, सबका है अलग अलग रोना।
अधिकार कहीं मिल पाते नहिं, है कहीं भरोसे का खोना।।

पग पग पर वंचक बिखरे हैं, बचती न वंचना से जनता।
आशा जिन पर जब वे छलते, कुछ भी न उन्हें कहना बनता।।
जिनको भी सत्ता मिली हुई, मनमानी मद में वे करते।
स्वारथ के वशीभूत हो कर, सब हक वे जनता के हरते।।

पग पग पर अबलाएँ लुटती, बहुएँ घर में अब भी जलती।
जो दूध पिला बच्चे पालीं, वृद्धाश्रम में वे खुद पलती।।
मिलता न दूध नवजातों को, पोषण से दूध मुँहे वंचित।
व्यापार पढ़ाई आज बनी, बच्चे हैं शिक्षा से वंचित।।

मजबूर दिखें मजदूर कहीं, मजदूरी से वे हैं वंचित।
जो अन्न उगाएँ चीर धरा, वे अन्न कणों से हैं वंचित।।
शासन की मनमानी से है, जनता अधिकारों से वंचित।
अधिकारी की खुदगर्जी से, दफ्तर सब कामों से वंचित।।

हैं प्राण देश के गाँवों में, पर प्राण सड़क से ये वंचित।
जल तक भी शुद्ध नहीं मिलता, विद्युत से बहुतेरे वंचित।।
कम अस्पताल की संख्या है, सब दवा आज मँहगी भारी।
है आज चिकित्सा से वंचित, जो रोग ग्रसित जनता सारी।।

निज-धंधा करे चिकित्सक अब, हैं अस्पताल सूने रहते।
जज से वंचित न्यायालय हैं, फरियादी कष्ट किसे कहते।।
सब कुछ है आज देश में पर, जनता सुविधाओं से वंचित।
हों अधिकारों के लिए सजग, वंचित न रहे कोई किंचित।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-04-17

Monday, September 18, 2023

भव छंद "जागो भारत"

जागो देशवासी।
त्यागो अब उदासी।।
जाति वाद तोड़ दो।
क्षुद्र स्वार्थ छोड़ दो।।

देश पर गुमान हो।
इससे पहचान हो।।
भारती सदा बढे।
कीर्तिमान नव गढे।।

जागरुक सभी हुवें।
आसमान हम छुवें।।
संस्कृति का भान हो।
भू पे अभिमान हो।।

देश से दुराव की।
बातें अलगाव की।।
लोग यहाँ जो करें।
मुल्य कृत्य का भरें।।

सोयों को जगायें।
आतंकी मिटायें।।
लहु रिपुओं का पियें।
बलशाली बन जियें।।

देश भक्ति रीत हो।
जग भर में जीत हो।।
सुरपुर देश प्यारा।
'नमन' इसे हमारा।।
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भव छंद विधान -

भव छंद 11 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु वर्ण (S) से होना आवश्यक है । यह रौद्र जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। चरणांत के आधार पर इन 11 मात्राओं के दो विन्यास हैं। प्रथम 8 1 2(S) और दूसरा 6 1 22(SS)। 1 2 और 1 22 अंत के पश्चात बची हुई क्रमशः 8 और 6 मात्राओं के लिये कोई विशेष आग्रह नहीं है। परंतु जहाँ तक संभव हो सके इन्हें अठकल और छक्कल के अंतर्गत रखें।
अठकल (4 4 या 3 3 2)
छक्कल (2 2 2 या 3 3)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
27-05-22

Sunday, September 10, 2023

समस्त श्रेणियों की बहुप्रचलित छंदाएँ

छंदा सागर 

                      पाठ - 17

छंदा सागर ग्रन्थ

"समस्त श्रेणियों की बहुप्रचलित छंदाएँ"


हमने वृत्त छंदा, गुरु छंदा और आदि गण आधारित सात मिश्र छंदाओं के पाठों में अनेक छंदाओं का अवलोकन किया। इन्हीं पाठों से छाँट कर यहाँ कुछ बहुप्रचलित छंदाएँ दी जा रही हैं।

मगणाश्रित छंदाएँ:-

2222*3  222 = मीबम, मिबमण, मिबमव

22212 212 = मूरा, मूरण, मूरव
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तगणाश्रित छंदाएँ:-

2212*2 = तीदा
2212*3 = तीबा
2212*4 = तीचा

221*2 2 = तादग, तदगण, तदगव

2211*3 2 = तंबग, तंबागण, तंबागव (रुबाइयों में प्रचलित)
2211*3 22 = तंबागी, तंबागिण, तंबागिव (बिहारी छंद)

22112 22 22112 22 = तूगीधू, तूगीधुण, तूगीधुव
22112 22 22112 2 = तूगीतुग, तूगीतूगण, तूगीतूगव
22112 2222 = तूमी, तूमिण, तूमिव

22121 22 22121 22 = तींगीधू, तींगीधुण, तींगीधुव
22121 22 22121 2 = तींगीतींगा, तींगीतींगण, तींगीतींगव
22121 211 22121 2 = तींभातींगा, तींभातींगण, तींभातींगव
22122 22 22122 22 = तेगीधू, तेगीधुण, तेगीधुव

22121 212 = तींरा, तींरण, तींरव

2212 22122 22 = तातेगी, तातेगिण, तातेगिव
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रगणाश्रित छंदाएँ:-

212*3 = राबा, राबण, राबव
212*3 2 = राबग, रबगण, रबगव
212*4 = राचा, राचण, राचव

212*2 +2 21222 = रादगरे, रादगरेण, रादगरेव

212*2 2, 212*2 2 = रदगध, रादगधण, रादगधव

2121 212 2121 212 = रंराधू, रंराधुण, रंराधुव
2121*2 212 = रंदर, रंदारण, रंदारव
2121*3 212 = रंबर, रंबारण, रंबारव


2122*2 = रीदा, रीदण, रीदव
2122*2 212 = रीदर, रिदरण, रिदरव
2122*3 = रीबा, रीबण, रीबव
2122*3 2 = रीबग, रिबगण, रिबगव
2122*3 212 = रीबर, रिबरण, रिबरव
2122*4 = रीचा, रीचण, रीचव

2122 1122*2 22 = रीसिदगी, रीसिदगिण, रीसिदगिव

21221 212 22 = रींरागी, रींरागिण, रींरागिव
21221 122 22 = रींयागी, रींयागिण, रींयागिव

21212 22 21212 22 = रूगीधू, रूगीधुण, रूगीधुव

21222 21221 = रेरिल, रेरीलण, रेरीलव

2122*2 2 212 = रिदगर, रीदगरण, रीदगरव
***

यगणाश्रित छंदाएँ:-

122*3 = याबा, याबण, याबव
122*3 12 = यबली, यबलिण, यबलिव
122*4= याचा, याचण, याचव

1222*2 = यीदा, यीदण, यीदव
1222*2 21 = यिदगू, यिदगुण, यिदगुव
1222*2 122 = यीदय, यिदयण, यिदयव
1222*3 = यीबा, यीबण, यीबव
1222*4 = यीचा, यीचण, यीचव

12222 122 = येया, येयण, येयव

1222 122 = यीया, यीयण, यीयव
1222 122, 1222 122 = यीयध, यियधण, यियधव
***

जगणाश्रित छंदाएँ:-

12112*2 = जूदा, जूदण, जूदव

12122*4 = जेचा, जेचण, जेचव

1212*4 = जीचा, जीचण, जीचव

1212 222 1212 22 = जिमजीगी, जिमजीगिण, जिमजीगिव
12121 122 1212 22 = जींयाजीगी, जींयाजीगिण, जींयाजीगिव
12121 122 12121 122 = जींयाधू, जींयाधुण, जींयाधुव
***

सगणाश्रित छंदाएँ:-

11212*4 = सूचा, सूचण, सूचव

112121 22 112121 22 = सूंगीधू, सूंगीधुण, सूंगीधुव

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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया