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Saturday, March 9, 2024

दोहे "शिव वंदन"

दोहा छंद

सोम बिराजे शीश पे, प्रभु गौरा के कंत।
राज करे कैलाश पर, महिमा दिव्य अनंत।।

काशी के प्रभु छत्र हैं, औघड़ दानी आप।
कष्ट निवारण कर सकल, हरिये कलिमय पाप।।

काशी पावन धाम में, जो जन‌ त्यागें प्राण।
सद्गति पाते जीव वे, होता भव से त्राण।।

त्रिपुरारी सब कष्ट को, दूर करो प्रभु आप।
कृपा-दृष्टि जिस पर पड़े, मिटते भव संताप।।

जो जग का हित साधने, करे गरल का पान।
शिव समान इस विश्व में, उसका होता मान।।

चमके मस्तक चन्द्रमा, सजे कण्ठ पर सर्प।
नन्दीश्वर तुमको 'नमन', दूर करो सब दर्प।

विश्वनाथ को कर 'नमन', दोहे रचे अनूप।
हे प्रभु वन्दन आपको, भर दीज्यो रस रूप।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
30-04-19

Friday, March 31, 2023

दोहा छंद "दोहामाल" (वयन सगाई अलंकार)


वयन सगाई अलंकार / वैण सगाई अलंकार


आदि देव दें आसरा, आप कृपालु अनंत।
अमल बना कर आचरण, अघ का कर दें अंत।।

काली भद्रा कालिका, कर में खड़ग कराल।
कल्याणी की हो कृपा, कटे कष्ट का काल।।

गदगद ब्रज की गोपियाँ, गिरधर मले गुलाल।
ग्वालन होरी गावते, गउन लखे गोपाल।।

चन्द्र खिलाये चांदनी, चहकें चारु चकोर।
चित्त चुराके चंचला, चल दी सजनी चोर।।

जगमग मन दीपक जले, जब मैं हुई जवान।
जबर विकल होगा जिया, जरा न पायी जान।।

ठाले करते ठाकरी, ठाकुर बने ठगेस।
ठेंगा दिखला ठगकरी, ठग करके दे ठेस।।

डगमग चलती डोकरी, डट के लेय डकार।
डिग डिग तय करती डगर, डांड हाथ में डार।।

तड़प राह पिय की तकूँ, तन के बिखरे तार।
तारों की लगती तपिश, तीखी ज्यों तलवार।।

दान हड़पने की दिखे, दर-दर आज दुकान।
दाता ऐसों को न दे, दे सुपात्र लख दान।।

नख सिख दमकै नागरी, नस नस भरा निखार।
नागर क्यों ललचे नहीं, निरख निराली नार।।

पथ वैतरणी है प्रखर, पापों की सर पोट।
पार करें किस विध प्रभू, पातक जगत-प्रकोट।।

भूखे पेट न हो भजन, भर दे शिव भंडार।
भक्तों का करके भरण, भोले मेटो भार।।

मधुर ओष्ठ हैं मदभरे, मोहक ग्रीव मृणाल।
मादक नैना मटकते, मन्थर चाल मराल।।

यत्न सहित सब योजना, योजित करें युवान।
यज्ञ रूप तब देश यह, यश के चढ़ता यान।।

रे मन तुझ को रमणियाँ, रह रह रहें रिझाय।
राम-भजन में अब रमो, राह दिखाती राय।।

लोभी मन जग-लालसा, लेवे क्यों तु लगाय।
लप लप करती यह लपट, लगातार ललचाय।।

वारिज कर में शुभ्र वर, वाहन हंस विहार।
विद्या दे वागीश्वरी, वारण करो विकार।।

सदा भजो मन साँवरा, सारे जग का सार।
सजन मात पितु या सखा, सभी रूप साकार।।

हरि की मोहक छवि हृदय, हरपल रहे हमार।
हर विपदा भव की हरे, हरि के हाथ हजार।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
20-11-2018

Friday, February 10, 2023

सिंहावलोकन दोहा मुक्तक

दोहा छंद में दो मुक्तक 


(1)

लाज लसित लोचन हुये, बजे प्रीत के साज।
साज सजन के सज रहे, मग्न हुई मैं आज।
आज मिलन की चाह में, सुध-बुध भूला देह।
देह बाट पिय की लखे, भारी भर कर लाज।।

(2)

राजनीति दूषित हुई, नेता हैं बिन लाज।
लाज स्वार्थ में छिप गई, भ्रष्ट हुये सब आज।
आज देश में हर तरफ, बस कुर्सी की भूख।
भूख घिरी जनता इधर, कोसे यह जन-राज।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
25-05-19

Thursday, January 5, 2023

भ्रमर दोहा छंद "सेवा"

(भ्रमर दोहा छंद के प्रति दोहे में 22 दीर्घ और 4 लघु वर्ण होते हैं।)

बीती जाये जिंदगी, त्यागो ये आराम।
थोड़ी सेवा भी करो, छोड़ो दूजे काम।।

सेवा प्राणी मात्र की, शिक्षा का है सार।
वाणी कर्मों में रखें, सेवा का आचार।।

सच्ची सेवा ही सदा, दे सच्चा उल्लास।
सेवा ही संतुष्टि है, सेवा ही विश्वास।।

लोगों के नेता बने, छोड़ी सारी लाज।
तस्वीरों के सामने, होती सेवा आज।।

काया से जो क्षीण हैं, हो रोगी लाचार।
शुश्रूषा से दो उन्हें, जीने का आधार।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
24-10-19

Sunday, October 2, 2022

दोहा छंद "वयन सगाई अलंकार"

वयन सगाई अलंकार / वैण सगाई अलंकार

चारणी साहित्य मे दोहा छंद के कई विशिष्ट अलंकार हैं, उन्ही में सें एक वयन सगाई अलंकार (वैण सगाई अलंकार) है। दोहा छंद के हर चरण का प्रारंभिक व अंतिम शब्द एक ही वर्ण से प्रारंभ हो तो यह अलंकार सिद्ध होता है।

'चमके' मस्तक 'चन्द्रमा', 'सजे' कण्ठ पर 'सर्प'।
'नन्दीश्वर' तुमको 'नमन', 'दूर' करो सब 'दर्प'।।

'चंदा' तेरी 'चांदनी', 'हृदय' उठावे 'हूक'।
'सन्देशा' पिय को 'सुना', 'मत' रह वैरी 'मूक'।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Wednesday, May 4, 2022

दोहा छंद

 दोहा छंद "मजदूर"


श्रम सीकर की वृष्टि से, सरसाते निर्माण।
इन मजदूरों का सभी, गुण का करें बखाण।।

हर उत्पादन का जनक, बेचारा मजदूर।
पर बेटी के बाप सा, खुद कितना मजबूर।।

छत देने हर शीश पर, जूझ रहा मजदूर।
बेछत पर वो खुद रहे, हो कर के मजबूर।।

चैन नहीं मजदूर को, मौसम का जो रूप।
आँधी हो तूफान हो, चाहे पड़ती धूप।।

बहा स्वेद को रात दिन, श्रमिक करे श्रम घोर।
तमस भरी उसकी निशा, लख न सके पर भोर।।

मजदूरों से ही बने, उन्नति का परिवेश।
नवनिर्माणों से खिले, नभ को छूता देश।।

नये कारखानें खुलें, प्रगति करें मजदूर।
मातृभूमि जगमग करें, भारत के ये नूर।।
***   ***   ***

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
04-05-22

Saturday, January 1, 2022

आंग्ल नव-वर्ष दोहे

दोहा छंद


प्रथम जनवरी क्या लगी, काम दिये सब छोड़।
शुभ सन्देशों की मची, चिपकाने की होड़।।

पराधीनता की हमें, जिनने दी कटु पाश।
उनके इस नव वर्ष में, हम ढूँढें नव आश।।

सात दशक से ले रहे, आज़ादी में साँस।
पर अब भी हम जी रहे, डाल गुलामी फाँस।।

व्याह पराया हो रहा, मची यहाँ पर धूम।
अब्दुल्ला इस देश का, नाच रहा है झूम।।

अपनों को दुत्कारते, दूजों से रख चाह।
सदियों से हम भोगते, आये इसका दाह।।

सत्य सनातन छोड़ कर, पशुता से क्यों प्रीत।
'बासुदेव' मन है व्यथित, लख यह उलटी रीत।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
01-01-2019

Saturday, September 18, 2021

दोहा छंद "सद्गुण"

(दोहा छंद)

सद्गुण सरस सुगन्ध से, महकायें जग आप।
जो आयें संपर्क में, उनके हर लें ताप।।

अंकुश रहे विवेक का, यह सद्गुण सिरमौर।
मन-मतंग वश में रहे, क्या बाकी फिर और।।

विनय धार हरदम रखें, यह सद्गुण की खान।
कायम कुल की यह रखे, आन, बान अरु शान।।

सद्गुण कुछ पाला नहीं, पर भीषण आकार।
थोथा खाली ढोल ज्यों, बजे बिना कुछ सार।।

धारण कर अवतार प्रभु, करें पाप का अंत।
सद्गुण स्थापित वे करें, करते नष्ट असंत।।

जो नर भागें कर्म से, सद्गुण से हों दूर।
असफलता पर वे कहें, खट्टे हैं अंगूर।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
16-06-19

Tuesday, August 10, 2021

दोहा छंद "वर्षा ऋतु"

दोहा छंद

ग्रीष्म विदा हो जा रही, पावस का शृंगार।
दादुर मोर चकोर का, मन वांछित उपहार।।

आया सावन झूम के, मोर मचाये शोर।
झनक झनक पायल बजी, झूलों की झकझोर।।

मेघा तुम आकाश में, छाये हो घनघोर।
विरहणियों की वेदना, क्यों भड़काते जोर।।

पिया बसे परदेश में, रातें कटती जाग।
ऐसे में क्यों छा गये, मेघ लगाने आग।।

उमड़ घुमड़ के छा गये, अगन लगाई घोर।
शीतल करो फुहार से, रे मेघा चितचोर।।

पावस ऋतु में भर गये, सरिता कूप तड़ाग।
कृषक सभी हर्षित भये, मिटा हृदय का राग।।

दानी कोउ न मेघ सा, कृषकों की वह आस।
सींच धरा को रात दिन, शांत करे वो प्यास।।

मेघ स्वाति का देख के, चातक हुआ विभोर।
उमड़ घुमड़ तरसा न अब, बरस मेघ घनघोर।।
*** *** ***
"दोहा छंद विधान" इस पर क्लिक करें

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
17-07-2016

Thursday, June 10, 2021

दोहे "मन"

दोहा छंद

पंकज जैसा मन रखो, चहुँ दिशि चाहे कीच।
पाप कभी छू नहिं सके, जितने रहलो बीच।।

कमल खिले सब पंक में, फिर भी पूजे जाय।
गुण तो छिप सकते नहीं, अवगुण बाहर आय।।

जग काजल की कोठरी, मन ज्यों धवल कपास।
ज्यों बूड़े त्यों श्याम हो, बूड़े नहीं उजास।।

जब उमंग मन में रहे, बनते बिगड़े काम।
गात प्रफुल्लित नित रहे, जग में होता नाम।।

चिंतन मन का कीजिये, देखो जब एकांत।
दोष प्रगट हो सामने, करे हृदय को शांत।।

दया भाव जब मन नहीं, व्यर्थ बाहुबल जान।
औरन को सन्ताप दे, बढ़ता है अभिमान।।

जिनका मन पाषाण है, पाते दुख वे घोर।
दया धर्म जाने नहीं, डाकू पातक चोर।।

झूठ कपट को त्याग कर, मन को करलें शुद्ध।
इससे मन के द्वार सब, कभी न होें अवरुद्ध।।

वाणी ऐसी बोलिये, मन में कपट न राख।
मित्र बनाए शत्रु को, और बढ़ाए साख।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-04-18

Saturday, April 10, 2021

दोहे (लगन)

दोहा छंद

मन में धुन गहरी चढ़े, जग का रहे न भान।
कार्य असम्भव नर करे, विपद नहीं व्यवधान।।

तुलसी को जब धुन चढ़ी, हुआ रज्जु सम व्याल।
मीरा माधव प्रेम में, विष पी गयी कराल।।

ज्ञान प्राप्ति की धुन चढ़े, कालिदास सा मूढ़।
कवि कुल भूषण वो बने, काव्य रचे अति गूढ़।।

ज्ञानार्जन जब लक्ष्य हो, करलें चित्त अधीन।
ध्यान ध्येय पे राखलें, लखे सर्प ज्यों बीन।।

आस पास को भूल के, मन प्रेमी में लीन।
गहरा नाता जोड़िए, ज्यों पानी से मीन।।

अंतर में जब ज्ञान का, करता सूर्य प्रकाश।
अंधकार अज्ञान का, करे निशा सम नाश।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-10-2016

Wednesday, February 10, 2021

दोहे (क्रोध)

दोहा छंद

मन वांछित जब हो नहीं, प्राणी होता क्रुद्ध।
बुद्धि काम करती नहीं, हो विवेक अवरुद्ध।।

नेत्र और मुख लाल हो, अस्फुट उच्च जुबान।
गात लगे जब काम्पने, क्रोध चढ़ा है जान।।

सदा क्रोध को जानिए, सब झंझट का मूल।
बात बढ़ाए चौगुनी, रह रह दे कर तूल।।

वशीभूत मत होइए, कभी क्रोध के आप।
काम बिगाड़े आपका, मन को दे संताप।।

वश में हो कर क्रोध के, रावण मारी लात।
मिला विभीषण शत्रु से, किया सर्व कुल घात।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-10-2016

Sunday, January 10, 2021

दोहे (मोदी जी पर)

दोहा छंद

भरा पाप-घट तब हुआ, मोदी का अवतार।
बड़े नोट के बन्द से, मेटा भ्रष्टाचार।।

जमाखोर व्याकुल भये, कालाधन बेकार।
सेठों की नींदें उड़ी, दीन करे जयकार।।

नई सुबह की लालिमा, नई जगाये आश।
प्राची का सूरज पुनः, जग में करे प्रकाश।।

दोहा मुक्तक

चोर चोर का था मचा, सकल देश में शोर।
शोर तले जनता लखे, नव आशा की भोर।
भोर सुहानी स्वप्नवत, जिसकी सब को आस।
आस करेगा पूर्ण अब, जो कहलाया चोर।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-11-2016

Sunday, November 15, 2020

दोहा गीतिका (सम्मान)

काफ़िया- आ, रदीफ़-सम्मान

देश वासियों नित रखो, निज भाषा सम्मान।
स्वयं मान दोगे तभी, जग देगा सम्मान।।

सब से हमको यश मिले, मन में तो यह चाह।
पर सीखा नहिं और को, कुछ देना सम्मान।।

गुणवत्ता अरु पात्र का, जरा न सोच विचार।
खुले आम बाज़ार में, अब बिकता सम्मान।।

देख देख फटता जिया, काव्य मंच का हाल।
सिंह मध्य श्रृंगाल का, खुल होता सम्मान।।

मुँह की खाते लोग जो, मिथ्या गाल बजाय।
औरन की सुनते न बस, निज-गाथा सम्मान।।

दीन दुखी के काम आ, नहीं कमाया नाम।
उनका ही आशीष तो, है सच्चा सम्मान।। 

'नमन' हृदय क्यों रो रहा, लख जग की यह चाल।
स्वारथ का व्यापार सब, मतलब का सम्मान।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-12-2018

Wednesday, September 9, 2020

दोहे (श्राद्ध-पक्ष)

दोहा छंद

श्राद्ध पक्ष में दें सभी, पुरखों को सम्मान।
वंदन पितरों का करें, उनका धर हम ध्यान।।

रीत सनातन श्राद्ध है, इस पर हो अभिमान।
श्रद्धा पूरित भाव रख, मानें सभी विधान।।

द्विज भोजन बलिवैश्व से, करें पितर संतुष्ट।
उनके आशीर्वाद से, होते हैं हम पुष्ट।।

पितर लोक में जो बसे, कर असीम उपकार।
बन कृतज्ञ उनका सदा, प्रकट करें आभार।।

मिलता हमें सदा रहे, पितरों का वरदान।
भरें रहे भंडार सब, हों हम आयुष्मान।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-09-20

Wednesday, August 12, 2020

दोहे (आस)

दोहा छंद

आस अधिक मत पालिए, सब के मत हैं भिन्न।
लगे निराशा हाथ तो, रहे सदा मन खिन्न।।

गीता के सिद्धांत को, मन में लेवें धार।
कर्म आपके हाथ में, फल पर नहिं अधिकार।।

आस तहाँ नहिं पालिए, लोग खींचते पैर।
मीनमेख निकले सदा, राख हृदय में वैर।।

नहीं अन्य से बांधिए, कभी आस की डोर।
सबकी अपनी सोच है, नहीं किसी पे जोर।।

मन के सारे कष्ट की, अधिक आस है मूल।
पूरित जब नहिं आस हो, रहे हृदय में शूल।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-11-16

Wednesday, May 13, 2020

दोहा मुक्तक (यमक युक्त-जलजात)

पद्म, शंख, लक्ष्मी सभी, प्रभु को प्रिय जलजात।
भज नर इनके नाथ को, सकल पाप जल जात।
लोभ, स्वार्थ घिर पर मनुज, कृत्य करे अति घोर।
लख उसके इन कर्म को, हरि भी आज लजात।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-19

Monday, March 9, 2020

दोहे "होली"

दोहा छंद

होली के सब पे चढ़े, मधुर सुहाने रंग।
पिचकारी चलती कहीं, बाजे कहीं मृदंग।।

दहके झूम पलाश सब, रतनारे हो आज।
मानो खेलन रंग को, आया है ऋतुराज।।

होली के रस की बही, सरस धरा पे धार।
ऊँच नीच सब भूल कर, करें परस्पर प्यार।।

फागुन की सब पे चढ़ी, मस्ती अपरम्पार।
बाल वृद्ध सब झूम के, रस की छोड़े धार।।

नर नारी सब खेलते, होली मिल कर संग।
भेद भाव कुछ नहिं रहे, मधुर फाग का रंग।।

फागुन में मन झूम के, गाये राग मल्हार।
मधुर चंग की थाप है, मीठी बहे बयार।।

घुटे भंग जब तक नहीं, रहे अधूरा फाग,
बजे चंग यदि संग में, खुल जाएँ तब भाग।।

होली की शुभकामना, रहें सभी मन जोड़।
नशा यहाँ ऐसा चढ़े, कोउ न जाये छोड़।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-03-2017

Sunday, February 16, 2020

दोहा छंद (गिल्ली डंडा)

दोहा छंद

गिल्ली डंडा खेलते, बच्चे धुन में मस्त।
जग की चिंता है नहीं, होते कभी न पस्त।।

भेद नहीं है जात का, भेद न करता रंग।
ऊँच नीच मन में नहीं, बच्चे खेले संग।।

आस पास को भूल के, क्रीड़ा में तल्लीन।
बड़ा नहीं कोई यहाँ, ना ही कोई हीन।।

छोड़ मशीनी जिंदगी, बच्चे सबके साथ।
हँसते गाते खेलते, डाल गले में हाथ।।

खुले खेत फैले यहाँ, नील गगन की छाँव।
मस्ती में बालक जहाँ, खेलें नंगे पाँव।।

नहीं प्रदूषण आग है, शहरों का ना शोर।
गाँवों का वातावरण, कर दे भाव-विभोर।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-11-2016

Saturday, December 21, 2019

दोहा गीतिका (शब्द)

काफ़िया = आये, रदीफ़ = शब्द

मान और अपमान दउ, देते आये शब्द।
अतः तौल के बोलिये, सब को भाये शब्द।।

सजा हस्ति उपहार में, कभी दिलाये शब्द।
उसी हस्ति के पाँव से, तन कुचलाये शब्द।।

शब्द ब्रह्म अरु नाद हैं, शब्द वेद अरु शास्त्र।
कण कण में आकाश के, रहते छाये शब्द।।

शब्दों से भाषा बने, भाषा देती ज्ञान।
ज्ञान कर्म का मूल है, कर्म सिखाये शब्द।।

देश काल अरु पात्र का, करलो पूर्ण विचार।
सोच समझ बोलो तभी, हृदय सजाये शब्द।।

ठेस शब्द की है बड़ी, झट से तोड़े प्रीत।
बिछुड़े प्रेमी के मनस, कभी मिलाये शब्द।।

वन्दन क्रंदन अरु 'नमन', काव्य छंद सुर ताल।
भक्ति शक्ति अरु मुक्ति का, द्वार दिखाये शब्द।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-08-17