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Wednesday, May 8, 2019

ग़ज़ल (हमारे मन में ये व्रत धार लेंगे )

बह्र:- 1222  1222  122

हमारे मन में ये व्रत धार लेंगे,
भुला नफ़रत सभी को प्यार देंगे।

रहेंगे जीते हम झूठी अना में,
भले ही घूँट कड़वे हम पियेंगे।

भले पहुँचे कहाँ से जग कहाँ तक,
जहाँ हम थे वहीं अब भी रहेंगे।

इसी उम्मीद में हैं जी रहे अब,
कभी तो आसमाँ हम भी छुयेंगे।

रे मन परवाह करना छोड़ जग की,
भले तुझको दिखाएँ लोग ठेंगे।

रहो बारिश में अच्छे दिन की तुम तर,
मगर हम पे जरा ये कब चुयेंगे।

नए ख्वाबों की झड़ लगने ही वाली,
उन्हीं पे पाँच वर्षों तक जियेंगे।

तु सुध ले या न ले, यादों के तेरी,
ये दीपक रात भर यूँ ही जलेंगे।

रखो कोशिश 'नमन' दिल जोड़ने की,
कभी तो टूटे दिल वापस मिलेंगे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-11-18

ग़ज़ल (तिजारत हुक्मरानी हो गई है)

बह्र:- 1222  1222  122

तिजारत हुक्मरानी हो गई है,
कहीं गुम शादमानी हो गई है।

न गांधी शास्त्री से अब हैं रहबर,
शहादत उनकी फ़ानी हो गई है।

कहाँ ढूँढूँ तुझे ओ नेक नियत,
तेरी गायब निशानी हो गई है।

तेरा तो हुश्न ही दुश्मन है नारी,
कठिन इज्जत बचानी हो गई है।

लगी जब बोलने बिटिया हमारी,
वो घर में सबकी नानी हो गई है।

तू आयी जिंदगी में जब से जानम,
तेरी हर शय सुहानी हो गई है।

हमीं से चार लेकर एक दे कर,
'नमन' सरकार दानी हो गई है।

हुक्मरानी=शासन करना
तिजारत=व्यापार
शादमानी=खुशी
रहबर=पथ-प्रदर्शक

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-10-17

ग़ज़ल (रहें बस चुप! शराफ़त है)

बह्र:- 1222   1222   122

रहें बस चुप! शराफ़त है? नहीं तो,
जुबाँ खोलें? इजाजत है? नहीं तो।

करें हासिल अगर हक़ लड़के अपना,
तो ये लड़ना अदावत है? नहीं तो।

बड़े मासूम बन वादों से मुकरो,
कोई ये भी सियासत है? नहीं तो।

दिखाए आँख हाथी को जो चूहा,
भला उसकी ये हिम्मत है? नहीं तो।

है आमादा कोई गर जंग पर ही,
सुलह चाहें जलालत है? नहीं तो।

कयामत ढ़ा रही है मुफ़लिसी अब,
ज़रा भी दिल में हैरत है? नहीं तो।

'नमन' जुल्म-ओ-सितम पर चुप ही रहना,
यही दुनिया की फ़ितरत है? नहीं तो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
15-04-2017