Wednesday, September 29, 2021

नाग छंद विधान

 नाग छंद विधान

(स्वनिर्मित नव छंद)

नाग छंद कुल चार पद का छंद है जिसके प्रत्येक पद में 29 मात्रा होती है। तुकांतता दो दो पद में है। हर पद में दो दो चरण हैं। इस प्रकार छंद में कुल 8 चरण हैं। इस छंद में चार बहु प्रचलित छंदों का समावेश है। अब हर चरण का विधान ठीक से देखें।

1 और 3 चरण = श्रृंगार छंद (16 मात्रा); मात्रा बाँट 3-2-8-3 (ताल)।

2 और 4 चरण = रोला छंद का सम चरण (13 मात्रा); मात्रा बाँट 3-2-8।

5 और 7 चरण = दोहा छंद का विषम चरण (13 मात्रा); मात्रा बाँट 8-2-1-2।

6 और 8 चरण = चौपाई छंद (16 मात्रा); ठीक चौपाई छंद वाला विधान।

छंद जिस पंचकल (3-2) से प्रारंभ होता है उसी पंचकल पर समाप्त होना चाहिए। कुण्डली मार के बैठना नाग की विशेषता है और यह छंद भी कुण्डलाकृति में है जो छंद के नाम की सार्थकता दिखाता है। छंद के चौथे चरण के अठकल की पांचवे चरण में आवृत्ति होती है। लय तथा गायन में यह बहुत ही मधुर छंद है।

स्वरचित उदाहरण-

नाग छंद "सार तत्व"

सुखों का है बस ये ही सार, प्रीत सब से रख नर ले।
जगत में रहना है दिन चार, राम-रस अनुभव कर ले।
अनुभव कर ले प्रीत यदि, प्राणी कर ले नाश दुखों का।
भव-सागर के बंध में, भर लेता भंडार सुखों का।।

द्रष्टव्य: छंद जिस पंचकल (सुखों का) से प्रारंभ हो रहा है उसी पर समाप्त हो रहा है। चौथे चरण के रोला के अठकल (अनुभव कर ले) की पुनरावृत्ति पंचम चरण के दोहा में हो रही है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-05-21

Monday, September 27, 2021

पंचिक "विविध-3"

 पंचिक

"विविध-3"

फलों की दुकान खोली नयी नयी सबरजीत,
गाने लगे लोग जल्द मधुर फलों के गीत।
पूछा मैंने, क्यों रे भाई,
फल तेरे ज्यों मिठाई,
झट बोला, 'सबर का फल मिले सदा स्वीट'।।
*****

दुखपुर में थी एक बाला खुशी नाम वाली,
आँसुओं से भरती थी जब कभी नेत्र-प्याली।
घरवाले घेर लेते,
उसको दिलासा देते,
'खुशी के हैं आँसू' बोल बोल बजा कर ताली।।
*****

मास भर पहले ही जो थे बने हुये दूल्हा,
फूंक मार मार बुझा रहे गैस का वे चूल्हा।
'अब तक तूने क्या भैंसे ही चराई',
सर पे सवार घरवाली गुर्राई,
उनके थे तब पाँव इनका सूजा कूल्हा।।
*****

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-12-2020

Thursday, September 23, 2021

मंजुभाषिणी छंद "शहीद दिवस"

मंजुभाषिणी छंद 

"शहीद दिवस"

इस देश की भगत सिंह शान है।
सुखदेव राजगुरु आन बान है।।
हम आह आज बलिदान पे भरें।
उन वीर की चरण वन्दना करें।।

अति घोर कष्ट कटु जेल के सहे।
चढ़ फांस-तख्त पर भी हँसे रहे।।
निज प्राण देश-हित में जिन्हें दिये।
उनको लगा कर सदा रखें हिये।।

तिथि मार्च तेइस शहीद की मने।
उनके समान जन देश के बने।।
प्रण आज ये हृदय धार लें सभी।
नहिं देश का हनन गर्व हो कभी।।

हम पुष्प अर्पित समाधि पे करें।
इस देश की सब विपत्तियाँ हरें।।
यह भाव-अंजलि सही तभी हुये।
जब विश्व भी चरण देश के छुये।।

(23 मार्च शहीद दिवस पर श्रद्धान्जलि।)
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मंजुभाषिणी छंद विधान -

"सजसाजगा" रचत 'मंजुभाषिणी'।
यह छंद है अमिय-धार वर्षिणी।।

"सजसाजगा" = सगण जगण सगण जगण गुरु।

112 121 112 121+गुरु = कुल 13 वर्ण की वर्णिक छंद।
चार चरण, दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
23-03-17

Wednesday, September 22, 2021

मुक्तक "हालात"

हालात से अभी मैं हिला तक ज़रा नहीं,
पर जख्म इस जहाँ का दिया भी भरा नहीं,
अहले जहाँ ये जान ले लड़ता रहूँगा मैं,
सुन लो जमाने वालों अभी मैं मरा नहीं।

(221  2121 1221  212)
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सदियों से चली आई रफ़्तार न बदलेंगे,
सुख दुख से भरा जो भी संसार न बदलेंगे,
ज़ालिम ओ जमाना सुन, चाहे तो बदल जा तू,
हालात हों कैसे भी दस्तार न बदलेंगे।

(221  1222)*2
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
16-8-18

Monday, September 20, 2021

पावन छंद "सावन छटा"

 पावन छंद

"सावन छटा"

सावन जब उमड़े, धरणी हरित है।
वारिद बरसत है, उफने सरित है।।
चातक नभ तकते, खग आस युत हैं।
मेघ कृषक लख के, हरषे बहुत हैं।।

घोर सकल तन में, घबराहट रचा।
है विकल सजनिया, पिय की रट मचा।।
देख हृदय जलता, जुगनू चमकते।
तारक अब लगते, मुझको दहकते।।

बारिस जब तन पे, टपकै सिहरती।
अंबर लख छत पे, बस आह भरती।।
बाग लगत उजड़े, चुपचाप खग हैं।
आवन घर उन के, सुनसान मग हैं।।

क्यों उमड़ घुमड़ के, घन व्याकुल करो।
आ झटपट बरसो, विरहा सब हरो।।
हे प्रियतम लख लो, तन का लरजना।
आ कर तुम सुध लो, बन मेघ सजना।।
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पावन छंद विधान:-

"भानजुजस" वरणी, यति आठ सपते।
'पावन' यह मधुरा, सब छंद जपते।।

"भानजुजस" = भगण नगण जगण जगण सगण
यति आठ सपते = यति आठ और सात वर्ण पे।

211 111 121 121 112 = 15 वर्ण,यति 8,7
चार चरण दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
12-09-17

Saturday, September 18, 2021

दोहा छंद "सद्गुण"

(दोहा छंद)

सद्गुण सरस सुगन्ध से, महकायें जग आप।
जो आयें संपर्क में, उनके हर लें ताप।।

अंकुश रहे विवेक का, यह सद्गुण सिरमौर।
मन-मतंग वश में रहे, क्या बाकी फिर और।।

विनय धार हरदम रखें, यह सद्गुण की खान।
कायम कुल की यह रखे, आन, बान अरु शान।।

सद्गुण कुछ पाला नहीं, पर भीषण आकार।
थोथा खाली ढोल ज्यों, बजे बिना कुछ सार।।

धारण कर अवतार प्रभु, करें पाप का अंत।
सद्गुण स्थापित वे करें, करते नष्ट असंत।।

जो नर भागें कर्म से, सद्गुण से हों दूर।
असफलता पर वे कहें, खट्टे हैं अंगूर।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
16-06-19

Friday, September 17, 2021

मोदीजी जन्म दिवस

मुक्तक (32 मात्रिक छंद)

अहो भाग्य भारत का यह है, मोदी जी सा नेता पाया,
देव विश्व कर्मा की तिथि पर, जन्म दिवस उनका शुभ आया,
इकहत्तरवें जन्म दिवस की, भावों भरी बधाई उनको,
भारत की क्षमता का लोहा, जग भर से जिनने मनवाया।

(हमारे प्रिय प्रधानमंत्री मोदीजी को जन्मदिन की अशेष बधाई और अनंत शुभकामनाएँ।)
 👋🏵️🌷🏵️👋

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया (असम)
17-9-21

Wednesday, September 8, 2021

ताँका (राजनीति)

ताँका विधा - (जापानी विधा)
(5-7-5-7-7)

नेता वंदन
लोकतंत्र छेदन
राष्ट्र क्रंदन,
स्वार्थ का हो नर्तन
चापलूसी वर्तन।
**

तुष्टिकरण
स्वार्थ परिपोषक
छद्मावरण,
भावना का मरण
कपट का भरण।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-06-19

Sunday, September 5, 2021

शार्दूलविक्रीडित छंद "हिन्दी यशोगान"

 शार्दूलविक्रीडित छंद 

"हिन्दी यशोगान"

हिन्दी भारत देश के गगन में, राकेश सी राजती।
भाषा संस्कृत दिव्य हस्त इस पे, राखे सदा साजती।।
सारे प्रांत रखे कई विविधता, देती उन्हे एकता।
हिन्दी से पहचान है जगत में, देवें इसे भव्यता।।

ये उच्चारण खूब ही सुगम दे, जैसा लिखो वो पढ़ो।
जो भी संभव जीभ से कथन है, वैसा इसी में गढ़ो।।
ये चौवालिस वर्ण और स्वर की, भाषा बड़ी सोहनी।
हिन्दी को हम मान दें हृदय से, ये विश्व की मोहनी।।

छंदों को गतिशीलता मधुर दे, ये भाव संचार से।
भावों को रस, गंध, रूप यह दे, नाना अलंकार से।।
शब्दों का सुविशाल कोष रखती, ये छंद की खान है।
गीता, वेद, पुरान, शास्त्र- रस के, संगीत की गान है।।

मीरा ने इसमें रचे भजन हैं, ये सूर की तान है।
हिन्दी पंत, प्रसाद और तुलसी, के काव्य का पान है।।
मीठी ये गुड़ के समान लगती, सुस्वाद सारे चखें।
हिन्दी का हम शीश विश्व भर में, ऊँचा सभी से रखें।। 
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शार्दूलविक्रीडित छंद विधान -

"मैं साजूँ सतताग" वर्ण दश नौ, बारा व सप्ता यतिम्।
राचूँ छंद रसाल चार पद की, 'शार्दूलविक्रीडितम्'।।

"मैं साजूँ सतताग" = मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण और गुरु।
222  112  121 112// 221  221  2

आदौ राम, या कुन्देन्दु, कस्तूरी तिलकं जैसे मनोहारी श्लोकों की जननी छंद।इस चार पदों की वर्णिक छंद के प्रत्येक पद में कुल 19 वर्ण होते हैं और यति 12 और 7 वर्ण पर है।
दो दो या चारों पद सम तुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
11-08-2016

Friday, September 3, 2021

ग़ज़ल (भारत पर अभिमान रखूँ)

22  22  22  2

भारत पर अभिमान रखूँ,
अपना सीना तान रखूँ।

देश ही मेरा सब कुछ है,
मन में बस ये शान रखूँ।

भाषा और धर्म के अपने,
गौरव का मैं मान रखूँ।

दुश्मन की हर हलचल पर,
खुल्ली आँखें, कान रखूँ।

हाँ, इस युग में ढ़ल न सका,
पर-पीड़ा का भान रखूँ।

दीन दुखी की सेवा का,
तन-मन-धन से ध्यान रखूँ।

देश 'नमन' शत बार तुझे,
तुझ से ही पहचान रखूँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
31-12-2018