Monday, March 28, 2022

मुक्तक "बेवफाई"

शुरू बेवफ़ाई की जब भी, चर्चाएँ हो जाती हैं,
असफल प्रेम कथाओं की सब, यादें मन में छाती हैं,
इश्क़ मुहब्बत छोड़ और भी, ग़म दुनिया में हैं यारो,
आज बेवफ़ा नेताओं की, चालें कम न रुलाती हैं।

(ताटंक छंद)
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वार पीठ में करते देखा, लोगों को नज़दीकी से,
हुआ सामना तभी हमारा, दुनिया की तारीकी से,
देख बेवफ़ाई अपनों की, अश्क़ लहू के पीते हैं,
रंग बदलती इस दुनिया का, चखा स्वाद बारीकी से।

(ताटंक छंद)
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जो खाया जख्म अपनों से बताया भी नहीं जाता।
लगा है दिल के भीतर ये दिखाया भी नहीं जाता।
बड़ा बेचैन हूँ यारो करूँ भी तो करूँ क्या मैं।
कहीं अब और दुनिया छोड़ जाया भी नहीं जाता।।

(विधाता छंद वाचिक)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-08-17

Thursday, March 24, 2022

त्रिभंगी छंद

 त्रिभंगी छंद "भारत की धरती"


भारत की धरती, दुख सब हरती, 
हर्षित करती, प्यारी है।
ये सब की थाती, हमें सुहाती, 
हृदय लुभाती, न्यारी है।।
ऊँचा रख कर सर, हृदय न डर धर, 
बसा सुखी घर, बसते हैं।
सब भेद मिटा कर, मेल बढ़ा कर, 
प्रीत जगा कर, हँसते हैं।।

उत्तर कशमीरा, दक्षिण तीरा, 
सागर नीरा, दे भेरी।।
अरुणाचल बाँयी, गूजर दाँयी, 
बाँह सुहायी, है तेरी।
हिमगिरि उत्तंगा, गर्जे गंगा, 
घुटती भंगा, मदमाती।।
रामेश्वर पावन, बृज वृंदावन, 
ताज लुभावन, है थाती।

संस्कृत मृदु भाषा, योग मिमाँसा, 
सारी त्रासा, हर लेते।
अज्ञान निपातन, वेद सनातन, 
रीत पुरातन, हैं देते।।
तुलसी रामायन, गीता गायन, 
दिव्य रसायन, हैं सारे।
पादप हरियाले, खेत निराले, 
नद अरु नाले, दुख हारे।।

नित शीश झुकाकर, वन्दन गाकर, 
जीवन पाकर, रहते हैं।
इस पर इठलाते, मोद मनाते, 
यश यह गाते, कहते हैं।।
नव युवकों आओ, आस जगाओ, 
देश बढ़ाओ, तुम आगे।
भारत की महिमा, पाये गरिमा, 
बढ़े मधुरिमा, सब जागे।।
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त्रिभंगी छंद विधान -

त्रिभंगी छंद प्रति पद 32 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है। यह 4 पद का छंद है। प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत होनी आवश्यक है। परन्तु अभ्यांतर समतुकांतता यदि तीनों यति में निभाई जाय तो सर्वश्रेष्ठ है। पदान्त तुकांतता दो दो पद की आवश्यक है।

प्राचीन आचार्य केशवदास, भानु कवि, भिखारी दास के जितने उदाहरण मिलते हैं उनमें अभ्यान्तर तुकांतता तीनों यति में है, परंतु रामचरित मानस में तुकांतता प्रथम दो यति में ही निभाई गई है। कई विद्वान मानस के इन छंदों को दंडकला छंद का नाम देते हैं जिसमें यति 10, 8, 14 मात्रा की होती है।

मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है:-
प्रथम यति- 2+4+4
द्वितीय यति- 4+4
तृतीय यति- 4+4
पदान्त यति- 4+S (2)
चौकल में पूरित जगण वर्जित रहता है तथा चौकल की प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता।

पदान्त में एक दीर्घ (S) आवश्यक है लेकिन दो दीर्घ हों तो सौन्दर्य और बढ़ जाता है।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
18-02-18

Saturday, March 19, 2022

हाइकु विधा

हाइकु विधा "विविध"

है रूखापन
तृषित तभी तन
रोता है मन।
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सीने जगत
भाई भतीजावाद
खूब पलता
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बजायी बीन
हैं जुगाली में लीन
हृदय-हीन।
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तृण बिखरे
कूड़ा पसरे, जुड़े
घर निखरे।
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हाइकु विधा - हाइकु सत्रह (१७) अक्षर में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ और तीसरी में ५ अक्षर रहते हैं। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है, जैसे 'सुगन्ध' में तीन अक्षर हैं - सु-१, ग-१, न्ध-१) तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात एक ही वाक्य को ५,७,५ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
13-11-2020

Tuesday, March 15, 2022

शिखरिणी छंद

 शिखरिणी छंद "भारत वंदन"


बड़ा ही प्यारा है, जगत भर में भारत मुझे।
सदा शोभा गाऊँ, पर हृदय की प्यास न बुझे।।
तुम्हारे गीतों को, मधुर सुर में गा मन भरूँ।
नवा माथा मेरा, चरण-रज माथे पर धरूँ।।

यहाँ गंगा गर्जे, हिमगिरि उठा मस्तक रखे।
अयोध्या काशी सी, वरद धरणी का रस चखे।।
यहाँ के जैसे हैं, सरित झरने कानन कहाँ।
बिताएँ सारे ही, सुखमय सदा जीवन यहाँ।।

दया की वीणा के, मुखरित हुये हैं स्वर जहाँ।
सभी विद्याओं में, अति पटु रहे हैं नर जहाँ।।
उसी की रक्षा में, तन मन लगा तत्पर रहूँ।
जरा भी बाधा हो, अगर इसमें तो हँस सहूँ।।

खुशी के दीपों की, जगमग यहाँ लौ नित जगे।
हमें प्राणों से भी, अधिक प्रिय ये भारत लगे।।
प्रतिज्ञा ये धारूँ, दुखित जन के मैं दुख हरूँ।
इन्हीं भावों को ले, 'नमन' तुम को अर्पित करूँ।।
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शिखरिणी छंद विधान -

रखें छै वर्णों पे, यति "यमनसाभालग" रचें।
चतुष् पादा छंदा, सब 'शिखरिणी' का रस चखें।।

"यमनसाभालग" = यगण, मगण, नगण, सगण, भगण लघु गुरु ( कुल 17 वर्ण की वर्णिक छंद।)

122  222,  111  112  211 12

(शिव महिम्न श्लोक इसी छंद में है।)
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
08-01-2019

Saturday, March 12, 2022

ग़ज़ल (बदगुमानी की अब इंतिहा चाहिए)

बह्र:- 212*4

बदगुमानी की अब इंतिहा चाहिए,
ज़िंदगी की नयी इब्तिदा चाहिए।

लू सी नफ़रत की झेलीं बहुत आँधियाँ,
ठंड दे अब वो बाद-ए-सबा चाहिए।

मेरी नाकामियों से भरी कश्ती को,
पार कर दे वो अब नाखुदा चाहिए।

राह-ए-उल्फ़त में अब तक मिलीं ठोकरें,
इश्क़ का आखिरी मरहला चाहिए।

देश का और खुद का उठा सर चलूँ,
दिल में वैसी ही मुझको अना चाहिए।

नेस्तनाबूद दुश्मन को करते समय,
जान दे मैं सकूँ वो कज़ा चाहिए।

पेश सबसे मुहब्बत से आया 'नमन',
कुछ तो उसको भी इसका सिला चाहिए।

बदगुमानी- सन्देह परक दृष्टि, असंतुष्टि
बाद-ए-सबा- पुरवाई
नाखुदा- मल्लाह, नाविक
मरहला- मंजिल, पड़ाव
अना- आत्म गौरव

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-06-19

Tuesday, March 8, 2022

तोमर छंद

तोमर छंद "अव्यवस्था"


हर नगर है बदहाल।
अब जरा देख न भाल।।
है व्यवस्था लाचार।
दिख रही चुप सरकार।।

वाहन खड़े हर ओर।
चरते सड़क पर ढोर।।
कुछ बची शर्म न लाज।
हर तरफ जंगल राज।।

मन मौज में कुछ लोग।
हर चीज का उपयोग।।
वे करें निज अनुसार।
बन कर सभी पर भार।।

ये दौड़ अंधी आज।
जा रही दब आवाज।।
आराजकों का शोर।
बस अब दिखाये जोर।।
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तोमर छंद विधान -

यह 12 मात्रा का सम-पद मात्रिक छंद है। अंत ताल (21) से आवश्यक। इसकी मात्रा बाँट:- द्विकल-सप्तकल-3 (केवल 21)
(द्विकल में 2 या 11 मान्य तथा सप्तकल का 1222, 2122, 2212,2221 में से कोई भी रूप हो सकता है।)

चार चरण। दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
21-09-19