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Monday, May 17, 2021

कहमुकरी विवेचन

*कहमुकरी* साहित्यिक परिपेक्ष में:-

हिंदी किंवा संस्कृत साहित्य में अर्थचमत्कृति के अन्तर्गत दो अलंकार विशेष रूप से प्रयुक्त होते हैं,, पहला श्लेष व दूसरा छेकापहृति,, श्लेष में कहने वाला अलग अर्थ में कहता है व सुनने वाला उसका अलग अर्थ ग्रहण करता है,, पर छेकापहृति में प्रस्तुत को अस्वीकार व अप्रस्तुत को स्वीकार करवाया जाता है,,

कहमुकरीविधा छेकापहृति अलंकार का अनुपम उदाहरण है,, आईये देखते हैं एक उदाहरण:-

वा बिन रात न नीकी लागे
वा देखें हिय प्रीत ज जागे
अद्भुत करता वो छल छंदा
क्या सखि साजन? ना री चंदा

यहाँ प्रथम तीन पंक्तियां स्पष्ट रूप से साजन को प्रस्तुत कर रही है,, पर चौथी पंक्ति में उस प्रस्तुत को अस्वीकृत कर अप्रस्तुत (चंद्रमा) को स्वीकृत किया गया है,, यही इस विधा की विशेषता व काव्यसौंदर्य है।

वैयाकरणी दृष्टि से यह बड़ा सरल छंद है,, मूल रूप से इसके दो विधान प्रचलित है,, प्रति चरण 16 मात्रायें, चार चरण व प्रति चरण 15 मात्रायें चार चरण,

गेयता अधिकाधिक द्विकल के प्रयोग से स्पष्ट होती है इस छंद में,, इस लिए इसके वाचिक मात्राविन्यास निम्न हैं:-

या तो 22 22 22 22
या 22 22 22 21

इसके चार चरणों में दो दो चरण समतुकांत रखने की परिपाटी है।

इस विधा में एक प्रश्न बहुत बार उठता है कि,, क्या सखि साजन,,, यहाँ,, साजन, के स्थान पर अन्य शब्द प्रयोज्य है या नहीं? कुछ विद्वान इसका निषेध करते हैं व कुछ इसे ग्राह्य मानते है।

इसे पनघट पर जल भरती सखियों की चूहलबाजियों से उत्पन्न विधा माना गया है,, इसलिए स्वाभाविक रूप से,, साजन,, शब्द के प्रति पूर्वाग्रह,, समझ में आता है, इस विवाद को दूर करने के लिए व इसमें नवाचार को मान्यता देने के लिए, आजकल *नवकहमुकरी* शब्द भी काम में लिया जाता है,, जिसमें,, साजन,, के स्थान पर कोई अन्य शब्द प्रयुक्त हो,,

बहुत ही सरस व मनोरंजक विधा है,, जिसमें कवि का भावविलास व कथ्य चातुर्य अनुपम रूप से उजागर होता है,,

आईये कुछ उदाहरण और देखें

(नवकहमुकरी) 

पहले पहल जिया घबरावे
का करना कछु समझ न आवे
धीरे धीरे उसमे खोई
का सखि शय्या? अरी! रसोई

(कहमुकरी) 

हर पल साथ, नजर ना आवे
मन में झलक दिखा छिप जावे
ऐसे अद्भुत हैं वो कंता
ऐ सखि साजन? ना भगवंता

सादर समीक्षार्थ व अभ्यासार्थ:-

जय गोविंद शर्मा
लोसल

Wednesday, January 22, 2020

कहमुकरी (दिवाली)

जगमग जगमग करता आये,
धूम धड़ाका कर वह जाये,
छा जाती उससे खुशयाली,
क्या सखि साजन? नहीं दिवाली।

चाव चढ़े जब घर में आता,
फट पड़ता तो गगन हिलाता,
उत्सव इस बिन किसने चाखा,
क्या सखि साजन? नहीं पटाखा।

ये बुझता होता अँधियारा,
खिलता ये छाता उजियारा,
इस बिन करता धक-धक जीया
क्या सखि साजन, ना सखि दीया।

गीत सुनाये जी बहलाये,
काम यही सुख दुख में आये,
उसके बिन हो जाऊँ घायल,
क्या सखि साजन? ना मोबायल।

जी करता चिपकूँ बस उससे,
बिन उसके बातें हो किससे,
उसकी हूँ मैं पूरी कायल,
क्या सखि साजन? ना मोबायल।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
10-10-18

Saturday, December 28, 2019

कहमुकरी (वाहन)

आता सीटी सा ये बजाता,
फिर नभ के गोते लगवाता,
मिटा दूरियाँ देता चैन,
क्या सखि साजन?ना सखि प्लैन।

सीटी बजा बढ़े ये आगे,
पहले धीरे फिर ये भागे,
इससे जीवन के सब खेल,
क्या सखि साजन? ना सखि रेल।

इसको ले बन ठन कर जाऊँ,
मन में फूली नहीं समाऊँ,
इस बिन मेरा सूना द्वार,
क्या सखि साजन? ना सखि कार।

वाहन ये जीवन का मेरा,
कहीं न लगता इस बिन फेरा,
सच्चा साथी रहता घुलमिल,
क्या सखि साजन? नहीं साइकिल।

रुक रुक मंजिल तय करता है,
पर हर दूरी को भरता है,
इस बिन हो न सकूँ मैं टस मस,
क्या सखि साजन? ना सखि ये बस।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-11-2018

Friday, August 16, 2019

कहमुकरी (विविध)

मीठा बोले भाव उभारे
तोड़े वादों में नभ तारे
सदा दिलासा झूठी देता
ए सखि साजन? नहिं सखि नेता!

सपने में नित इसको लपकूँ
मिल जाये तो इससे चिपकूँ
मेरे ये उर वसी उर्वसी
ए सखा सजनि? ना रे कुर्सी!

जिसके डर से तन मन काँपे
घात लगा कर वो सखि चाँपे
पूरा वह निष्ठुर उन्मादी
क्या साजन? न आतंकवादी!

गिरगिट जैसा रंग बदलता
रार करण वो सदा मचलता
उसकी समझुँ न कारिस्तानी
क्या साजन? नहिं पाकिस्तानी!

भेद न जो काहू से खोलूँ
इससे सब कुछ खुल के बोलूँ
उर में छवि जिसकी नित रखली
ए सखि साजन? नहिं तुम पगली!

बारिस में हो कर मतवाला,
नाचे जैसे पी कर हाला,
गीत सुनाये वह चितचोर,
क्या सखि साजन, ना सखि मोर।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
25-05-17

"कह मुकरी विधान"

कह मुकरी काव्य की एक पुरानी मगर बहुत खूबसूरत विधा है। यह चार पंक्तियों की संरचना है। यह विधा दो सखियों के परस्पर वार्तालाप पर आधारित है। जिसकी प्रथम 3 पंक्तियों में एक सखी अपनी दूसरी अंतरंग सखी से अपने साजन (पति अथवा प्रेमी) के बारे में अपने मन की कोई बात कहती है। परन्तु यह बात कुछ इस प्रकार कही जाती है कि अन्य किसी बिम्ब पर भी सटीक बैठ सकती है। जब दूसरी सखी उससे यह पूछती है कि क्या वह अपने साजन के बारे में बतला रही है, तब पहली सखी लजा कर चौथी पंक्ति में अपनी बात से मुकरते हुए कहती है कि नहीं वह तो किसी दूसरी वस्तु के बारे में कह रही थी ! यही "कह मुकरी" के सृजन का आधार है।

इस विधा में योगदान देने में अमीर खुसरो एवम् भारतेंदु हरिश्चन्द्र जैसे साहित्यकारों के नाम प्रमुख हैं ।

यह ठीक 16 मात्रिक चौपाई वाले विधान की रचना है। 16 मात्राओं की लय, तुकांतता और संरचना बिल्कुल चौपाई जैसी होती है। पहली एवम् दूसरी पंक्ति में सखी अपने साजन के लक्षणों से मिलती जुलती बात कहती है। तीसरी पंक्ति में स्थिति लगभग साफ़ पर फिर भी सन्देह जैसे कि कोई पहेली हो। चतुर्थ पंक्ति में पहला भाग 8 मात्रिक जिसमें सखी अपना सन्देह पूछती है यानि कि प्रश्नवाचक होता है और दुसरे भाग में (यह भी 8 मात्रिक) में स्थिति को स्पष्ट करते हुए पहली सखी द्वारा उत्तर दिया जाता है ।

हर पंक्ति 16 मात्रा, अंत में 1111 या 211 या 112 या 22 होना चाहिए। इसमें कहीं कहीं 15 या 17 मात्रा का प्रयोग भी देखने में आता है। न की जगह ना शब्द इस्तेमाल किया जाता है या नहिं भी लिख सकते हैं। सखी को सखि लिखा जाता है।

कुछ उदाहरण

1
बिन आये सबहीं सुख भूले।
आये ते अँग-अँग सब फूले।।
सीरी भई लगावत छाती।
ऐ सखि साजन ? ना सखि पाती।।
........अमीर खुसरो......

2
रात समय वह मेरे आवे।
भोर भये वह घर उठि जावे।।
यह अचरज है सबसे न्यारा।
ऐ सखि साजन ? ना सखि तारा।।
........अमीर खुसरो......

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'