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Monday, December 9, 2019

रुचि छंद "कालिका स्तवन"

माँ कालिका, लपलप जीभ को लपा।
दुर्दान्तिका, रिपु-दल की तु रक्तपा।।
माहेश्वरी, खड़ग धरे हुँकारती।
कापालिका, नर-मुँड माल धारती।।

तू मुक्त की, यह महि चंड मुंड से।
विच्छेद के, असुरन माथ रुंड से।।
गूँजाय दी, फिर नभ अट्टहास से।
थर्रा गये, तब त्रयलोक त्रास से।।

तू हस्त में, रुधिर कपाल राखती।
आह्लादिका,असुर-लहू चाखती।।
माते कृपा, कर अवरुद्ध है गिरा
पापों भरे, जगत-समुद्र से तिरा।।

हो सिंह पे, अब असवार अम्बिका।
संसार का, सब हर भार चण्डिका।।
मातेश्वरी, वरद कृपा अपार दे।
निस्तारिणी, जगजननी तु तार दे।।
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लक्षण छंद:-

"ताभासजा, व ग" यति चार और नौ।
ओजस्विनी, यह 'रुचि' छंद राच लौ।।

"ताभासजा, व ग" = तगण भगण सगण जगण गुरु
(221  211  112   121   2)
13 वर्ण, 4 चरण, (यति 4-9)
[दो-दो चरण समतुकांत]
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-01-19