Showing posts with label अनुष्टुप छंद. Show all posts
Showing posts with label अनुष्टुप छंद. Show all posts

Friday, May 20, 2022

अनुष्टुप छंद (गुरु पंचश्लोकी)


सद्गुरु-महिमा न्यारी, जग का भेद खोल दे।
वाणी है इतनी प्यारी, कानों में रस घोल दे।।

गुरु से प्राप्त की शिक्षा, संशय दूर भागते।
पाये जो गुरु से दीक्षा, उसके भाग्य जागते।।

गुरु-चरण को धोके, करो रोज उपासना।
ध्यान में उनके खोकेेे, त्यागो समस्त वासना।।

गुरु-द्रोही नहीं होना, गुरु आज्ञा न टालना।
गुरु-विश्वास का खोना, जग-सन्ताप पालना।।

गुरु के गुण जो गाएं, मधुर वंदना करें।
आशीर्वाद सदा पाएं, भवसागर से तरें।।
******************

अनुष्टुप छंद विधान -

यह छंद अर्द्ध समवृत्त है । यह द्विपदी छंद है जिसके पद में दो चरण होते हैं। इस के प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं । पहले चार वर्ण किसी भी मात्रा के हो सकते हैं । पाँचवाँ लघु और छठा वर्ण सदैव गुरु होता है । सम चरणों में सातवाँ वर्ण लघु और विषम चरणों में गुरु होता है। आठवाँ वर्ण संस्कृत में तो लघु या गुरु कुछ भी हो सकता है। संस्कृत में छंद के चरण का अंतिम वर्ण लघु होते हुये भी दीर्घ उच्चरित होता है जबकि हिन्दी में यह सुविधा नहीं है। अतः हिन्दी में आठवाँ वर्ण सदैव दीर्घ ही होता है।

(1) × × × × । ऽ ऽ ऽ, (2) × × × × । ऽ । ऽ
(3) × × × × । ऽ ऽ ऽ, (4) × × × × । ऽ । ऽ

उपरोक्त वर्ण विन्यास के अनुसार चार चरणों का एक छंद होता है। सम चरण (2, 4) समतुकांत होने चाहिए। रोचकता बढाने के लिए चाहें तो विषम चरण (1, 3) भी समतुकांत कर सकते हैं पर आवश्यक नहीं।

गुरु की गरिमा भारी, उसे नहीं बिगाड़ना।
हरती विपदा सारी, हितकारी प्रताड़ना।।
============

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
22-07-2016