Showing posts with label बह्र:- 2122 1212 22. Show all posts
Showing posts with label बह्र:- 2122 1212 22. Show all posts

Thursday, October 6, 2022

ग़ज़ल (हम जहाँ में किसी से कम तो नहीं)

बह्र:- 2122  1212  112/22

हम जहाँ में किसी से कम तो नहीं,
दब के रहने की ही कसम तो नहीं।

आँख दिखला के जीत लेंगे ये दिल,
ये कहीं आपका बहम तो नहीं।

हो भी सकता है इश्क़ जोर दिखा,
सोच भी ले ये वो सनम तो नहीं।

अम्न की बात गोलियों से करें,
आपका नेक ये कदम तो नहीं।

बात कर नफ़रतें मिटा जो सकें,
ऐसा भी आपमें है दम तो नहीं।

सोचिये, इतने बेक़रार हैं क्यों,
आपका ही दिया ये ग़म तो नहीं।

हर्फों से क्या 'नमन' रुला न सके,
इतनी कमजोर भी कलम तो नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
07-06-19

Saturday, April 9, 2022

ग़ज़ल (आज तक बस छला गया है मुझे)

बह्र:- 2122  1212  22

आज तक बस छला गया है मुझे,
दूर सच से रखा गया है मुझे।

गाम दर गाम ख्वाब झूठे दिखा,
रोज अब तक ठगा गया है मुझे।

अब इनायत सी लगती उनकी जफ़ा,
क्यों तु ग़म इतना भा गया है मुझे।

इंतज़ार उनका करते करते अब,
सब्र करना तो आ गया है मुझे।

उसने बस चार दिन पिलाई संग,
रोज का लग नशा गया है मुझे।

मेहमाँ बन कभी जो घर में बसा,
वो भिखारी बना गया है मुझे।

बेवफ़ाओं को जल्द भूल 'नमन',
सीख कोई सिखा गया है मुझे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-10-18

Saturday, January 8, 2022

ग़ज़ल (राह-ए-उल्फ़त में डट गये होते)

बह्र:- 2122  1212  22

राह-ए-उल्फ़त में डट गये होते,
खुद ब खुद ख़ार हट गये होते।

ज़ीस्त से भागते न मुँह को चुरा,
सब नतीज़े उलट गये होते।

प्यार की इक नज़र ही काफी थी,
पास हम उनके झट गये होते।

इश्क़ में खुश नसीब होते हम,
सारे पासे पलट गये होते।

सब्र का बाँध तोड़ देते गर,
अब्र अश्कों के फट गये होते,

बेहया ज़िंदगी न है 'मंज़ूर',
शर्म से हम तो कट गये होते।

साथ अपनों का गर हमें मिलता,
दर्द-ओ-ग़म कुछ तो घट गये होते।

दूर क्यों उनसे हो गये थे 'नमन',
उनके दर से लिपट गये होते।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
17-09-19

Saturday, December 4, 2021

ग़ज़ल (मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें)

बह्र:- 2122  1212  22

मौत का कुछ तो इंतज़ाम करें,
नेकियाँ थोड़ी अपने नाम करें।

कुछ सलीका दिखा मिलें पहले,
बात लोगों से फिर तमाम करें।

सर पे औलाद को न इतना चढ़ा,
खाना पीना तलक हराम करें।

दिल में सच्ची रखें मुहब्बत जो,
महफिलों में न इश्क़ आम करें।

वक़्त फिर लौट के न आये कभी,
चाहे जितना भी ताम झाम करें।

या खुदा सरफिरों से तू ही बचा,
रोज हड़तालें, चक्का जाम करें।

पाँच वर्षों तलक तो सुध ली नहीं,
कैसे अब उनको हम सलाम करें।

खा गये देश लूट नेताजी,
आप अब और कोई काम करें।

आज तक जो न कर सका था 'नमन',
काम वो उसके ये कलाम करें।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
23-11-2018

Friday, October 22, 2021

ग़ज़ल (बोझ लगने लगी जवानी है)

 ग़ज़ल (बोझ लगने लगी जवानी है)

बह्र:- 2122  1212  22

एक मज़ाहिया मुसलसल

बोझ लगने लगी जवानी है,
व्याह करने की मन में ठानी है।

सेहरा बाँध जिस पे आ जाऊँ,
पास में बस वो घोड़ी कानी है।

देख के शक़्ल दूर सब भागें,
फिर भी दुल्हन कोई मनानी है।

कैसी भी छोकरी दिला दे रब,
कितनी ज़हमत अब_और_उठानी है।

एक बस्ती बसे मुहब्बत की,
दिल की दुनिया मेरी विरानी है।

मैं परस्तिश करूँगा उसकी सदा,
जो भी इस दिल की बनती रानी है।

उसके बिन ज़िंदगी में अब तो 'नमन',
सूनी सी रात की रवानी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-06-18

Friday, March 5, 2021

ग़ज़ल (प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ)

बह्र:- 2122  1212  22

प्यास दिल की न यूँ बढ़ाओ तुम,
जान ले लो न पर सताओ तुम।

पास आ के जरा सा बैठो तो,
फिर न चाहे गलेे लगाओ तुम।

चोट खाई बहुत जमाने से,
कम से कम आँख मत चुराओ तुम।

इल्तिज़ा आख़िरी ये जानेमन,
अब तो उजड़ा चमन बसाओ तुम।

खुद की नज़रों से खुद ही गिर कर के,
आग नफ़रत की मत लगाओ तुम,

बीच सड़कों के क़त्ल, शील लुटे,
देख कर सब ये तिलमिलाओ तुम।

ख़ारों के बीच रह के भी ए 'नमन'
खुद भी हँस औरों को हँसाओ तुम।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
12-02-2017

Tuesday, May 5, 2020

ग़ज़ल (दिल में कैसी ये)

बह्र:- 2122  1212  22

दिल में कैसी ये बे-क़रारी है,
शायद_उन की ही इंतिज़ारी है।

इश्क़ में जो मज़ा वो और कहाँ,
इस नशे की अजब खुमारी है।

आज भर पेट, कल तो फिर फाका,
हमने वो ज़िंदगी गुज़ारी है।

दौर आतंक, लूट का ऐसा,
साँस लेना भी इसमें भारी है।

जिससे मतलब उसी से बस नाता,
आज की ये ही होशियारी है।

अब तो रहबर ही बन गये रहजन,
डर हुकूमत का सब पे तारी है।

उस नई सुब्ह की है आस 'नमन',
जिसमें दुनिया ही ये हमारी है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-07-19

Tuesday, April 7, 2020

ग़ज़ल (तेज़ कलमों की धार कौन करे)

बह्र:- 2122  1212   22

तेज़ कलमों की धार कौन करे,
दिल पे नग़मों से वार कौन करे।

जिनसे उम्मीद थी वो मोड़ें मुँह,
अब गरीबी से पार कौन करे।

जो मसीहा थे, वे ही अब डाकू,
उनके बिन लूटमार कौन करे।

आसमाँ ने समेटे सब रहबर,
अब हमें होशियार कौन करे।

पूछतीं कलियाँ भँवरे से तुझ को,
दिल का उम्मीदवार कौन करे।

आज खुदगर्ज़ी के जमाने में,
जाँ वतन पे निसार कौन करे।

आग नफ़रत की जो लगाते हैं,
उनको अब शर्मसार कौन करे।

*दाग़* पहले से ही भरें जिस में,
ऐसी सूरत को प्यार कौन करे।

आज ग़ज़लें 'नमन' हैं ऐसी जिन्हें,
शायरी में शुमार कौन करे।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-08-19

Monday, January 6, 2020

ग़ज़ल (इश्क़ की मेरी इब्तिदा है वो)

ग़ज़ल (इश्क़ की मेरी इब्तिदा है वो)

बह्र:- 2122  1212   22

इश्क़ की मेरी इब्तिदा है वो,
हमनवा और दिलरुबा है वो।

मेरा दिल तो है एक दरवाज़ा,
हर किसी के लिए खुला है वो।

आँख से जो चुरा ले काजल भी,
अपने फ़न में मजा हुआ है वो।

बाँध पट्टी जो जीता आँखों पे,
बैल जैसा ही जी रहा है वो।

आदमी खुद को जो ख़ुदा समझे,
पूरा अंदर से खोखला है वो।

दोष क्या दूसरों का है इस में, 
अपनी नज़रों से खुद गिरा है वो।

दिल उसे बा-वफ़ा भले ही कहे,
जानता हूँ कि बेवफ़ा है वो।

खुद में खुद को ही ढूंढ़ता जो बशर,
पारसा वो नहीं तो क्या है वो।

जो 'नमन' जग के वास्ते जीता,
ज़िंदगी अपनी जी चुका है वो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
8-10-19

Friday, September 6, 2019

ग़ज़ल (चहरे पे ये निखार)

ग़ज़ल (चहरे पे ये निखार)

बह्र:- 2122  1212  22/112

चहरे पे ये निखार किसका है?
आँखों में भी ख़ुमार किसका है?

जख्म दे छिप रहा जो, छोड़ उसे,
दिल के तीर_आर पार किसका है?

खायी चोटें ही दिल की सुन सुन के,
फिर बता एतबार किसका है?

सोचता हूँ मगर न लब खुलते,
मुझ पे इतना ये भार किसका है?

चूर सत्ता के मद में जो हैं सुनें,
बे-रहम वक़्त यार किसका है?

मैं जमाने से क्यों चुराऊँ नज़र,
मेरे सर पर उधार किसका है?

कोई बतला तो दे ख़ुदा के सिवा,
ये 'नमन' ख़ाकसार किसका है?

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
06-05-18