Friday, November 25, 2022

पिरामिड (रो, मत)

रो
मत
नादान,
छोड़ दे तू
सारा अज्ञान।
जगत का रहे,
धरा यहीं सामान।।1।।

तू
कर 
स्वीकार,
उसे जो है
जग-आधार।
व्यर्थ और सारे,
तत्व एक वो सार।।2।।


ये
तन
दीपक,
बाती मन
तेल  मनन
शब्दों का स्फुरण
काव्य-ज्योति स्फुटन।।3।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
2-04-19

Saturday, November 19, 2022

छंदा सागर (छंदा संकेतक)

                         पाठ - 04

छंदा सागर ग्रन्थ

(छंदा संकेतक)


छंदा में वर्ण और गुच्छक के अतिरिक्त कई प्रकार के संकेतक का प्रयोग होता है। जिनके बारे में विस्तार से जानना अत्यंत आवश्यक है। मुख्य रूप से संख्यावाचक संकेतक प्रयुक्त होते हैं। छंदाओं के नाम इस प्रकार हैं कि उनके नाम में ही उस छंदा में प्रयुक्त गुच्छक और वर्णों की संख्या तथा विधान स्पष्ट हो जाता है। नामकरण के कुछ विशेष नियम हैं जिन्हें बहुत गंभीरता से समझने की आवश्यकता है।

संख्या वाचक अक्षर:- छंदा में संख्या वाचक संकेताक्षरों से गुच्छक और वर्णों की कितनी आवृत्ति है इसका पता चलता है। इनसे कल का भी पता चलता है। ये निम्न हैं। 

क = 1, एक से क वर्ण लिया गया है।
द = 2, दो से द वर्ण लिया गया है।
ब = 3, तगण के कारण त अनुपलब्ध इसलिए ब वर्ण लिया गया है।
च = 4, चार से च वर्ण लिया गया है।
प = 5, पाँच से प वर्ण लिया गया है।
ट = 6, षट से ट वर्ण लिया गया है।
ड = 7, सगण के कारण स अनुपलब्ध इसलिए ड वर्ण लिया गया है।
ठ = 8, आठ से ठ वर्ण लिया गया है।
व = 9, नव से व वर्ण लिया गया है।

इन वर्णों में मात्राओं का भी विशेष अर्थ है। आगे हम उदाहरण सहित एक एक संख्या वाचक को समझेंगे।

क:- = 1, किसी भी गुच्छक या वर्ण का संकेतक सदैव उस गुच्छक या वर्ण की एक आवृत्ति दर्शाता है। अतः एक आवृत्ति दर्शाने के लिए क संकेतक का प्रयोग अनावश्यक है। परन्तु कई बार छंदा के नाम को पूर्णता प्रदान करने के लिए इस संकेतक का 'क' या 'का' के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह वाचिक छंदाओं के अंत में 'क' या 'का' के रूप में जुड़ता है। उदाहरणार्थ 1222*1 = यीका, 11212*1 = सूका आदि। सूका नामकरण को भलीभांति समझें। स और ऊकार क्रमशः सगण (112) तथा इलगा वर्ण (12) के संकेतक हैं। इस प्रकार 'सू' से ऊसालग गणक (11212) का रूप सामने आ जाता है। जबकि 'सू' का अर्थ 11212 है, परन्तु इसमें 'का' जुड़ने से नाम को पूर्णता मिलती है।

द:- = 2, 'द' वर्ण द्विगुणित करने के लिए 'द' या 'दा' के रूप में जुड़ता है जो अपने से ठीक पहले आये गुच्छक, वर्ण या अन्य संकेतक को द्विगुणित कर देता है। जैसे 1222*2 = यीदा। 'दा' ईयग गणक को द्विगुणित कर रहा है। 2222*2  222 = मीदम। इसमें 'द' वर्ण ईमग गणक को द्विगुणित कर रहा है।

ब:- = 3, 'ब' वर्ण भी 'द' की तरह अपने से ठीक पहले आये गुच्छक या अन्य संकेतक को त्रिगुणित करता है। यह भी 'ब' या 'बा'  के रूप में जुड़ता है। जैसे 212*3 = राबा। 'बा' रगण को त्रिगुणित कर रहा है। 2222*3  22 = मिबगी। 

च:- = 4, 'च' वर्ण  'च' या 'चा'  के रूप में जुड़ता है जो अपने से पहले आये गुच्छक को चौगुणा कर देता है। जैसे- 1222*4 का नाम होगा यीचा।

छंदाओं में प्रमुख रूप से उपरोक्त चार संख्यावाचक संकेतक का ही प्रयोग होता है। सवैया आदि की छंदाओं में चार से अधिक आवृत्ति दर्शाने के लिए प, ट, ड, ठ संकेतक का भी प्रयोग होता है जो हम सवैया की छंदाओं के आवंटित पाठ में देखेंगे।

संख्यावाचक में मात्राओं का प्रयोग:-

संख्यावाचक संकेताक्षर में क्या मात्रा जुड़ी है, इसका बहुत महत्व है। अब हम एक एक मात्रा का विशेष अर्थ और प्रयोग समझेंगे।

'अ' या 'आ' :- आवृत्ति दर्शाने के लिए जो हम ऊपर के उदाहरणों में देख चुके हैं।

'इ' या 'ई' :- इकार युक्त संकेतक बहुत ही विशेष है। इसका प्रयोग मात्रा रहित वर्ण की संख्या दर्शाने के लिए होता है। जैसे ची का अर्थ हुआ मात्रा रहित 4 वर्ण का समूह। मात्रा रहित वर्ण में संयुक्त अक्षर भी मान्य हैं। पर इ और ई में अनुस्वार का प्रयोग यह संभावना भी समाप्त कर देता है। जैसे 'ठीं' का अर्थ हुआ 8 मात्रा रहित वर्ण जिसमें संयुक्ताक्षर भी नहीं आने चाहिए। घनाक्षरी तथा कुछ विशेष छंद में ही इस संकेतक का प्रयोग  होता है।

'उ' या 'ऊ' :- उकार का प्रयोग मात्रिक छंदाओं में कल की संख्या दर्शाने के लिए होता है। इस संकेतक से विषम कल की संख्या दर्शायी जाती है। यह संकेतक बु या बू, पु या पू, डु या डू तथा वु या वू के रूप में प्रयुक्त होता है। कल पर आवंटित पाठ में इस पर विस्तार से प्रकाश डाला जाएगा। 

'ए' :- इसका प्रयोग मात्रिक छंदाओं में दीर्घ वर्ण के लिए होता है। मात्रिक छंदों में गुरु वर्ण को दीर्घ रूप में भी रखा जा सकता है तथा दो लघु के रूप में भी। पर कुछ छंदों के अंत में केवल दीर्घ वर्ण आवश्यक होते हैं। यह संकेतक 'के', 'दे' तथा 'बे' के रूप में प्रयुक्त होता है जो क्रमशः एक, दो और तीन दीर्घ वर्ण दर्शाता है।

'औ' :- औकार का प्रयोग मात्रिक छंदाओं में यति सहित ठीक अपने से पहले आये गुच्छक या अन्य संकेतक की आवृत्ति दर्शाने के लिए होता है। यह दौ, बौ, तथा चौ के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे डमरू घनाक्षरी की छंदा 'ठींचौ' है। इस छोटी सी छंदा में डमरू घनाक्षरी का पूर्ण विधान है।
ठीं संकेतक मात्रा रहित 8 वर्ण का समूह दर्शा रहा है। 'चौ' संकेतक इस समूह की यति सहित चार आवृत्ति दर्शा रहा है। 2 2222, 2222 = गमिदौ
यहाँ दौ संकेतक ठीक अपने से पहले आये केवल ईमग गणक (2222) की यति के साथ दो आवृत्ति दर्शा रहा है। वहीं गामिध छंदा = 2 2222, 2 2222 रूप दर्शायेगी।

'अं' :- संख्यावाचक में अनुस्वार आवृत्ति तथा यति दोनों का द्योतक है। यह दं बं के रूप में प्रयुक्त होता है। जैसे ताटंक छंद की छंदा "मीदंमीबे" है। इसका विश्लेषण करने से हमें 2222*2, 2222 SSS रूप प्राप्त होता है। मी का अर्थ ईमग गणक, दं इसकी दो आवृत्ति तथा यति दर्शा रहा है। फिर ईमग गणक यानी अठकल तथा अंत में 'बे' संकेतक तीन दीर्घ वर्ण के लिए है। यह बे संकेतक केवल मात्रिक छंदाओं में प्रयुक्त होता है इसलिए इससे छंदा का स्वरूप भी ज्ञात हो रहा है।

विशेष संकेतक:- 

ध:- = ?*2, 'ध' वर्ण बहुत ही विशेष है। यह द का महाप्राण है, जो द की तरह ही द्विगुणित करता है। परन्तु द जिस गुच्छक या वर्ण के पश्चात आता है केवल उसे द्विगुणित करता है जबकि ध अपने से पूर्व के आये समस्त संकेतक को पुनरावृत्त कर देता है। यह भूयः अर्थात पुनः के अर्थ में प्रयुक्त होता है जो अपने से पहले बनी खंड-छंदा को दोहरा देता है। यह 'ध' या 'धा' के रूप में जहाँ भी प्रयुक्त होता है, यति सहित खंड-छंदा को दोहराता है। दिये हुए उदाहरणों से इसे ठीक से समझें। 1222*2, 1222*2 का नाम है = यीदध। यह यीदा छंदा का यति के साथ द्विगुणित रूप है। 1222*4 = यीचा और इसमें अंतर है। यीदध में मध्य में यति पड़नी आवश्यक है जहाँ शब्द समाप्त होना चाहिये तथा यति सूचक विराम चिन्ह (,) का प्रयोग होना चाहिए। जबकि यीचा में यति आवश्यक नहीं है। 122*3, 122*3 = याबध, 122*4, 122*4 = याचध। एक वाचिक छंदा का नाम देखें। 12122 212, 12122 212 = जेरध। यहाँ 'ध' 'र' के पश्चात आया है परन्तु 'द' की तरह यह केवल 'र' को द्विगुणित न करके पूर्ण 'जेरा' को द्विगुणित कर रहा है। जिसका अर्थ हुआ "जेरा, जेरा"। यही ध संकेतक 'धु' या 'धू' के रूप में बिना यति के दोहराता है।

थ:- = ?*3, यह भी 'ध' संकेतक की तरह बहुत विशेष है। यह तीन के अर्थ में प्रयुक्त होता है जो अपने से पहले बनी खंड-छंदा को 'थ' तथा 'था' के रूप में यति सहित तिहरा देता है। 'थु' या 'थू' के रूप में बिना यति के त्रिगुणित करता है। इसका प्रयोग साधारणतया मात्रिक छंदाओं घनाक्षरी आदि में ही होता है।

ण :- ण वर्ण यति सूचक है जो छंदा के मध्य में 'ण' या 'णा' के रूप में प्रयुक्त होता है। इसके साथ ही जब यह ण या णा के रूप में ही छंदा के अंत में प्रयुक्त होता है तो यह छंदा का मात्रिक स्वरूप दर्शाता है। दोहा, सोरठा जैसे कई मात्रिक छंद द्विपदी छंद होते हैं। छंद का द्विपदी स्वरूप दर्शाने के लिये छंदा के अंत में ण के स्थान पर णि या णी का प्रयोग किया जाता है। जैसे दोहा की छंदा का नाम मीरणमिगुणी है। चतुष्पदी छंद के चारों पदों में समतुकांतता दर्शाने के लिए अंत में णु या णू का प्रयोग किया जाता है।

व :- यह भी ण वर्ण की तरह व या वा के रूप में छंदा के अंत में आता है तथा छंदा के वर्णिक स्वरूप को दर्शाता है। साथ ही मात्रिक छंदों में यह वु या वू के रूप में नौकल दर्शाता है। अर्ध सम वर्ण वृत्त में यह अंत में वी के रूप में जुड़ता है।
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ख :- क वर्ण का महाप्राण 'ख' ख या खा के रूप में प्रयुक्त होता है। जो घनाक्षरी आदि छंद विशेष में एक वर्ण दर्शाता है जो लघु = 1 या गुरु = 2 कुछ भी हो सकता है।

फ :- यह फ या फा के रूप में प्रयुक्त होता है। यह कोई भी दो वर्ण दर्शाता है। इसकी चार संभावनाएं हैं। 11, 12, 21, 22

झ :-  इसी शृंखला में यह कोई भी तीन वर्ण झ या झा के रूप में प्रयुक्त हो कर दर्शाता है। 'झु' या 'झू' के रूप में इसका विशेष अर्थ है जो घनाक्षरी की छंदाओं में ही प्रयोग में आता है। झु या झू का अर्थ है कोई भी  तीन वर्ण का शब्द जिसके मध्य में लघु वर्ण हो जिसकी चार संभावनाएँ हैं -  111, 211, 112, 212।

छ :- यह छ या छा के रूप में प्रयुक्त हो कर कोई भी चार वर्ण दर्शाता है। 'छु' या 'छू' के रूप में इसका विशेष अर्थ है जो घनाक्षरी जैसी कुछ विशेष छंदाओं में ही प्रयोग में आता है। छु या छू का अर्थ है लघु या दीर्घ कोई भी चार वर्ण जो केवल समवर्ण आधारित शब्द में हों। ये चार वर्ण दो द्विवर्णी शब्द में हो सकते हैं या एक चतुष्वर्णी शब्द में। जैसे - 'बाँके नैन सकुचाय' में चार चार वर्णों के दो खंड हैं। बाँके नैन में दो द्वि वर्णी शब्द हैं तथा 'सकुचाय' चतुषवर्णी शब्द।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Saturday, November 12, 2022

चंद्रमणि छंद "गिल्ली डंडा"

गिल्ली डंडा खेलते।
ग्राम्य बाल सब झूमते।।
क्रीड़ा में तल्लीन हैं।
मस्ती के आधीन हैं।।

फर्क नहीं है जात का।
रंग न देखे गात का।।
ऊँच नीच की त्याग घिन।
संग खेलते भेद बिन।।

खेतों की ये धूल पर।
आस पास को भूल कर।।
खेल रहे हँस हँस सभी।
झगड़ा भी करते कभी।।

बच्चों की किल्लोल है।
हुड़दंगी माहोल है।।
भेदभाव से दूर हैं।
अपनी धुन में चूर हैं।।

खुले खेत फैले जहाँ।
बाल जमा डेरा वहाँ।।
खेलें नंगे पाँव ले।
गगन छाँव के वे तले।।

नहीं प्रदूषण आग है।
यहाँ न भागमभाग है।।
गाँवों का वातावरण।
'नमन' प्रकृति का आभरण।।
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चंद्रमणि छंद विधान -

चंद्रमणि छंद 13 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह भागवत जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 13 मात्राओं की मात्रा बाँट ठीक दोहा छंद के विषम चरण वाली है जो  8 2 1 2 = 13 मात्रा है। अठकल = 4 4 या 3 3 2।

यह छंद उल्लाला छंद का ही एक भेद है। उल्लाला छंद साधारणतया द्वि पदी छंद के रूप में रचा जाता है जिसमें ठीक दोहा छंद की ही तरह दोनों सम चरण की तुक मिलाई जाती है। जैसे -

उल्लाला छंद उदाहरण -

"जीवन अपने मार्ग को, ढूँढे हर हालात में।
जीने की ही लालसा, स्फूर्ति नई दे गात में।।"
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
30-05-22

Saturday, November 5, 2022

ग़ज़ल (दोस्तो! अब दोस्तों की बात हो)

बह्र:- 2122  2122  212

दोस्तो! अब दोस्तों की बात हो,
साथ में की मस्तियों की बात हो।

बाँट लें फिर से वो खुशियाँ आज हम,
दोस्तों की सुहबतों की बात हो।

बंदरों से नाचते जिन डाल पर,
आज उन अमराइयों की बात हो।

बाग में झूलों की पींगें फिर से लें,
रंग, खुशबू, तितलियों की बात हो।

पाठशाला, घर हो या बाहर हो फिर,
नागवार_उन बंदिशों की बात हो।

भूल जाएं ग़मज़दा नाकामियाँ,
कामयाबी के दिनों की बात हो।

अब 'नमन' यादें ही बाकी रह गयीं,
जिंदा जिनसे उन पलों की बात हो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
30-07-19


बासुदेव अग्रवाल नमन USA


Wednesday, November 2, 2022

32 मात्रिक छंद "रस और कविता"

 32 मात्रिक छंद 

"रस और कविता"

मोहित होता जब कोई लख, पग पग में बिखरी सुंदरता।
दाँतों तले दबाता अंगुल, देख देख जग की अद्भुतता।।
जग-ज्वाला से या विचलित हो, वैरागी सा शांति खोजता।
ध्यान भक्ति में ही खो कर या, पूर्ण निष्ठ भगवन को भजता।।

या विरहानल जब तड़पाती, धू धू कर के देह जलाती। 
पूर्ण घृणा वीभत्स भाव की, या फिर मानव हृदय लजाती।।
जग में भरी भयानकता या, रोम रोम भय से कम्पाती।।
ओतप्रोत वात्सल्य भाव से, माँ की ममता जिसे लुभाती।।

अरि की छाती वीर भाव से, छलनी करने भुजा फड़कती।
या पर पीड़ निमज्जित छाती, जिसकी करुणा भरी धड़कती।।
या शोषकता सबलों की लख, रौद्र रूप से नसें कड़कती।
या अटपटी बात या घटना, मन में हास्य फुहार छिड़कती।।

अभियन्ता ज्यों निर्माणों को, परियोजित कर के सँवारता।
बार बार परिरूप देख वह, प्रस्तुतियाँ दे कर निखारता।।
तब वह ईंटा, गारा, लोहा, जोड़ धैर्य से आगे बढ़ता।
और अंत में वास्तुकार सा, नवल भवन सज्जा से गढ़ता।।

भावों को कवि-मन वैसे ही, नया रूप दे दे संजोता।
अलंकार, छंदों, उपमा से, भाव सजा कर शब्द पिरोता।।
एक एक कड़ियों को जोड़े, गहन मनन से फिर दमकाता।
और अंत में भाव मग्न हो, प्रस्तुत कर कर के चमकाता।।

जननी जैसे नवजाता को, लख विभोर मन ही मन होती।
नये नये परिधानों में माँ, सजा उसे पुत्री में खोती।।
वही भावना कवि के मन को, नयी रचित कविता देती है।
तब नव भावों शब्दों से सज, कविता पूर्ण रूप लेती है।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
22-05-2016

(अभियन्ता= इंजीनियर;   परियोजित= प्रोजेक्टींग;   परिरूप= डिजाइन;   प्रस्तुती= प्रेजेन्टेशन )