Saturday, January 28, 2023

गुरुगुर्वा विधान:-

 "गुरुगुर्वा" विधान:-

गुर्वा केवल गुरु वर्ण की गिनती पर आधारित काव्यातमक संरचना है जिसमें एक दूसरी से स्वतंत्र तीन पंक्तियों में शब्द चित्र खींचा जाता है, अपने चारों ओर के परिवेश का वर्णन होता है या कुछ भी अनुभव जनित भावों की अभिव्यक्ति होती है। गुर्वा की तीन पंक्तियों में 6 -5 -6 के अनुपात में कुल 17 गुरु वर्ण होते हैं। इस तरह की अन्य संरचनाएँ हाइकु, ताँका, चोका आदि के रूप में हिन्दी में प्रचलित हैं जो अक्षरों की गिनती पर आधारित हैं। 

परन्तु यह गुर्वा विधा इनसे बहुत ही विशिष्ट है। इसमें मेरे द्वारा सर्वथा नवीन अवधारणा ली गयी है। इसमें शब्दानुसार केवल गुरु वर्ण की गिनती होती है। गुरु वर्ण में दीर्घ मात्रिक अक्षर और शाश्वत दीर्घ दोनों आ जाते हैं। किसी भी शब्द में एक साथ आये दो लघु से शाश्वत दीर्घ बनता है जिसे एक गुरु के रूप में गिना जाता है। गुर्वा की पंक्ति में आये प्रत्येक शब्द के गुरु वर्ण गिने जाते हैं। शब्द में आये एकल लघु नहीं गिने जाते, वे गणनामुक्त होते हैं। 'विचारणीय' में चा और णी केवल दो गुरु हैं। वि, र, य तीन लघु होने पर भी लघु का जोड़ा नहीं है। इसलिये ये गणनामुक्त हैं और गुर्वा के लिये इस शब्द में केवल दो गुरु हैं। 'विरचा' में भी दो गुरु हैं, विर और चा। इस अवधारणा की यही विशेषता रचनाकार के सामने अनेक विकल्प प्रस्तुत करती है। इसके अतिरिक्त कलेवर भी बहुत विस्तृत हो गया। यह कलेवर अंग्रेजी आदि भाषाओं के सिलेबल आधारित गणन से किसी भी अवस्था में कम नहीं है।

इसी अवधारणा पर आश्रित एक और विधा विकसित की गयी है जिसे इस आलेख के माध्यम से मैं पाठक वृंद के समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ। सर्व प्रथम इसके नामकरण पर कुछ चर्चा करता हूँ।
बहुत वैचारिक मंथन के पश्चात इस विधा के नाम में भी गुर्वा शब्द को रखा गया है। केवल गुरु वर्ण की गणना के कारण लक्षण के आधार पर गुर्वा नाम दिया गया था। इस में भी गणना का आधार बिल्कुल वही है। दूसरे यह नितांत ही नवीन अवधारणा पर है इसलिये इस दूसरी विधा का स्वतंत्र नाम नहीं दिया गया। इस नयी विधा में एक पंक्ति भी अधिक है और कुल गुरु वर्ण भी 17 के स्थान पर 30 होते हैं। गुर्वा के पूर्व में महा, गुरु, बड़ा आदि कुछेक विकल्प पर मंथन करने के पश्चात गुरु ही जोड़ा गया है। अतः इसका नामकरण "गुरुगुर्वा" के रूप में किया गया है।इसका पूर्ण विधान निम्न प्रकार से विकसित किया गया है-

(1) "गुरुगुर्वा" में चार पंक्तियाँ होती हैं। इस में भी पंक्तियाँ स्वतंत्र रखी जाती है।

(2) इसकी चार पंक्तियों में कोई सी भी दो पंक्तियों में 8 - 8 गुरु वर्ण होते हैं और बाकी दो बची हुई पंक्तियों में 7 - 7 गुरु वर्ण होते हैं। इस नियम के अंतर्गत 6 संभावनाएँ  बनती हैं -
8 - 8 - 7 -7
8 - 7 - 8 -7
8 - 7 - 7 -8
7 - 8 - 8 -7
7 - 8 - 7 - 8
7 - 7 - 8 - 8
"गुरुगुर्वा" में कुल 30 वर्ण होते हैं। यह रचनाकार पर निर्भर है कि अपनी रचना में वह पंक्तियाँ किस प्रकार संयोजित करता है। प्रत्येक "गुरुगुर्वा" अपने आप में पूर्ण होता है।

(3) समतुकांतता बरतनी इस में भी आवश्यक है।
कोई भी 8 - 8 वाली या 7 - 7 वाली दो पंक्तियाँ समतुकांत रखनी आवश्यक है। रचनाकार चाहे तो 
 8 - 8 वाली और 7 - 7 वाली दोनों में समतुकांतता रख सकता है परन्तु दोनों में पृथक पृथक तुकांतता होनी चाहिए। यानि चारों पंक्तियाँ एक ही तुकांतता की नहीं होनी चाहिए।

मैं यहाँ अपने तीन "गुरुगुर्वा" प्रस्तुत कर रहा हूँ और बताये गये नियम उनसे सोदाहरण समझते हैं।

शुभ्रता छिटकी हुई है सृष्टि में,
हो रही झंकार वीणा की,
श्वेत उड़ते हंस, वारिज दृष्टि में,
काव्य की प्रकटी 'नमन' देवी।

(2122 2122 212 = 8 गुरु
2122 2122 2 = 7 गुरु
यह रचना उपरोक्त मापनी पर है। इसलिये गुरु वर्ण की गणना स्वयंमेव हो रही है। इसमें छिट, उड़, रिज, प्रक, मन ये पांच शाश्वत दीर्घ हैं। बाकी के एकल लघु गणनामुक्त हैं। 8 - 8 में समतुकांतता और 8 - 7 - 8 - 7 का क्रम।)
****

गरीबी में झुलसते लोग हैं,
कहीं पर चीख लुटती अस्मिता की,
उठाये सिर भयंकर रोग हैं,
बड़े असहाय से हो दिन बिताते।

(1222 1222 12 = 7
1222 1222 122 = 8
यह रचना भी मापनी पर है। इसलिये गुरु वर्ण की गणना स्वयंमेव हो रही है। इसमें लस, पर, लुट, सिर, कर, अस, दिन ये सात शाश्वत दीर्घ हैं। बाकी के एकल लघु गणनामुक्त हैं।
7 - 7 में समतुकांतता और 7 - 8 - 7 - 8 का क्रम।)
****

महावर लगाये रसिक राधिका,
कहीं कान्ह बैठे हथेली पसारे।
पड़ें लग दिखाई थिरकते चरण,
लखें नेत्र मन के सभी दृश्य न्यारे।।

(122 122 122 12 = 7 गुरु
122 122 122 122 = 8 गुरु
मापनी की रचना। वर, सिक, लग, रक, रण, मन ये छह शाश्वत दीर्घ। 8 - 8 में समतुकांतता और 7 - 8 - 7 - 8 का क्रम।)
****

इन तीनों गुरुगूर्वा में एक के पश्चात एक उभरते शब्द चित्र हैं। प्रथम गुरुगूर्वा में मानो सब ओर धवलता छिटकी हुई है, तभी वीणा बजती सी लगती है, आँखों के आगे उड़ते धवल हँस और सरोवरों में खिले धवल कमल छा गये। सभी मात शारदा के चिन्ह हैं। अंत में माँ को वंदन।

दूसरे में गरीबी, बलात्कार, फैलती बिमारियों पर लाचारी की अवस्था है।

तीसरे में राधिका पैरों में महावर लगा रही है, तभी लगा कहीं मोहन हथेली पसारे बैठे हैं, आँखों के आगे थिरकते पैरों का चित्र उभरने लगा। मानो राधिका उस पसरी हथेली पर ही नृत्य करने लगी है!!

गुरुगूर्वा में जैसा कि उदाहरणों से स्पष्ट हो रहा है, कलेवर विस्तृत होने से विभिन्न छंद और मापनी में काव्य सृजन संभव है। साथ ही तुकांतता की अनिवार्यता से रचनाओं में प्रचलित छंदों की चौपदी सी मधुरता आ रही है। इसमें रचना पंक्तियों की स्वतंत्रता रखते हुए हाइकु, ताँका इत्यादि की शैली में होती है। आप किसी विषय पर मनस्थल पर उभरते चित्र या भावों को प्रभावी क्रम में शब्दों में सजा रखें। अपने विचार या निष्कर्ष अंतिम पंक्ति में रखें।

"गुरुगुर्वा" की पंक्तियाँ यद्यपि गुरु वर्ण की गणना से बंधी हुई हैं, फिर भी इनमें वर्ण या मात्रा की संख्या का कोई बंधन नहीं है। गुरु वर्ण की संख्या के आधार पर आप अपनी मनचाही मापनी बना सकते हैं। इन तीन उदाहरणों से "गुरुगुर्वा" की व्यापकता और संभावनाओं का आकलन प्रबुद्ध पाठक वृंद स्वयं करें।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-08-21

Monday, January 23, 2023

पिरामिड (प्रेम)

(1)

हो
प्रेम,
सद्भाव
बरसात;
मन-वाटिका,
खिल खिल जाये,
मैत्री-भाव जगाये।
**

(2)

है
मन 
सौहार्द्र,
स्नेह सिक्त;
विकार-रिक्त,,
प्रेम-आभरण
नर करे वरण।
**

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
1-07-19

Tuesday, January 17, 2023

ग़ज़ल (जो सब से बराबर खुशी बाँटता है)

बह्र:- 122 122 122 122

जो सब से बराबर खुशी बाँटता है,
डरा उससे हर दूर ग़म भागता है।

उठाले ए इंसान हस्ती को इतनी,
मिले तुझको वो सब जो तू सोचता है।

सनम याद में तेरी तड़पूँ बहुत ही,
मनाये भी ये दिल नहीं मानता है।

अमीरी गरीबी से क्या फ़र्क पड़ता,
जमाना किसी को नहीं बक्शता है।

बता दे हमें एक भी शख़्स ऐसा,
हुई जिन्दगी में न जिससे ख़ता है।

मुहब्बत की नजरों से दुनिया जो देखे,
उसी आदमी को खुदा चाहता है।

छुपायेगा कैसे 'नमन' उससे जिस को,
तेरी सारी गुस्ताखियों का पता है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
08.01.23

Friday, January 13, 2023

चौपई छंद "चूहा बिल्ली"

चौपई छंद / जयकरी छंद

(बाल कविता)

म्याऊँ म्याऊँ के दे बोल।
आँखें करके गोल मटोल।।
बिल्ली रानी है बेहाल।
चूहे की बन काल कराल।।

घुमा घुमा कर अपनी पूँछ।
ऊपर नीचे करके मूँछ।।
पंजों से दे दे कर थाप।
मूषक लेना चाहे चाप।।

छोड़ सभी बाकी के काज।
चूँ चूँ की दे कर आवाज।।
मौत खड़ी है सिर पर जान।
चूहा भागा ले कर प्रान।।

ज्यों कड़की हो बिजली घोर।
झपटी बिल्ली दिखला जोर।।
पंजा मूषक सका न झेल।
'नमन' यही जीवन का खेल।।
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चौपई छंद / जयकरी छंद विधान - 

चौपई छंद जो जयकरी छंद के नाम से भी जाना जाता है,15 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। कहीं कहीं इसका जयकारी छंद नाम भी मिलता है। यह तैथिक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। 

चौपई छंद से मिलते-जुलते नाम वाले अत्यंत ही प्रसिद्ध चौपाई छंद से भ्रम में नहीं पड़ना चाहिये। चौपाई छंद 16 मात्राओं का छंद है जिसके चरणान्त से एक लघु निकाल दिया जाय तो चरण की कुल मात्रा 15 रह जाती है और चौपाई छंद से मिलता जुलता नाम चौपई छंद हो जाता है। इस प्रकार चौपई छंद का चरणान्त गुरु-लघु रह जाता है जो इसकी मूल पहचान है। 

इन 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 12 + S1 है। 12 मात्रिक अठकल चौकल, चौकल अठकल या तीन चौकल हो सकता है। अठकल में दो चौकल या 3 3 2 मात्रा हो सकती है। चौपई छंद के सम्बन्ध में एक तथ्य यह भी सर्वमान्य है कि चौपई छंद बाल साहित्य के लिए बहुत उपयोगी है, क्योंकि इसमें गेयता अत्यंत सधी होती है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
06-06-22

Tuesday, January 10, 2023

छंदा सागर (कल विवेचना)

                       पाठ - 06

छंदा सागर ग्रन्थ


"कल विवेचना"


कला शब्द मात्रा का पर्यायवाची है जिससे कल शब्द की व्युत्पत्ति हुई है। कल विवेचना अर्थात मात्राओं की विवेचना। हिंदी के मात्रिक छंद गणों और वर्ण की संख्याओं से मुक्त होते हैं परन्तु उनमें मात्राओं का अनुशासन रहता है और यह अनुशासन कलों पर आधारित रहता है। मात्रिक छंदों के विस्तृत संसार में प्रवेश करने के पूर्व कलों की पूर्ण समीक्षा आवश्यक है। प्रस्तुत पाठ में हम विभिन्न कलों की संरचना, उनके नियम और उनके नामकरण के विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे। 

स्थूल रूप से समस्त कलों के दो विभाग हैं। इसके बाद मात्रा की संख्या के आधार पर उन दो विभागों में कई कल हैं। जिनमें मात्राओं की संख्या दो से विभाजित हो सकती हैं वे समकल कहलाते हैं जैसे द्विकल, चौकल, छक्कल, अठकल आदि। जिनमें मात्रा की संख्या दो से विभाजित न हो वे विषमकल कहलाते हैं जैसे त्रिकल, पंचकल, सतकल आदि।

कलों के संकेतक:- किसी भी छंद की छंदा के निर्माण में संकेतक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं अतः सर्वप्रथम हम विभिन्न कलों के संकेतक सुनिश्चित करते हैं। समकल अर्थात दो से विभाजित संख्या की मात्राएँ। इनके लिए हमारे पास पहले से ही संकेतक हैं।
2 मात्रा (द्विकल) गुरु वर्ण, संकेत ग या गा
22 = 4 मात्रा (चौकल) ईगागा वर्ण, संकेत गि या गी
222 = 6 मात्रा (छक्कल) मगण, संकेत म या मा
2222 = 8 मात्रा (अठकल) ईमग गणक, संकेत मि या मी।

समकल का प्रयोग मात्रिक, वर्णिक और वाचिक तीनों स्वरूप की छंदाओं में होता है परन्तु प्रयोग में विभिन्नता है। मात्रिक छंदाओं में इनका प्रयोग कल आधारित नियमों के अनुसार होता है जिसकी विवेचना हम इसी पाठ में पुनः करेंगे। वर्णिक छंदाओं में 2 सदैव दीर्घ वर्ण ही रहता है। वाचिक छंदाओं में 2 को दीर्घ वर्ण के रूप में भी रखा जा सकता है तथा शास्वत दीर्घ (एक शब्द में साथ साथ आये दो लघु) के रूप में भी रखा जा सकता है। गुरु छंदाएँ जिनमें केवल गुरु यानी 2 का प्रयोग होता है, उनके वाचिक स्वरूप में 2 को दो स्वतंत्र लघु में भी तोड़ सकते हैं यानी दो शब्दों में साथ साथ आये दो लघु।

विषमकल के लिए हमारे पास कोई पूर्वनिर्धारित वर्ण या गुच्छक नहीं है। इसका कारण यह है कि समकल में केवल 2 यानी गुरु वर्ण का प्रयोग होता है अतः इनका रूप ध्रुव है। जबकि विषमकल में 1 = लघु और 2 = गुरु, दोनों वर्ण का प्रयोग होता है। समकल की तरह इनका रूप ध्रुव नहीं है। इनके लिए विशेष संकेतक हैं, जिनसे हम चतुर्थ पाठ में परिचित हो चुके है। विषमकल निम्न हैं जिनका प्रयोग केवल मात्रिक स्वरूप की छंदाओं में होता है।

त्रिकल = 3 मात्रा, संकेत 'बु' या 'बू'
पंचकल = 5 मात्रा, संकेत 'पु' या 'पू'
सतकल = 7 मात्रा, संकेत 'डु' या 'डू'
नवकल = 9 मात्रा, संकेत 'वु' या 'वू'

इस प्रकार चार समकल और चार ही विषमकल हैं। अब हम एक एक कल की पूर्ण विवेचना करने जा रहे हैं। यह कल विवेचना मात्रिक छंदों को आधार बना कर की गई है।

समकल:-

द्विकल = 2 - द्विकल के दो रूप हैं - एक शब्द में साथ साथ आये दो लघु 'शास्वत दीर्घ' और दीर्घ यानी 2 । जैसे - तुम, वह, मैं, है, जो आदि। इसके लिये हमारे पास गुरु वर्ण है जिसके संकेतक 'ग' तथा 'गा' हैं। द्विकल के लिये छंदाओं मे उच्चारण की सुविधानुसार दोनों संकेतक का प्रयोग होता है।

चौकल = 4 - चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं। चौकल के नियम निम्न प्रकार से हैं जिनको सदैव याद रखना चाहिए क्योंकि इसका प्रयोग बहुतायत से होता है।
(1) चौकल में पूरित जगण (121) शब्द, जैसे विचार महान उपाय आदि नहीं आ सकते। 
(2) चौकल की प्रथम मात्रा पर कभी भी शब्द समाप्त नहीं हो सकता। 
चौकल में 3+1 मान्य है परन्तु 1+3 मान्य नहीं है। जैसे 'व्यर्थ न' 'डरो न' आदि मान्य हैं। 'डरो न' पर ध्यान चाहूँगा 121 होते हुए भी मान्य है क्योंकि यह पूरित जगण नहीं है। डरो और न दो अलग अलग शब्द हैं। वहीं चौकल में 'न डरो' मान्य नहीं है क्योंकि न शब्द चौकल की  प्रथम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।
3+1 रूप खंडित-चौकल कहलाता है जो पद के आदि या मध्य में तो मान्य है पर अंत में मान्य नहीं है। 'डरे न कोई' से पद का अंत हो सकता है 'कोई डरे न' से नहीं। चौकल के लिये हमारे पास ईगागा वर्ण है जिसके संकेतक 'गि' तथा 'गी' हैं।

छक्कल = 6 - छक्कल में भी 1 से चार मात्रा में पूरित जगण नहीं होना चाहिए तथा प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द भी समाप्त नहीं होना चाहिए। केवल छक्कल आधारित सृजन में पूरित जगण अंत में आ सकता है। जिन छंदाओं के अंत में छक्कल पड़ता है उनमें यह
2+4 या 4+2 इन दो ही रूप में रहता है। 12+12 या 21+12 दोनों खंडित चौकल + 2 का ही रूप है।
"असफलता में धीर रहो।
धीरज खो कर विकल न हो।" ऐसे पद मान्य हैं। छंदा के आदि या मध्य में छक्कल का 3+3 रूप भी मान्य है जिसमें 12+21 या 21+21 रूप आ सकता है। छक्कल के लिये हमारे पास मगण है जिसके संकेतक 'म' तथा 'मा' हैं।

अठकल = 8 - अठकल के दो रूप हैं। प्रथम 4+4 अर्थात दो चौकल। दूसरा 3+3+2 है जिसमें त्रिकल के तीनों (111, 12 और 21) तथा द्विकल के दोनों रूप (11 और 2) मान्य हैं। अठकल के नियम निम्न प्रकार से हैं जिनमें दक्षता होनी अत्यंत आवश्यक है। चौकल और अठकल अधिकांश मात्रिक छंदाओं के आधार हैं।
(1) अठकल की 1 से 4 मात्रा पर और 5 से 8 मात्रा पर पूरित जगण - 'उपाय' 'सदैव 'प्रकार'' जैसा शब्द नहीं आ सकता।
(2) अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। 'राम नाम जप' सही है जबकि 'जप राम नाम' गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।   
(3) अठकल का अंत सदैव (2 या 11) से होना चाहिए। 
पूरित जगण अठकल की तीसरी या चौथी मात्रा से ही प्रारंभ हो सकता है क्योंकि 1 और 5 से वर्जित है तथा दूसरी मात्रा से प्रारंभ होने का प्रश्न ही नहीं है, कारण कि प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता।  'तुम सदैव बढ़' में जगण तीसरी मात्रा से प्रारंभ हो कर 'तुम स' और 'दैव' ये दो त्रिकल तथा 'बढ़' द्विकल बना रहा है।
'राम सहाय न' में जगण चौथी मात्रा से प्रारंभ हो कर 'राम स' और 'हाय न' के रूप में दो खंडित चौकल बना रहा है।

एक उदाहरणार्थ रची चौपाई में ये नियम देखें-
"तुम गरीब से रखे न नाता।
बने उदार न हुये न दाता।।"

"तुम गरीब से" अठकल तथा तीसरी मात्रा से जगण प्रारंभ।
"रखे न" खंडित चौकल "नाता" चौकल। "नाता रखे न" लिखना गलत है क्योंकि खंडित चौकल पद के अंत में नहीं आ सकता।
"बने उदार न" अठकल तथा चौथी मात्रा से जगण प्रारंभ।
अठकल के संकेत ईमग गणक (2222) के 'मि' तथा 'मी' हैं।

समकल संयोजन:- मात्रिक छंदाओं में प्रयुक्त विभिन्न समकल आधारित मात्राओं की संभावनाएं देखें।
10 मात्रिक = मीगण - 8+2; 4+4+2
12 मात्रिक = मीगिण - 8+4; 4+8; 4+4+4
14 मात्रिक = मीमण - 8+6; 4+8+2; 4+4+6
16 मात्रिक = मीदण - 8+8; 8+4+4; 4+8+4; 4+4+4+4; 
मीगण आदि छंदाओं के अंत का ण या णा इनका मात्रिक स्वरूप बता रहा है।
(16 मात्रिक को मीदण ही लिखा जायेगा पर यह रचनाकार पर निर्भर है कि वह इन 16 मात्राओं की ऊपर लिखी 4 संभावनाओं में से कौन सी प्रयोग में लाता है। इस संदर्भ में मीबे का अर्थ 14 मात्रिक है, जिसकी अंतिम छह मात्राएँ तीन दीर्घ वर्ण के रूप में हैं। )
****

विषम कल:-

त्रिकल = 3 - त्रिकल के दो रूप हैं। 12 जैसे - नया, कभी, कमल, सुलभ आदि तथा 21 जैसे - राम, अश्व, दैन्य आदि। इसका संकेतक बु या बू है।

पंचकल = 5 - पंचकल त्रिकल और द्विकल का सम्मिलित रूप है जिसके दो रूप बनते हैं। 3+2 या 2+3। इनमें त्रिकल द्विकल की समस्त संभावनाएँ आ सकती हैं। इस प्रकार पंचकल की निम्न तीन संभावनाएं हैं-
122
212
221
इसके अतिरिक्त पंचकल को 4+1 और 1+4 में भी तोड़ा जा सकता है। पंचकल पु या पू संकेतक से दर्शाया जाता है।

सतकल = 7 - सतकल का निम्न लिखित रूप में से कोई भी रूप लिया जा सकता है।
6+1 या 1+6
5+2 या 2+5
4+3 या 3+4
सतकल की निम्न चार संभावनाएं बनती हैं।
1222
2122
2212
2221
सतकल को डु या डू संकेतक से दर्शाया जाता है।

नवकल = 9 - नवकल की निम्न पांच संभावनाएं हैं।
12222
21222
22122
22212
22221
इन पांच संभावनाओं को हम निम्न प्रकार से तोड़ सकते हैं।
8+1 या 1+8
7+2 या 2+7
6+3 या 3+6
5+4 या 4+5
नवकल को वु या वू संकेतक से दर्शाया जाता है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया

Thursday, January 5, 2023

भ्रमर दोहा छंद "सेवा"

(भ्रमर दोहा छंद के प्रति दोहे में 22 दीर्घ और 4 लघु वर्ण होते हैं।)

बीती जाये जिंदगी, त्यागो ये आराम।
थोड़ी सेवा भी करो, छोड़ो दूजे काम।।

सेवा प्राणी मात्र की, शिक्षा का है सार।
वाणी कर्मों में रखें, सेवा का आचार।।

सच्ची सेवा ही सदा, दे सच्चा उल्लास।
सेवा ही संतुष्टि है, सेवा ही विश्वास।।

लोगों के नेता बने, छोड़ी सारी लाज।
तस्वीरों के सामने, होती सेवा आज।।

काया से जो क्षीण हैं, हो रोगी लाचार।
शुश्रूषा से दो उन्हें, जीने का आधार।।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन' ©
तिनसुकिया
24-10-19