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Thursday, December 10, 2020

सरसी छंद "बच्चों का आजादी पर्व"



सरसी छंद / कबीर छंद

आजादी का पर्व सुहाना, पन्द्रह आज अगस्त।
बस्ती के निर्धन कुछ बच्चे, देखो कैसे मस्त।।
टोली इनकी निकल पड़ी है, मन में लिये उमंग।
कुछ करने की धुन इनमें है, लगते पूर्ण मलंग।।

चौराहे पर सब आ धमके, घेरा लिया बनाय।
भारत की जय कार करे तब, वे नभ को गूँजाय।।
बना तिरंगा कागज का ये, लाठी में लटकाय।
फूलों की रंगोली से फिर, उसको खूब सजाय।।

झंडा फहरा कर तब उसमें, तन के करें सलाम।
खेल खेल में किया इन्होंने, देश-भक्ति का काम।।
हो उमंग करने की जब कुछ, आड़े नहीं अभाव।
साधन सारे जुट जाते हैं, मन में जब हो चाव।।

बच्चों का उत्साह निराला, आजादी का रंग।
ऊँच नीच के भाव भुला कर, पर्व मनाएँ संग।।
बच्चों में जब ऐसी धुन हो, होता देश निहाल।
लाज तिरंगे की जब रहती, ऊँचा होता भाल।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-08-17

Saturday, January 11, 2020

सरसी छंद "खेत और खलिहान"

सरसी छंद / कबीर छंद

गाँवों में हैं प्राण हमारे, दें इनको सम्मान।
भारत की पहचान सदा से, खेत और खलिहान।।

गाँवों की जीवन-शैली के, खेत रहे सोपान।
अर्थ व्यवस्था के पोषक हैं, खेत और खलिहान।।

अन्न धान्य से पूर्ण रखें ये, हैं अपने अभिमान।
फिर भी सुविधाओं से वंचित, खेत और खलिहान।।

अंध तरक्की के पीछे हम, भुला रहे पहचान।
बर्बादी की ओर अग्रसर, खेत और खलिहान।।

कृषक आत्महत्या करते हैं, सरकारें अनजान।
चुका रहे कीमत इनकी अब, खेत और खलिहान।।

अगर बचाना हमें देश को, मन में हो ये भान।
आगे बढ़ते रहें सदा ही, खेत और खलिहान।।


बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
08-03-18

Thursday, October 10, 2019

सरसी छंद "राजनाथजी"

सरसी छंद / कबीर छंद

भंभौरा में जन्म लिया है, यू पी का यक गाँव।
रामबदन खेतीहर के घर, अपने रक्खे पाँव।।
सन इक्यावन की शुभ बेला, गुजरातीजी मात।
राजनाथजी जन्म लिये जब, सबके पुलके गात।।

पाँव पालने में दिखलाये, होनहार ये पूत।
थे किशोर तेरह के जब ये, बने शांति के दूत।।
जुड़ा संघ से कर्मवीर ये, आगे बढ़ता जाय।
पीछे मुड़ के कभी न देखा, सब के मन को भाय।।

राजनाथ जी सदा रहे हैं, सभी गुणों की खान।
किया दलित पिछड़ों की खातिर, सदा गरल का पान।।
सदा देश का मान बढ़ाया, स्पष्ट बात को बोल।
हिन्दी को इनने दिलवाया, पूरे जग में मोल।।

गृह मंत्रालय थाम रखा है, होकर के निर्भीक।
सिद्धांतों पर कभी न पीटे, तुष्टिकरण की लीक।।
अभिनन्दन 'संसार करत है, 'नमन' आपको 'नाथ'।
बरसे सौम्य हँसी इनकी नित, बना रहे यूँ साथ।।

लिंक --> सरसी छंद / कबीर छंद विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया (असम)
28-09-17

Monday, September 9, 2019

सरसी छंद / कबीर छंद 'विधान'

सरसी छंद / कबीर छंद

सरसी छंद जो कि कबीर छंद के नाम से भी जाना जाता है, चार पदों का सम-पद मात्रिक छंद है। इस में प्रति पद 27 मात्रा होती है। यति 16 और 11 मात्रा पर है अर्थात प्रथम चरण 16 मात्रा का तथा द्वितीय चरण 11 मात्रा का होता है। दो दो पद समतुकान्त। 

मात्रा बाँट-16 मात्रिक चरण ठीक चौपाई छंद वाला चरण और 11 मात्रा वाला ठीक दोहा छंद का सम चरण। छंद के 11 मात्रिक खण्ड की मात्रा बाँट अठकल+त्रिकल (ताल यानी 21) होती है। सुमंदर छंद के नाम से भी यह छंद जाना जाता है।

एक स्वरचित पूर्ण सूर्य ग्रहण के वर्णन का उदाहरण देखें।

हीरक जड़ी अँगूठी सा ये, लगता सूर्य महान।
अंधकार में डूब गया है, देखो आज जहान।।
पूर्ण ग्रहण ये सूर्य देव का, दुर्लभ अति अभिराम।
दृश्य प्रकृति का अनुपम अद्भुत, देखो मन को थाम।।

बासुदेव अग्रवाल नमन
तिनसुकिया