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Wednesday, March 15, 2023

ग़ज़ल (मैं उजाले की लिए चाह)

बह्र:- 2122  1122  1122  22

मैं उजाले की लिए चाह सफ़र पर निकला,
पर अँधेरों में भटकने का मुकद्दर निकला।

जो दिखाता था सदा बन के मेरा हमराही,
मेरी राहों का वो सबसे बड़ा पत्थर निकला।

दोस्त कहलाते जो थे उन पे रहा अब न यकीं,
आजमाया जिसे भी, जह्र का खंजर निकला।

पास जिसके भी गया प्रीत का दरिया मैं समझ,
पर अना में ही मचलता वो समंदर निकला।

कारवाँ ज़ीस्त की राहों का मैं समझा था जिसे,
नफ़रतों से ही भरा बस वो तो लश्कर निकला।

जीत के जो भी यहाँ आया था रहबर बन के,
सिर्फ अदना सा हुकूमत का वो चाकर निकला।

दोस्तों पर था बड़ा नाज़ 'नमन' को हरदम,
काम पड़ते ही हर_इक आँख बचा कर निकला।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-06-19

Tuesday, June 28, 2022

ग़ज़ल (आग बरसाएँ घटाएँ)

बह्र:- 2122  1122  1122  22

आग बरसाएँ घटाएँ तेरे जाने के बाद,
लगतीं लपटों सी हवाएँ तेरे जाने के बाद।

कौन सी दुनिया में भँवरे औ' परींदे गये उड़,
या हुईं चुप ये दिशाएँ तेरे जाने के बाद।

कह के थक जाते थे हम तू न थकी सुन के कभी,
हाले दिल किसको सुनाएँ तेरे जाने के बाद।

घर की दीवारों ने भी अब तो किया कानों को बंद,
फिर किसे हम दें सदाएँ तेरे जाने के बाद।

किसके हम नाज़ उठाएँ औ सहें नित नखरे,
देखें अब किसकी अदाएँ तेरे जाने के बाद।

इन फ़ज़ाओं का है वैसा ही सुहाना मंज़र,
पर कचोटें ये छटाएँ तेरे जाने के बाद।

ज़िंदगी से ही गया ऊब 'नमन' ये जानम,
किसकी अब पाये दुआएँ तेरे जाने के बाद।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-05-19

Friday, February 11, 2022

ग़ज़ल (मुस्कुराता ही रहे बाग़ में)

बह्र:- 2122  1122  1122  22

मुस्कुराता ही रहे बाग़ में गुल खिल तन्हा,
फ़िक्र क्या ज़िंदगी में तू है अगर दिल तन्हा।

मुश्किलें सामने आयीं तो गये छोड़ सभी,
रह गया मैं ही ज़माने के मुक़ाबिल तन्हा।

बज़्म-ए-दुनिया की तो रौनक़ ही मेरे यारों से,
गर नहीं साथ वे लगती भरी महफ़िल तन्हा।

खुद की हिम्मत ही नहीं साथ तो क्या दुनिया करे,
हौसला गर है तो सब हो सके हासिल तन्हा।

पास में नाव न, पतवार न, तूफाँ है ज़बर,
तैर कर ढूंढ़ना हम को ही है साहिल तन्हा।

अपनी नफ़रत को जो अंज़ाम दे बंदूकों से,
खुद भी दहशत में वे रह मरते हैं तिल तिल तन्हा।

खून खुद का ही मैं कर बैठा हूँ फँस दुनिया में,
मर गया कब का 'नमन' रह गया क़ातिल तन्हा।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
01-10-19

Friday, December 10, 2021

ग़ज़ल (पास बैठे तो हैं पर आँख)

बह्र: 2122 1122 1122  22

पास बैठे तो हैं पर आँख उठाते भी नहीं,
मुझसे क्या उन को शिकायत है बताते भी नहीं।

झूठे वादों से रिझा मुँह को छुपाते भी नहीं,
ढीट नेता ये बड़े भाग के जाते भी नहीं।

ख्वाब झूठे जो दिखा वोट बटोरे हम से,
ऐसे मक्कार कभी दिल में समाते भी नहीं।

रंग गिरगिट से बदलते हैं जो मतलब के लिए,
लोग जो दिल से खरे उनको वो भाते भी नहीं।

ज़ख्म गहरे जो मिले ज़ीस्त से, रह रह रिसते,
दर्द सहते हैं तो क्या! अश्क़ बहाते भी नहीं।

सामने रहके भी महबूब सितमगर मेरे,
पास आये न सही पास बुलाते भी नहीं।

एक चहरे पे चढ़ा लेते जो दूजा चहरा,
भेष रहबर का 'नमन' राह दिखाते भी नहीं।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
24-08-18

Monday, April 5, 2021

ग़ज़ल (जब तलक उनकी करामात)

बह्र:- 2122 1122 1122 22

जब तलक उनकी करामात नहीं होती है,
आफ़तों की यहाँ बरसात नहीं होती है।

जिनकी बंदूकें चलें दूसरों के कंधों से,
उनकी खुद लड़ने की औक़ात नहीं होती है।

आड़ ले दोस्ती की भोंकते खंजर उनकी,
दोस्ती करने की ही जा़त नहीं होती है।

अब हमारी भी हैं नज़दीकियाँ उनसे यारो,
यार कहलाने लगे बात नहीं होती है।

राह चुनते जो सदाक़त की यकीं उनका यही,
इस पे चलने से कभी मात नहीं होती है।

वे भला समझेंगे क्या ग़म के अँधेरे जिनकी,
ग़म की रातों से मुलाक़ात नहीं होती है।

ऐसी दुनिया से 'नमन' दूर ही रहना जिस में,
चैन से सोने की भी रात नहीं होती है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
18-07-2020

Tuesday, May 5, 2020

ग़ज़ल (मेरी आँखों में मेरा प्यार)

बह्र: 2122/1122 1122 1122  22

मेरी आँखों में मेरा प्यार उमड़ता देखो,
दिले नादाँ पे असर कितना तुम्हारा देखो।

रब ने कितना ये अजीब_इंसाँ बनाया देखो,
नेमतें पा सभी किस्मत का ये मारा देखो।

ज़िंदगी रेत सी मुट्ठी से फिसलती जाये,
इसके आगे ये बशर कितना बिचारा देखो।

इश्क़ का ऐसा भी होता है असर था न पता,
किस क़दर बन गये हम सब के तमाशा देखो।

ले के जायेगी कहाँ होड़ तरक्की की हमें,
कितना आफ़त का ये मारा है जमाना देखो।

ढूँढ़ते तुम हो अगर दीन औ' ईमान यहाँ,
चंद सिक्कों के लिए सड़कों पे बिकता देखो।

नींद में अब भी हो तुम देश के नेताओं अगर,
जागने जनता लगी और ठिकाना देखो।

तुम बुरे वक़्त को यादों से विदा कर दो बशर,
आगे बढ़ना है अगर अच्छे का सपना देखो।

रब ने सब से ही तुम्हें ख़ास बनाया है 'नमन',
खुद को फिर भूल से भी कम न समझना देखो।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
27-08-18

Tuesday, April 7, 2020

ग़ज़ल (चोट दिल पर है लगी जो मैं)

बह्र: 2122 1122 1122  22

चोट दिल पर है लगी जो मैं दिखा भी न सकूँ,
बात अपनों की ही है जिसको बता भी न सकूँ।

अम्न की चाह यहाँ जंग पे वो आमादा,
ऐसे जाहिल से मैं नफ़रत को छिपा भी न सकूँ।

इश्क़ पर पहरे जमाने के लगे हैं कैसे,
एक नजराना मैं उनके लिए ला भी न सकूँ ।

सादगी मेरी बनी सब की नज़र का काँटा,
मुझको इतने हैं मिले जख़्म गिना भी न सकूँ।

हाय मज़बूरी ये कैसी है अना की मन में,
दोस्त जो रूठ गये उनको मना भी न सकूँ।

ऐसी दौलत से भला क्या मैं करूँगा हासिल,
जब वतन को हो जरूरत तो लुटा भी न सकूँ।

शाइरी ज़िंदगी अब तो है 'नमन' की यारो,
शौक़ ये ऐसा चढ़ा जिसको मिटा भी न सकूँ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-09-17

Sunday, August 4, 2019

ग़ज़ल (आप का साथ मिला)

बह्र: 2122 1122 1122  22

आप का साथ मिला, मुझ को सँवर जाना था,
पर लिखा मेरे मुक़द्दर में बिखर जाना था।

आ सका आपके नज़दीक न उल्फ़त में सनम,
तो मुझे इश्क़ में क्या हद से गुज़र जाना था।

पहले गर जानता ग़म इस में हैं दोनों के लिये,
इस मुहब्बत से मुझे तब ही मुकर जाना था।

जब भी वो आँख दिखाता है, ख़ता खाता है,
शर्म गर होती उसे कब का सुधर जाना था।

जो लड़े हक़ के लिये, सर पे कफ़न रखते थे,
अहले दुनिया से भला क्यों उन्हें डर जाना था।

सात दशकों से अधिक हो गये आज़ादी को,
देश का भाग्य तो इतने में निखर जाना था।

जो समझते हैं 'नमन' देश को जागीर_अपनी,
ये नशा उनका अभी तक तो उतर जाना था।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
21-02-19

Saturday, August 3, 2019

2122 1122 1122 22 बह्र के गीत

1 वो मेरी नींद मेरा चैन मुझे लौटा दो

2 ऐ सनम जिसने तुझे चाँद सी सूरत दी है

3 तेरी ज़ुल्फ़ों से जुदाई तो नहीं माँगी थी

4 जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग

5 कौन आया कि निगाहों में चमक जाग उठी

6 कोई फरियाद तेरे दिल में छुपी हो जैसे