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Monday, April 5, 2021

ग़ज़ल (आ गयी होली)

बह्र:- 2122 2122 2122 2

पर्वों में सब से सुहानी आ गयी होली,
फागुनी रस में नहाई आ गयी होली।

टेसुओं की ले के लाली आ गयी होली,
रंग बिखराती बसंती आ गयी होली।

देखिए अमराइयों में कोयलों के संग,
मंजरी की ओढ़ चुनरी आ गयी होली।

चंग की थापों से गुंजित फाग की धुन में,
होलियारों की ले टोली आ गयी होली।

दूर जो परदेश में हैं उनके भावों में,
याद अपनों की जगाती आ गयी होली।

होलिका के संग सारे हम जला कर भेद,
भंग पी लें देश-हित की आ गयी होली।

एकता के सूत्र में बँध हम 'नमन' झूमें,
प्रीत की अनुभूति देती आ गयी होली।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
22-3-21

Wednesday, June 3, 2020

ग़ज़ल (फँस गया गिर्दाब में मेरा सफ़ीना है)

बह्र:- 2122  2122  2122  2

फँस गया गिर्दाब में मेरा सफ़ीना है,
नाख़ुदा भी पास में कोई न दिखता है।

दोस्तो आया बड़ा ज़ालिम जमाना है,
चोर सारा हो गया सरकारी कुनबा है।

आबरू तक जो वतन की ढ़क नहीं सकता,
वो सियासत की तवायफ़ का दुपट्टा है।

रो रही अच्छे दिनों की आस में जनता,
पर सियासी हलकों में मौसम सुहाना है।

शायरी अच्छे दिनों पर हो तो कैसे हो,
पेट खाली, जिस्म नंगा, घर भी उजड़ा है।

जिस सुहाने चाँद में सपने सजाये थे,
वो तो बंजर सी जमीं का एक क़तरा है।

जी रहें अटकी हुई साँसें 'नमन' हम ले,
रहनुमा डाकू बने नाशाद जनता है,

गिर्दाब = भँवर
नाख़ुदा = मल्लाह

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
7-10-19

Friday, September 6, 2019

ग़ज़ल (जो मुसीबत में किसी के काम आता है)

बह्र:- 2122*3  2

जो मुसीबत में किसी के काम आता है,
सबसे पहले उसका दिल में नाम आता है।

टूट गर हर आस जाए याद हरदम रख,
अंत में तो काम केवल राम आता है।

मात के दरबार में नर सोच के ये जा,
माँ-कृपा जिस पे हो माँ के धाम आता है।

दुख का आना सुख का जाना ठीक वैसे ही,
ज्यों अँधेरा दिन ढ़ले हर शाम आता है।

जो ख़ुदा पे रख भरौसा ज़िंदगी जीता,
उसको ही अल्लाह का इलहाम आता है।

राह सच्चाई की चुन ली अब किसे परवाह,
सर पे किसका कौनसा इल्ज़ाम आता है।

गर समझते हो 'नमन' ये काम है अच्छा,
क्यों हो फिर ये फ़िक्र क्या परिणाम आता है

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
20-12-2018

(धुन- बस यही अपराध मैं हर बार)